इं. दिवस दिनेश गौड़
मित्रों एक बार फिर मुंबई दहल गयी| यह तो अब मुंबई के दैनिक जीवन में आदत सी हो गयी है| और मुंबई ही क्यों, अब तो पूरा भारत ही इसे अपनी आदत में शामिल करने वाला है| कितने मरे, कहाँ मरे, कितने घायल हुए, इन बातों पर विचार करना मेरे विचार से अब व्यर्थ की बातें हैं| हम हर बार मरने वालों की संख्या ही गिनते रह जाते हैं और मारने वाले मार कर चले जाते हैं|
विचार करना ही है तो इस बात पर करो कि आखिर कब तक हम भारतीयों को इस वर्णसंकर खच्चरों वाली सरकार की राजनैतिक इच्छाओं की बेदी पर बार बार बम धमाकों में मरना पड़ेगा? क्या हमने यहाँ केवल फटने के लिए ही जन्म लिया है?
By the way खच्चर से याद आया कि, भोदू युवराज राउल विन्ची ने कहा है कि ”एक दो हमले तो होंगे ही, हम हर एक हमले को तो रोक नहीं सकते न| पाकिस्तान और अफगानिस्तान में तो आतंकी हमले रोजमर्रा की बात है|”
शायद विन्ची को इसी बात का इंतज़ार है कि जल्दी ही भारत के लोगों को भी इन धमाकों की आदत हो जाए| या विन्ची इस बात से तसल्ली किये बैठे हैं कि चलो पाकिस्तान में तो धमाकों में १०० लोग मरते हैं, हमारे यहाँ तो अभी ३५-४० ही मरे हैं|
शायद विन्ची यह चाहता है कि पाकिस्तान में तो लोगों की माँ और बहन दोनों का बलात्कार होता है, किन्तु भारत में यदि केवल बहन का ही बलात्कार हो रहा है तो हम भारतवासियों को तसल्ली कर लेनी चाहिए न कि अपनी बहन को बचाना चाहिए|
शायद विन्ची यह चाहता है कि पाकिस्तान में तो भाई और बाप दोनों की हत्याएं होती हैं, किन्तु भारत में केवल भाई की हो रही है तो हमे इस बात से तसल्ली कर लेनी चाहिए न कि अपने भाई को बचाना चाहिए|
और तो और विन्ची के G.K. का तो जवाब ही नहीं| उसका कहना है कि ”अमरीका में भी ऐसे हमले होते रहते हैं|”
पता नहीं सोनिया मम्मी इसे कौनसा ज्ञान देती हैं? ऐसी कौनसी किताबे पढ़ाती हैं कि ऐसा अद्भुत(?) ज्ञान किसी और के पास है ही नहीं?
अब जब शीर्षक से भटककर चर्चा छिड़ ही चुकी है तो बाकियों को भी कटघरे में खड़ा कर लिया जाए|
विन्ची के बाद हमारे गृहमंत्री चिदंबरम साहब(?) का तो कहना ही क्या? उनका कहना है कि ”मुंबई कि धरती पर इकत्तीस महीने बाद कोई आतंकी हमला हुआ है|”
मतलब यदि आतंकवादी किसी निश्चित समय अंतराल में यहाँ बम फोड़ते रहें तो यह उचित है| रोज़ रोज़ न सही, कभी कभी तो चलता है|
और दिग्गी की तो बात ही छोडिये| वैसे तो इनकी बात करना ही बेकार है, किन्तु जब ज़िक्र छेड़ ही दिया है तो कदम पीछे हटाने का मन ही नहीं कर रहा|
अभी शायद दो-चार दिन पहले ही इन्होने बयान दिया था कि ”जब से प्रज्ञा ठाकुर जेल में है, भारत में एक भी आतंकी कार्यवाही नहीं हुई|”
लो भाई दिग्गी राजा, आपकी यह इच्छा भी पूरी हो गयी| आपको शायद इसी बात का इंतज़ार होगा| अब कहो कि इसमें भी आरएसएस व भाजपा का ही हाथ है|
वैसे यदि कल दिग्गी ऐसा बयान दे भी दे तो कोई आश्चर्य मत करना|
अंत में हमारे आदरणीय(?), माननीय(?), सम्माननीय(?), पूजनीय(?) प्रधानमन्त्री जी श्री श्री………१००००००००८ मन्दमोहन सिंह जी की भी बारी लगा ही देते हैं|
इन महानुभाव ने हमले के बाद वही रता रटाया डायलोग मारा, ”कि कोई हमारे धैर्य की परीक्षा न ले|”
अब पता नहीं इनका धैर्य कब टूटेगा? पता नहीं क्या चाहते हैं ये?
खैर अब मुद्दे से बहुत भटक लिए, कांग्रेस व कांग्रेसियों को बहुत गालियाँ दे लीं| इनको कोसते रहे तो पूरी रात निकल जाएगी| अब असली मुद्दे पर आते हैं|
मुद्दा यह है की हमारे देश में ख़ुफ़िया एजेंसियां किसलिए बनाई गयी हैं? इनकी नाक के नीचे मुंबई में तीन धमाके हो गए और इन्हें पता भी नहीं चला|
पता चले भी तो कहाँ से? ये तो कहीं और व्यस्त थे|
केंद्र सरकार के अनुसार, बाबा रामदेव के आन्दोलन के समय तो सरकार को इन ख़ुफ़िया तंत्रों द्वारा यह जानकारी मिली थी कि दिल्ली के रामलीला मैदान में बाबा रामदेव व अन्य आन्दोलनकारियों पर आतंकी हमला होने वाला है|
मतलब बाबा रामदेव पर होने वाले आतंकी हमले की जानकारी तो जुटा ली, लेकिन मुंबई में फेल हो गए| सरकार की इस संभावना के पीछे तीन संभावनाएं और छिपी हैं|
१. या तो हमारे ख़ुफ़िया तंत्र केवल हवा में तीर मारते हैं| क्योंकि उनकी दी गयी जानकारी तो गलत ही सिद्ध हुई| न तो बाबा रामदेव के आन्दोलन में कोई आतंकी हमला हुआ जबकि मुंबई में हो गया, जहां की इन्हें कोई जानकारी ही नहीं थी|
२. या फिर सरकार ने केवल आतंकी हमले का बहाना बनाकर, बाबा रामदेव के आन्दोलन का दमन किया| निर्दोष लोगों को बर्बरता से पीटा और भारत के ख़ुफ़िया तंत्र को यूँही बदनाम किया|
३. या फिर सरकार ने सारे ख़ुफ़िया तंत्रों को बाबा रामदेव के पीछे लगा रखा है| इस कारण मुंबई में होने वाले आतंकी हमलों की कोई सूचना नहीं जुटा पाए| मतलब बाबा रामदेव से अपनी लाज बचाने के लिए दिल्ली में तो निर्दोष आन्दोलनकारियों को तो पीटा ही मुंबई में भी निर्दोष लोग मरवा दिए|
तीनों ही अवस्थाओं में सरकार को कटघरे में लेना चाहिए कि आखिर खुफिया तंत्रों का उपयोग क्या है? किसलिए भारत में ये खुफिया तंत्र खड़े किये गए हैं?
मनमोहन सिंह (इन्हें सरदार कहने में मुझे आपत्ति है) आखिर कब तक आप अपने उत्तरदायित्वों से भागेंगे?
आखिर कब तक आप ये कहेंगे कि मुझे तो कुछ मालुम नहीं, मुझे किसी ने बताया ही नहीं, हम जांच कर रहे हैं, हम कड़ी कार्यवाही करेंगे आदि आदि?
अब आपके जवाब देने की बारी आ गयी है| यदि देश नहीं संभल रहा तो कुर्सी छोड़ देनी चाहिए|
शायद लोगों को यह शंका हो कि मनमोहन सिंह ने यदि प्रधान मंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया तो राहुल गांधी को प्रधान मंत्री बना दिया जाएगा|
क्या फर्क पड़ता है? दोनों ही अवस्थाओं में सत्ता तो सोनिया की ही रहनी है|
अब भी यदि भारतवासी भोंदू युवराज को भारत के अगले प्रधानमन्त्री के रूप में देख रहे हैं, तो ये बम धमाकों में ही मरने लायक हैं|
यदि किसी ने आत्महत्या करने की ठान ही ली है तो उसे तो भगवन शिव भी नहीं बचा सकते|
कुर्सी छोड़ने का समय तो निकल गया, अब तो इन्हें उठा के फकने का समय है, ये जो भी आतंकी हमला करते है वो जानते है की हमारे नेता ही उनके सबसे बड़े हितैसी है तभी तो उनके मंसूबे पूरे होते है . राहुल जी ने तो ये साफ़ कर दिया है की यदि वो पी. एम. बने तो कैसा शासन देंगे…………….? गनीमत तो ये है की वे ऐसा न बोल पाए की सर्कार थोड़ी हमला रोकने जाएगी. हां यदि ऐसा हमला कांग्रेस की बजाय अन्य पार्टी की सरकार के राज्य में होता तो वहा ये ही राहुल राज्यपाल की रिपोर्ट मंगाते और न जाने क्या क्या………..? राहुल जी सिर्फ ये yaad रखना की अब हम समझदार हो गये है ………….?
भाई राहुल गांधी उर्फ रौल विन्ची भारत के प्रधानमंत्री कैसे बन सकते हैं? उनके पास ईटेलीयन विजा है और जन्म के समय सोनिया गांधी तो ईटेलीयन थी।
नामुंकीन… अगर बन जाते हैं तो ये भारत के संविधान के खिलाफ होगा।