संदेह के घेरे में ‘अन्ना का गांधीवाद’

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तनवीर जाफरी

गांधीवाद के सिद्धांतों पर चलते हुए जिस प्रकार अन्ना हज़ारे ने भ्रष्टाचार के विरुद्ध तथा जनलोकपाल विधेयक के समर्थन में नई दिल्ली के जंतरमंतर व रामलीला मैदान पर आमरण अनशन किया तथा उनके इस गांधीवादी कदम से अपने कदम मिलाते हुए देश के कोने-कोने में लाखों लोगों ने जोकि स्वयं भी देश की भ्रष्टाचार में डूबी व्यवस्था से अत्यंत दु:खी हैं, अन्ना का साथ दिया था उस घटना से निश्चित रूप से देश में एक बार फिर गांधी की याद ताज़ा हो गई थी। पंरतु अब धीरे-धीरे वही अन्ना हज़ारे एक के बाद एक अपने ही हिंसापूर्ण वक्तव्यों या हिंसा को समर्थन देने वाले बयानों में स्वयं उलझते जा रहे हैं। उनके इस प्रकार के वक्तव्यों को सुनकर तो अब शांतिप्रिय एवं गांधीवादी अन्ना समर्थकों को अन्ना हज़ारे के नेतृत्व तथा उनके गांधीवादी दावे पर ही संदेह होने लगा है। कुछ समय पूर्व उनकी टीम के एक प्रमुख सदस्य प्रशांत भूषण को सुप्रीम कोर्ट में उनके चैंबर में जब कश्मीर संबंधी उनके विवादित बयान पर किसी सिरफिरे व्यक्ति ने उनकी पिटाई की थी उस समय पूरे देश के सभी राजनैतिक दलों ने उस हिंसक घटना की निंदा की थी। किसी ने भी उस कृत्य को सही नहीं ठहराया था। परंतु अन्ना हज़ारे के मुंह से बार-बार हिंसा को समर्थन देने वाले बयानों का निकलना न केवल उनकी प्रतिष्ठा को धूमिल कर रहा है बल्कि इससे उनके द्वारा भ्रष्टाचार के विरुद्ध चलाए जा रहे आंदोलन के और कमज़ोर पडऩे की भी पूरी संभावना दिखाई देने लगी है। ऐसा नहीं लगता कि टीम अन्ना के सभी सदस्य तथा उनके कोर ग्रुप के सभी सदस्य उनके इस प्रकार के हिंसा को समर्थन देने वाले वक्तव्यों के साथ खड़े होंगे।

हिंसक कार्रवाई को समर्थन देने वाला पहला वक्तव्य अन्ना हज़ारे के मुंह से उस समय निकला था जबकि कुछ समय पूर्व केंद्रीय कृषिमंत्री शरद पवार को एक व्यक्ति ने उनके गाल पर थप्पड़ मारा था। हालांकि बाद में उस युवक के पड़ोसियों से यह पता चला कि वह मानसिक रूप से विक्षिप्त व्यक्ति था। परंतु अन्ना हज़ारे ने जिस समय शरद पवार पर हुए इस हमले की खबर सुनी उस समय अचानक उनके मुंह से पहली प्रतिक्रिया यही निकली थी-‘बस एक ही थप्पड़ मारा?’ उनका वह वक्तव्य भी भडक़ाऊ,हिंसा को समर्थन देने वाला तथा गांधीजी के आदर्शों व उनके सिद्धांतों के कतई विरुद्ध था। अन्ना हज़ारे की इस गैरजि़म्मेदाराना प्रतिक्रिया के बाद ही गांधीवादी कहे जाने के उनके दावों पर उंगलियां उठने लगी थीं। अन्ना के इस बयान के बाद उन्हें राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ताओं व समर्थकों के भारी रोष का सामना भी करना पड़ा था। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के लोग अन्ना के गांव रालेगंज सिद्धि तक पहुंच गए थे तथा वहां हंगामा व तोडफ़ोड़ करने तक की नौबत आ गई थी। यह सारा बवाल अन्ना हज़ारे के हिंसा को समर्थन देने वाले एक छोटे से बयान को लेकर ही खड़ा हुआ था।

अब एक बार फिर अन्ना हज़ारे ने अपने उसी प्रकार के अर्थात् हिंसा को समर्थन देने वाले वक्तव्य को दोहराया है। गत् दिनों भ्रष्टाचार के विरुद्ध तैयार की गई ‘गली-गली में चोर है’ नामक एक फिल्म का प्रदर्शन फिल्म निर्माता ने अन्ना हज़ारे के गांव रालेगंज सिद्धि में जाकर अन्ना के समक्ष किया। उन्होंने पूरी फिल्म देखी। इस फिल्म में भी एक दृश्य ऐसा है जबकि भ्रष्टाचार से दु:खी दिखाया जाने वाला एक व्यक्ति एक भ्रष्टाचारी व भ्रष्टाचार का समर्थन करने वाले व्यक्ति के गाल पर एक ज़ोरदार चांटा जड़ देता है। जब अन्ना से उस हिंसक दृश्य के विषय में पूछा गया तब अन्ना ने एक बार फिर उसी प्रकार का अर्थात् हिंसा को समर्थन देने वाला एक वक्तव्य देते हुए कहा-‘जब व्यक्ति की सहनशक्ति समाप्त हो जाती है तो सामने जो भी हो। जब उसके तमाचा जड़ दिया जाएगा तो दिमा$ग सही हो जएगा। अब यही एकमात्र रास्ता बचा है।’ गोया अपने बयान के अनुसार अन्ना हज़ारे भ्रष्टाचार से निपटने का एकमात्र रास्ता अब हिंसा में ही तलाश रहे हैं। उन्होंने ऐसी प्रतिक्रिया देने से पूर्व यह भी नहीं सोचा कि फिल्मों में दिखाया जाने वाला दृश्य केवल प्रतीकात्मक होता है। अन्ना हज़ारे द्वारा इस फिल्म के इस हिंसक दृश्य के समर्थन में दी गई प्रतिक्रिया के बाद देश की सभी राजनैतिक पार्टियों ने अन्ना की खुलकर निंदा की तथा उनके इस बयान को पूरी तरह गैरजि़म्मेदाराना बयान करार दिया। यहां तक कि उनके समर्थन में खड़ी दिखाई देने वाली भारतीय जनता पार्टी भी अन्ना के इस वक्तव्य से असहमति व्यक्त करते दिखाई दी तथा अन्ना के बयान की निंदा करती नज़र आई। कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने तो अन्ना हज़ारे के इस बयान को आरएसएस की संगत का परिणाम बता डाला।

अन्ना हज़ारे ने जब से जनलोकपाल विधेयक के समर्थन में आंदोलन छेड़ा है तब से देश की जनता उन्हें अपनी पलकों पर बिठाए हुए है। बावजूद इसके कि अन्ना हज़ारे पर संघ व बीजेपी का एजेंट होने का कांग्रेस पार्टी द्वारा बार-बार इल्ज़ाम भी लगाया जाता रहा है। परंतु देश की जागरूक जनता इस प्रकार की इल्ज़ाम तराशी को भी बखूबी समझ रही थी तथा इसे अन्ना के आंदोलन को कमज़ोर करने की कांग्रेस की एक चाल के रूप में देख रही थी। कहा जा सकता है कि कांग्रेस द्वारा अन्ना पर संघ समर्थक अथवा भाजपाई एजेंट होने का आरोप लगाया जाना अन्ना के लिए उतना हानिकारक साबित नहीं हो सका जितना कि अन्ना के मुंह से निकलने वाले इस प्रकार के हिंसापूर्ण या हिंसा को समर्थन देने वाले वक्तव्य साबित हो रहे हैं। निश्चित रूप से अन्ना के इस प्रकार के गैर जि़म्मेदाराना बयान उनकी छवि को तो धूमिल करेंगे ही साथ-साथ अहिंसा के समर्थक गांधीवादी विचारधारा के लोग अन्ना हज़ारे से कन्नी भी काटने लगेंगे।

स्वयं को गांधीवादी कहना या मात्र खादी पहन कर गांधीवादी होने का दावा करना अथवा भूख-हड़ताल या आमरण अनशन जैसे आयोजन कर गांधीवाद के रास्तों पर चलने का दावा करना ही मात्र पर्याप्त नहीं होता। गांधीवादी होने के लिए बहुत त्याग, तपस्या, सहनशीलता व बलिदान की आवश्यकता होती है। अन्ना हज़ारे जिस समय आमरण अनशन पर जंतर-मंतर पर बैठे थे, उस समय देश में यह नारा गूंजने लगा था ‘अन्ना नहीं आंधी है, यह दूसरा गांधी है।’ स्वयं अन्ना हज़ारे ने भी अपने आमरण अनशन स्थल की पृष्ठभूमि में महात्मा गांधी के चित्र वाला बड़ा सा बैनर लगाया हुआ था जिसके नीचे वे स्टेज पर बैठे व लेटे दिखाई देते थे। अन्ना के जंतर मंतर व रामलीला मैदान पर हुए आमरण अनशन को देखकर पूरा देश भावुक हो उठा था। जिन लोगों ने महात्मा गांधी को नहीं देखा व उनके सत्याग्रह व अनशन जैसे संघर्ष के अहिंसक $फार्मूलों के बारे में नहीं जाना वे सभी अन्ना हज़ारे में ही महात्मा गांधी का दर्शन करने लगे थे। आम लोगों में यही धारणा बनने लगी थे कि हो न हो महात्मा गांधी भी देश को स्वतंत्रता दिलाने हेतु शक्तिशाली अंग्रेज़ी सत्ता के विरुद्ध इसी प्रकार से सत्याग्रह, अनशन व आंदोलन करते रहे होंगे।

अन्ना हज़ारे के उस अहिंसक व अनशनकारी आंदोलन ने न केवल भारतवर्ष में ही गांधीवाद को जीवित किया था बल्कि दुनिया के तमाम देश भी अन्ना हज़ारे के इस अहिंसक आंदोलन पर नज़रें जमाए हुए थे। दुनिया में सर्वत्र अन्ना की तारीफ की जा रही थी। यहां तक कि कई पत्र-पत्रिकाओं ने उन्हें दुनिया के चुनिंदा नेताओं तक की श्रेणी में डाल दिया। यह सब कुछ केवल और केवल इसीलिए हुआ क्योंकि अन्ना हज़ारे स्वयं को गांधीवादी कह रहे थे तथा गांधी के चित्र की छाया के नीचे अपना शांतिपूर्ण व अहिंसक आंदोलन चला रहे थे। वे अनशन के माध्यम से सत्ता को घुटने टेकने के लिए मजबूर करने जैसा साहसिक मार्ग अपना रहे थे। गांधीजी को केवल भारत में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में कहीं भी अहिंसक आंदोलन छेड़े जाने की बात होती है, उन्हें उन प्रत्येक स्थानों पर याद किया जाता है। सत्य एवं अहिंसा के पुजारी के विशालकाय चित्र व उनकी स्मृति में लगाए जाने वाले यादगार स्मारक तमाम देशों में पाए जाते हैं। यह सब केवल इसीलिए है क्योंकि गांधीजी केवल दिखावे के अहिंसावादी नहीं थे बल्कि वे अंतरात्मा से अहिंसावादी थे। यही वजह है कि गांधीजी अपने जीवन में संभवत: उतने प्रासंगिक नहीं रहे होंगे जितना की उनकी हत्या के बाद उनकी प्रासंगितकता व उनके अहिंसापूर्ण विचारों की प्रासंगिकता पूरी दुनिया के लिए बढ़ती जा रही है।

लिहाज़ा जिस प्रकार अन्ना हज़ारे आए दिन कोई न कोई अपना ऐसा वक्तव्य देते जा रहे हैं जोकि हिंसा को बढ़ावा देने वाला, हिंसा का समर्थन करने वाला या हिंसा पर चलने वालों को उकसाने वाला हो, वैसे वैसे वे स्वयं तथा उनका गांधीवादी होने का दावा संदेह में घिरता जा रहा है। निश्चित रूप से अन्ना के ऐसे विवादित वक्तव्य न केवल उनके गांधीवादी होने पर संदेह खड़ा करेंगे बल्कि इससे उनके द्वारा चलाया जा रहा आंदोलन भी कमज़ोर पड़ सकता है।

2 COMMENTS

  1. पहले तो हमें ये तय करना होगा कि दर असल गांधी वाद है क्या??
    -क्या देश को छूना लगाकर स्विस बैंक में खराबो रुपये जमा कराने वाले नेहरू-गांधी परिवार के सोनिया, राजीव, राहुल गांधी को गांधीवादी माना जाए?
    -क्या किसी विदेशी पेन कंपनी को चाँद लाख की खैरात के बदले गांधी ब्रांड बेचनेवाले और कश्मीर पर चुप मगर फलीस्तनी लोगो के हमदर्द बनानेवाले गांधी के सुपुत्र राजमोहन को गांधीवादी माना जाए?
    -क्या खादी पहनकर नेता बने गुंडों को गांधीवादी माना जाए?
    -क्या घोर साम्प्रदायिक माने जाने वाले आर एस एस के एक कार्यकर्ता श्री नानाजी देशमुख को गांधी वादी माना जाए. जिन्होंने चित्रकूट के बंजर इलाको को एक फलदायी और गांधी के सपनों के अनुसार आदर्श क्षेत्र बना दिया. बिना सरकारी सहायता के!!
    एक विचारणीय बात है.

  2. तनवीर जाफरी जी आप किस दुनिया में हैं?अन्ना ने बार बार कहा है की गांधी से उनकी तुलना मत की जिए,फिर भी आप जैसे लोग खामाहखाह तुले हुयें हैं की अन्ना माने या ना माने हम उन्हें गांधी बना कर ही रहेंगे.दोनों प्रतिक्रियाओं जिनका उल्लेख आपने अपने आलेख में किया है,किसी भी सच्चरित्र आदमी की आम प्रतिक्रिया हैं.शरद पवार वाली प्रतिक्रिया से भी अधिक स्वाभाविक है फिल्म वाली प्रतिक्रिया क्या आप बता सकते हैं की गांधी की उस पर क्या प्रतिक्रिया होती?क्या आप बता सकते हैं की कस्तूरबा गांधी से कोई बलात्कार करने पर आमादा हो जाता तो उस बलात्कारी के प्रति गांधी की क्या प्रतिक्रिया होती?
    तनवीर जाफरी साहब,आज के राज नेताओं को गांधी से डर नहीं लगता इसीलिये वे चाहते हैं की अन्ना गांधी का पूर्ण अनुसरण करें.मैं भी चाहता हूँ की सार्वजानिक हिंसा का सहारा न लिया जाए,पर अगर कोई आदमी रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों पकड़ा जाये और विरोध करने पर भी उतारू हो जाए तो वहां उसका उसी की भाषा में उत्तर आवश्यक है इसे आप हिंसा हीं क्यों न कहें.फेसबुक पर एक टिप्पणी दिख रही है की गांधी ने भी तो करो या मरो का नारा दिया था.उसका जो उत्तर आप उचित समझे दें,पर मेरा यही कहना है की पूर्ण अहिंसा ने अंग्रेजों को भगा दिया,क्योंकि एक तो वे दूसरे देश में थे दूसरे वे इतने नीच और कमीने नहीं थे,जितने हमारे ये आज के भ्रष्टाचारी हैं.नेता लोग इस बात को उछाल रहे है यह तो समझ में आता है,पर दूसरे इसको इतना तूल क्यों दे रहे है और अन्ना की प्रतिक्रिया और स्पष्ट उत्तर के बाद भी बाल की खाल निकालने पर क्यों तुले हुए हैं यह मेरी समझ से परे है.

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