महिलाओं के खिलाफ हिंसा उन्मूलन दिवस- 25 नवम्बर
डा. वीरेन्द्र भाटी मंगल
महिलाओं के खिलाफ हिंसा उन्मूलन दिवस केवल एक औपचारिक दिन नहीं बल्कि वह सामाजिक चेतना का दिवस है जो हमें याद दिलाता है कि महिलाएं समाज की आधारशिला होते हुए भी आज अपने सबसे बुनियादी अधिकारों के लिए संघर्षरत हैं। महिलाओं की प्रगति, क्षमता और उपलब्धियों के बीच हिंसा, भय और भेदभाव की छाया अभी भी बड़ी चुनौती के रूप में मौजूद है। समाज के विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं का योगदान अतुलनीय है। शिक्षा, विज्ञान, चिकित्सा, राजनीति, प्रशासन, कला, उद्योग, खेल प्रत्येक क्षेत्र में भारतीय महिला ने अपनी प्रतिभा सिद्ध की है। आज की महिला आत्मनिर्भर है, निर्णय लेने में सक्षम है और घर से बाहर निकलकर समाज निर्माण में सक्रिय भूमिका निभा रही है परंतु इस प्रगति के समानांतर महिलाओं पर हिंसा की वास्तविक तस्वीर अत्यंत चिंताजनक है।
वर्तमान दौर की उपलब्धियों के बावजूद महिलाओं के सामने चुनौतियां कम नहीं हुई हैं। यौन उत्पीड़न, घरेलू हिंसा, कार्यस्थल पर शोषण, दहेज प्रताड़ना और सार्वजनिक स्थानों पर असुरक्षा ये समस्याएँ लगातार सामने आती रहती हैं। रिपोर्टों के अनुसार देश में महिलाओं के खिलाफ अपराधों में कमी नहीं बल्कि कई क्षेत्रों में वृद्धि देखी गई है। जहां शहरों और शिक्षित परिवारों में महिलाएं अधिकारों को कुछ हद तक प्राप्त कर रही हैं, वहीं ग्रामीण, पिछड़े, आदिवासी और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग की महिलाओं की स्थिति आज भी बेहद खराब है।
कानून बने हैं, योजनाएं बनी हैं लेकिन असल लाभ बहुत सीमित महिलाओं तक ही पहुंच पाता है। अशिक्षा, गरीबी, सामाजिक रूढ़ियाँ और जागरूकता की कमी उन्हें अपने ही अधिकारों से दूर रखती हैं। महिलाएं आज भी हिंसा का सामना क्यों कर रही हैं? इसका सबसे बड़ा कारण है कानूनों की जानकारी का अभाव, शिकायत दर्ज करवाने में सामाजिक दबाव, पुलिस-प्रशासन में संवेदनशीलता की कमी, न्याय प्रक्रिया का लंबा और जटिल होना, समाज में गहरी जमी पुरुषवादी सोच आदि। कानून तभी प्रभावी होते हैं जब उनका कठोरता और निष्पक्षता के साथ क्रियान्वयन हो। आवश्यक है कि पुलिस, न्यायालय और प्रशासन महिलाओं के प्रति अधिक संवेदनशील, तत्पर और जवाबदेह हों।
सही मायने में समाज की मानसिकता बदले बिना हिंसा समाप्त नहीं होगी महिला हिंसा केवल अपराध नहीं, बल्कि मानसिकता का रोग है। इसे समाप्त करने के लिए आवश्यक है परिवार में बचपन से ही ‘लड़का-लड़की बराबर’ का संस्कार हो, स्कूलों और कॉलेजों में संवेदनशीलता आधारित शिक्षा लागू हो, मीडिया और सोशल प्लेटफॉर्म्स पर सम्मानजनक प्रस्तुति, महिलाओं के प्रति सकारात्मक सामाजिक व्यवहार, पुरुषों में जागरूकता और साझा जिम्मेदारी के साथ महिलाएं जब-जब अवसर पाती हैं, वे प्रगति की राह पर आगे बढ़ती हैं। समाज को यह स्वीकार करना होगा कि महिला कमजोर नहीं, अवसरों से वंचित की गई है।
महिला को सुरक्षित माहौल देना समाज की सामूहिक जिम्मेदारी है। एक सुरक्षित समाज वही है जहाँ महिलाएं निर्भय होकर घर से निकल सकें, कार्यस्थल पर सम्मान पाएं और अपने सपनों को पूरा करने का अधिकार हासिल करें। महिलाओं को हिंसा, उत्पीड़न और अत्याचार से मुक्त वातावरण देना समाज का कर्तव्य ही नहीं, बल्कि उसकी सभ्यता का मापदंड भी है। महिलाओं के खिलाफ हिंसा उन्मूलन दिवस हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि महिलाओं की सुरक्षा, सम्मान और समानता मात्र आदर्श नहीं बल्कि आवश्यक वास्तविकता है। भारत की आधी आबादी यदि सुरक्षित, शिक्षित और सशक्त होगी, तभी राष्ट्र सशक्त होगा। समाज, प्रशासन, शिक्षा जगत, मीडिया, परिवार सभी को मिलकर वह वातावरण तैयार करना होगा जिसमें महिला हिंसा का अंत और महिला सम्मान का आरंभ हो सके।
डा. वीरेन्द्र भाटी मंगल