शर्मसार करती है मप्र हाईकोर्ट की घटना

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-रमेश पाण्डेय-

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जहां की संस्कृति मातृ प्रधान हो, जिस देश को माता की संज्ञा (भारत माता) दी जाती हो, जिस देश में महिला को देवी के रूप में पूजा जाता हो, जहां की ऐसी संस्कृति हो, उस देश में पांच साल की बालिका से लेकर 92 साल की वृद्धा तक के साथ यौन शोषण किए जाने की घटना घटे। न्यायालय में पदस्थ महिला न्यायाधीशों के साथ भी यौन शोषण की घटनाएं घटे, तो इससे बुरा दिन क्या हो सकता है। समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर ऐसा करने वाले लोगों को कठोर दंड क्यों नहीं मिल पा रहा है। भारत देश में महिलाओं को अपना गौरव कब हासिल हो सकेगा। इसके लिए अकेले पुरुष समाज ही दोषी है या फिर समान रुप से महिला समाज भी इसके लिए जिम्मेदार है। इन सब बिन्दुओं का उत्तर नहीं मिल पा रहा है। महिला हिंसा और महिलाओं के साथ हो रही यौन उत्पीड़न की घटनाओं पर रोक लगाने के लिए राजनीतिक दलों द्वारा बड़ी-बड़ी बातें की जा रही है। राजनीतिक विमर्श किए जा रहे हैं, पर उसका कोई सार्थक परिणाम निकलता नजर नहीं आ रहा है। मध्य प्रदेश के हाईकोर्ट की घटना ने तो देश की न्यायाधीशों को शर्मसार कर दिया। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ में एक महिला जज ने एक हाईकोर्ट जज पर यौन शोषण का आरोप लगाया है। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया को लिखी अपनी चिट्ठी में महिला जज ने कई सनसनीखेज आरोप लगाए हैं। अपनी लाज बचाने के लिए उस महिला जज को अपना पद भी छोड़ना पड़ा है। महिला जज ने अपनी शिकायत में लिखा है कि आरोपी जज ने अपने घर में आइटम डांस करने के लिए संदेश भिजवाया, तब महिला ने अपनी बेटी का जन्मदिन होने का बहाना बनाकर पीछा छुड़ाया था। अगले दिन जब कोर्ट में दोनों का सामना हुआ तो आरोपी जज ने टिप्पणी की कि डांस फ्लोर पर उन्हें नाचते देखने का मौका चला गया, लेकिन वो इंतजार करेंगे। महिला का आरोप है कि इस तरह कई बार उन्हें परेशान किया गया। आरोपी जज इस ताक में बैठा रहता कि महिला से कोर्ट की प्रक्रियाओं में कहीं कोई गलती हो, और वो उसका फायदा उठाने की कोशिश करें। जब कोई मौका नहीं मिलता, तो वे झल्ला जाते थे। महिला जज का आरोप है कि उसने जानबूझकर काम के घंटे भी बढ़ा दिए। तंग आकर 22 जून को महिला जज अपने पति के साथ आरोपी जज से मिलने पहुंची। ये भी जज को रास नहीं आया। उन्होंने बात करने के बजाय दोनों को 15 दिन बाद बात करने को कहा। 15 दिन बाद महिला जज को ट्रांसफर आदेश थमा दिए गए। पीडि़ता का आरोप है कि मप्र हाईकोर्ट की ट्रांसफर नीति का उल्लंघन करते हुए उन्हें सिधी भेज दिया गया। आखिरकार तंग आकर महिला ने 15 जुलाई को इस्तीफा दे दिया। शिकायत की खबर पर चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया आर एम लोढा ने कहा है कि यही इकलौता प्रोफेशन है जहां हम अपने साथियों के साथ भाई-बहन जैसा व्यवहार करते हैं। ये दुर्भाग्यपूर्ण है शिकायत मेरे पास आती है तो मैं उचित कदम उठाऊंगा। ऐसी घटनाएं भारत देश की महानता और यहां की सस्कृतिक को कलंकित कर रही हैं। शासन और प्रशासन के साथ ही समाज के जिम्मेदार लोगों द्वारा इस दिशा में कोई प्रभावशाली कदम न उठा पाना दुर्भाग्यपूर्ण है। महिला आयोग, मानवाधिकार आयोग जैसी संस्थाओं की कार्यप्रणाली भी ऐसी घटनाओं से सवाल के घेरे में आ रही हैं।

1 COMMENT

  1. जब माननीय लोगों के ये हाल हैं, तब पवित्र न्याय की उम्मीद क्या की जा सकती है , इनकी हरकत ने न्यायपालिका को कठघरे में खड़ा कर दिया है, चाहे यह उनके भीतर का ही मामला क्यों न हो

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