धर्म-अध्यात्म शख्सियत

देवरहा बाबा के जीवन के रोचक किस्से 

आचार्य डॉ राधेश्याम द्विवेदी 

भारत की समृद्ध सन्त परम्परा :- 

भारत सदा से ही ऋषि-मुनियों का देश रहा है। यहां की संत परंपरा धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृति का मिश्रण है जो सदियों से विकसित हुई है। संतों की भक्ति की शक्ति का एहसास लोगों को प्राचीन काल से ही है। भारत में ऐसे कई दिव्य संत हैं। जिनकी परम्परा गुरुओं और भक्तों के माध्यम से विकसित हुई है, जिसमें गुरु नानक, कबीर, नामदेव और रविदास जैसे संत शामिल हैं। इस परंपरा ने जाति-आधारित भेदभाव, मूर्तिपूजा और कर्मकांडों का विरोध किया और सभी के लिए भक्ति के सरल, समतावादी और हृदय- केंद्रित मार्ग को बढ़ावा दिया। 

महान योगी देवरहा बाबा :- 

आज हम आपको एक ऐसे दिव्य संत, सिद्ध पुरुष और कर्मयोगी के बारे में बता रहे हैं, जिनके आशीर्वाद पाने के लिए देश-दुनिया के लोग उनके आश्रम में आते रहे है। उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले से अवतरित और देवरिया की पावन भूमि में साधनारत चमत्कारी ब्रह्मस्वरूप सन्त देवरहा बाबा की । देवरहा बाबा हमेशा प्रेम से ओतप्रोत रहते थे। वे आध्यात्म और भक्ति के प्रेमपुंज थे। उनकी दुबली-पतली शरीर, लंबी जटा, कंधे पर यज्ञोपवीत और कमर में मृगछाला एक अलग ही पहचान थी। उनको “अनंत योगी” कहा गया है। उन्होंने अपनी जीभ और अपनी मृत्यु के समय को नियंत्रित करके खेचरी मुद्रा में मजबूती हासिल की थी। उनके दर्शनों को प्रतिदिन विशाल जनसमूह उमड़ता था। बाबा भक्तों के मन की बात भी बिना बताए जान लेते थे। उन्होंने पूरे जीवन अन्न नहीं खाया। दूध व शहद पीकर जीवन गुजार दिया। श्रीफल का रस उन्हें बहुत पसंद था। खेचरी मुद्रा पर सिद्धि के कारण वे अपनी भूख और आयु पर नियंत्रण प्राप्त कर लेते थे। बाबा एक सिद्ध पुरुष व कर्मठ योगी थे। उन्होंने  कभी अपनी उम्र, तप, शक्ति और सिद्धि के बारे में कोई दावा नहीं किया।

दया के महासागर:- 

उनके भक्त उन्हें दया का महासागर बताते हैं। अपनी सम्पत्ति बाबा ने मुक्त हस्त से लुटाई है । उनके पास जो भी आया, बाबा की भरपूर दया लेकर गया। वितरण में उन्होंने कोई विभेद नहीं किया । वर्षाजल की भांति बाबा का आशीर्वाद सब पर खूब बरसा। मान्यता थी कि बाबा का आशीर्वाद हर मर्ज की दवाई है। कहा जाता है कि बाबा देखते ही समझ जाते थे कि सामने वाले का सवाल क्या है। दिव्य दृष्ठि के साथ तेज नजर, कडक आवाज, दिल खोल कर हंसना, खूब बतियाना बाबा की आदत थी। याददाश्त इतनी कि दशकों बाद भी मिले व्यक्ति को पहचान लेते और उसके दादा-परदादा तक का नाम व इतिहास तक बता देते, किसी तेज कम्यूटर की तरह। उनकी कदकाठी भी बलिष्ठ थी। उनका पूरा जीवन मचान पर ही बीतता रहा । लकडी के चार खंभों पर टिकी मचान ही उनका महल था, जहां नीचे से ही लोग उनके दर्शन करते थे। उनके चमत्कृत नजारे लोगों को झंकृत करते रहे। आशीर्वाद देने का उनका ढंग निराला था। मचान पर बैठे-बैठे ही अपना पैर जिसके सिर पर रख दिया, वो धन्य हो गया। पेड़-पौधे भी उनसे बात करते थे। उनके आश्रम में बबूल तो थे, मगर कांटे विहीन। यही नहीं वे खुशबू भी बिखेरते थे। बाबा जी पानी पर भी चल लेते थे और 30 मिनट तक पानी में बिना सांस लिए रह सकते थे। उनको जानवरों की भाषा समझ में आती थी। खतरनाक जंगली जानवरों को वह पल भर में काबू कर लेते थे। संपूर्ण जीवन दिगम्बर रहने वाले बाबा से भक्तों का विश्वास है कि वे जल पर जीवित थे, उन्हें प्लविनि सिद्धि प्राप्त हुई थी। बाबा ने किसी भी स्थान पर पहुँचने के लिए कभी भी यात्रा नहीं की। वे हर साल माघ मेले में असमान से जमीन पर उतरते थे। यमुना किनारे वृंदावन में बाबा एक घंटे तक बिना सांस लिए ही पानी में रह गए थे।

देवरहा बाबा का जन्म और समय:- 

देवरहा बाबा के जन्म की सटीक तिथि अज्ञात है।  यह एक गलत धारणा बन गई है कि उनका जन्म देवरिया जिले में हुआ था। वस्तुतः बस्ती जिला के उमरिया नामक गांव में जनार्दन दुबे के रूप में देवरहा बाबा ने कोई 150 साल पहले ही अपना पंचभौतिक शरीर धारण किया था । यद्यपि सत्य होते हुए भी इस मत को सर्वग्राह नहीं माना गया है और लोग उन्हें 900 साल 500 साल और 250 साल का भी बताते हैं। लोगों का यह भी मानना है कि बाबा ने वर्षों तक अपने सूक्ष्म शरीर में भी तपस्या की है , इसलिए उनकी उम्र का सही अनुमान लगाना लोगों के लिए और भी मुश्किल हो गया। उनके लंबे जीवनकाल के कारण, उनकी उम्र का सटीक अनुमान लगाना कठिन है, और कई अलग-अलग अनुमान लगाए गए हैं। कुछ लोग उनके जन्म का वर्ष लगभग 1740 मानते हैं। ज़्यादातर लोग उनके जन्म के बारे में नहीं जानते। श्री विश्वनाथ मुखर्जी ने अपनी पुस्तक “भारत के महान योगी” के भाग 10 (वायलूम 5) में देवरहा बाबा का जन्म बस्ती ज़िले के उमरिया गाँव में होने की पुष्टि की है।

देवरहा बाबा के समय का एक दुर्लभ संदर्भ https://pmnewscheme.in/devraha-baba 11 June 2023 by rsranap7@gmail.com के अनुसार उनका समय 1836 – 1990 ई .माना जाता है। यह संदर्भ किंचित कारणों से अब खुल नहीं पा रहा है। देवरहा बाबा जब छोटे थे तभी से साधु परिवृति के थे और कम उम्र में ही वह साधु बन कर साधु भाव सबके साथ बाटते रहे ।वह बहुत ही उदार और भगवान में बिश्वास रखने वाले नागा साधु के भेष में रहने वाले एक योगी थे।     

     इस स्तम्भ का लेखक बाबाजी के मूल गांव के पड़ोस का ही रहने वाला है जो अपने तीन पूर्ववर्ती पूर्वजों से बाबा जी के बचपन की कहानी सुनते चला आ रहा है। देवरहा बाबा को रामानुज आचार्य (1017 -1137) के वंश में ग्यारहवें/ बारहवें गुरु के शिष्य के रूप में भी लोग मानते हैं परन्तु इस सन्दर्भ से मैं संतुष्ट नहीं हो पा रहा हूं। दोनों के बीच का अंतराल भी अधिक है और अन्य आचार्यों के नाम ही मिलते हैं।

वंश वृक्ष और उनके जन्मभूमि पर बना मन्दिर :-

देवरहा बाबा उस समय गोरखपुर वर्तमान बस्ती जिले के हरैया तहसील के दुबौलिया थाना क्षेत्र के उमरिया ग्राम के मूल निवासी रहे हैं। वे स्वर्गीय श्री रामयश दूबे के सबसे छोटे पुत्र हैं । देवरहा बाबा का बचपन का नाम पंडित जनार्दन दत्त दूबे था उनके पिता का नाम पं. राम यश दूबे था । पंडित राम यश दूबे के तीन पुत्र सूर्यबली ,देवकली और जनार्दन दत्त थे। उनके बड़े भाई श्री सूर्य बली दूबे का वंश ही आगे बढ़ा है ,जिनके पुत्र का नाम श्री चंद्रशेखर दूबे रहा है। उनके पुत्र का नाम श्री सीताराम दूबे और श्री बाबूराम दूबे थे। श्री बाबूराम की असमय हत्या हो गई थी और श्री सीताराम दूबे का वंश ही आगे चला। पंडित सीताराम दूबे की पत्नी श्रीमती उदयराजी थी जो अपनी पति की मृत्यु के बाद दोनों पुत्रों के साथ घर की पैतृक और अयोध्या स्थित आश्रम की संपत्ति की सह उत्तराधिकारी बनी।  इनके दो पुत्र थे । पण्डित मथुरा प्रसाद दूबे उर्फ सुदर्शनाचार्य और पण्डित मनीराम दूबे उर्फ मनीरामाचार्य,जो दिव्यांग थे । 

      ब्रम्हर्षि श्री देवरहा बाबा जन्मस्थान प्रधान पीठ उमरिया जिला बस्ती में स्थापित है । यह एक विशाल भूभाग पर  सरयू नदी के तट पर भव्य प्राकृतिक सुषमा बिखेरता है। उनके वंशज और कुल के भक्तों द्वारा पोषित यह मन्दिर विविध प्रकार के सांस्कृतिक आयोजनों की आयोजन करता रहता है। यह गांव पहले से ही एक सिद्ध स्थल रहा है। ब्रम्हर्षि श्री देवरहा बाबा जन्मस्थान के अलावा  त्रिदेव मन्दिर तथा प्रसिद्ध बाबा निहाल दास की कुटिया व मन्दिर के लिए भी विख्यात है। 

    ब्रम्हर्षि श्री देवरहा बाबा जन्मस्थान प्रधान पीठ के श्री मथुरा दूबे उर्फ महंत स्वामी सुदर्शनाचार्य जी महाराज रहे जो अब साकेत वासी हो चुके हैं। वे ही मन्दिर में पूजा पाठ तथा आश्रम की देख रेख कर रहे थे।जो 13 दिसंबर 2023 को उमरिया में ब्रह्मलीन हुए थे और 25 दिसंबर 2023 को श्री मथुरा दूबे सुदर्शनाचार्य का ब्रह्म भोज सम्पन्न हुआ था। इस समय सुदर्शनाचार्य के पुत्र शिष्य श्री प्रद्युम्न कुमार दूबे जन्मस्थान उमरिया के प्रधानपीठ के वर्तमान उत्तराधिकारी हैं। इनके अग्रज महंत श्री कृष्ण सागर दुबे अयोध्या स्थित देवरहा बाबा आश्रम के उत्तराधिकारी हैं।

बाबा की जीवन की लीलायें :- 

देवरहा बाबा का बचपन का नाम पंडित जनार्दन दत्त दूबे था उनके पिता का नाम पं. राम यश दूबे था उनके तीन पुत्र थे सूर्यबली दूबे देवकली दूबे और पंडित जनार्दन दत्त दूबे। पंडित जनार्दन सबसे छोटे भाई थे। पिता पंडित राम यश दूबे अपने तीनों बेटों से खेती का काम ही कराना चाहते थे।  तरुणाई में ही वे बड़ी बहन का उलाहना पाकर सरयू पार कर रामनगरी आ पहुंचे। 

काशी प्रवास :- 

समाधि में ध्यानस्थ होते इससे पूर्व दीक्षा की आवश्कता महसूस हुई और वे दैवी प्रेरणा से काशी पहुंचे। दीक्षा के बाद उन्हें गुरु आश्रम में भगवान की पूजा का दायित्व मिला। अपनी प्रारम्भिक शिक्षा समाप्त कर वे संस्कृत अध्ययन के लिए काशी में आ गये थे। भदौनी निवासी पं. गया प्रसाद ज्योतिषी के यहां रहकर वे संस्कृत व्याकरण का अध्ययन करने लगे थे। जिनका जन्म कल्याणीपुर जिला फतेहपुर में कार्तिक शुक्ल षष्ठी संबत 1950 ,तदनुसार 15 नवंबर 1893 ई को हुआ था। इनके गुरु उड़िया बाबा (1875 – 1948) थे। पंडित गया प्रसाद जी से शिक्षा ग्रहण करने के लिए जनार्दन दत्त कई वर्ष काशी में अध्ययनरत रहे।

पिताजी से मुलाकात और देहावसान :- 

काशी में कुछ दिन निवास करने के बाद वे संतों की टोली के साथ उत्तराखंड चले गए। जहां जनार्दन दत्त स्वामी निरंजन देव सरस्वती के सानिध्य में आए। इनका पूर्व नाम चंद्र शेखर दबे था। इनके पूर्वज राजस्थान के ब्यावर में बस गए थे। ये गांधी जी (1869 – 1948 ) के समकालीन थे। गांधी जी और पंडित गया प्रसाद के मध्य शास्त्रार्थ भी हुआ था। वहां सामुहिक संतों के दिशानिर्देश में जनार्दन दत्त योग एवं साधना की आतिथ्य सीखी थी।

      हरिद्वार  कुम्भ मेले  के दौरान  जनार्दन दत्त  का अपने पिता पं. राम यश  दूबे  से  अचानक  मिलना हो गया। पिता जी  को देखते ही  जनार्दन दत्त  भयभीत  हो गये । उनके घर  चलने के  लिए  कहने पर वह उन्हें मना नहीं कर सके और वह उनके  साथ चलने के लिए  तैयार भी हो गये । पण्डित रामयश जनार्दन को लेकर घर की ओर चल पड़े। रास्तें  में पिताजी  की इच्छा  अयोध्या में  रामजी  के दर्शन  की हुई थी। जहां  अचानक  पिता जी  का निधन हो गया। पिता को वहीं छोड़कर जनार्दन उमरिया गांव पहुंचे और अपने भाइयों को लेकर अयोध्या दुबारा आए। वहां पर पिता का अंतिम संस्कार किया। पिताजी  के निधन के बाद उनके  परिवार  के  विरोधियों  ने उन्हें  आतंकित  करना प्रारम्भ कर दिया। विरोधियों से  बचने  के लिए  जनार्दन  दत्त को  अपनी  जन्म  भूमि  छोड़नी पड़ी थी । उन्हें उमरिया, तिलकपुर और अन्य किसी पास के धर्म स्थल पर साधना करने के लिए परिवारी जनों ने आग्रह भी किया था। जो उन्हें पसन्द नहीं आया और वे हिमालय पर इधर उधर घूमते-घूमते साधना करते-करते देवरिया के मईल गांव को अपना ठिकाना बना लिया।

ब्रह्म ज्ञान की प्राप्ति देवरिया में:-

जनार्दन दत्त पुनः ब्रह्म की खोज में वापस चले गए । हिमालय में अनेक वर्षों तक अज्ञात रूप में रहकर उन्होंने साधना की। वहां से वे पूर्वी उत्तर प्रदेश के देवरिया नामक स्थान पर पहुंचे। 

उन्नीसवीं शताब्दी के दूसरे दशक की बात है पूरे उत्तर प्रदेश में भीषण अकाल पड़ा था।अकाल से सर्वाधिक प्रभावित गोरखपुर जिला था।आज का देवरिया जिला उन दिनों गोरखपुर जिले में ही था। भयंकर सूखे के कारण पूरे जनपद में त्राहि त्राहि मची थी। देवरिया में सरयू नदी के तट पर एक प्राचीन गांव मईल है। एक दिन अकाल ग्रस्त ग्रामवासी सरयू नदी के तट पर एकत्रित होकर भगवान से प्रार्थना कर रहे थे। देवरा (नदी के किनारे उगने वाला एक प्रकार का छोटा पौधा) के घने जंगलों में लम्बे समय तक बाबाजी को रुकना व छिपना पड़ा था।इससे  उनके  केश  बाल और  दाढ़ी  बहुत  बढ़ गये थे। कोई  उस  जंगल में अचानक  जनार्दन दत्त  को  देखकर  उन्हे  “देवरा बाबा” कह भय से वहां से भाग  गया  था। नदी की रेत को जनभाषा में भी  देवरा कहते हैं । वहां रहने के कारण बाबा को “देवरहा बाबा” कहा जाने लगा। अवधूत वेषधारी जटाधारी एक तपस्वी महापुरुष नदी तट पर प्रकट हुए उनका उन्नत ललाट मुख मंडल पर देदीप्यमान तेज आंखों में सम्मोहन देखकर उपस्थित जन अपने को रोक न सके और उस तपस्वी के सामने साष्टांग लेट गए । यह सूचना पूरे गांव में फैल गई। देखते ही देखते गांव के समस्त नर-नारी दौड़कर आ गए । कुछ ही देर में बाबा के सामने एक विशाल जनसमुदाय इकट्ठा हो गया । बाबा सरयू नदी के जल से प्रकट हुए थे इसलिए “जलेसर महाराज” के नाम से जय – जयकार के नारे लगने लगे। बाबा से सभी मनुष्यों ने अपनी अपनी विपत्तियां कहीं । बाबा ने सबकी बातें प्रेम पूर्वक सुनी और कहा तुम लोग घर जाओ । शीघ्र ही वर्षा होगी । वे बाबा का गुणगान करते हुए अपने घरों को लौट पड़े और शाम होते ही पूरा आकाश बादलों से भर गया देखते ही देखते मूसलाधार वर्षा होने लगी। “जलेसर बाबा”  ही आगे चलकर  ” देवरहा बाबा” कहलाए। देवरिया का मइल आश्रम प्रसिद्ध देवरहा बाबा आश्रम है, जो बरहज तहसील के मइल गांव में सरयू नदी के किनारे स्थित है। यह आश्रम ब्रह्मयोगी श्री देवरहा बाबा की तपो- स्थली है। करीब एक किलोमीटर दूर, श्री राधा रानी मंदिर के पास, एक गुफा आश्रम है, जिसे देवरहा बाबा का ध्यान स्थल माना जाता है। इस स्थान को एक पवित्र तपोवन माना जाता है, जहाँ आध्यात्मिक ज्ञान और सकारात्मक ऊर्जा का अनुभव किया जा सकता है। कुछ ही दिनों में जनार्दन दूबे की ज्योति तप साधना योग से पूरे देश में फैलने लगी पूरे देश में बड़ी बड़ी हस्तियां उनकी तरफ चली आ रही थी । देवरहा बाबा रामभक्त थे, उनके मुख में सदा राम नाम का वास था, वो भक्तों को राम मंत्र की दीक्षा देते थे। वह सदा सरयू के किनारे रहते थे। उनका कहना था-

“एक लकड़ी हृदय को मानो 

दूसर राम नाम पहिचानो।

राम नाम नित उर पे मारो 

ब्रह्म लाभ संशय न जानो।”

देवरहा बाबा श्री राम और श्री कृष्ण को एक मानते थे और भक्तो को कष्ट से मुक्ति के लिए कृष्ण मंत्र भी देते थे।

“ऊं कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने

प्रणतक्लेशनाशाय गोविन्दाय नमो नम:”।

हठयोग की दसों मुद्राओं का प्रशिक्षण :- 

पूज्य बाबा ने योग विद्या के जिज्ञासुओं को हठयोग की दसों मुद्राओं का प्रशिक्षण दिया। वे ध्यान योग, नाद योग, लय योग, प्राणायाम, त्राटक, ध्यान, धारणा, समाधि आदि की साधन पद्धतियों का जब विवेचन करते तो बड़े-बड़े धर्माचार्य उनके योग सम्बंधी ज्ञान के समक्ष नतमस्तक हो जाते थे।

प्रमुख हस्तियां जो बाबा की कृपा पाई :- 

बाबा प्रचार एवं प्रसिद्धि से दूर रहते थे। एक बार एक प्रख्यात लेखक ने उनकी जीवनी लिखने के लिए उनसे सम्पर्क किया, तो उन्होंने स्पष्ट मनाकर दिया।  उनकी ख्याति इतनी फैली कि जार्ज पंचम जब भारत आया तो अपने पूरे लाव लश्कर के साथ उनके दर्शन करने देवरिया जिले के दियारा इलाके में मइल गांव तक उनके आश्रम तक पहुंच गया।  इंग्लैंड से रवाना होते समय उसने अपने भाई से पूछा था कि क्या वास्तव में इंडिया के साधु संत महान होते हैं। प्रिंस फिलिप ने जवाब दिया- हां, कम से कम देवरहा बाबा से जरूर मिलना। यह सन 1911 की बात है। जार्ज पंचम की यह यात्रा तब विश्वयुद्ध के मंडरा रहे माहौल के चलते भारत के लोगों को बरतानिया हुकूमत के पक्ष में करने की थी। उससे हुई बातचीत बाबा ने अपने कुछ शिष्यों को बतायी भी थी।

      डाक्टर राजेंद्र प्रसाद तब रहे होंगे कोई दो-तीन साल के, जब अपने माता-पिता के साथ वे बाबा के यहां गये थे। बाबा देखते ही बोल पड़े- “यह बच्चा तो राजा बनेगा।” बाद में राष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने बाबा को एक पत्र लिखकर कृतज्ञता प्रकट की और सन 1954 के प्रयाग कुंभ में बाकायदा बाबा का सार्वजनिक पूजन भी किया।

      बाबा के दर्शन के लिए दूर-दूर से प्रतिदिन हजारों लोग आते थे। वे अपनी मस्ती में रहकर सबको अपने हाथ या पैर से स्पर्श करके सबको आशीर्वाद देते थे। भारत से सभी वर्ग और समुदाय के लोग उन्हें नमन करने आते रहते थे। उनकी उम्र, कठिन तप और सिद्धियों के बारे में देवरहा बाबा ने कोई चमत्कारिक दावा नहीं किया, लेकिन उनके अवतार-गिर्द हर तरह के लोगों की भीड़ ने उनके चमत्कार को कभी-कभी देखा है। सहज, सरल और सुगम बाबा के सानिध्य में वृक्ष, वनस्पति भी अपना- अपना आकलन अनुभव करते रहे। 

      बाबा के शिष्यों तथा प्रशंसकों में जयपुर के महाराजा मानसिंह, नेपाल के 17वीं पीढ़ी पूर्व के महाराजा राजा महेन्द्र प्रताप सिंह, राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद और डा. जाकिर हुसेन, इंग्लैण्ड के जॉर्ज पंचम, प्रधानमन्त्री लालबहादुर शास्त्री, पण्डित मोतीलाल नेहरू, डॉ. सम्पूर्णानन्द, राजनीतिक महमूद बट्ट जैसे राजनेता, प्रशासनिक अधिकारी, शिक्षाविद, सन्त और समाजसेवी शामिल थे।

      भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने उन्हें बचपन में ही देखा था। देश-दुनिया के महान लोग आपसे मिलने आये थे और साधु- संतों का भी उनके आश्रम में समागम होता था। उनकी जुड़ी हुई कई घटनाएँ इस सिद्ध संत को मानवीय, ज्ञान, तप और योग के लिए प्रमाणित करती हैं। वह भारतीय शैली के प्रिय, इंदिरा और राजीव गांधी, मंत्री, संत, योगी, पुजारी, अमीर और गरीब लोगों से मिलते थे। पूर्व राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद,पण्डित मदन मोहन मालवीय, पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, अटल बिहारी बाजपेयी, राजीव गांधी, राजनेता मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह,श्री लालू प्रसाद यादव, चौधरी चरण सिंह, मुलायम सिंह यादव समेत कई लोगों ने उनके दर्शन का लाभ और आशीर्वाद प्राप्त किया था। भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने योगी की बड़ी उम्र के बारे में बताया था। 73 वर्ष की आयु में उन्होंने कहा कि जब वह छोटा लड़का था, तो उसके पिता ने उसे बाबा से मिलने के लिए बुलाया, जो बूढ़ा व्यक्ति था, और उसके पिता को कई वर्ष पहले ही बाबा के बारे में पता चला था। देवरहा बाबा की उपस्थिति 12 प्रमुख कुंभ मेले में दर्ज की गई थी। यह 12 साल में एक बार होता है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के वकील ने स्थापित किया कि उनके परिवार की सात पीढीयां देवरहा बाबा के मंच पर स्थित हैं। 1911 ई.में जॉर्ज पंचम भी देवरहा बाबा का आशीर्वाद लेकर उनके आश्रम आये थे। उनके भक्तों में जार्ज पंचम, पूर्व राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद(1884-1963) पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी, चौधरी चरण सिंह, पण्डित कमलापति त्रिपाठी, महामना मदन मोहन मालवीय (1861- 1946), पुरुषोत्तम दास टंडन ,उत्तर प्रदेश के तत्कालीन डी. जी. प्रकाश सिंह, आदि प्रमुख थे । डा. राजेन्द्र प्रसाद बचपन में उन्हें देखे थे। 1911 में जार्ज पंचम (1865-1936)भारत आया और बाबा से आशीर्वाद पाया था । वरिष्ठ स्वतंत्रता सेनानी श्री पुरुषोत्तम दास टंडन (1882 -1962 ) ने 15 अप्रैल 1948 को देवराहा बाबा ने ‘राजर्षि’ की उपाधि प्रदान की थी और वर्ष 1962 में  विजय दशमी के दिन, श्री दामोदर सातवलेकर को ‘ब्रह्मर्षि के पद से अलंकृत किया था।

बाबा के आवागमन :- 

देवरहा बाबा देवरिया के अपने मइल आश्रम में साल के आठ महीना बिताते थे। कुछ दिन बनारस के रामनगर में गंगा के बीच, फागुन में मथुरा के वृन्दावन में यमुना नदी के तट पर बिताते थे। इसके अलावा वे कुछ समय हिमालय में एकांतवास भी करते थे। वे बीच-  बीच में देहरादून और हरिद्वार की यात्रा किया करते थे। प्रयाग में वे माघ मेले के समय गंगा जी के प्रवाह के बीच मचान बनाकर रहते थे। 

वे गंगा और यमुना के तटों पर अदल बदल कर अपना मंच भी बदल दिया करते थे।

बाबा का व्यक्तित्व :- 

बहुत ही कम समय में देवरहा बाबा अपने कर्म एवं व्यक्तित्व से एक सिद्ध महापुरुष के रूप में प्रसिद्ध हो गए। बाबा के दर्शन के लिए प्रतिदिन विशाल जन समूह उमड़ने लगा । लोग बाबा के सानिध्य में शांति और आनन्द पाने लगे थे । बाबा श्रद्धालुओं को योग और साधना के साथ- साथ ज्ञान की बातें बताने लगे। बाबा का जीवन सादा और एकदम संन्यासी था। बाबा भोर में ही स्नान आदि से निवृत्त होकर ईश्वर ध्यान में लीन हो जाते थे और मचान पर आसीन होकर श्रद्धालुओं को दर्शन देते और ज्ञानलाभ कराते थे। कुंभ मेले के दौरान बाबा अलग-अलग जगहों पर प्रवास किया करते थे। गंगा-यमुना के तट पर उनका मंच लगता था। वह 1-1 महीने दोनों के किनारे रहते थे। जमीन से कई फीट ऊंचे स्थान पर बैठकर वह लोगों को आशीर्वाद दिया करते थे। बाबा सभी के मन की बातें जान लेते थे। उन्होंने पूरे जीवन कुछ नहीं खाया। सिर्फ दूध और शहद पीकर जीते थे। श्रीफल का रस उन्हें बहुत पसंद था। बाबा कभी क्रोधित नहीं होते थे।

जन सेवा को वरीयता :- 

देवरहा बाबा जनसेवा तथा गोसेवा को सर्वोपरि-धर्म मानते थे तथा प्रत्येक दर्शनार्थी को लोगों की सेवा, गोमाता की रक्षा करने तथा भगवान की भक्ति में रत रहने की प्रेरणा देते थे। ब्रह्मऋषि योगीसम्राट श्री देवरहा बाबा सरकार की वाणी है – ” गाय के पृष्ठ भाग में ब्रह्मा जी का वास है ,गले में विष्णु भगवान का वास है, मुख में शिव जी का वास है , रोम- रोम में ऋषि महर्षि देवताओं का वास है और आठ ऐश्वर्या को लेकर लक्ष्मी माता गाय के गोबर में वास करती है । गाय की बहुत महिमा है । प्रत्येक व्यक्ति को गौ सेवा में जुट जाना चाहिए। इससे भारत की गरीबी मिट जाएगी।”

     देवरहा बाबा ने खुद कभी कुछ नहीं खाया, भक्तगण जो कुछ भी लेकर पहुंचे, उसे भक्तों पर ही बरसा दिया। उनका बताशा- मखाना हासिल करने के लिए सैकडों लोगों की भीड हर जगह जुटती थी। सदा भूखों को भोजन, वस्त्रहीन को कपड़ा, अशिक्षित को शिक्षा और मनुष्य ही नहीं समस्त जीवों को चिकित्सा देने की बात कहते थे। बाबा ने अपनी शरण आने वाले हर व्यक्ति के कष्टों का निवारण किया। उन्होंने गरीब कन्याओं के विवाह और विधवाओं के लिए सेवा प्रकल्प चलाने, यमुना को स्वच्छ करने, वृक्षारोपण कर पर्यावरण रक्षा के निर्देश अपने शिष्यों को दिए थे।

    बाबा कहते थे-“जीवन को पवित्र बनाए बिना, ईमानदारी, सात्विकता-सरसता के बिना भगवान की कृपा प्राप्त नहीं होती। अत: सबसे पहले अपने जीवन को शुद्ध-पवित्र बनाने का संकल्प लो। वे प्राय: गंगा या यमुना तट पर बनी घास-फूस की मचान पर रहकर साधना किया करते थे। दर्शनार्थ आने वाले भक्तजनों को वे सद्मार्ग पर चलते हुए अपना मानव जीवन सफल करने का आशीर्वाद देते थे। वे कहते, “इस भारतभूमि की दिव्यता का यह प्रमाण है कि इसमें भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण ने अवतार लिया है। यह देवभूमि है, इसकी सेवा, रक्षा तथा संवर्धन करना प्रत्येक भारतवासी का कर्तव्य है।”

ब्रह्मर्षि श्री देवरहा दिव्य दर्शन पुस्तक

पूज्य श्री देवराहा बाबा के शरीर में रहते हुए, उनसे अनुमोदन लेकर बाबा के कतिपय विद्वान् भक्तों ने, पूज्य श्री देवरहा बाबा के उपदेशों का संकलन कर “श्री देवरहा बाबा दिव्य-दर्शन” नामक ग्रन्थ प्रकाशित करने का निश्चय किया था । श्री देवराहा बाबा वृन्दावन के, लार-रोड आश्रम में, इन विद्वान भक्तों ने अनुनय-विनय कर जब बाबा से प्रकाशन की अनुमति प्राप्त कर ली, तब ही इस ग्रन्थ के लेखन का कार्य सम्पन्न हुआ। श्री देवराहा बाबा के निर्देशानुसार इस ग्रन्थ के ऊपर संपादक के रूप में किसी के नाम का उल्लेख नही किया जाना था। बाबा ने यह भी निर्देश दिया- “ग्रन्थ के प्रकाशन में किसी से कोई चंदा आदि न मँगा जाय और न ही ग्रन्थ का कोई मूल्य रखा जाये। ग्रन्थ में किसी मत का खण्डन करके अन्य मत की रथापना का प्रयास न होना चाहिए। इसके अतिरिक्त ग्रन्थ में वर्तमान युग की राजनीति द्वारा उद्भावित भाषा, प्रान्त, दल, जातिवाद, आदि की भी कोई गंध नही होनी चाहिए।”

पूज्य श्री बाबा के अनुमोदनोपरान्त एंव उनके निर्देशों के अनुरूप ही यह ग्रन्थ प्रकाशित हुआ था । 8ग्रन्थ को पूज्य श्री देवरहा बाबा स्वयं अपने हाथों से किन्ही-किन्ही भक्तों को, प्रसाद- स्वरुप प्रदान करते थे। पुनर्प्रकाशित संस्करण, परमात्मा प्राप्ति के मार्ग पर अग्रसर जिज्ञासुओं के लिए, पूज्य श्री देवरहा बाबा के उपदेशों के सारगर्मित एवं प्रामाणिक संकलन के रूप में, सर्वथा अमूल्य है।