विदेशों में भारतीय धन : सर्वोच्च न्यायालय ने भारत सरकार को लताड़ा

लालकृष्ण आडवाणी

सभी मूल्यांकनों की कसौटी पर कसे तो मनमोहन सिंह सरकार अपने साढ़े 6 वर्ष के कार्यकाल में सर्वाधिक गंभीर संकट से गुजर रही है। स्पेक्ट्रम घोटाला, कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाला और मुंबई के रक्षा मंत्रालय भूमि सम्बन्धी घोटाले एक साथ इस रूप में सामने आए हैं जिससे आम आदमी को यह महसूस होने लगा है कि आज सरकार में अनेक मंत्री न केवल मक्कारी से धन बना रहे हैं अपितु वे देश को निर्लज्जता से लूट रहे हैं।

ज्यादा चिन्ताजनक यह है कि यह संकट सिर्फ सरकार के लिए ही नहीं अपितु देश के लिए भी है, भ्रष्टाचार और मुद्रास्फीति के वर्तमान स्तर ने राष्ट्र के सामूहिक आत्मविश्वास को खोखला कर दिया है।

ऐसी स्थिति सदैव मुझे 1975-77 में भारतीय लोकतंत्र के सम्मुख पैदा हुए गंभीर संकट का स्मरण करा देती है। तब भी राष्ट्र ने सभी आशाएं खो दी थी कि क्या 1975 से पूर्व का स्वतंत्रता का माहौल फिर कभी वापस लौट सकेगा।

भला हो राष्ट्र के मूड को समझने में सरकार के समूचे गलत आकलन का, जिसके चलते चुनावों की घोषणा हो गई। मतदाताओं ने सभी को चकित कर दिया : उन्होंने कांग्रेस पाटी की इतनी पिटाई की कि वह फिर कभी भी आपातकाल, अनुच्छेद 352 (युध्द के अपवाद को छोड़) लागू करने की सोचेगी भी नहीं।

लगभग सभी उच्च न्यायालयों ने भारत सरकार की इस दलील को रद्द कर दिया कि जब आपातकाल लागू हो तो भारतीय सविंधान के तहत किसी भी बंदी को बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर करने का भी अधिकार नहीं है। उच्च न्यायालयों को कहा कि किसी भी समय पर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर करने का अधिकार निलम्बित नहीं किया जा सकता। इस भूमिका को अपनाने के फलस्वरूप उच्च न्यायालयों ने 19 न्यायाधीशों को एक राज्य से दूसरे राज्य में स्थानान्तरित कर दण्डित किया गया।

हालांकि मुख्य न्यायाधीश ए.एन. रे (उनकी नियुक्ति तीन वरिष्ठ न्यायाधीशों सर्वश्री हेगड़े, सेलट और ग्रोवर की वरिष्ठता का उल्लंघन करने के बाद हुई थी) की अध्यक्षता में सर्वोच्च न्यायालय एटार्नी जनरल नीरेन डे की इस दलील से सहमत था कि यदि किसी बंदी को किसी सरकारी काम से गोली मार दी जाए तो भी उसके परिवारवालों को न्यायालय के द्वार खटखटाने का अधिकार नहीं है। न्यायाधीश एच.आर. खन्ना ने इस निर्णय के विरुध्द अपनी सशक्त असहमति दर्ज की और न्यायिक इतिहास में चिरस्थायी स्थान अर्जित किया है।

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कुछ सप्ताह पहले के अपने ब्लॉग में मैंने राम जेठमलानी, सुभाष कश्यप और के.पी.एस. गिल द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में दायर याचिका कि विदेशों के – टैक्स हेवन्स में जमा भारतीय धन को भारत वापस लाने हेतु सरकार को बाध्य किया जाए – का उल्लेख किया था।

15 जनवरी को सुबह समाचारपत्रों में यह समाचार पढ़कर लाखों पाठक अवश्य ही प्रफुल्लित हुए होंगे कि एक दिन पूर्व न्यायालय ने सोलिसीटर जनरल गोपाल सुब्रमण्यम को उस समय बुरी तरह से लताड़ा जब उन्होंने यह बताया कि सरकार को जर्मन सरकार से लीसटेनस्टीन बैंक में जमा सभी भारतीय नागरिकों के धन के बारे में पूरी जानकारी मिली है लेकिन भारत सरकार इसे सार्वजनिक नहीं करना चाहती।

सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश बी. सुदर्शन रेड्डी और एस.एस. निर्झर की पीठ ने सुब्रमण्यम से पूछा ”जिन लोगों ने विदेशी बैंकों में धन जमा किया है उनके बारे में जानकारी सार्वजनिक न करने के पीछे कौन सा विशेषाधिकार है?” न्यायालय ने आगे कहा कि वे चाहेंगे कि पुणे के व्यवसायी हसन अली खान जिसके विरूध्द विदेशी बैंको में कथित काला धन जमा कराने की जांच प्रवर्तन निदेशालय ने की थी, को भी याचिका में एक पार्टी के रूप में शामिल किया जाए। न्यायालय की टिप्पणियों के परिप्रक्ष्य में, सोलिसीटर जनरल ने कहा कि वे सरकार से निर्देश लेंगे।

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गत् सप्ताह इस समूचे मुद्दे पर विचार करने के लिए एन.डी.ए. की एक विशेष बैठक हुई। संसद में एन.डी.ए. के सभी दलों के सदन के नेताओं ने भाग लिया और प्रधानमंत्री को एक कड़ा पत्र तैयार किया। इस पत्र के तीन पैराग्राफ निम्नलिखित हैं :

”हमारी आशंका है कि इस मोर्चे पर यूपीए सरकार द्वारा सक्रियता न दिखाने के पीछे उसे स्वयं अपने फंसने का डर है। आखिरकार, संयुक्त राष्ट्र द्वारा ‘फूड फॉर ऑयल‘ घोटाले की जांच हेतु गठित वोल्कर रिपोर्ट ने कांग्रेस पार्टी को एक लाभार्थी के रूप में नामित किया है। हमारी जांच एजेंसियों और राजस्व एजेंसियों की जांच में यह साफ सिध्द हुआ है जो कि ITAT के आदेश में भी परिलक्षित होता है कि बोफोर्स घूस काण्ड में दलाली लेने वालों मे

अतावियो क्वात्रोची ने ए.ई. सर्विसेज और कोल बार इन्वेस्टमेंट जैसी कम्पनियों की आड़ में घूस ली है। अतावियो क्वात्रोची और उनकी पत्नी मारिया के कांग्रेस पार्टी के परिवार विशेष से सम्बन्ध सर्वज्ञात हैं और उन पर कोई विवाद नहीं है।

एक स्विस पत्रिका Sehweizer Illustrirte’ के 19 नवम्बर, 1991 के अंक में प्रकाशित एक खोजपरक समाचार में तीसरी दुनिया के 14 वैश्विक नेताओं के नाम दिए गए है। जिनके स्विटजरलैण्ड में खाते हैं। भारत के एक पूर्व प्रधानमंत्री का नाम भी इसमें शामिल है। रिपोर्ट का आज तक खण्डन नहीं किया गया। डा0 येवजेनिया एलबट्स की पुस्तक “The state within a state – The KGB hold on Russia in past and future” में चौंकाने वाले रहस्योद्धाटन किए गए हैं कि भारत के एक पूर्व प्रधानमंत्री और उनके परिवार को रूस के व्यवसायिक सौदों के बदले में लाभ मिले हैं।

ये शोधपरक समाचार हैं जो लेखों या पुस्तकों के रूप में प्रकाशित हुए हैं। जिनके विरूध्द जांच की गई है उन्होंने औपचारिक रूप से न तो इसका खण्डन किया है और न ही उन्होंने ऐसे संदेह पैदा करने वाले प्रकाशनों के विरूध्द कोई कार्रवाई की है। यह सरकार के लिए महत्वपूर्ण है कि वह सुनिश्चित करे कि पूर्व प्रधानमंत्री सहित भारत के अतीत एवं वर्तमान नेताओं के नाम पर कलंक न लगे। अत: या तो इन आरोपों को जोरदार ढंग से खण्डन करना चाहिए या इनकी जांच होनी चाहिए।”

वैश्विक अर्थव्यवस्था में शुचिता सुनिश्चित करने के उद्देश्य से एक स्वैच्छिक संगठन ग्लोबल फाइनेंशियल इंटिग्रिटी (Global Financial Integrity) अच्छा काम कर रहा है। पिछले महीने ग्लोबल फाइनेंशियल इंटिग्रिटी द्वारा जारी एक सारगर्भित रिपोर्ट भारत के बारे में कुछ यह कहती है:

”1948 से 2008 तक भारत ने अवैध वित्तीय प्रवाह (गैरकानूनी पूंजी पलायन) के चलते कुल 213 मिलियन डालर की राशि गंवा दी है। यह अवैध वित्तीय प्रवाह सामान्यतया भ्रष्टाचार, घूस और दलाली तथा अपराधिक गतिविधियों से जन्मता है।” अवैध वित्तीय प्रवाह अवैध रूप से कमाए गए, स्थानांतरित या उपयोग में लाए गए देश से बाहर भेजे गए धन से जुड़ता है; इसमें सामान्यतया ”भ्रष्टाचार, सौदे के बदले सामान, अपराधिक गतिविधियों जैसी गैर-कानूनी गतिविधियों से कमाए गए धन का स्थानांतरण और देश के कर से बचाने के लिए सम्पत्ति को संरक्षण देना शामिल है।”

रिपोर्ट आगे जोड़ती है ”भारत की वर्तमान कुल अवैध वित्तिय प्रवाह की वर्तमान कीमत कम से कम 462 बिलियन डालर है। यह अल्पावधि अमेरिका ट्रेज़री बिल की दरों पर सम्पत्ति पर लाभ के दरों की बराबर पर आधारित है।”

देश आशा करता है कि सर्वोच्च न्यायालय इस मामले को इसकी तार्किक परिणति तक ले जाएगा। 462 बिलियन डालर बहुत बड़ी राशि है। भारतीय रूपयों में यह राशि 20 लाख 85 हजार करोड़ रूपये बैठती है जो भारतीय परिस्थितियों का अद्भुत कायाकल्प कर सकती है। इस सारी दौलत को वापस लाने के लिए सरकार को बाध्यकर सर्वोच्च न्यायालय भारत की जनता की सदैव के लिए कृतज्ञता हासिल कर सकता है।

1 COMMENT

  1. सरकार के लिए बहुत शर्म की बात है की सर्वोच्च न्यायलय लताड़ रही है. पहली बार यह मौका आया है की की इस देश में सर्वोच्च न्यायालय को भारत सरकार के काम काज पर टिपण्णी करनी पड़ रही है. यह तो ऐसी स्तिथि है की घर के दबंग हर कभी घर की महिलाओ को धमकाते रहते है, जब स्तिथि बहुत ही विकत हो गई, और इसकी चर्चा चाक चौराहे पर होने लगी तो घर के बुजुर्ग को घर के मामले में दखल देना पड़े और कहना पड़े की थोड़ी तो लाज शर्म करो, घर की मान मर्यादा का कुछ को ख्याल करो.

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