खेल जगत

मत बंद करो आईपीएल, ये तो…..

आईपीएल इन दिनों खेल के मैदान से लेकर राजनैतिक गलियारों तक अपने पूरे शबाब पर है। इंडियन प्रीमियम लीग भारत और भारतीय क्रिकेट को नई पहचान देने के साथ साथ एक ऐसा काम भी कर रहा है, जो दुनिया के लिए एक मिसाल साबित होगा। देषी-विदेशी खिलाड़ियों का एक टीम में एक साथ खेलना, एक साथ रहना, खाना-पीना, जीत के लिए मिलकर रणनीति बनाना और वो भी नस्लभेद, रंगभेद, उंच- नीच, जात-पात जैसी कुरीतियों से दूर। एक तरफ जहां नस्लवाद के चलते आस्ट्रेलिया में भारतीय नागरिकों को शिकार बनाया जा रहा हैं, वहीं आस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों को आई पी एल टीम में शामिल करके आस्ट्रेलिया में लोगों को सोचने पर मजबूर तो किया ही होगा कि भारतीय इतने भी बुरे नहीं। इस आईपीएल में आस्ट्रेलिया के खिलाड़ी भारतीय खिलाड़ियों के साथ खेल रहे हैं… उनसे अपनी बातें शेयर कर रहे हैं। ये खिलाड़ी एक दूसरे को समझने की कोशिश भी कर रहे है, तो यक़ीनन इनके मन के पूर्वाग्रह भी दूर होगी। जब आस्ट्रेलिया के षेन वॉर्न राजस्थान रॉयल्स की कमान संभाल कर मैदान में उतरते हैं, तो कोई राजस्थानी ये नहीं सोचता की शेन वॉर्न ना जीतें, बल्कि यही कहता है कि खेलों तुम खूब खेलो, हम तुम्हारे साथ हैं। कोई राजस्थानी ये भी नहीं सोचाता कि शेन वॉर्न उस देश का है, जिस देश के कुछ अपराधी तत्व उनके देश के लोगों को सिर्फ इसलिए मार रहे है कि वो भारतीय हैं। तो क्या ये उम्मीद नहीं कि आने वाले दिनों में आस्ट्रेलिया के लोग भी भारतीयों पर हमला करने की बजाए ये कहें कि तुम भी बढ़ो आगे हम तुम्हारे साथ हैं।

भले ही आईपीएल बाजार की पैदाईश हो, लेकिन इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि ये भारत को एक नया मुकाम दिला रहा है। ये आईपीएल ही है जिसे अमेरिका, ब्रिटेन जैसे तमामतर विकसित देशों के सिनेमाघरों में दिखाया जा रहा है। ये दुनिया के सबसे महंगे खेल फुटबॉल को भी पीछे छोड़ने लगा है। भारत के ही नहीं, विदेशी अख़बारों में भी आईपीएल बराबर जगह पा रहा है। बाहरी खिलाड़ी यहां के लोगों के करीब आ रहे हैं। कहीं ना कहीं आई पी एल वो काम भी कर रहा है जिसका तसव्‍बुर इसे शुरू करते वक्त नहीं किया गया होगा। ये आई पी एल का ही कमाल है कि जो खिलाड़ी पहले मैदान पर प्रतिद्वंद्वी बन कर उतरते थे, वो आज एक साथ जीत के लिए खेल रहे हैं। क्या कभी किसी सोचा होगा कि धोनी छक्का लगाकर मैच जिताएगें और पवेलियन से श्रीलंकाई फिरकी गेंदबाज़ मुरलीधरन उछलते कूदते धोनी को बधाई देने के लिए इस कदर भागेगें। ऐसे उदाहरण तमाम हैं।

खेल के ज़रिये मेल का ये कोई नया नज़ीर नहीं है। इससे पहले 60 के दशक में जब अमेरिका में श्‍वेत और अश्‍वेतों के बीच रंगभेद ने हिंसक रूप अख्तियार कर लिया था, तब वहां एक स्कूल की रगबी टीम ने ष्वेतों ओर अष्वेतों के भेद को कम करने की कोशिश की थी, जो काफी हद तक कामयाब भी हुई थी। उस रगबी टीम में भी अजीब बात थी। अश्‍वेत अफेन्स कोच जो कि ष्वेत खिलाड़ियों के खेल को ज्यादा पसंद करते थे, तो वहीं श्‍वेत डिफेंस कोच अश्‍वेत खिलाडियों को पहले मैदान में उतारते थे। टीम बनने से पहले जब ये खिलाड़ी अपने एक महीने के कैम्प पर जा रहे थे, तो उन खिलाडियों में काफी मन मुटाव था। वो एक दूसरे के साथ खेलने से परहेज करते थे। खेल के दौरान भले ही हार जाए, लेकिन अपने रंग से अलग रंग के लिखाड़ी का साथ नहीं देते थे। लेकिन खेलते खेलते इनके दिल भी मिल गए और देखते ही देखते ये अच्छे दोस्त बन गए। जब ये अपना कैम्प पूरा करके वापस रंगभेद की गंदी दुनिया में लौटे, तो इन्हें एक साथ देख कर लोगों ने इनका काफी विरोध भी किया। लेकिन इनके एक साथ खेल और कॉम्बिनेशन को देख कर लोगो ने इनकी और उनके खेल की सराहना भी की। कुछ लोगों के मन की सोच भी बदली। ऐसे ही 1971 में अमेरिका और चीन के संबंधों को सुधारने में एक खेल पिंग पॉग यानी टेबल टेनिस ने बड़ा काम किया था। जिसे पिंग पॉग डिपलोमेसी के नाम से पुकारा जाता है। कुछ इसी तरह आई पी एल भी जाने अंजाने ऐसा ही काम कर रहा है। क्या उम्मीद नहीं की जा सकती कि जब आस्ट्रेलियाई खिलाड़ी स्वदेश लौटेंगे, तो अपने देश के लोगों से मुख़ातिब होते हुए ये बताएगें कि हमें हिन्दुस्तानियों से काफी प्यार मिला। वहां हमारे कई सारे फैेन हैं और कई नए दोस्त भी बने हैं, तो क्या इससे कुछ हद तक ये नस्लवाद की समस्या दूर नहीं होगी। खेल तो शुरू से ही मेल करता आया है और कराता रहेगा, चाहे वो कितना ही बाज़ारवाद में डूब क्यों ना जाए।

लेकिन अभी भी कुछ कमी सी है… अभी भी कुछ छूटा छूटा सा लगता है। इसमें पाकिस्तान के खिलाड़ियों को भी शामिल किया जाना चाहिए था। हो सकता था कि धोनी के छक्के की जीत पर पवेलियन से रावलपिंडी एक्सप्रेस शोएब अख़तर, धोनी को गले लगाने के लिए भागते हुए आते। सचिन और अफरिदी की जुगलबंदी पिच पर धमाल मचाती… और सचिन की हाफ सेंचुरी होती तो उन्हें अफरिदी गले लगकर बधाई देते, जिसे दोनों मुल्क में करोड़ो लोग देखते, यकीनन इसका कुछ तो असर होता ही। लेकिन पाकिस्तानी खिलाड़ियों को आई एस आई और दहशतगर्दो की करतूतो की सजा भूगतनी पड़ रही है। यहां भी आईपीएल में इन्हें शामिल किए जाने को लेकर कईयों ने विरोध किया। जब पाकिस्तान की हॉकी टीम और कबड्डी टीम यहां आ सकती है, तो फिर क्रिकेट खिलाड़ी क्यो नहीं। पाकिस्तानी क्रिकेट खिलाड़ियों पर ऐतराज क्यों…. क्या सिर्फ इसलिए कि वो पाकिस्तानी हैं। खिलाड़ी जब भी आते हैं, पासपोर्ट और वीज़ा लेकर ही आते है… शांति से खेलते हैं और मनोरंजन ही करते हैं। अरे रोक लगानी है तो उन पर लगाओं, जो अब भी बिना पासपोर्ट और बिना वीज़ा के सरहद पार से आ रहे हैं, जो यहां खेलने नहीं, खेल बिगाड़ने के मकसद से आ रहे हैं।

पैसा, बाज़ार और राजनीति को लेकर आई पी एल को बंद करने की कुछ लोग मांग कर रहे हैं। कुछ इससे इसलिए ख़फा हैं कि उनको पैसा नहीं पहुंच रहा है। कुछ इस लिए कि उनके बेटों को खिलाने कि बजाए पसीना पुछवाया जा रहा है, और कुछ तो इसलिए विरोध कर रहे हैं कि कई बड़े बड़े लोग इसकी मुख़ालफत में उतरे हैं। मैं भी कहता हूं कि बंद होना चाहिए, लेकिन आईपीएल नहीं, इसके अंदर फैले भ्रष्‍टाचार को। अगर इसके अंदर कालाबाज़ारी और सट्टेबाज़ी है, तो बंद कर दो कालाबाजारी और सट्टेबाज़ी को। लेकिन खेल को बंद ना करो, ये खेल कहीं ना कहीं मेल कराने की उम्मीद जगाता दिखाई पड़ता है। माना कि ये खूब पैसा कमा रहा है, लेकिन ये भी सत्य है कि ये कई विदेशियों का दिल भी तो जीत रहा है। पैसा बनाने के साथ साथ ये पूरी दुनिया के दिल में भारतीयों की जगह भी बना रहा है। आई पी एल को बंद ना करो, ये रंग और नस्ल भेद को मिटाने का बेजोड़ क़ाम भी कर रहा है, भले ही अंजाने में ही सही।

-संदीप कुमार सिंह