राजनीति विश्ववार्ता

भारत, राष्ट्रवाद और राजनीति

 नरेश भारतीय

हाल ही में भारतवंशी और भारतप्रेमियों की लन्दन में आयोजित एक विशाल जनसभा में भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री नितिन गडकरी के नेतृत्व में एक संपर्क एवं सद्भावना मंडल के विचार सुनने का अवसर मिला. भाजपा के विदेश प्रकोष्‍ठ के संयोजक पूर्व विधायक श्री विजय जौली, राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे और गुजरात से राज्य सभा की नव निर्वाचित सदस्य श्रीमती स्मृति इरानी ने भी भाषण दिए. “क्या आप पार्टी के लिए धन एकत्र करने आए हैं?” एक पत्रकार द्वारा पूछे गए इस प्रश्न के जवाब में श्री गडकरी ने कहा “बिल्कुल भी नहीं.” तो फिर विदेश में भाजपा की रीति-नीति की चर्चा का प्रयोजन क्या हो सकता है? किसी के लिए भी ऐसे उत्सुक प्रश्नों के उत्तर पाने की इच्छा होना स्वाभाविक है. मैं समझता हूँ कि इसके लिए प्रवासी भारतीयों के दिल में झाँकने की आवश्यकता है जो यह लगता है कि आने वाले वर्षों में भाजपा से भारत के उद्धार की कुछ उम्मीदें संजोए बैठे हैं.

 

विश्व के किसी भी भूभाग में बसा भारतीय मन प्राण से सदा भारतीय ही रहता है. उसके हृदय में भारत बसता है. वह अपने मूल देश से दैहिक दूरी होते भी भारत की सोचता है, भारत की कहता है और ठीक उसी तरह से भारत की चिंता करता है जैसे अपने परिवार से बिछुड़ा कोई कहीं भी हो अपने समरक्तों की करता है. आज यह जगजाहिर तथ्य है कि सब भारतीयों की आकांक्षाएं सांझी हैं, सुख, दुःख और अपने राष्ट्रजीवन से अपेक्षाएं सांझी हैं. प्रवासी भारतीयों को भी भारतवासियों की ही तरह कष्ट और चिंता होती है जब वे यह सुनते देखते हैं कि भारत में आतंकवाद का राक्षस बेरोकटोक अपना खूनी पंजा फैला कर लोगों के प्राण हर ले लेता है. विनाश और विध्वंस के दोषियों को उनके मानवाधिकारों की रक्षा के नाम पर जीते रहने दिया जाता है. प्रवासी अपने मूल देश भारत की आवश्यकता के समय झट सतर्क, सावधान होकर समर्पण भाव और तत्परता के साथ अपनी मातृभूमि के लिए सब कुछ करने के लिए तत्पर खड़ा मिलता है लेकिन यह अपेक्षा भी करता है कि भारत के राजनेता के सर्वांगीण विकास पर सन्नद्धता के साथ ध्यान दे. उनकी भावनाओं की कद्र भी करे.

इसीलिए, श्री नितिन गडकरी के मुख्य भाषण से पहले जब स्मृति इरानी ने इन शब्दों के साथ अपना संबोधन शुरू करते हुए कहा कि “मैं आपको अनिवासी भारतीय न कह कर भारतीय कह कर संबोधित करना पसंद करूँगी” तो भारतवंशी जनसमूह ने एक लंबी करतल ध्वनि के साथ उनके इन हृदयग्राही शब्दों का स्वागत किया क्योंकि वे खुद को भारत और भारतवासियों से अलग नहीं मानते. उन्हें समस्त भारतीयों को एकसूत्र में माला की तरह पिरोने की आवश्यकता को रेखांकित करने वाले शब्द महत्वपूर्ण प्रतीत होते हैं. कुछ वर्ष पहले, जब पूर्व प्रधामंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने विदेश प्रवास में स्थानीय भारतीयों को संबोधित करते हुए ऐसी ही भाव प्रधान शब्दावली का प्रयोग किया था तो उन्होंने प्रवासी भारतीयों के मन को मोह लिया था. विदेशवासी भारतवंशियों को भारत और भारतवासियों के साथ जोड़ते हुए उनके बीच एकात्मभाव को प्रखर करने की उनकी अपूर्व दूरदर्शिता का ही परिणाम है कि प्रवासी और देशवासी भारतीय सब एक ही धरातल पर खड़े हैं.

निस्संदेह, भारत की सरकार, भारत की जनता और संभवत: सत्ता और विपक्ष के सभी जिम्मेदार नेताओं ने इस सत्य का साक्षात्कार किया है कि देश और विदेशवासी सभी भारतीयों, विशेष रूप से युवा पीढ़ी ने, भारत को विश्व में गौरवपूर्ण स्थान पर पहुँचाने के लिए घोर परिश्रम किया है. इसी तथ्य को जानते और पहचानते हुए यह जरूरी था कि भारत सरकार विदेशवासी भारतीयों की भारत राष्ट्र के प्रति संवेदनशीलता को सही ढंग से रेखांकित करती. कथित दोहरी नागरिकता के मामले में दिए गए पहचान प्रमाणपत्रों पर ओवरसीस सिटीजन आफ इंडिया के हिन्दी अनुवाद में उसे विदेशी भारतीय बताने से बचती. भारतीयों के लिए विदेशस्थ या विदेशवासी भारतीय शब्दप्रयोग कहीं अधिक अपनत्व की भावना को प्रतिबिंबित करता.

सभा में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री नितिन गडकरी ने राष्ट्रवाद को भाजपा की प्रेरणा बताते हुए घोषणा की कि उनकी पार्टी देश को भय, भूख, आतंकवाद और भ्रष्टाचार से मुक्त करने का संकल्प लेकर काम कर रही है. ”हमारा उदिष्ट सत्ता प्राप्ति नहीं है, यह चिंता है कि देश की अवस्था कैसे बदले”. राष्ट्रवाद को पार्टी की रीति-नीति का आधार जितनी मुखरता के साथ उन्होंने बताया उससे भाजपा के पूर्व संस्थापक संगठन भारतीय जनसंघ के कार्यव्यवहार और घोषित आदर्शों के साथ परस्पर सम्बन्ध जोड़ते हुए विश्लेषण की आवश्यकता पड़ती है. कुछ लोग यह सवाल भी उठाते लगते हैं कि क्या इधर उधर भटकने के बाद भाजपा नए नेतृत्व के निर्देशन में पुन: मुखर राष्ट्रवाद की डगर पर चल कर सत्ता राजनीति में अपना भाग्य आजमाने के प्रयास में है?

स्वरों की नव प्रखरता स्पष्ट संकेत देती है कि भाजपा के नए नेतृत्व और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ उच्चस्थ अधिकारियों के बीच भविष्यक रणनीति विषयक गहरी मंत्रणा हुई है. पिछले कुछ वर्षों में दोनों के बीच उभरीं गलतफहमियां दूर कर ली गईं हैं. भाजपा की धुर विरोधी कांग्रेस पार्टी आने वाले चुनावों में उस पर होने वाले असर का जायजा ले चुकी है. उसे चुनाव में पराजय की सम्भावना अभी से परेशान करने लगी है. शायद इसीलिए संघ की आलोचना के उसके स्वर पहले से और अधिक तेज हुए हैं. शायद देश को एक दिशाहीन, अमर्यादित, अनैतिक, भ्रष्टाचारसिक्त और वंशवादी स्वरूप लेती राजनीति से मुक्ति का मार्ग भी इसी में से मिलने की सम्भावना बलवती होगी.

अब समय की आवश्यकता यह भी है कि सब राजनीतिक पार्टियां जनताजनार्दन के सामने यह स्पष्ट करें कि वे देश को किस दिशा में ले जाना चाहते हैं. स्पष्ट करें अपनी अपनी रणनीति की देश से गरीबी हटाने, भ्रष्टाचार को मिटाने, आतंकवाद को जड़ से उखाड़ने, समस्त भारतीयों को निर्भय एवं सुखी, संपन्न और विश्व में भारत को एक भरोसेलायक आर्थिक महाशक्ति बनाने के लिए क्या पुष्ट योजनाएं और किसके पास हैं. यह सर्वविदित है कि भारत में प्राय: चुनाव मुद्दों के आधार पर नहीं होते. जातिवाद, वर्गविभेद और अल्पसंख्यकवाद का घिनौना खेल खेलते रह कर होते हैं और इस प्रकार देश को जोड़ने के स्थान पर निरंतर टुकड़ों में बाँटने की अबाधित प्रक्रिया बरसों से चल रही है. इसे थामने की आवश्यकता है, अन्यथा, सर्वनाश के लक्षण निरंतर प्रकट हो रहे हैं.

बिना लंबी चौड़ी व्याख्या के जिस राष्ट्रवाद को नितिन गटकरी ने अपनी पार्टी की प्रेरणा बताया है राष्ट्रहित सर्वोपरि ही उसका मर्म है. देश की जनता को यह निर्णय करने का समुचित अवसर मिलना चाहिए कि देश की वर्तमान परिस्थितियों में किस अवधारणा के अनुरूप किस पार्टी को सही मानती है. सत्ता किसी भी दल को सौंपने का अधिकार अंतत: उसका है. वह सही निर्णय लेगी तो देश सही दिशा में चलेगा, गलत लेगी तो भटकेगा. वर्ष २०१४ तक के आने वाले समय में प्रतिस्पर्धी राजनीतिक दल भी यदि किसी न किसी स्पष्ट अवधारणा और नीतियों के अधीन देश का नेतृत्व करने की सिद्धता अर्जित कर लेते हैं तो ही देश का हित होगा.

श्री नितिन गडकरी ने यह भी कहा कि ‘सत्ता भाजपा का उदिष्ट नहीं है’. भले ही स्वागत योग्य वक्तव्य है पर सत्य यह भी तो है कि किसी भी राजनीतिक पार्टी का घोषित उदिष्ट भले ही सत्ताप्राप्ति न हो लेकिन सत्ता के बिना राजनीति का अस्तित्व नहीं होता. हाँ, आज की स्थितियों के परिप्रेक्ष्य में यह सुनिश्चित करना नितान्त आवश्यक है कि सत्ता का दुरूपयोग न हो, जनता की शांतिपूर्ण और जायज़ मांगो को कुचलने की धृष्ठता न हो, लाठी गोली न चले, जनसेवा के स्थान पर उनके स्वामी होने का दंभ करते हुए मंत्रीगण ओछी पैतरेबाजी पर न उतरें जैसा कि हाल में हुआ है. बढ़ती हुई वंशवादी, जातिवादी, अल्पसंख्यकवादी और पंथ मज़हब के नाम पर भारतीय समाज को बाँट कर वोट बटोरने की पनपी राष्ट्रहित विरोधी राजनीति को पराजित करना भारत की जनता का अपने और अपने देश के प्रति कर्तव्य बनता है.

यूके में बसे भारतीयों को आश्वासन देकर गया है भाजपा का यह संपर्क अभियान दल कि भारत जल्द ही एक आर्थिक और शक्तिशाली महाशक्ति के रूप में विश्व दृश्यपटल पर दिखाई देगा. इस परिप्रेक्ष्य में जिस राष्ट्रवाद को उसने इसका आधार बताया है उसका स्वरूप यदि उस भावना के अनुरूप पनपता है जैसा कि आजादी के लिए संघर्ष के कालखंड में था तो ही देश का भविष्य सुरक्षित मन जाएगा. ऐसा राष्ट्रवाद जो महर्षि अरविन्द, विवेकानंद, गाँधी, सुभाष, सावरकर, भगत सिंह, हेडगेवार जैसे देश की आजादी के लिए दिशाबोध देने वाले स्वातंत्र्यसंघर्ष-कालीन राष्ट्रपुत्रों को आज की दिशाहीन राजनीति के मोहरे बना कर उनके नाम नहीं लेता हो अपितु पूर्ण प्रतिबद्धता के साथ देश को विविध व्याधियों से मुक्त कराने के लिए तत्पर हो.