‘‘यह सिर्फ कष्ट की बात नहीं, हमारी सबसे बड़ी राष्ट्रीय त्रासदी है’’

वीरेन्द्र सिंह परिहार

prabhat  jha            भाजपा के मुख्य पत्र ‘कमल संदेश’ में प्रभात झा द्वारा यह लिखे जाने पर कि भारत की पूर्व राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल, श्रीमती इन्दिरा गांधी के यहां रोटी बनाती थीं। इसलिए श्रीमती सोनिया गांधी ने उन्हे राष्ट्रपति बनवा दिया इस पर किसी ने लिखा कि यदि प्रतिभा पाटिल रोटी बनाती थीं और राष्ट्रपति पद पर पहुंच गई तो प्रभात झा को इसमें क्या कष्ट है? अपने तर्क में उस लेखक का कहना है कि एक बूट पालिस करने वाला अब्राहम लिंकन अमेरिका का राष्ट्रपति बन जाता है। इस तरह से इतिहास में ऐसे अनेको उदाहरण है, जिन्होने मेहनत, मजदूरी करके हिमालय जैसे ऊॅचे पदों को प्राप्त किया। यहां तक कि रैदास, कबीर जैसे लोग जूते बनाकर, कपडें बुनकर महानतम् संत बन गए। मध्ययुग में गुलाम कुतुबुद्दीन एक सम्राट बन गया। कालिदास जैसा मूर्ख आगे चलकर महान विद्वान बन गया। इस तरह से चाहे कोई कितना ही छोटा क्यों न हो, जिसमें बडा बनने का गुण विकसित हो जाये, वहीं बड़ा बनता है। जब अंदर का ज्ञान जागृत होता है, वहीं महान बनकर चमकता है। इतना ही नहीं दिग्विजय सिंह के माध्यम से एक बार फिर प्रभात झा की औकात की ओर से इशारा किया गया है, और उन्हे कुण्ठा -ग्रस्त बताया गया है।

इस तरह से सिर्फ दुनियादारी के माध्यम से ही नहीं, बल्कि प्रभात झा पर हमला करने के लिए आध्यात्मिक लोगों का भी सहारा लिया गया है। लेकिन यह नहीं बताया गया हेै, कि इब्राहीम लिंकन या कुतुबुद्दीन ऐबक अपनी मेहनत एवं योग्यता के चलते इतने ऊॅचे पदों पर बैठे या श्रीमती प्रतिभा पाटिल की तरह उन्हे भी किसी ने पद पर बैठाने की कृपा की। कहा जाता है कि जब आधा सच बोला जाता है, तो वह झूठ से भी ज्यादा खतरनाक हो जाता है। कबीर और रैदास बहुत छोटी और विपरीत परिस्थितियों में महान संत बन गए। पर यह तो उनकी साधना और तपस्या का परिणाम था? इस देश में लालबहादुर शास्त्री जैसे छोटे आदमी भी प्रधानमंत्री बने, पर उनके लिए कोई नहीं कहता कि वह किसी की कृपा के चलते प्रधानमंत्री बने। निःसन्देह वह अपनी मेहनत, लगन, निष्ठा और ईमानदारी के चलते प्रधानमंत्री की सर्वोच्च कुर्सी पर बैठे। ए.पी.जे कलाम कभी सड़को पर घूमकर अखबार बेचते थे, पर वह किसी की कृपा से राष्ट्रपति नहीं बने। लेकिन क्या कोई कह सकता हेै श्रीमती प्रतिभा पाटिल अपनी योग्यता और क्षमता के चलते राष्ट्रपति की सर्वोच्च कुर्सी पर बैंठी? सच्चाई तो यही है कि वह श्रीमती सोनिया गांधी की कृपा से भारत की राष्ट्रपति बनीं। और यह कृपा उन्हे शायद ही प्राप्त होती यदि वह श्रीमती इंदिरा गांधी के यहां रोटी न बना रहीं होती। पर कारण सिर्फ इतना ही नहीं है कि वह श्रीमती इंदिरा गाधी के यहां रोटी बनाती थीं। सच्चाई यह है कि यदि श्रीमती सोनिया गांधी को यह पता होता कि श्रीमती प्रतिभा पाटिल में स्वतः सोच-समझकर निर्णय लेने की क्षमता है, या अपने तई वह कोई निर्णय लेगी, तो श्रीमती प्रतिभा पाटिल को राष्ट्रपति की कुर्सी पर कतई न बैठाया जाता। वस्तुतः इस तरह से राष्ट्रपति के पद पर एक रबर स्टाम्प को बैठाया गया था। उनका पूरा कार्यकाल इस बात का गवाह है। इसलिए यदि प्रभात झा ने ऐसा कुछ कह दिया कि श्रीमती प्रतिभा पाटिल, श्रीमती इन्दिरा गांधी के यहां रोटी बनाती थीं, इसलिए राष्ट्रपति बना दी गई तो उसका आशय इतना है कि इस देश में शीर्ष संवैधानिक पदों पर भी ऐसे लोगो को बैठाया जाता है, जिनकी निष्ठा संवधिान एवं राष्ट्र के प्रति न होकर व्यक्ति-विशेष के प्रति होती है। ताकि व्यक्ति-विशेष के लिए कोई असुविधा न पैदा हो, भले ही राष्ट्र का हित प्रभावित हो। प्रभात झा तो इस तरह से यह बताना चाहते हे, कि कांग्रेस जो लम्बे समय से एक खानदान की पार्टी बन गई है, उसमें संवैधानिक पदों पर निजी वफादारों और कृपा-पात्रों की बैठाने की परंपरा है, ताकि वह ओैर कुछ न सोचकर उनकी सुविधा -अनुसार कार्य करते रहें। तभी तो सिर्फ श्रीमती प्रतिभा पाटिल जैसे ही नहीं, ज्ञानी जैल सिंह जैसे राष्ट्रपति बनाए जाते है, जो यह कहते है कि यदि इन्दिरा जी कहे तो मै झाडू़ भी लगा सकता हूॅ। बूटा सिंह और सुशील कुमार शिंदे जैसे हल्के और आज्ञाकारी लेाग देश के गृहमंत्री बनाए जाते है। नवीन चावला जैसे विवादित लोग मुख्य चुनाव आयुक्त बनाए जाते है। तो मुख्य सर्तकता्र आयुक्त के पद पर पी.जे. थामस जैसे दागी व्यक्ति को बैठाने का अथक प्रयास किया जाता है। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक विनोद राय को इसलिए हमलों का शिकार होना पड़ता है, क्योकि वह अपने काम को ईमानदारी से अजांम देते हैं।

एकात्म मानववाद के प्रणेता पण्डित दीनदयाल उपाध्याय का कहना था कि संवैधानिक संस्थाएं राष्ट्र की प्राण-शक्ति हैं इन्ही के शक्तिशाली होने पर राष्ट्र का विराट यानी प्राण-शक्ति मजबूत होती है। पर कंाग्रेस पार्टी और उनके नाम पर वस्तुतः एक खानदान ने सत्ता के सारे सूत्र अपने पास रखने, वंशवाद की बेल को परवान चढ़ाने के लिए इन संवैधानिक संस्थाओं पर निजी वफादारों-एक तरह से जी हजुरियों और बौंने लोगों को बैठाकर सतत राष्ट्र की प्राण-शक्ति को कमजोर किया है। जिससे परिणाम में देश को आकाश छूती महंगाई, कैन्सर की तरह फैला भ्रष्टाचार अन्तहीन बेरोजगारी और भयावाह गरीबी के दौर से गुजरना पड़ा रहा है। रहा सवाल दिग्विजय सिंह का तो वह के ठहरे मूलतः सामंती प्रवृत्ति के व्यक्ति, वह अब भी अपने को राजा ही मानते है। इसलिए जब प्रभात झा जैसे कोई सामान्य व्यक्ति अपने परिश्रम और योग्यता से कोई मुकाम हासिल कर लेता है, और सच बाते कह देता है, तो दिग्विजय सिंह जैसे लोगों के पास कोई मुकम्मल जबाब न होने से वह किसी की औकात बताने को सिवा कर भी क्या सकते है?

इसलिए जिन्हे प्रभात झा की बातों से कष्ट है, तो वह सिर्फ अपने बारे में न सोचकर देश के संदर्भ में सोचे। उन्हे पता लग जाएगा कि प्रभात झा ने जो कहा वह मात्र कष्ट की बात हीं नही, हमारी सबसे बड़ी राष्ट्रीय त्रासदी है। जिसमें अयोग्यता ही योग्यता और योग्यता ही अयोग्यता हो गई है। भला ऐसे में कैसे बनेगा-वैभवशाली और शक्तिशाली राष्ट्र?

3 COMMENTS

  1. This is well known that Pratibha Patil was implanted to the post of President by Sonia Maino Gandhi as a rubber stamp. Mrs. Patil wasted five years on this post and failed the nation and could not do much except reading the speeches from time to time.
    She got the highest job in the country not on merit but
    do slavary to Sonia and Congress and disgraced the dignity of the post which is shame on Indian.
    The time has come to kill congress politically in all future local, state and national elections.

  2. sach bat jab bhi kahi jati hai to kuchh moka parast log kau kau karne lagte hai aaj tak sabhi sanvedhanik pado par shashak pax ya kongres apna kaha karne valo ki niyukti karta aaya hai abhi bhi jaise rajyo ke rajpal hai jo bhedbhav karte rehte hai to isame prakash za ne kuchh galat nahi kaha mai to ye kahunga ki jo sab bolna chahte hai magar bol nahi shakte usi bat ko za sahab ne ujagar kar diya hai . niche se lekar upar tak yehi hal hai tabhi to visv ka sabse bada loktantra 65 sal ke bad bhi ladkhadata najar aata hai …………………………………..

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