भारत-ब्रिटेन व्यापार समझौताः एक क्रांतिकारी कदम

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-ललित गर्ग-

भारत और ब्रिटेन के बीच ऐतिहासिक मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) की अंतिम स्वीकृति ने न केवल वैश्विक व्यापार जगत में हलचल मचा दी है, बल्कि भारत के आर्थिक भविष्य को भी एक नई दिशा दी है। दोनों देशों के बीच आखिरकार फ्री ट्रेड एग्रीमेंट होने का फायदा दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाओं को मिलेगा। पिछले कुछ वर्षों में जिस तरह से संरक्षणवाद बढ़ा है, उसमें ऐसे व्यापार समझौतों की भूमिका और भी अहम हो जाती है। इस समझौते से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने न केवल अमेरिका बल्कि अन्य देशों को भी भारत की मजबूत होती स्थिति का आइना दिखाया है, जो उनकी दूरगामी एवं कूटनीतिज्ञ राजनीति का द्योतक है। इस समझौते को मौजूदा दौर में दुनियाभर में जारी बहुस्तरीय तनाव, दबाव एवं दादागिरी की राजनीति के बीच एक बेहतर एवं सूझबूझभरी कूटनीतिक कामयाबी के तौर पर देखा जा सकता है। यह छिपा नहीं है कि अमेरिका के राष्ट्रपति ने शुल्क के मोर्चे पर एक बड़ा द्वंद्व एवं संकट खड़ा कर दिया था। लेकिन भारत ने इस द्वंद्व के बीच झूकने की बजाय नये रास्ते खोजे हैं। निश्चित ही यह व्यापक आर्थिक एवं व्यापार समझौता (सीईटीए) महज एक कागज़ी करार नहीं, बल्कि ‘विकसित भारत 2047’ के स्वप्न को मूर्त रूप देने की ठोस रणनीति है। जहां एक ओर यह समझौता 99 प्रतिशत टैरिफ को समाप्त कर वस्त्र, चमड़ा, समुद्री उत्पाद, कृषि व रत्न-आभूषण जैसे श्रम-प्रधान क्षेत्रों को नई उड़ान देगा, वहीं दूसरी ओर छोटे उद्यमों, मछुआरों और किसानों को वैश्विक मंच पर पहचान दिलाएगा। भारत के ग्रामीण अंचलों से हल्दी, दाल, अचार जैसे उत्पाद अब ब्रिटिश बाजारों में अपनी महक फैलाएंगे।
मोदी सरकार ने पिछले एक दशक में जिस प्रकार से गुणवत्ता, प्रतिस्पर्धा और पारदर्शिता पर जोर दिया, उसी का परिणाम है यह करार। इससे यह भी सिद्ध हुआ कि अब भारत केवल बाजार नहीं, बल्कि एक निर्णायक शक्ति बन चुका है, जो अपने हितों की रक्षा करते हुए विश्व से संवाद करता है। यह समझौता सिर्फ व्यापार तक सीमित नहीं है, यह सेवा क्षेत्र, शिक्षा, वित्तीय सेवाएं, निवेश, सामाजिक सुरक्षा, और दोहरे कराधान जैसे क्षेत्रों में भी भारतीयों के लिए नए दरवाज़े खोलता है। खासकर ब्रिटेन में काम कर रहे भारतीय पेशेवरों के लिए यह राहत का संदेश है, जिन्हें सामाजिक सुरक्षा अंशदान से छूट मिल सकेगी। यह समझौता इसलिये भी महत्वपूर्ण है कि अब तक अमेरिका की ओर से पैदा किये गये किसी दबाव के आगे भारत ने झुकना स्वीकार नहीं किया और उसने भारत-ब्रिटेन जैसे नये विकल्पों को खड़ा करने और पुराने को मजबूत करने की दिशा में कदम बढ़ाये हैं।
ब्रिटेन के साथ यह एफटीए एक उदाहरण है कि कैसे भारत न्यायसंगत और समावेशी व्यापार समझौते कर सकता है, जिसमें न तो अपने किसानों, न ही डेयरी क्षेत्र या छोटे उत्पादकों को नुकसान होता है। भारत ने संवेदनशील क्षेत्रों को समझौते से बाहर रखकर आत्मनिर्भरता और खाद्य सुरक्षा की अपनी नीति को बरकरार रखा है। वर्तमान में भारत का वैश्विक व्यापार लगभग 21 अरब डॉलर है, जो इस समझौते के बाद 2030 तक 120 अरब डॉलर तक पहुँचने की संभावना रखता है। यह न केवल विदेशी निवेश को आकर्षित करेगा, बल्कि भारत की मैन्युफैक्चरिंग हिस्सेदारी को 17 प्रतिशत से 25 प्रतिशत तक बढ़ाने में सहायक होगा। इस करार के साथ, मोदी सरकार ने साबित कर दिया है कि जब नियोजित दृष्टिकोण, वैश्विक प्रतिष्ठा और साहसिक निर्णय साथ चलते हैं, तो भारत जैसे विकासशील देश भी वैश्विक मंच पर निर्णायक बन सकते हैं।
भारत और ब्रिटेन के बीच सीईटीए के अस्तित्व में आने से एक नये आर्थिक सूर्य का उदय हुआ है, जिससे रोजगार सहित अनेक उन्नत राष्ट्र-निर्माण के अवसर सृजित होंगे। सीईटीए की संकल्पना आस्ट्रेलिया, संयुक्त अरब अमीरात और कुछ अन्य देशों के साथ हुए मुक्त व्यापार समझौतों के अनुरूप ही है। यह मोदी सरकार की भारत को 2047 तक विकसित बनाने की संकल्पना से जुड़ी रणनीति का एक हिस्सा है। मोदी सरकार ने भारत को तीसरी बड़ी अर्थ-व्यवस्था बनाने के अपने संकल्प में नये पंखों को जोड़ते हुए भारतीय अर्थव्यवस्था में वैश्विक विश्वास को फिर से स्थापित करने तथा इसे भारतीय और विदेशी निवेशकों के लिए आकर्षक बनाने के लिए एक दृढ़ रणनीति अपनाई है। विकसित देशों के साथ एफटीए इस रणनीति के केंद्र में है। ऐसे समझौते व्यापार नीतियों से जुड़ी अनिश्चितताओं को दूर करके निवेशकों का विश्वास बढ़ाते हैं। पिछली यूपीए सरकार ने भारत के व्यापारिक दरवाजे प्रतिद्वंद्वी देशों के लिए खोलकर भारतीय व्यवसायों को खतरे में डालने वाला रवैया अपनाया था, लेकिन अतीत की उन बड़ी भूलों को सुधारा जा रहा है, जो नये भारत-विकसित भारत का आधार है।
मोदी के मेड इन इंडिया संकल्प की दृष्टि से यह डील बेहद अहम है। इससे करीब 99 प्रतिशत निर्यात यानी यहां से ब्रिटेन जाने वाली चीजों पर टैरिफ से राहत मिलेगी। इसी तरह ब्रिटेन से आनी वाली चीजें भारत में सस्ती मिल सकेंगी। जिससे आम लोगों को अधिक गुणवत्ता वाला सामान सस्ते में सुलभ होगा और जीवनस्तर में व्यापक सुधार होगा। डील से एक बड़ा फायदा होगा टेक्सटाइल्स, लेदर और इलेक्ट्रॉनिक्स को। इनसे मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा मिलेगा। अभी ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग में भारत की हिस्सेदारी केवल 2.8 प्रतिशत है, जबकि चीन की 28.8 प्रतिशत। इसी तरह, देश की जीडीपी में मैन्युफैक्चरिंग का योगदान 17 प्रतिशत है और सरकार इसे 25 प्रतिशत तक बढ़ाना चाहती है। इस तरह की डील से राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय, दोनों स्तर पर प्रदर्शन में सुधार होगा। कृषि सेक्टर को भी उन्नत बनाने एवं अधिक उत्पाद की दृष्टि से व्यापक फायदा होगा। इसके लिए इस समय भारत की बातचीत अमेरिका से भी चल रही है। लेकिन वहां कृषि और डेयरी प्रॉडक्ट्स को लेकर रस्साकशी है। अमेरिका इन दोनों क्षेत्रों में खुली छूट चाहता है, जबकि अपने लोगों के हितों को देखते हुए भारत ऐसा नहीं कर सकता। ब्रिटेन के साथ मुक्त व्यापार होने से भारत के कृषि उद्योग को बढ़ावा मिलेगा।
क्रांतिकारी सुधारों, नवाचार, तकनीक, कारोबारी सुगमता और प्रधानमंत्री के वैश्विक व्यक्तित्व ने भारत को एक आर्थिक सूरज के रूप में उभारने में मदद की है, जहां विपुल संभावनाएं हैं। आज दुनिया भारत की ओर आशाभरी नजरों से देख रही है और भारत की अद्भुत विकासगाथा का हिस्सा बनना चाहती है। प्रमुख देशों द्वारा एक के बाद एक एफटीए इसी मान्यता की पुष्टि करते हैं। ब्रिटेन के साथ यह व्यापार समझौता बाजार पहुंच और प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त दिलाएगा। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत के एफटीए वस्तुओं और सेवाओं से कहीं आगे तक सांस्कृतिक आदान-प्रदान एवं नागरिक हितों तक जाते हैं। आस्ट्रेलियाई एफटीए के साथ भारत ने दोहरे कराधान का मुद्दा सुलझाया, जो आईटी कंपनियों की परेशानी बढ़ा रहा था। ब्रिटेन के साथ समझौते का एक अहम बिंदु दोहरे अंशदान से जुड़ा है। यह ब्रिटेन में नियोक्ताओं, अस्थायी भारतीय कर्मियों को तीन वर्षों के लिए सामाजिक सुरक्षा अंशदान से छूट देता है। इससे भारतीय सेवा प्रदाताओं की प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी। ब्रिटेन में रहने वाले भारतीयों को अब अनेक सुविधाएं मिलेगी।
साल 2014 के बाद से भारत ने मॉरिशस, यूएई, ऑस्ट्रेलिया और ईएफटीए के साथ फ्री व्यापारिक समझौते किये हैं। ईएफटीए का अर्थ है यूरोपीय मुक्त व्यापार संघ। यह एक क्षेत्रीय व्यापार संगठन और मुक्त व्यापार क्षेत्र है जिसमें चार यूरोपीय देश शामिल हैं- आइसलैंड, लिकटेंस्टीन, नॉर्वे और स्विट्जरलैंड। यूरोप से बातचीत जारी है, जिसे जल्द से जल्द अंजाम तक पहुंचाया जाना चाहिए। अर्थ-व्यवस्था के मोर्चे पर आने वाली चुनौतियों से निपटने में ऐसे समझौते सहायक होंगे। इस बीच, अगर भारत की अमेरिका के साथ अच्छी व्यापार डील होती है तो उससे भी विकसित भारत के संकल्प को पूरा करने की ओर कदम बढ़ेंगे। लेकिन ब्रिटेन से समझौता केवल व्यापार नहीं, भविष्य का निर्माण है। यह कृषि को समृद्धि, उद्योग को विस्तार, युवाओं को अवसर, और भारत को एक विकसित राष्ट्र बनने की ओर सशक्त करता है। निश्चित ही जहां बाजार बनते हैं अवसरों के, वहीं नीति बनती है भविष्य की नींव। भारत और ब्रिटेन के इस करार से विश्व सुनेगा अब भारत की गूंज!

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