देसी ब्रेन ड्रेन

विपिन किशोर सिन्हा

कुछ वर्ष पूर्व भारत के इंजीनियरों, डाक्टरों और वैज्ञानिकों के अमेरिका तथा यूरोपीय देशों में जीविका के लिए पलायन को ‘ब्रेन ड्रेन’ बताकर मीडिया और नेताओं ने काफी हाय-तौबा मचाई थी। देश की गरीब जनता पर कर का बोझ डालकर प्राप्त होनेवाले राजस्व से इंजीनियर-डाक्टर बनाने में सरकार के करोड़ों रुपए खर्च हो जाते हैं और इसका उपयोग बिना एक पैसा खर्च किए पश्चिमी देश करते हैं। आई.टी. उद्योग के फलने-फूलने से यह ब्रेन ड्रेन थोड़ा रुका तो है, परन्तु बन्द नहीं हुआ है। लेकिन इस समय अपने देश में ‘देसी ब्रेन ड्रेन’ एक बहुत बड़ी समस्या के रूप में, सुरसा की तरह विकराल मुंह फैलाए खड़ा है। इस ओर किसी ने गंभीर चिन्ता प्रकट नहीं की है।

अपने देश में एम्स(AIIMS) के एक छात्र को चिकित्सा स्नातक (MBBS) बनाने में सरकार का एक करोड़ सत्तर लाख रुपया खर्च होता है तथा आईआईटी(IIT) से एक छात्र को इंजीनियरिंग स्नातक(B.Tech.) बनाने में राजकोष के ७० लाख रुपए का व्यय होता होता है। कमोबेस इतनी ही राशि राज्य सरकारें भी अपने कालेजों के डाक्टर और इंजीनियरों पर खर्च करती हैं। यह सारा धन गरीब जनता की गाढ़ी कमाई का है। देश के कर्णधारों ने कभी यह सोचा भी है कि इन प्रतिष्ठित संस्थानों से डिग्री लेकर ये मेधावी छात्र करते क्या हैं? इन मेधावी छात्रों के सपने और कार्य पसन्द के क्रम में निम्नवत हैं –

१. आई.ए.एस/आई.पी.एस./आई.आर.एस. बनना।

२. आईआईएम(IIM) में दाखिला लेकर एम.बी.ए.(M.B.A.) करना।

३. अमेरिका जाकर नौकरी करना।

४. साफ्टवेयर की बड़ी कंपनियों में नौकरी करना।

पन्द्रह-बीस वर्ष पूर्व, इंजीनियर या डाक्टर आई.ए.एस. बनना पसन्द नहीं करते थे लेकिन समाज में बढ़ती सामन्तवादी प्रवृति तथा शीर्ष नौकरशाही को अंग्रेजी राज के समान प्राप्त राजसी सुख-सुविधा, भ्रष्टाचार से प्राप्त होने वाले अकूत धन और विशेषाधिकार ने इंजीनियरों और डाक्टरों को इस ओर आकृष्ट किया है। परिणाम सामने हैं – अब अधिक से अधिक प्रशासनिक अधिकारी इन्हीं दो वर्गों से आ रहे हैं। आई.ए.एस. प्रवेश परीक्षा के परिणाम पर दृष्टि डालें, तो पता लगेगा कि सर्वोच्च १० स्थानों में ८ स्थान इंजीनियरों और डाक्टरों का होता है। प्रशासनिक सेवाओं में तकनिकी ज्ञान का उपयोग बिल्कुल नहीं है। एक डाक्टर कलक्टर बनने के बाद कौन सी डाक्टरी कर पाएगा और एक इंजीनियर सचिव बनने के बाद कौन सी इंजीनियरिंग? इंजीनियरों, डाक्टरों, कृषि वैज्ञानिकों का आई.ए.एस./आई.पी.एस/आई.आर.एस. में जाना तकनिकी मेधा का दुर्भाग्यपूर्ण प्रथम ब्रेन ड्रेन है तथा जनता की गाढ़ी कमाई का दुरुपयोग है। साथ ही यह हमारी वर्त्तमान शिक्षा पद्धति का विद्रूप उपहास है।

दूसरा ब्रेन ड्रेन है – तकनिकी छात्रों द्वारा मैनेजमेन्ट संस्थानों में प्रवेश। आई.आई.टी. का एक छात्र बी.टेक. की डिग्री लेकर आई.आई.एम. ज्वायन करता है। वहां से वह एम.बी.ए. की डिग्री लेता है। लाखों-करोड़ों का पैकेज वह जरुर पा लेता है, लेकिन करता क्या है? सिटी बैंक में वह बाबूगिरी ही करता है। उसके तकनिकी ज्ञान का तनिक भी उपयोग उसकी नौकरी में नहीं होता। इसी तरह विदेश चले जाने और सभी ब्रान्च के इंजीनियरों का साफ्ट वेयर कंपनी ज्वायन करना भी ब्रेन ड्रेन का ही प्रारूप है।

यही कारण है कि भारत में तकनिकी क्षेत्र में अनुसंधान कार्य (Research & Development) की प्रगति अत्यन्त निराशाजनक है। आई.आई.टी. में योग्य शिक्षकों का अभाव है। पद रिक्त पड़े हैं। योग्य प्रत्याशी नहीं मिल रहे। कुकुरमुत्ते कई तरह उग आए प्राइवेट कालेजों के इंजीनियरिंग स्नातक, जिन्हें कहीं नौकरी नहीं मिलती, शिक्षण के क्षेत्र में आ रहे हैं। भारत में तकनिकी शिक्षा की गुणवत्ता और भविष्य का अन्दाज़ा आसानी से लगाया जा सकता है।

श्री कपिल सिब्बल सुप्रीम कोर्ट के बड़े वकील हैं, सोनिया गांधी के वफ़ादार हैं, लेकिन शिक्षाविद नहीं हैं। भारत की शिक्षा व्यवस्था को ध्वस्त करना ही उनका उद्देश्य है। वे आज़ाद भारत के लार्ड मैकाले हैं। उन्हें प्रतियोगिता और परीक्षाओं से बेहद चिढ़ है। हाई स्कूल की परीक्षा समाप्त करने के बाद इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षाओं की प्रतिष्ठा का बंटाढ़ार करने के लिए कटिबद्ध हैं। उनके दिमाग में तकनिकी स्नातकों के ब्रेन ड्रेन की बात शायद ही समा सके, लेकिन आम जनता के विचारार्थ और परिचर्या हेतु इस समस्या के समाधान की दिशा में निम्नलिखित सुझाव प्रस्तुत हैं –

१. इंजीनियरिंग, मेडिकल, एग्रीकलचर और ला की तरह ही आई.ए.एस/आई.पी.एस. के लिए भी अखिल भारतीय प्रवेश परीक्षा बारहवीं के बाद ही ली जाय। आई.आई.टी./आई.आई.एम. की तरह ही पूरे देश में ४-५ Indian Institute of Administration खोले जांय। चार वर्षीय डिग्री कोर्स के बाद इन्हीं स्नातकों को IAS/IPS/IRS/IFS की सेवाओं में तैनात किया जाय।

२. आई.आई.एम. और अन्य प्रबंध संस्थानों में भी प्रवेश बारहवीं के बाद अखिल भारतीय प्रवेश परीक्षा के माध्यम से लिए जांय। यह कोर्स भी दो वर्ष का न होकर चार वर्ष का डिग्री कोर्स होना चाहिए।

३. इंजीनियरिंग, मेडिकल और एग्रीकलचर में भी पूर्व की भांति प्रवेश बारहवीं के बाद अखिल भारतीय प्रवेश परीक्षा के माध्यम से लिए जांय।

४. शिक्षा में प्रवेश और नियुक्ति में आरक्षण को समाप्त किया जाय।

५. जो व्यक्ति जिस विषय में स्नातक करता है, उसी क्षेत्र में उससे काम लिया जाय। सरकार उतनी ही सीटों पर प्रवेश ले जितनों को वह रोज़गार दे सकती है।

उपरोक्त व्यवस्था लागू करने से देश को विशेषज्ञों की सेवाएं प्राप्त हो सकेंगी। अगर हमें विकसित देशों और चीन से प्रतिस्पर्धा में बने रहना है, तो देसी ब्रेन ड्रेन को रोकना ही होगा। उक्त व्यवस्था को अपनाने से किसी को यह शिकायत करने का मौका नहीं मिलेगा कि उसे आई.ए.एस. बनने से जबर्दस्ती रोक दिया गया। बारहवीं के बाद भारत के प्रत्येक छात्र के पास अवसर होगा कि वह अपनी रुचि के अनुसार अपने कैरियर का चुनाव करे। इधर-उधर की बंदर-कूद रुक जाएगी और तकनिकी शिक्षा पर हो रहे गरीब जनता की गाढ़ी कमाई का सदुपयोग भी हो पाएगा।

1 COMMENT

  1. नेता जो न पढ़ा है न लिखा पर खरबों रुपए काली कमी कर स्विस बैंक मैं रखता है ,कसाब जो देश का दुश्मन हो कर भी अरबों रुपए देश के गाढ़ी कमी के चाट जाता है ऐसे ही हजारों मामलों का हिसाब कौन रखेगा.??????

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