जम्मू-कश्मीर बनाम पाकिस्तान

कश्मीर

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वीरेन्द्र सिंह परिहार
पाकिस्तान आए दिन संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रस्ताव के अनुसार जम्मू-कश्मीर में जनमत-संग्रह की दुहाई देता रहता है। कुख्यात आतंकी और वर्तमान दौर में कश्मीर घाटी में आतंकवाद का पोस्टर ब्याय बने बुरहान बानी की मौत के बाद तो पाकिस्तान इस दिशा में बहुत सक्रियता से मांग करने लगा है। संभवतः वह यह भूल गया है कि संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रस्ताव के अनुसार पाकिस्तान को जिसे पाक अधिकृत कश्मीर कहा जाता है, उससे अपना कब्जा हटाना होगा, तभी जनमत-संग्रह जैसी कोई बात सोची जा सकती है। एक तरफ तो पाकिस्तान आए दिन कश्मीर घाटी को लेकर यह चिल्ल-पो मचाता रहता है कि वहां सुरक्षा बल नागरिकों पर अत्याचार कर रहे हैं, हत्या कर रहे हैं, नागरिकों की स्वतंत्रता का हनन कर रहे हैं। इस संबंध में हकीकत क्या है? यह तो हम बाद में परीक्षण करेंगे। लेकिन क्या पाकिस्तान यह बताने की स्थिति में है कि स्वतः उसके द्वारा बलात अधिकृत किए गए कश्मीर एवं गिलगिट बलाटिस्तान की क्या स्थिति है? पूरी दुनिया ने देखा है कि अभी गत दिनों जुलाई माह में जब पाक अधिकृत कश्मीर में चुनाव कराए गए तो वहां पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की पार्टी को भारी सफलता मिली। पर यह तो आधा-अधूरा सच है। पूरा सच यह कि नवाज शरीफ ने यह चुनाव पूरी तरह धांधली करके और जोर-जबरजस्ती से जीता है। फलतः पाक अधिकृत कश्मीर की जनता सड़कों पर उतर आई। उसने वहां पर सिर्फ नवाज शरीफ मुर्दाबाद के नारे ही नहीं लगाए, बल्कि ‘‘तेरे टुकड़े-टुकड़े होंगे- पाकिस्तान, ईंशाअल्लाह, ईंशा अल्लाह’’ इस तरह के नारे भी लगाए। इतना ही नहीं भारत में मिलने की मांग भी वहां के लोगों ने उठाई। इसके पहले भी पाक अधिकृत कश्मीर के लोग पाकिस्तान के विरुद्ध सड़कों पर उतर चुके हैं, पर पाकिस्तान फौज और आई.एस.आई. के बल पर उनका निर्मम दमन करता आ रहा है। यहां तक कि वहां के नौजवानों को पकड़कर गायब कर दिया जाता है। ऐसी स्थिति में पाकिस्तान क्या यह बता सकता है कि जब वह शांतिप्रिय आंदोलनकारियों पर जुल्म ढाता है तो कश्मीर घाटी में जो आतंकवादियों के पक्षधर सेना पर पत्थरबाजी करते हैं, थानों और सुरक्षा बलों के ठिकानों पर हमला करते हैं, बम फेंकते हैं और पूरी तरह से हिंसा पर उतारू रहते हैं तो क्या आत्मरक्षा के लिए भारतीय सेना गोली न चलाए? यदि पाकिस्तान का यह कहना है कि कश्मीर का मुसलमान भारत के साथ नहीं रहना चाहता तो सर्वप्रथम वह अपने यहां आतंकी शिविरों का खात्मा करे। पाकिस्तान से आतंकवादियों का घाटी में भेजना बंद करे। इसके पश्चात सामान्य स्थिति में ही यह कहा जा सकता है कि जम्म-कश्मीर के लोग क्या चाहते हैं? हकीकत तो यही है कि कश्मीर घाटी में आतंकवाद और अलगाववाद की समस्या दक्षिण कश्मीर के कुछ जिलों में है। गूजर, बकरवाल तथा शिया मुसलमान पूरी तरह शांतिप्रिय हैं और वह आतंकवादी और अलगाववादी घटनाओं में शामिल नहीं हैं। देश के एक प्रमुख टी.वी. चैनेल ने अभी हाल में ही सर्वे करके यह बताया है कि घाटी में मुसलमानों की ऐसी बहुत बड़ी संख्या है जो भारत के साथ रहना चाहती है।
पर सिर्फ पाक अधिकृत कश्मीर में ही पाकिस्तान दमन चक्र नहीं चला रहा, बल्कि पाकिस्तान अपने ही प्रान्त बिलोचिस्तान में भी विगत कई वर्षों से वहां कुछ ऐसी कार्यवाही कर रहा है, जैसे वह कोई शत्रु देश हो। शायद यह सभी को पता न हो कि पाकिस्तान ने 27 मार्च 1948 को बलूचिस्तान पर बलात कब्जा किया था। बलूचिस्तान के लोग इसके बाद 1950, 1970, 1990 और 2006 में पाकिस्तान के विरुद्ध बगावत कर चुके हैं। पाकिस्तान वहां पर एफ-16 जैसे बमवर्षक विमान का उपयोग कर चुका है और वहां के लोकप्रिय नेता नवाब अकबर बुगती की हत्या करा चुका है। इस संबंध में संयुक्त राष्ट्र संघ के मानवीय अधिकार परिषद में 11 मार्च 2016 को बोलते हुए अबुल नबाव बुगती ने कहा कि इस वर्ष की शुरुआत में पाकिस्तान ने बलूचिस्तान के कई क्षेत्रों में फौजी कार्यवाही शुरू की और 12232 बलूची राजनीतिक कार्यकर्ताओं और नागरिकों का जिनमें महिलाएॅ और बच्चे भी थे उनका अपहरण कर लिया। 322 लोगों को कस्टडी के दौरान मार डाला गया और उनके शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर फेंक दिए गए। उनका कहना था कि इसके पहले भी बलूचिस्तान में पाकिस्तानी सेना यह कर चुकी है। 2015 में पाकिस्तानी सेना ने स्वतः स्वीकार किया कि अब तक वह दो हजार बार बलूचिस्तान के विरुद्ध सैनिक अभियान चला चुकी है, जिसमें 204 लोग मारे गए और नौ हजार लोग गिरफ्तार किए गए, जबकि असली संख्या और ज्यादा है। दरअसल पाकिस्तान में स्वतंत्र मीडिया, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को वहां जाकर सच्चाई जानने का कोई अवसर नहीं है। वस्तुतः जिस तरह से बलूचिस्तान में व्यापक स्तर पर हत्याएॅ हुईं, उसका हाल के इतिहास में कोई उदाहरण नहीं है, सिवा बांग्लादेश में 1960 से 1971 के मध्य पाकिस्तान द्वारा किए गए जनसंहार को छोड़कर। स्थिति इतनी बदतर है कि बलूच शरणार्थी और राजनीतिक कार्यकर्ता बलूचिस्तान के बाहर भी सुरक्षित नहीं हैं। बलूच नेता शाहनेवाज जेहरी सरबन (ईरान) में 11 जुलाई को आई.एस.आई. द्वारा हत्या करा दी गई। 21 जून को बलू नेशनल मूवमेंट (बी.एन.एम.) के अंतर्राष्ट्रीय प्रतिनिधि हम्माल हैदर ने जिनेवा में एक सम्मेलन में बताया कि चीन में पाकिस्तान के राजदूत ने इस बात के लिए स्वीकार किया कि उन्होंने चीन-पाकिस्तान कारीडोर की सुरक्षा के लिए 3400 बलूचों की सेना द्वारा हत्या की गई। स्थिति इतना भयावह है कि सैकड़ों बलूचों के मृत शरीर इकठ्ठा ही बलूचिस्तान के बाहर निर्जन स्थानों पर मिल जाते हैं। 16 जुलाई को स्वतंत्र बलूचिस्तान आंदोलन द्वारा पैदल 600 कि.मी. का लंबा मार्च डोसेलड्राफ से बर्लिन तक यह बताने के लिए निकाला गया कि किस तरह से पाकिस्तान बलूच जनता पर अत्याचार कर रहा है व उनके मानवाधिकारों का हनन कर रहा है। बलूचिस्तान के सभी प्रमुख नेता कई बार भारत और पूरे विश्व से यह गुहार लगा चुके हैं कि उनकी सरकार मीडिया और मानव अधिकार से संबंधित संगठन बलूचिस्तान की भयावह स्थिति की ओर देखें। अभी हाल में लंदन के संडे गार्डियन में एक वक्तव्य के माध्यम से भारत से मांग की गई कि बलूचिस्तान के संबंध में भारत की स्पष्ट नीति होनी चाहिए, क्योंकि कश्मीर में पाकिस्तान का सीधा हस्तक्षेप किसी से छुपा नहीं है। यदि पाकिस्तान अधिकारी अलगाववादी हुर्रियत नेताओं से सीधे मिल सकते हैं, तो भारत भी वैसा क्यों नहीं कर सकता? यदि पाकिस्तान यू.एन.ए. में कश्मीर का मुद्दा उठा सकता है, तो भारत बलूचिस्तान में मानवीय अधिकारों के हनन का मुद्दा क्यों नहीं उठा सकता? हम अपने स्वतंत्रता की लड़ाई में भारत का नैतिक समर्थन चाहते हैं।’’
गौर करने की बात यह है कि पाकिस्तान, जम्मू-कश्मीर को लेकर तो आए दिन मानवाधिकारों के हनन को लेकर चीखता-चिल्लाता रहता है। सिंक्यांग प्रान्त में जहां मुसलमानों को चीन नमाज़ तक पढ़ने की आजादी नहीं देता, वहां पाकिस्तान भीगी बिल्ली बन जाता है। चीन ने हान वंश के लोगों को भारी मात्रा में बसाकर उस प्रान्त में मुसलमानों का अधिपत्य समाप्त कर दिया, तब भी पाकिस्तान को रंचमात्र भी विरोध करने की हिम्मत नहीं पड़ी। पर कश्मीर घाटी में जहां सिर्फ मुस्लिम ही रह गए हैं और जहां की लड़कियाॅ राज्य के बाहर विवाह करने पर अपनी कश्मीरी नागरिकता खो देती हैं, पर पाकिस्तानी से विवाह करने पर नागरिकता खोना तो दूर पाकिस्तानी पुरुषो को भी नागरिकता मिल जाती है। वहां आए दिन सिर्फ चिल्ल-पो ही नहीं मचाए रहता, बल्कि हिंसा और मौत का ताण्डव भी रचता रहता है। बेहतर हो कि इस देश की मीडिया और मानवाधिकार कार्यकर्ता देश की सीमा से बाहर भी नजर दौड़ाएॅ।

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