विरासत टैक्स और कांग्रेस का चरित्र

जिन्हें हम अधिकार कहते हैं मातृभूमि के संदर्भ में वही हमारे लिए कर्तव्य होते हैं। वर्तमान शिक्षा प्रणाली अधिकार और कर्तव्य के बीच उतनी सूक्ष्मता से अंतर नहीं कर पाई जितनी अपेक्षा थी। जब बात राष्ट्र की आए तो वहां पर कर्तव्य अर्थात करणीय कर्म ही हमारे लिए सबसे बड़ा धर्म बन जाता है। वहां अधिकार की दुहाई देना मूर्खता की पराकाष्ठा होती है। स्वामी श्रद्धानंद जी महाराज जी ने सूरत के कांग्रेस अधिवेशन की घटनाओं को लेकर कांग्रेस की दोगली नीति, चाल, चरित्र और चेहरे को लताड़ते हुए ‘सद्धर्म-प्रचारक’ में लिखा था- “आज तुम्हारी ( कांग्रेस के महात्मा गांधी जैसे नेताओं की ) इन्द्रियां तुम्हारे वश में नहीं, जब अपने मन पर तुम्हारा कुछ अधिकार नहीं, तब तुम दूसरे से क्या अधिकार प्राप्त कर सकते हो ? अधिकार ! अधिकार !! अधिकार !!! हा ! तुमने किस गिरे हुए शिक्षणालय में शिक्षा प्राप्त की थी ? क्या तुमने कर्तव्य नहीं सुना ? ( राष्ट्र के संदर्भ में कर्तव्य निभाने होते हैं और बिना किसी पक्षपात के निभाने होते हैं। उनके निभाने में किसी प्रकार की चूक नहीं की जाती । किसी प्रकार का तुष्टिकरण नहीं किया जाता। जो राष्ट्र हित में उचित होता है, वही किया जाता है । उसी को कर्तव्य कहते हैं। उसी को धर्म कहते हैं।) क्या तुम धर्म शब्द से अनभिज्ञ हो ? (अर्थात अपने कर्तव्य – धर्म को जानकर अंग्रेजों के सामने भीख मत मांगो बल्कि मातृभूमि के लिए जो करना उचित है, उसे कर जाओ ) मातृभूमि में अधिकार का क्या काम ? यहां धर्म ही आश्रय दे सकता है। अधिकार शब्द से सकामता की गन्ध आती है। विषय-वासना का दृश्य दृष्टिगोचर होता है। इस अधिकार की वासना को अपने हृदय से नोंच कर फेंक दो। निष्काम भाव से धर्म का सेवन करो। माता पर जब चारों ओर से प्रहार हो रहे हों, जब उसके केश पकड़ कर दुष्ट दुःशासन उसको भूमि पर घसीट रहा हो, क्या वह समय अधिकार की पुकार मचाने का है?… शब्दों पर क्यों झगड़ते हो ? क्यों न स्वराज्य प्राप्ति के साधनों को सिद्ध करने में लगो ? स्वराज्य के प्रकार का झगड़ा आने वाली सन्तानों के लिए छोड़ो। उनकी स्वतन्त्रता पर इस समय इन झगड़ों से जंजीरें डालना अधर्म है। इस समय दोनों छल-कपट से कार्य ले रहे हैं। जिस कांग्रेस का आधार अधर्म पर है, उसका प्राप्त कराया हुआ स्वराज्य कभी भी फलदायक न होगा, कभी भी सुख तथा शान्ति का राज्य फैलाने वाला न होगा। एक ऐसे धार्मिक दल की आवश्यकता है जो विरोधी को धोखा देना भी वैसा ही पाप समझता हो, जैसे कि अपने भाई को, जो सरकारी अत्याचारों को प्रगट करते हुए अपने भाइयों की दुष्टता तथा उनके अत्याचारों को भी न छिपाने वाला हो, जो मौत के भय से भी न्याय के पथ को छोड़ने का विचार तक मन में न लाने वाला हो। पोलिटिकल जगत् में ऐसे ही अग्रणी की आवश्यकता है। क्या कोई महात्मा आगे आने का साहस करेगा और क्या उसके पीछे चलने वाले 5 पुरुष भी निकलेंगे? यदि इतना भी नहीं हो सकता तो स्वराज्य प्राप्ति के प्रोग्राम को पचास वर्षों के लिए तह करके रख दो।”
इस लेख में स्वामी जी महाराज स्पष्ट कह रहे हैं कि जिस कांग्रेस का आधार अधर्म है, उसका प्राप्त कराया हुआ स्वराज्य कभी भी फलदायक न होगा। स्वामी जी कांग्रेस के तुष्टीकरण के खेल के परम विरोधी थे। सनातनधर्मियों की उपेक्षा कर कांग्रेस जिस प्रकार मुसलमानों का तुष्टिकरण करती जा रही थी, उसे लेकर स्वामी जी महाराज कांग्रेस पर इसी प्रकार के तीखे प्रहार करते रहे। आज उन घटनाओं को 100 वर्ष से अधिक का समय हो गया है जब स्वामी जी महाराज कांग्रेस के सनातन विरोधी चरित्र पर इस प्रकार की सख्त भाषा का प्रयोग कर रहे थे, पर कांग्रेस है कि उसने अपने चाल ,चरित्र पर चेहरे में किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं किया। कांग्रेस से पूर्णतया बागी हो चुके स्वामी जी ने अन्यत्र अपने लेख में लिखा था- “यदि अग्नि और खड्ग की धार पर चलने वाले दस पागल आर्य भी निकल आवें तो राजा और प्रजा दोनों को होश में ला सकते हैं। भगवन् आर्यसमाजियों की आंखें जाने कब खुलेंगी?” ‘आर्य समाज का इतिहास’ नामक पुस्तक में स्वामी श्रद्धानंद जी के सुपुत्र इंद्र विद्यावाचस्पति जी लिखते हैं कि इसी दृष्टि से आप नरम दल वालों के लिए ‘भिक्षार्थी’ गरम दल वालों के लिए ‘सुखार्थी’ और सरकार के लिए ‘गोराशाही’ शब्दों का प्रयोग किया करते थे।
आज की कांग्रेस अपने परंपरागत चाल, चरित्र और चेहरे के इतिहास पर अमल करते हुए विरासत टैक्स के माध्यम से देश के बहुसंख्यक समाज के आर्थिक संसाधनों और उसकी कमाई तक को मुसलमानों को देने की घोषणा कर रही है। देश के एक प्रांत से कांग्रेस मुसलमानों को धर्म के आधार पर आरक्षण दे भी चुकी है ,अन्यत्र ऐसा ही करने की तैयारी कर रही है। यद्यपि ऐसा किया जाना भारतीय संविधान की हत्या करने के समान होगा।
क्योंकि हमारा संविधान संप्रदाय के आधार पर किसी भी प्रकार के आरक्षण का विरोधी है। यह अच्छा ही हुआ कि प्रधानमंत्री श्री मोदी ने अपने चुनावी भाषणों में कांग्रेस की पोल खोल दी है और उसका सच पूरे देश के लोगों के सामने लाकर रख दिया है। ऐसे में देश के सनातनधर्मियों की आंखें खुलनी चाहिए और उन्हें सोच समझकर यह निर्णय लेना चाहिए कि देश दोगली चाल, चरित्र और चेहरे वाले हाथों में सुरक्षित है या फिर देश के लिए समर्पित होकर काम करने वाले नेता के हाथों सुरक्षित है? कांग्रेस ने प्रधानमंत्री श्री मोदी के पोल खोल अभियान पर झूठी चिल्लाहट दिखाने का प्रयास किया है तो प्रधानमंत्री ने और भी स्पष्ट शब्दों में देश के लोगों को कांग्रेस का वास्तविक चरित्र बताने में किसी प्रकार का संकोच नहीं किया।
प्रधानमंत्री ने कहा है कि कांग्रेस बहुसंख्यक सनातनधर्मियों की संपत्ति को लेकर अधिक संतान वाले वर्ग के लोगों में बांट देगी। इसके संबंध में सच्चाई यह है कि कांग्रेस के पहले प्रधानमंत्री नेहरू ने मुसलमानों को धर्म के आधार पर आरक्षण देने का मन आजादी के एकदम बाद ही बना लिया था। प्रखर श्रीवास्तव X पर लिखते हैं पाकिस्तान के दबाव में नेहरु ने मुसलमानों को फुल फ्लैश आरक्षण देने का पूरा प्लान तैयार कर लिया था ! नेहरु मुसलमानों को नौकरियों के साथ-साथ चुनावों में भी आरक्षण देने का ब्लू प्रिंट तैयार कर चुके थे ! नेहरु का मुस्लिम चुनावी आरक्षण का प्लान ये था कि – इस देश में कई मुस्लिम सीट बनाईं जाएंगी, जिन पर सिर्फ मुस्लिम उम्मीदवार खड़ा होगा और वोट डालने का अधिकार भी सिर्फ मुसलमान को होगा… यानी सिर्फ मुसलमानों द्वारा मुसलमान प्रतिनिधि चुना जाएगा… पंचायत से लेकर लोकसभा तक !
बात 1949 की है… पूर्वी पाकिस्तान यानी आज के बांग्लादेश में हिंदू विरोधी दंगे अपने पूरे उफान पर थे। करीब पांच लाख बंगाली हिंदुओं का नरसंहार कर दिया गया। वहीं करीब पचास लाख बंगाली हिंदू जान बचाकर हमेशा-हमेशा के लिए पश्चिम बंगाल आ गये। तब देश के लोगों की इच्छा थी कि पाकिस्तान के विरुद्ध युद्ध की तैयारी की जाए ।पर नेहरू जी ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली के साथ बातचीत करने का निर्णय लिया। बातचीत में लियाकत अली ने प्रधानमंत्री के सामने प्रस्ताव रखा कि वह भारत के मुसलमानों को आरक्षण देने की व्यवस्था करें। बातचीत में यह भी तय किया जाना था कि दोनों देश अपने-अपनेअल्पसंख्यकों को किस प्रकार सुरक्षा प्रदान करें ? पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने तो अपनी बात निसंकोच कह दी, पर भारतीय प्रधानमंत्री ने पाकिस्तान में रहने वाले हिंदू अल्पसंख्यकों की बात को उठाना तक उचित नहीं माना। भारत के प्रधानमंत्री ने मुसलमानों को नौकरी आदि में आरक्षण देने के साथ-साथ चुनाव में भी आरक्षण देने की बात को मानकर उसका एक ड्राफ्ट भी तैयार कर लिया।
जब इस ड्राफ्ट को प्रधानमंत्री नेहरू ने कैबिनेट की मीटिंग के समक्ष रखा तो उस समय सार्वजनिक निर्माण विभाग के मंत्री व गाडगिल ने इसका विरोध किया उन्होंने ‘गवर्नमेंट फ्रॉम इनसाइड’ नामक अपनी किताब में लिखा है कि जब नेहरू ने कैबिनेट के सामने अपने उपरोक्त ड्राफ्ट को रखा तो मुझे इस बात का यकीन नहीं था कि इस ड्राफ्ट पर सरदार पटेल से सहमति ली गई थी या नहीं। समझौते के अंतिम दो पैराग्राफ में भारत के सभी राज्यों की नौकरियों और प्रतिनिधि निकायों (*सभी चुनावों में) में मुसलमानों को उनकी आबादी के अनुपात में आरक्षण देने का वादा किया गया था। केंद्र सरकार की नौकरियों के लिए भी यही प्रावधान रखे गये थे। हम सभी मंत्रियों को ड्रॉफ्ट की एक-एक कॉपी दे दी गई थी लेकिन किसी ने अपना मुंह नहीं खोला। तब मैंने कहा कि – ‘ये दो पैराग्राफ कांग्रेस की पूरी विचारधारा के खिलाफ हैं। मुसलमानों के लिये अलग से सीट स्वीकार करने की वजह से देश को विभाजन की कीमत चुकानी पड़ी। आप हमें फिर से वही ज़हर पीने को कह रहे हैं। ये एक विश्वासघात है, पिछले चालीस वर्षों के इतिहास को भुला दिया गया है।’”
गाडगिल लिखते हैं कि “मेरे विरोध की वजह से नेहरू नाराज थे लेकिन बाकी मंत्री खुश थे। फिर भी उनमें से किसी ने भी मेरा समर्थन करने की हिम्मत नहीं की। आधे घंटे तक चली चर्चा के बाद मंत्री गोपालस्वामी अयंगर ने कहा कि – ‘गाडगिल की आपत्तियों में दम है’ और उन्होने समझौते के आखिरी दो पैराग्राफ फिर तैयार करने का काम अपने हाथ में ले लिया। इस पर नेहरू ने गुस्से में जवाब दिया कि – ‘मैंने लियाकत अली खान के साथ इस शर्त पर अपनी सहमति व्यक्त की है।‘ तब मैंने उन्हे जवाब दिया कि – ‘आपने उन्हें ये भी बताया होगा कि कैबिनेट की मंजूरी के बाद ही समझौते को अंतिम रूप दिया जाता है। मैं अन्य कैबिनेट सदस्यों के बारे में तो नहीं कह सकता लेकिन मैं इसका सौ फीसदी विरोध करता हूं।’ इस पर सरदार पटेल ने चुपचाप सुझाव दिया कि चर्चा अगले दिन के लिए स्थगित कर दी जाए और बैठक स्थगित कर दी गई।”
गाडगिल अपनी किताब में आगे लिखते हैं कि उसी रात सरदार पटेल ने उन्हे ये जानकारी दी कि गोपालस्वामी आयंगर ने समझौते के ड्राफ्ट में बदलाव कर दिया है। लिहाज़ा जब अगले दिन मंत्रिमंडल की बैठक हुई तो अंतिम दो पैराग्राफों को हटा दिया गया था। इस तरह सरदार पटेल की समझदारी और एन.वी. गाडगिल की बगावत की वजह से मुसलमानों को आरक्षण देने का नेहरू का सपना चकनाचूर हो गया। समझे न… ये गेम बहुत पुराना है !!!”
हमें इस समय देश के उन छुपे हुए शत्रुओं को पहचानने की आवश्यकता है जो हमारे बीच रहकर हमारी जड़ों को काट रहे हैं। हमें उन कालिदासों से भी बचने की आवश्यकता है जो जिस डाल पर बैठे हैं उसी को काट रहे हैं। देश अब और अधिक ‘जयचंद’ झेलने की स्थिति में नहीं है। यदि अभी नहीं तो कभी नहीं के आधार पर निर्णय लेकर चुनाव में हमें हिस्सा लेना चाहिए।

डॉ राकेश कुमार आर्य

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