प्रदीप कुमार वर्मा
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत पर लगाए गए पचास फ़ीसदी टैरिफ के बाद अब भारत ने अपने नए भागीदारों की तलाश शुरू कर दी है। भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हाल ही में जापान होते हुए चीन की यात्रा को इसी तलाश का एक अहम पड़ाव मान जा रहा है। रूस से परंपरागत एवं स्वाभाविक दोस्ती के बाद अब भारत ने चीन के साथ भी दोस्ती का हाथ बढ़ाया है जिसके चलते विश्व पटल पर भारत रूस और चीन का मजबूत “त्रिकोण” बनने के आसार बन रहे हैं। भारत, रूस और चीन के त्रिकोण के बाद टेरिफ के रूप में दुनिया को अमेरिका की चुनौती से राहत मिलेगी। वहीं,विश्व के अन्य देशों द्वारा इस त्रिकोण को अमेरिका के लिए एक कड़ा संदेश माना जा रहा है। फिलहाल हालात ऐसे बने हैं कि रूस और चीन के साथ अमेरिका की कथित दुश्मनी के बाद अब भारत को भी इसी कड़ी के रूप में देखा जा रहा है। रूस और चीन के साथ भारत के मिलने के बाद अब विश्व पटल पर एक नए “वर्ल्ड ऑर्डर” की तस्वीर भी साफ होने लगी है।
ऐसा लगता है कि इस कवायद में भारत, रूस और चीन के मेल के बाद अमेरिकी ट्रंप कार्ड फेल हो गया है। अब यह भी तय हो गया है कि इस नए वर्ल्ड ऑर्डर में भारत की भूमिका भी महत्वपूर्ण होने वाली है। करीब एक पखवाड़े पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने “लिबरेशन डे” पर विदेशी वस्तुओं पर मनमाना टैरिफ लगा दिया था। इसकी बेस लाइन 10 प्रतिशत से लेकर 50 प्रतिशत तक रही। इस टेरिफ के पीछे अमेरिका ने “ड्रग्स”, “प्रवासी” और “ट्रेड डेफिसिट” तीनों को राष्ट्रीय आपातकाल का बहाना बना डाला। इसी कवायद में ट्रंप ने भारत पर 50 फीसदी टेरिफ का ऐलान किया। इसके बाद में भारतीय उत्पादों के लिए अमेरिकी बाजारों में बिक्री और व्यापार के हालात प्रभावित हुए हैं। इस स्थिति से निपटने के लिए अब भारत ने अमेरिका से इतर दुनिया के अन्य देशों में अपने उत्पादों के लिए नए बाजार की तलाश शुरू कर दी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हाल की जापानी यात्रा इसी तलाश का एक उदाहरण है।
जापान के साथ अच्छी बातचीत करते हुए भारत में अपने हितों को साधते हुए कई अहम समझौते किए हैं। इनमें सबसे आम समझौता जापान के भारत में निवेश से संबंधित है। पहली तिमाही में भारत ने 7.8 प्रतिशत की जीडीपी ग्रोथ दिखाकर दुनिया को चौंकाया। अब चीन के तीसरे सबसे बड़े शहर तियानजिन में हुई शंघाई सहयोग संगठन की बैठक में भारत रूस और चीन की बेहतर दोस्ती ने एक नया त्रिकोण बना दिया है। जानकारों का मानना है कि जिस प्रकार से रूस के राष्ट्रपति पुतिन और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की केमिस्ट्री इस समिट में दिखाई पड़ी है, इसके बाद यह दोस्ती एक प्रकार से अमेरिका के लिए खतरे की घंटी है। उधर, समूचे विश्व पर टेरिफ थोपने के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को अपने ही घर में मुसीबत का सामना करना पड़ रहा है। अमेरिकी अदालत ने दो टूक कह दिया कि “राष्ट्रपति टैरिफ नहीं ठोक सकता, यह कांग्रेस का अधिकार है।” यही नहीं, इस टेरिफ को 14 अक्टूबर तक हटाने का आदेश भी आ चुका है।
अगर सुप्रीम कोर्ट ने भी यही फैसला दोहरा दिया तो अमेरिका को लगभग 14 लाख करोड़ रुपये रिफंड करना पड़ सकता है। यही है ट्रंप का अपना खोदा गड्ढा जिसमें आज वह खुद गिर चुके हैं। टेरिफ के संबंध में ट्रंप की दलील है कि अगर टेरिफ हटा दिए गए तो अमेरिकी अर्थव्यवस्था बर्बाद हो जाएगी।” यूरोप से लेकर एशिया तक हालात बदल रहे हैं। भारत निवेश खींच रहा है, ब्रिक्स और RIC की “पहाड़ जैसी मुसीबत” अमेरिका के सामने खड़ी हो रही है और ऊपर से ट्रम्प की तुगलकी नीतियों ने अमेरिकी थिंक टैंकों की नींद उड़ा दी है। शंघाई सहयोग संगठन की समिट में पाकिस्तान को बड़ा झटका लगा है, जिससे उसकी कूटनीतिक छवि प्रभावित हुई है। भारत की सक्रिय एवं दमदार सहभागिता के बाद इस बार के शंघाई सहयोग संगठन के वार्षिक सम्मेलन में पाकिस्तान की भूमिका अपेक्षा से कमजोर रही। भारत ने इस मंच पर अपनी उपस्थिति को प्रभावशाली ढंग से दर्ज कराया और क्षेत्रीय सुरक्षा, आर्थिक सहयोग और राजनीतिक स्थिरता के मुद्दों पर सक्रिय भूमिका निभाई।
यह भारत की कूटनीतिक जीत ही है कि इस समिट के साझा घोषणापत्र में एक ओर जहां पहलगाम आतंकी हमले की निंदा की गई है जिसमें सीधे तौर पर पाकिस्तान का हाथ रहा है, तो वहीं दूसरी ओर भारत के इस रुख से भी सहमति जताई कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में ‘‘दोहरे मानदंड’’ अस्वीकार्य हैं। घोषणापत्र में कहा गया- “सदस्य देश आतंकवाद के सभी रूपों और अभिव्यक्तियों की कड़ी निंदा करते हैं। वे इस बात पर जोर देते हैं कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में दोहरे मानदंड अस्वीकार्य हैं और वे अंतरराष्ट्रीय समुदाय से आतंकवादियों की सीमा पार गतिविधियों सहित आतंकवाद का मुकाबला करने का आह्वान करते हैं।” एससीओ समिट के दौरान पीएम मोदी ने पुतिन और जिनपिंग से द्विपक्षीय मुलाकात भी की। जहां वैश्विक व्यापार भी चर्चा हुई। समिट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, पुतिन और जिनपिंग की तिकड़ी ने ऐसा प्रभाव छोड़ा कि अंतरराष्ट्रीय मीडिया में इसे अमेरिकी वर्चस्व के खिलाफ एकजुटता के रूप में देखा गया।
पीएम मोदी, व्लादिमीर पुतिन और जिनपिंग ने शिखर सम्मेलन से पहले एक साथ मुलाकात की जिसके फोटो और वीडियो विश्व भर में तुरंत ही फैल गए। रूस के विदेश मंत्रालय ने इस मुलाकात का वीडियो शेयर किया और इसे ‘वीडियो ऑफ द डे’ बताया। इतना ही नहीं, मोदी और पुतिन एससीओ शिखर सम्मेलन के समापन के बाद द्विपक्षीय बैठक के लिए एक ही कार में सवार होकर मीटिंग में पहुंचे। भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह दिखाने की कोशिश की कि अगर अमेरिका का ट्रंप प्रशासन टेरिफ के जरिए नई दिल्ली को अलग-थलग करना जारी रखता है तो भारत के अन्य महत्वपूर्ण मित्र भी हैं जिनमें चीन भी शामिल है, भले ही सीमा विवाद अभी तक सुलझा न हो। विदेश नीति के जानकार मानते हैं कि शंघाई सहयोग संगठन की समिट के बाद अब ब्रिक्स की मीटिंग भी होनी है। ब्राज़ील पर टेरिफ लगाने के बाद ब्राजील अमेरिका से पहले ही नाराज है। इसके बाद भारत की नाराजगी के चलते ब्रिक्स समिट वैसे भी अमेरिका के लिए कुछ ऐसे कड़े संदेश आने की उम्मीद है। इस पूरी कवायद से यह भी साबित हो जाता है कि भारत अपने हितों के सामने अमेरिका के सामने झुकेगा नहीं, बल्कि अपने लिए नए बाजार की तलाश करके अपने स्वाभिमान को सबसे ऊपर रखेगा।
प्रदीप कुमार वर्मा