विविधा

भारत की पाक नीति पर अमेरिका की प्रेतछाया

अब लगभग यह स्पष्ट हो गया है कि पिछले दिनों भारत और पाकिस्तान के बीच जो वार्ता हुई है वह अमेरिका के दबाव के कारण संभव हो सकी है। पाकिस्तान द्वारा भारत पर 26/11 के आक्रमण के बाद स्पष्ट हो गया था कि दोनों देशों के बीच वार्ता के लिए कोई पुख्ता आधार नहीं है। भारत के पास इस बात के पक्के सबूत है कि 26/11 का आक्रमण किसी आतंकवादी गिरोह का दिमागी फितूर नहीं है बल्कि यह पाकिस्तानी सेना के निर्देशन में किया गया एक सोचा समझा आक्रमण है। इस आक्रमण के बाद भी पाकिस्तान सरकार भारत की आंतरिक व्यवस्था को चैपट करने के लिए आतंकी ब्रिगेड को प्रयोग करने की रणनीति से पीछे नहीं हटी है ऐसी स्थिति में भारत की कोई भी सरकार पाकिस्तान के साथ किस एजेंडा को आधार बना कर बातचीत कर सकती है? कुछ लोग यह कह रहे हैं कि आतंकवादी गिरोह पाकिस्तान की सरकार के नियंत्रण से बाहर हो गए हैं और अब पाकिस्तान भी आतंकवाद का उसी प्रकार उसका शिकार है जैसा कि भारत उसका शिकार है।

उनका कहना है कि पाक सरकार भी आंतकवादियों की धर-पकड में लगी है। लाल मस्जिद पर पाक सेना के आक्रमण को इसके बडे उदाहरण के तौर पर पेश किया जा रहा है पर वास्तव में ऐसा है नहीं। दरअसल, आतंकवादी गिरोह तालिबान को अमेरिका और पाकिस्तान में मिलकर तैयार किया था। इसका प्रयोग अफगानिस्तान में भी करना था और भारत में भी। तालिबान अमेरिका की रणनीति का उसी प्रकार मोहरा था जिस प्रकार पाकिस्तान था। पर बाद में कुछ तालिबानियों को लगा कि इस्लाम का असली दुश्मन अमेरिका है और पाकिस्तान की वर्तमान सरकार उसकी पिछलग्गु है। तालिबान का वह स्वरूप अमेरिका के नियंत्रण से बाहर हो गया। अमेरिका के नियंत्रण से बाहर होने का अर्थ था कि वह पाक्सितान के नियम से भी बाहर हो गया। यह देखकर अमेरिका ने तालिबान का वर्गीकरण कर दिया और कहा कि तालिबान दो प्रकार के हैं पहला अच्छे तालिबान और दूसरा बुरे तालिबान। बूरे तालिबान वो हैं जो अमेरिका के नियंत्रण से बाहर हो गए हैं। अब पाकिस्तान अमेरिका के इन बुरे तालिबानों को मार रहा है। लाल मस्जिद के तालिबान इसी श्रेणी में आते थे। दिल्ली में कुछ अति उत्साही लोग इन्हीं बुरे तालिबानों के खिलाफ पाकिस्तान द्वारा की जा रही कार्यवाही को पाकिस्तान सरकार का आतंकवाद विरोधी अभियान घोषित कर रहे हैं। जबकि इसका अतंकवाद के विरोध से कुछ लेना-देना नहीं है।

ऐसी स्थति में भारत पाकिस्तान से बातचीत क्यों कर रहा है? जबकि अभी भी सूचनांए मिल रही है कि पाकिस्तानी सेना के निर्देश से आतंकवादी भारत के कुछ और ठिकानों पर आक्रमण की तैयारी कर रहें हैं।

भारत के गृहमंत्री पी.चिदंबरम् ने कहा कि यदि इस बार पाक ने आतंकवादी आक्रमण किया तो भारत चुप नहीं बैठेगा। परंतु चिदम्बरम भी जानते हैं कि पाकिस्तान के साथ व्यवहार करने में वे स्वतंत्र नहीं है। उसके लिए उन्हें अमेरिका से अनुमति लेनी पडती है। यदि अमेरिका भारत को चुप बैठनेे के लिए कहेगा तो सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह काफी देर तक चुप ही बैठे रहेंगे। परन्तु क्या कभी अमेरिका भारत को पाकिस्तान के आतंकी तंत्र को समाप्त करने की अनुमति देगा ? इसकी संभावना बहुत कम है क्योंकि पाकिस्तान का आतंकी तंत्र अमेरिका और पाकिस्तान ने मिलकर संयुक्त रुप से खडा किया है और यह तंत्र वैष्विक दृष्टि से अमेरिका के हितों की पूर्ति करने वाला है। इसका नवीनतम उदाहरण डेविड कोलमैन हेडली का किस्सा है। यह “शख्स मूलतः पाकिस्तान का नागरिक है लेकिन अमेरिका की सीआईए ने इसे अपना एजेंट बनाने के लिए इसका इस प्रकार का उल्टा -पुल्टा इस प्रकार का नाम रख दिया और इसे अमेरिका पासपोर्ट भी दिया। इसका यह नया नाम रखने का एक कारण यह भी हो सकता है कि जब यह भारत में आतंकवादी तंत्र को मजबूत करने के लिए कार्य कर रहा तो किसी को इस पर “शक न हो । यदि इसका मुस्लिम नाम होता तो हो सकता है कि यह “शक के घेरे में आ जाता। यह “शख्स एक साथ ही आई एस आई और सीआईए के लिए काम करता था।

बहुत से लोग अब हेडली को डबल एजेंट कह रहे हैं वास्तव में ऐसा है नहीं क्योंकि आईएसआई और सीआईए में इतना गहरा तालमेल है कि इन दोनों के लिए एक साथ काम करना जासूसी दुनिया में डबल एजेंट नही कहलवा सकता बल्कि गुप्तचर गतिविधियों का बढिया समन्वय कहलाएगा। इसका अर्थ यह हुआ कि सीआईए को मुम्बई पर हुए पाकिस्तान के आतंकवादी आक्रमण की किसी न किसी रुप में पूर्व सूचना थी। लेकिन अमेरिका के दुर्भाग्य से मुम्बई पर हुए इस आक्रमण में कुछ अमेरिकी नागरिक भी मारे गए। अब अमेरिका सरकार के लिए कुछ सक्रियता दिखाना अनिवार्य हो गया था और उधर सीआईए का यह भी खतरा था कि कहीं भारत की खुफिया एजेंसिया मामले की छानबीन करते हुए हेडली तक न पहुंच जाएं। यदि भारत की पुलिस हेडली तक पहुंच जाती तो भारत में पाकिस्तानी आतंकवादी तंत्र में अमेरिका की भूमिका का भी पर्दाफाष हो जाता। इसलिए अमेरिका सरकार ने तुरंत हेडली को गिरफ्तार कर लिया। और जल्दी ही उससे गुनाहों की कबूली करवाकर उसे भारत में प्रत्यर्पण किए जाने की संभावना से भी दूर कर दिया। अमेरिका द्वारा हेडली से किया गया यह समझौता चैंकाने वाला भी है और मानवता विरोधी भी। जिस हेडली पर लगभग दो सौ लोगों के हत्या का आरोप है उसे अमेरिकी सरकार ने अत्यंत चतुराई से फांसी के फंदे से भी बचा लिया। परंतु आखिर भारत सरकार को अपने लोगों को मुंह दिखाना है इसलिए अमेरिका ने अब चिदम्बरम को झुनझुना थमा दिया है कि आप के लोग भी अमेरिका आकर हेडली से पूछताछ कर सकते हैं। भारत सरकार इसी झुनझुने के बजाते हुए अपनी विजय बता रही है। चिदम्बरम जितना मर्जी हल्ला मचाते रहें लेकिन जब तक वे पाकिस्तान को लेकर अमेरिकी नीति की प्रेत छाया से मुक्त नहीं होते तब तक आतंकवाद से लडने का दिखावा तो किया जा सकता है परंतु लडा नहीं जा सकता।

– डॉ. कुलदीपचंद अग्निहोत्री