विविधा

सांप्रदायिक व आपराधिक शक्तियों की बढ़ती सक्रियता

UP Assemblyतनवीर जाफ़री

देश का सबसे बड़ा राज्य उत्तर प्रदेश अपने विभाजन के बावजूद अब भी लोकसभा में अपने 80 सांसद भेजकर देश की केंद्रीय राजनीति में अपनी सबसे महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। इसीलिए यह कथन बेहद प्रचलित है कि दिल्ली की सत्ता का मार्ग उत्तर प्रदेश से ही होकर जाता है। प्रमाणित तौर पर इस बात को यूं भी समझा जा सकता है कि जबसे उत्तर प्रदेश की सत्ता पर समाजवादी पार्टी तथा बहुजन समाज पार्टी जैसी क्षेत्रीय पार्टियों का वर्चस्व होना शुरु हुआ उसी समय से कांग्रेस व भारतीय जनता पार्टी जैसे राष्ट्रीय राजनैतिक दल न केवल उत्तर प्रेदश में हाशिए पर चले गए बल्कि केंद्र में भी आज वह दोनों सबसे बड़े राजनैतिक दल अपनी-अपनी सरकारें बनाने के लिए एक-दो नहीं बल्कि कई-कई बैसाखियों के मोहताज दिखाई देने लगे हैं। ऐसे में बार-बार कांग्रेस व भाजपा का यह प्रयास रहता है कि किसी तरह उत्तर प्रदेश की राजनीति पर अपना नियंत्रण स्थापित किया जाए ताकि समय आने पर केंद्र में अपनी मज़बूत सरकार बनाई जा सके। इसी रणनीति के मद्देनज़र तथा निकट भविष्य में होने वाले लोकसभा चुनावों के दृष्टिगत न केवल समाजवादी पार्टी व बहुजन समाज पार्टी जैसी क्षेत्रीय पार्टियां अपने क्षेत्रीय वर्चस्व को बचाने के लिए तरह-तरह के लोक लुभावने कदम उठाने अथवा वादे करने में लगी हैं वहीं कांग्रेस व भारतीय जनता पार्टी भी चुनाव से पूर्व अपने सभी महत्वपूर्ण कार्ड खेल लेना चाहती है।
कांग्रेस पार्टी की ओर से जहां राहुल गांधी द्वारा इस बार स्वयं पूरे प्रदेश के चुनाव संचालन की ज़िम्मेदारी संभालने की खबर है वहीं इस बात की भी प्रबल संभावना है कि अगले लोकसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी प्रियंका गांधी के रूप में सुरखित रखा गया अपना तुरुप का पत्ता भी खेलने के मूड में है। गोया कांग्रेस चाहती है कि राहुल गांधी की मेहनत की वजह से यदि पार्टी को अपेक्षित लाभ न भी मिले तो उसकी भरपाई प्रियंका गांधी की लोकप्रियता को भुनाकर की जा सके। उधर बहुजन समाज पार्टी राज्य में दलितों के मतों पर अपना एकाधिकार सुनिश्चित करने के विश्वास के बाद अब एक बार फिर उन्हीं ब्राह्मण मतदाताओं की शरण में जाने की रणनीति पर काम कर रही है जिन्हें पूर्व में गालियां देकर उसने दलित मतों को अपने साथ जोडऩे का सफल प्रयास किया था। इससे पूर्व भी मायावती ब्राह्मण मतों को अपने पक्ष में करने का एक सफल अभियान अपने सिपहसालार सतीश मिश्रा के नेतृत्व में सफलतापूर्वक चला चुकी है। इसी प्रकार राज्य की सत्तारुढ़ समाजवादी पार्टी भी तमाम ऐसे हथकंडे अपना रही है जिससे आगामी लोकसभा चुनावों में उसकी स्थिति अन्य राजनैतिक दलों की तुलना में सबसे अधिक मज़बूत बन सके। और भविष्य में मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी द्वारा जीती जाने वाली सीटों के बल पर ही केंद्र में एक मज़बूत राष्ट्रीय नेता के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज करा सकें। ज़ाहिर है अपने इस लोकप्रियता बढ़ाओ अभियान में सपा द्वारा सत्ता का भी भरपूर इस्तेमाल किया जा रहा है।
उदाहरण के तौर पर मुस्लिम मतदाताओं में अपनी मज़बूत पकड़ रखने वाली समाजवादी पार्टी इन दिनों उन मुस्लिम नवयुवकों को राज्य सरकार की सिफारिश पर जेलों से रिहा कराए जाने में लगी हुई है जिनपर विभिन्न आतंकवादी घटनाओं में शामिल होने के कथित आरोप तो लगाए गए थे परंतु इनमें से तमाम आरोपियों के विरुद्ध अब तक न तो कोई सुबूत मुहैया हो सके हैं न ही पुलिस इनके विरुद्ध आरोप पत्र दाखिल कर सकी। इसमें कोई शक नहीं कि बेगुनाह आरोपी देश के किसी भी राज्य में अथवा किसी भी धर्म से संबंधित क्यों न हों यदि पुलिस द्वारा किसी साजि़श के तहत अथवा भूलवश या जल्दबाज़ी में गिरफ्तार किए गए हों तथा उनके विरुद्ध कोई साक्ष्य या प्रमाण उपलब्ध न हों तो उन्हें हर कीमत पर रिहा किया जाना चाहिए। इतना ही नहीं बल्कि उनके जीवन,भविष्य तथा चरित्र को जो क्षति पुलिस अथवा सरकार की किसी साजि़श के चलते पहुंची हो उसकी भी भरपाई की जानी चाहिए। परंतु जब उत्तर प्रदेश की अखिलेश यादव की सरकार वर्तमान समय में कुछ ऐसे क़दम  उठाकर जेलों में बंद निर्दोष अल्पसंख्यकों को रिहा करना चाहती है तो सरकार के इस कदम को सांप्रदायिक शक्तियों द्वारा मुस्लिम तुष्टिकरण का प्रयास बताया जाता है। जबकि हकीकत यह है कि सत्ता में आने से पूर्व समाजवादी पार्टी ने ही यह वादा करके प्रदेश की जनता से वोट हासिल किए थे कि यदि वे सत्ता में आए तो प्रदेश की जेलों में बंद बेगुनाह लोगों को मुक्त करा देंगे। और अखिलेश सरकार अपने इन वादों को लोकसभा चुनाव की पूर्व बेला में पूरा करते हुए अब तक सैकड़ों मुस्लिम नवयुवकों को जेल से रिहा भी करा चुकी है।
पंरतु उपरोक्त सभी राजनैतिक दलों से अलग हटकर भारतीय जनता पार्टी उत्तर प्रदेश में अपनी नीति व नीयत के अनुसार सबसे अलग व खतरनाक रणनीति पर काम कर रही है। ज़ाहिर है भाजपा भी इस कथन से भलीभांति वाकिफ है कि दिल्ली का रास्ता उत्तर प्रदेश से ही होकर जाता है। जहां कांग्रेस,समाजवादी पार्टी तथा बहुजन समाजवादी पार्टी सभी धर्मों व जातियों को साथ लेकर चलने का प्रयास करते हुए धर्मनिरपेक्ष राजनैतिक दलों के रूप में राज्य में अपनी सक्रियता बनाए हुए हैं वहीं भारतीय जनता पार्टी इन दलों को मुस्लिम तुष्टिकरण की राह पर चलने वाले राजनैतिक दल का ठप्पा लगाकर स्वयं हिंदू मतों को अपने पक्ष में करने का प्रयास कर रही है। पिछले दिनों भारतीय जनता पार्टी द्वारा गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के विश्वस्त सहयोगी तथा गुजरात के गृहमंत्री रहे अमित शाह को उत्तर प्रदेश का चुनाव प्रभारी बनाया गया। अमित शाह की सबसे बड़ी विशेषता तथा उनकी प्रसिद्धि का सबसे प्रमुख कारण यही है कि वे गुजरात के गृहमंत्री रहते हुए सोहराबुद्दीन फ़र्ज़ी  मुठभेड़ मामले में आरोपी बने तथा उन्हें अपने पद से त्यागपत्र देकर लंबे समय तक जेल में रहना पड़ा। और जेल से रिहाई के बाद वे नरेंद्र मोदी के पास गुजरात का एक और उग्र हिंदुत्ववादी चेहरा बनकर उभरे। अमित शाह की इसी प्रसिद्धि तथा विशेषताका लाभ उठाने के लिए नरेंद्र मोदी ने उन्हें अपनी सोची-समझी व दूरगामी रणनीति के तहत उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनवाया है। अन्यथा उत्तर प्रदेश में राजनीति तथा राजनेताओं की सूझबूझ व समझ का जो स्तर है उसके मु$काबले अमित शाह की राजनैतिक हैसियत इस राज्य में एक साधारण राजनैतिक कार्यकर्ता की हैसियत से अधिक नहीं है।
यही नहीं बल्कि भाजपा द्वारा इस समय उत्तर प्रदेश में बड़े पैमाने पर असामाजिक तत्वों तथा अपराधी प्रवृति के नेताओं को पार्टी में जगह देने का बाक़ायदा अभियान चलाया गया है। कहा जा रहा है कि इस अभियान को भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह का भी समर्थन हासिल है। अपराधियों की भाजपा में भर्ती किए जाने की मुहिम के तहत पिछले दिनों सुलतानपुर में वरुण गांधी के समक्ष एक अपराधिक छवि वाले स्थानीय नेता को पार्टी में शामिल किया गया। यह अपराधी वरुण गांधी द्वारा सुलतानपुर से चुनाव लडऩे की स्थिति में उनका सिपहसालार साबित होगा। इसी प्रकार पूर्वी उत्तर प्रदेश में गेारखपुर के सांसद योगी आदित्यनाथ द्वारा बड़े ही नियोजित ढंग से हिंदू व मुस्लिम समुदायों के बीच नफरत फैलाने का अभियान चलाया जा रहा है। हालांकि योगी आदित्यनाथ ने हिंदू वाहिनी नामक अपना एक क्षेत्रीय संगठन महज़ इसलिए बना रखा है ताकि उनकी ज़हर उगलने वाली बातें अथवा किसी सांप्रदायिकतापूर्ण कदम का ठीकरा उनके अपने संगठन के ही सिर पर फूटे जबकि वास्तव में योगी द्वारा जो कुछ भी किया जा रहा है वह मात्र भाजपा को लाभ पहुंचाने की गरज़ से ही किया जा रहा है।
यहां यह भी गौर करना ज़रूरी है कि हालांकि प्रदेश में इस समय स्वयं को धर्मनिरपेक्ष तथा अल्पसंख्यकों की हितैषी कहने वाली समाजवादी पार्टी की सरकार सत्ता में है। परंतु इसी तस्वीर का दूसरा पहलू यह भी है कि सपा के गत् लगभग एक वर्ष के शासनकाल में सांप्रदायिक दंगों जैसी लगभग सौ घटनाएं प्रदेश में हो चुकी हैं। इन घटनाओं में निश्चित रूप से दक्षिणपंथी ताकतें पूरी सक्रियता के साथ सांप्रदायिकता की आग में अपने हाथ सेंकते दिखाई दे रही है। और यह भी एक कड़वा सच है कि हमारे देश में सत्ता की खिचड़ी तैयार करने में सांप्रदायिकता का ईंधन अपनी सबसे महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। लिहाज़ा यह कहना गलत नहीं होगा कि गुजरात के बाद अब उत्तर प्रदेश को सांप्रदायिकता के आधार पर विभाजित करने की ज़बरदस्त कोशिश की जा रही है। प्रदेश में सांप्रदायिक व आपराधिक शक्तियों की बढ़ती सक्रियता इस बात का स्पष्ट प्रमाण है।