व्यंग्य: हैसियत नजरबट्टू की अन्यथा सड़के ही सोने की होती

एक बार किसी कारण वश मुझे नगर परिषद जाना पडा । वहां कुछ लोग बैठे थे तभी एक सज्जन आये ,और उन्होने पहले से बैठे अपने परिचित एवं स्वजातीय एक सज्जन से पूछा ’’आज यहां कैसे बैठे हो?’’पहले से बैठे सज्जन ने कहा कि ’’वे अपने मौहल्ले की सडक के निर्माण का प्रस्ताव लेकर आये है । आवागमन में लोगों को काफी परेशानी का सामना करना पडता है । उन्होंने कुछ गम्भीर होते हुए कहा कि लोगों का क्या है ! पहले खुद तो कुछ बनों, ये सडके तो बनती रहेगी ।

यही हाल हमारे सर्वोच्च स्थान पर बैठे लोगों का है कि पहले उनका पेट और घर भर जाय उसके बाद देश और जनता की सोच लेगें । निर्वाचित होते ही सुख बा ,सुविधा बी उसके बाद उन्हें उतनी राशि भी चाहिये , जो उनके सम्मान को सर्वोच्चता के साथ उचां उठाये रखे । सर्वोच्च स्तर पर हो रही सभी प्रकार की गति विधियों का अनुसरण ग्राम पंचायत के पंचों एवं सरपंचों ने भी शुरू कर दिया है । वहां पर भी सुख सुविधाओं एवं अधिकारों को लेकर संघ व संगठन हुंकार भरने लगे है । उन्हें भी वह चाहिये जिसकी अपेक्षा सर्वोच्च स्थान पर बैठा व्यक्ति मांग कर रहा है या वह जिसका उपयोग उपभोग कर रहा है ।

एक सांसंद को पहले 16000/रूपये प्रति माह दिया जाता था अब उन्हे प्रति माह 50000/ प्रति माह दिया जावेगा । चुनाव क्षैत्र में जाने के लिये उन्हें पहले बीस हजार रूपये दिये जाते थे अब उन्हे बाकर उन्हें 45 हजार रूपये मिलेगें । सांसदों का दफतर भत्ता अब 45000/रूपये हो गया है । अब ये जब भी सडक मार्ग से यात्रा करेगें ,इन्हें13 रूपये के बजाय अब 16 रूपये प्रति किलोमीटर के हिसाब से खजाने से पैसा मिलेगा ।

संसद सत्र या संसदीय किसी समिति की बैठक में भाग लेने पर इन्हें 1000 के बजाय अब 2000 हजार का भुगतान दिया जावेगा ।इसके अलावा इन्हें साल भर के लिये 50,000 युनिट बिजली एवं 4000किलों लीटर पानी का मुफत में उपभोग करने का भी अधिकार है । माननीय सांसदों को दो मोबाईल सेट तथा तीन लेैण्ड लाईन फोन भी सरकार की ओर से मिलते है । जिन पर ये हर साल 1,50,000 कॉल मुफत में कर सकते है। ये अपने एक सहयोगी के साथ रेल द्वारा देश में कितनी भी यात्राऐं कर सकते है । इनका यात्रा व्यय रेलवे ही वहन करेगा । इनकी सारी चिकित्सा सुविधा मुफत में होती है । प्रति वर्ष इन्हें 34 विमान यात्राऐं करने का अधिकार दिया गया है। इन्हें जो आवास सरकार की ओर से मुहैया कराया जाता है ,उसके रख रखाव की जिम्मेदारी सरकार की ही होती है ।

संसद सत्र के दौरान माननीय सांसदों को सस्ता भोजन मिले इसके लिये प्रति वर्ष सरकारी खजाने से 5 करोड से भी अधिक की राशि व्यय की जाती है । इसके बाद इन्हें इनकी सेवाओं के लिये दी जाने वाली पेंशन को 8 हजार से बा कर 20,000 कर दिया जाना बताया गया है । लेकिन माननीय सांसदों का एक बडा वर्ग इस बोंतरी को लेकर सतुष्ट नही है ।

यह स्थिति तब है जब आंकडे यह बताते है कि 543 सांसदों में से 315 सांसद करोडपति है । यदि 315 सांसद करोडपति है तो शोष 228 की स्थिति भी कमजोर नही आंकी जा सकती । यह भी माना जा सकता है कि सुविधा बने से जनता की सेवा अधिक होगी। क्या जो सांसद सरकारी खजाने से पैसा नही लेते थे ,वे जनता की सेवा करने में पिछड गये थे ? आजादी के बाद इन माननीय नेताओं की सेवाओं से देश के वारे न्यारे हो जाने चाहिये थे, पर ऐसा नही हुआ। इसके पीछे इनका कोई दोष नही है। इन्होने तो बहुत कोशिश की पर जनता का जमावडा अधिक था और इन्हें सुविधा कम थी अन्यथा सडके ही सोने की हो चुकी होती।

खैर ,यह परम्परा पहले से ही चली आ रही है कि जिसके पास ताकत हो वह अपने खेत की मेड़ कहीं पर भी बांध सकता है ।

— रामस्वरूप रावतसरे

1 COMMENT

  1. व्यंग्य: हैसियत नजरबट्टू की अन्यथा सड़के ही सोने की होती – by – रामस्वरूप रावतसरे

    यह “नजरबट्टू” क्या / कौन होते हैं जी ?

    क्या व्यंग्य में इतने कठिन शब्द प्रयोग कर सकते हैं जो शब्द-कोष में भी न मिलें ?
    आज के व्यंग्यकारों के दिमाग आसमान चड़े हैं.

    – अनिल सहगल –

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