भारतवर्ष को चाहिए था चारु वाक् यानि चार्वाक दर्शन

—विनय कुमार विनायक
भारत वर्ष को चाहिए था चारु वाक्;
सुन्दर साफ सुथरा कथन व प्रवचन,
यानि चार्वाक दर्शन; नास्तिकता का,
‘नास्तिको वेद निन्दक:’चार्वाक ऐसा!

यानि न अस्ति स्वर्ग,न अस्ति नर्क,
नहीं है अस्तित्व इस लोक के सिवा,
ना दूजा लोक अमर देव अप्सरा का,
जो इस लोक में वही लोकायत मत!

भारत का बहुत अधिक हुआ शोषण,
खोखली ब्राह्मणवादी आस्तिकता से!
पुरोहितों ने बहुत लूटे झूठे पाखंडकर,
यज्ञ-यजन कर्मकांड-दान के नाम पर!

पूर्वजन्म के कर्मफल भोग पुण्य-पाप,
अमीरी-गरीबी,ऊंच-नीच का अभिशाप!
ब्राह्मण शूद्र जातिवादी घृणा पैदाकर,
ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र में बांटकर!

स्वर्गलोक प्राप्ति कराने के कारण से,
ब्राह्मणों ने कराया पशुबलि अकारण!
अश्वमेध, गोमेध, नरमेध यज्ञ नाम से,
वैदिक धर्म बुरा हुआ, निकृष्ट काम से!

चार्वाक दर्शन आधारित है उच्छेदवाद;
अजित केशकम्बली के भौतिकतावादी
सिद्धांत पर; मनुष्य मर कर अंत में
चारभूत भौतिक तत्व में उच्छेद होते!

केशकम्बली के इस दर्शन से प्रेरित हो
वृहस्पति ने चार्वाक लोकायत मत दिए!
‘यावज्जीवेत्सुखं जीवेतु ऋणं कृत्वा घृतं
पिवेत् भस्मीभूतस्यदेहस्य पुनरागमनंकुत:’

‘जबतक जिओ, सुख से जिओ, ऋण ले
घी पिओ, भस्मीभूत देह को लौटते हुए
किसने देखा’, इस अनिश्वर-अनात्मवादी
कर्मकांड विरोध को पंडितों ने नष्ट किए!

चार्वाक अनात्मवादी नास्तिक दर्शन से
प्रेरित जैन तीर्थंकरों व गौतम बुद्ध ने
ब्राह्मणी कर्मकांड पशुबलि जातिवाद के
विरोध में अहिंसक मानवीय मत दिए!

चार्वाक स्वर्ग-नर्क ईश्वर नहीं मानते थे,
जो है बस यही लोक है, सुख से जिओ!
स्वर्ग लालसा में न बलि, न दक्षिणा दो,
यज्ञ के नाम पशु व धन स्वाहा ना हो!

आत्मा नहीं है और पुनर्जन्म नहीं होता,
पृथ्वी जल तेज और वायु से शरीर बना!
जैसे गुड़-तंडुल योग से मद में मादकता,
वैसे चारों महा भूतों से शरीर में चेतना!

जैसे कत्था सुपारी पान पत्ते मिलाने से
लाली उत्पन्न हो जाती, वैसे पदार्थों के
मिलन से, तन में जैविक चेतना आती,
ये मत भौतिक-रसायन-जीव विज्ञान के!

यह चार्वाक का भूतचैतन्यवाद घात थी,
वैदिक पुनर्जन्म कर्मफल, पूर्वजन्म नर्क
के नाम यजमान से धन दान चाहत पे,
यही बात आगे चलके बुद्ध ने कही थी!

चार्वाक व बुद्ध ने देह में चेतना कही,
देहधारी में जीवात्मा की बात नहीं की!
चार्वाक से बुद्ध तक एक समस्या थी,
मानव व पशु को पाखंड से बचाने की!

चतुर्वेद के आरण्यक ब्राह्मण वेदांग में
यज्ञ कर्मकांड बलि के सिवा कुछ नहीं!
वेद कर्मकांड विरोध उपनिषद वेदांत में
उपनिषद गीता त्रिपिटक में हिंसा नहीं!

यह घोर आश्चर्य है कि वैदिक ब्राह्मण,
यज्ञ बलि हिंसा कर्मकांड पाखंड पोषक!
जबकि उपनिषद गीता आगम त्रिपिटक,
ऋषि मुनि कृष्ण बुद्ध क्षत्रिय अहिंसक!

यह घोर आश्चर्य है कि वैदिक याज्ञिक
ब्राह्मण परशुराम सा महा हिंसाचारी थे!
जबकि कृष्ण बुद्ध तीर्थंकर मुनि श्रमण
क्षत्रिय अहिंसक मानवीय सद्विचारी थे!

वस्तुत: नास्तिक दर्शन अहिंसक तार्किक,
प्रत्यक्ष प्रमाण पर आधारित मानवीय थे!
जबकि वैदिक आस्तिक धर्म अनुमान से,
विभ्रम में पड़े अंधविश्वास में जकड़े खड़े!

वैदिक धर्म कहे, अगर कोई नीच निर्धन,
तो ये कर्मफल, उनके पूर्व जन्म पाप के,
इस जन्म में यज्ञ, दान, दक्षिणा पुण्य से,
वे अगले जन्म में सवर्ण-सुखी हो सकते!

वैदिक धर्म अनुमान आधारित भाग्यवादी,
समझौतापरस्त अगले जन्म की आशा में,
वर्तमान जीवन पस्त, पाप के अहसास से,
वैदिकों ने रोके रखा, विज्ञान को आने से!
—विनय कुमार विनायक

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