साक्षात्‍कार

भाजपा नेता नरेंद्र मोदी के साथ साक्षात्कार

(श्री नरेंद्र मोदी द्वारा Reuters को दिए साक्षात्कार का हिंदी अनुवाद)

Reuters स्टाफ़ द्वारा

रॉस कॉल्विन एवं श्रुति गोत्तिपति द्वारा

 

modi1-300x182क्या आपको इस बात से निराशा होती है कि बहुत-से लोग अभी भी आपको 2002 के दंगों से जोड़ते हैं?

लोगों को आलोचना करने का अधिकार है। हम एक लोकतांत्रिक देश में रहते हैं। प्रत्येक व्यक्ति का अपना दृष्टिकोण होता है। यदि मैंने कुछ गलत किया हो, तो मैं स्वयं को अपराधी महसूस करूंगा। निराशा तब आती है, जब आपको ये लगता है कि “मैं पकड़ा गया। मैं चोरी कर रहा था और मैं पकड़ा गया।” मेरे मामले में ऐसा नहीं है।

क्या जो हुआ आपको उसका अफ़सोस है?

मैं आपको बताता हूँ। भारत का सर्वोच्च न्यायालय विश्व का एक अच्छा न्यायालय माना जाता है। सर्वोच्च न्यायालय ने एक स्पेशल इन्वेस्टीगेशन टीम (एसआईटी) बनाई थी सबसे वरिष्ठ, सबसे प्रतिभाशाली अधिकारी एसआईटी की निगरानी कर रहे थे। उसकी रिपोर्ट आई। उस रिपोर्ट में पूरी तरह क्लीन-चिट दी गई है, पूरी तरह क्लीन-चिट। एक और बात, अगर कोई भी व्यक्ति एक कार चला रहा है, हम चला रहे हैं या कोई और कार चला रहा है और हम पीछे बैठे हैं, फिर भी अगर कार ने नीचे कोई कुत्ते का पिल्ला आ जाए, तो हमें इसका दुःख होगा या नहीं? बिलकुल होगा। मैं मुख्यमंत्री रहूँ या न रहूँ। मैं एक मनुष्य हूँ। अगर कहीं भी, कुछ भी बुरा होता है, तो स्वाभाविक रूप से उसका दुःख तो होता ही है।

क्या इस पर आपकी सरकार की प्रतिक्रिया कुछ अलग होनी चाहिए थी?

अभी तक हमें लगता है कि जो सही था वह करने में हमने अपनी पूरी शक्ति लगा दी थी।

लेकिन क्या आपको लगता है कि आपने 2002 में जो किया, वह ठीक था?

बिलकुल। हमें ईश्वर ने जितनी भी बुद्धि दी है, मेरा जितना भी अनुभव है और उस स्थिति में मेरे पास जो कुछ भी उपलब्ध था, और एसआईटी के इन्वेस्टीगेशन में यही साबित हुआ है।

क्या आप मानते हैं कि भारत का नेतृत्व एक धर्मनिरपेक्ष व्यक्ति के हाथों में होना चाहिए?

हम ऐसा मानते हैं … लेकिन धर्मनिरपेक्षता की परिभाषा क्या है? मेरे लिए, धर्मनिरपेक्षता ये है कि भारत सबसे पहले है। मैं कहता हूँ, मेरी पार्टी का सिद्धांत है ‘सभी के लिए न्याय’। किसी का तुष्टिकरण नहीं। हमारे लिए धर्मनिरपेक्षता का अर्थ यही है।

आलोचक कहते हैं कि आप एकाधिकारवादी हैं, समर्थक कहते हैं कि आप एक निर्णायक नेता हैं। असली मोदी कौन सा है?

यदि आप स्वयं को नेता कहते हैं, तो आप में निर्णय लेने की क्षमता होनी चाहिए। यदि आपमें निर्णय लेने की क्षमता है, तभी आप नेता हो सकते हैं। ये दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। … लोग चाहते हैं कि नेता निर्णय ले। केवल तभी वे किसी व्यक्ति को अपना नेता मानते हैं। ये एक गुण है, कोई कमज़ोरी नहीं है। दूसरी बात ये है कि यदि कोई एकाधिकारवादी है, तो वह इतने वर्षों तक कोई सरकार कैसे चला सकता है? … सामूहिक प्रयास के बिना सफलता कैसे मिल सकती है? और इसीलिए मैं कहता हूँ कि गुजरात की सफलता मोदी की सफलता नहीं है। यह टीम गुजरात की सफलता है।

इस सुझाव पर क्या कहना चाहेंगे कि आप आलोचना स्वीकार नहीं करते?

मैं हमेशा कहता हूँ कि लोकतंत्र की शक्ति आलोचना में ही है। यदि आलोचना नहीं हो रही है, तो इसका अर्थ ये है कि लोकतंत्र का अस्तित्व ही नहीं है। और यदि आप आगे बढ़ना चाहते हैं, तो आपको आलोचना का स्वागत करना चाहिए। और मैं आगे बढ़ना चाहता हूँ, मैं आलोचना का स्वागत करना चाहता हूँ। लेकिन मैं आरोपों के खिलाफ़ हूँ। आलोचना और आरोपों में बहुत अंतर है। आलोचना करने के लिए, आपको शोध करना पड़ेगा, आपको चीजों की तुलना करनी पड़ती है, आपको जानकारी और तथ्य इकट्ठे करने पड़ेंगे, तभी आप आलोचना कर सकते हैं। लेकिन कोई भी आज परिश्रम करने को तैयार नहीं है। इसलिए सबसे सरल तरीका ये है कि आरोप लगा दिए जाएं। लोकतंत्र में आरोप लगा देने से कभी स्थिति में सुधार नहीं होगा। इसलिए मैं आरोपों के खिलाफ़ हूँ, लेकिन मैं आलोचना का सदैव स्वागत करता हूँ।

ओपिनियन पोल में अपनी लोकप्रियता के बारे में

मैं ये कह सकता हूँ कि 2003 से जितने भी ओपिनियन पोल हुए हैं, उनमें लोगों ने मुझे सर्वश्रेष्ठ मुख्यमंत्री के रूप में चुना है। और ऐसा नहीं है कि सर्वश्रेष्ठ मुख्यमंत्री के रूप में मुझे पसंद करने वाले लोग सिर्फ गुजरात से ही थे। गुजरात से बाहर के लोगों ने भी मेरे लिए वोट किया है। एक बार मैंने इंडिया टुडे ग्रुप के अरुण पुरी जी को एक पत्र लिखा था। मैंने उनसे अनुरोध किया:- “हर बार मैं ही इसमें जीतता हूँ, इसलिए अगली बार कृपया गुजरात को हटा दीजिए, ताकि किसी और को जीतने का मौका मिले। नहीं, तो मैं ही जीतता रहूँगा। कृपया मुझे प्रतिस्पर्धा से अलग रखें। और मेरे अलावा भी किसी और को जीतने का मौका दें।”

सहयोगी दलों और भाजपा के भीतर के लोग ये कहते हैं कि आप बहुत अधिक धृवीकरण करने वाले व्यक्ति हैं

यदि अमेरिका में, डेमोक्रेट्स और रिपब्लिकन्स के बीच धृवीकरण न हो, तो लोकतंत्र कैसे चलेगा? यह तो (होना ही है)। लोकतंत्र में डेमोक्रेट्स और रिपब्लिकन्स के बीच धृवीकरण तो होगा ही।

यही लोकतंत्र का मूल स्वरूप है। यही लोकतंत्र का मूल गुण है। यदि सभी लोग एक ही दिशा में जाते हों, तो क्या आप उसे लोकतंत्र कहेंगे?

लेकिन सहयोगी और भागीदार आपको अभी भी विवादास्पद मानते हैं

मैंने अभी तक मेरी पार्टी के लोगों में से किसी का या हमारे साथ गठबंधन करने वालों में से किसी का भी आधिकारिक बयान (इस बारे में) पढ़ा या सुना नहीं है। हो सकता है कि मीडिया में इस बारे में लिखा गया हो। लोकतंत्र में वे लिखते हैं … और अगर आप कोई नाम बता सकें कि भाजपा में इस व्यक्ति ने ऐसा कहा है, तो मैं इसका जवाब दे सकता हूँ।

आप अल्पसंख्यकों को, मुस्लिमों सहित, अपने लिए मतदान करने पर कैसे राज़ी करेंगे?

सबसे पहली बात, भारत के नागरिकों को, मतदाताओं को, हिन्दुओं और मुसलमानों को, मैं बांटने के पक्ष में नहीं हूँ। मैं हिन्दुओं और सिखों को बांटने के पक्ष में नहीं हूँ, मैं हिन्दुओं और ईसाइयों को बांटने के पक्ष में नहीं हूँ। सभी नागरिक, सभी मतदाता, मेरे देशवासी हैं। इसलिए मेरा मूल सिद्धांत ये है कि मैं इस मुद्दे को इस प्रकार नहीं देखता। और ऐसा करना लोकतंत्र के लिए खतरा भी होगा। धर्म आपकी राजनैतिक प्रक्रिया का साधन नहीं होना चाहिए।

यदि आप प्रधानमंत्री बनते हैं, तो आप किस नेता की तरह कार्य करेंगे?

पहली बात ये है कि, मेरे जीवन का ये सिद्धांत है और मैं इस बात का पालन करता हूँ कि: मैं कभी भी कुछ बनने का सपना नहीं देखता। मैं कुछ करने का सपना देखता हूँ। इसलिए अपने आदर्श-पुरुषों से प्रेरणा लेने के लिए मुझे कुछ बनने की आवश्यकता नहीं है। यदि मैं वाजपेयी जी से कुछ सीखना चाहूँ, तो मैं उसे सीधे गुजरात में लागू कर सकता हूँ। उसके लिए, मुझे दिल्ली का (उच्च पद का) सपना देखने की ज़रूरत नहीं है। यदि मुझे सरदार पटेल की कोई बात अच्छी लगती है, तो मैं उसे मेरे राज्य में लागू कर सकता हूँ। यदि मुझे गाँधीजी की कोई बात पसंद आती है, तो मैं उसे लागू कर सकता हूँ। प्रधानमन्त्री की कुर्सी के बारे में बात किए बिना भी हम इस पर चर्चा कर सकते हैं कि हाँ, हर व्यक्ति से हमें अच्छी बातें सीखनी चाहिए।

उन लक्ष्यों के बारे में, जो अगली सरकार को हासिल करने चाहिए

देखिए, चाहे जो भी नई सरकार सत्ता में आए, उसका पहला लक्ष्य लोगों का खोया हुआ विश्वास फिर से प्राप्त करना ही होना चाहिए।

सरकार नीतियाँ थोपने की कोशिश करती है। क्या यही नीति जारी रहेगी या नहीं? अगर दो महीने बाद, उन पर दबाव आता है, तो क्या वे इसे बदलेंगे? क्या वे ऐसा कुछ करेंगे कि – अब कोई घटना होती है, और वे सन 2000 का कोई निर्णय बदलेंगे? यदि आप अतीत के निर्णयों को बदलते हैं, तो आप पॉलिसी के बैक-इफेक्ट लाएंगे। तब दुनिया में कौन यहाँ आएगा?

इसलिए चाहे जो भी सरकार सत्ता में आए, उसे लोगों को विशवास दिलाना होगा, उसे लोगों के मन में भरोसा जगाना होगा, “हाँ, नीतियों के मामले में संगतता बनी रहेगी”, यदि वे लोगों से एक वादा करते हैं, और उसका सम्मान करते हैं, उसे पूरा करेंगे। तो आप वैश्विक पटल पर स्वयं को रख सकते हैं।

लोग कहते हैं कि गुजरात के विकास की बातें बढ़ा-चढ़ाकर बताई जाती हैं

लोकतंत्र में अंतिम निर्णय कौन लेता है? अंतिम निर्णय मतदाता का होता है। यदि ये सिर्फ बढ़ा-चढ़ाकर कही गई बात होती, यदि ये सिर्फ झूठा शोर होता, तो जनता इसे रोज़ देखती। “मोदी ने कहा था कि वह पानी देगा।” लेकिन तब लोग कहते “मोदी झूठा है। पानी हमारे यहाँ नहीं पहुँचा है।” तब मोदी को कौन पसंद करता? भारत के सतत परिवर्तनशील राजनैतिक तंत्र में, लगातार बदलते राजनैतिक दलों के होते हुए, अगर लोग मोदी को तीसरी बार चुनते हैं, और उसे लगभग दो-तिहाई बहुमत मिलता है, तो इसका मतलब लोग ये महसूस करते हैं कि मोदी जो बोलता है वह सच है। हाँ, सड़क बनाई जा रही है, हाँ, काम किया जा रहा है, बच्चों को शिक्षा मिल रही है। स्वास्थ्य के क्षेत्र में नई योजनाएं आ रही हैं। 108 (आपातकालीन नंबर) की सेवा उपलब्ध है। लोग ये सब देखते हैं। इसलिए हो सकता है कि कोई ये कहे कि सिर्फ बड़ी-बड़ी बातें की जा रही हैं, लेकिन जनता उस पर विश्वास नहीं करेगी। जनता उसे ठुकरा देगी। और जनता में बहुत शक्ति है, बहुत।

क्या आपको अधिक समावेशक आर्थिक विकास के लिए काम करना चाहिए?

गुजरात एक ऐसा राज्य है, जिस्स्से लोगों को बहुत अधिक अपेक्षाएं हैं। हम अच्छा काम कर रहे हैं, इसलिए हमसे अपेक्षाएं भी अधिक हैं। ये स्वाभाविक भी है। इसमें कुछ भी गलत नहीं है।

कुपोषण, शिशु मृत्यु दर के आंकड़ों पर-

गुजरात में, शिशु मृत्यु दर में अत्यधिक सुधार हुआ है। हिन्दुस्तान के किसी भी अन्य राज्य की तुलना में, हमारा प्रदर्शन बेहतर रहा है। दूसरी बात, कुपोषण के बारे में, आज हिन्दुस्तान में, वास्तविक आंकड़े मौजूद नहीं है। जब आपके पास वास्तविक आंकड़े ही नहीं हैं, तो आप विश्लेषण कैसे करेंगे?

हम समावेशक विकास में विश्वास करते हैं, हम मानते हैं कि इस विकास का लाभ समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुँचना चाहिए और और उसे इससे लाभ होना चाहिए। हम यही कर रहे हैं।

लोग ये जानना चाहते हैं कि वास्तविक मोदी कौन है – हिन्दू राष्ट्रवादी नेता या व्यापार-समर्थक मुख्यमंत्री?

मैं एक राष्ट्रवादी हूँ। मैं एक देशभक्त हूँ। इसमें कुछ भी गलत नहीं है। मैं एक हिन्दू के रूप में जन्मा हूँ। इसमें कुछ भी गलत नहीं है। इसलिए, मैं एक हिन्दू राष्ट्रवादी हूँ, हाँ, आप ऐसा कह सकते हैं। मैं एक हिन्दू राष्ट्रवादी हूँ क्योंकि मेरा जन्म हिन्दू के रूप में हुआ है। मैं देशभक्त हूँ, इसमें कुछ भी गलत नहीं है। जहां तक प्रगतिवादी, विकासोन्मुख, कार्यशील, या जो भी है, लोग कहते रहते हैं, कह रहे हैं। इन दोनों में कोई विरोधाभास नहीं है। ये दोनों छवियाँ एक ही हैं।

ब्रांड मोदी और पीआर रणनीति के पीछे कार्यरत लोगों के बारे में-

पश्चिमी विश्व और भारत – इन दोनों में बहुत अंतर है। यहाँ भारत में, कोई पीआर एजेंसे किसी व्यक्ति की छवि नहीं बना सकती। मीडिया से किसी व्यक्ति की छवि नहीं बन सकती। अगर कोई भारत में अपना नकली चेहरा प्रोजेक्ट करने का प्रयास करता है, तो मेरे देश में इसकी बहुत बुरी प्रतिक्रिया होती है। यहाँ, लोगों को सोच अलग है। लोग बनावटीपन को लंबे समय तक बर्दाश्त नहीं करेंगे। यदि आप खुद को उसी तरह प्रोजेक्ट करें, जैसे आप सचमुच हैं, तो लोग आपकी कमियों को भी स्वीकार कर लेंगे। व्यक्ति की कमज़ोरियों को स्वीकार किया जाता है। और लोग ये कहेंगे कि हाँ, ठीक है, ये ईमानदार आदमी है, ये कड़ी मेहनत करता है। तो, हमारे देश में सोच अलग है। जहाँ तक किसी पीआर एजेंसी की बात है, तो मैंने कभी कोई पीआर एजेंसी नहीं देखी है, न उनकी सुनी है और न किसी से मिला हूँ। मोदी की कोई पीआर एजेंसी नहीं है और न कभी थी।

(स्त्रोत: https://blogs.reuters.com/india/2013/07/12/interview-with-bjp-leader-narendra-modi/ से हिंदी में अनूदित)

साभार – https://blog.sumant.in/2013/07/blog-post.html