कब तक छले जाएंगें हम भारत के लोग

प्रो. बृजकिशोर कुठियाला

क्या इस रात की कोई सुबह नहीं होगी

भारत की आम जनता आज सकते में है, वैचारिक और व्यावहारिक दोनों ही स्तरों पर कि कर्तव्यविमूढ़ स्थिति में है। आध्यात्मिक योग गुरू रामदेव व सिद्ध समाजसेवी अन्ना हजारे का राजनीति के लिए सुधारवादी अभियानों से जो प्रकाश की किरणें दिखने लगी थीं, वे अब आम आदमी को भ्रम की अनुभूति देने लगी हैं। मानो रात में घने बादलों के घोर अंधेरे में बिजली कड़की, क्षणिक प्रकाश हुआ, आशा बंधी और फिर से सब अंधकारमय।

रामदेव का आंदोलन जिस प्रकार क्रांति पकड़ता दिखा उससे लगा कि वर्षों से चले आ रहे कदाचार में कुछ कमी आएगी। आम आदमी इतनी तो समझ रखता है कि सरकार और उसका तन्त्र उचित अनुचित में भेद किए बिना किसी भी प्रकार रामदेव जैसे आन्दोलनों को कमजोर करने में कसर नहीं छोडेंगे। ऐसा हुआ भी। रात के अंधेरे में पुलिस की कार्यवाही हुई। परन्तु जिस प्रकार बाबा वहां से निकले, उसकी कल्पना आमजन को नहीं थी। आम भारतीय तो अपने नेतृत्व से वीरता, साहस व विवेक की अपेक्षा करता है। महिलाओं के कपड़े पहनकर कर्मस्थली से पलायन तो कुशल नेतृत्व के व्यवहार से विपरीत लगता है। साधारण भारतीय ने तो भगतसिंह, सुभाष और गांधी जैसे अनेक महापुरूषों के पौरूष व त्याग को श्रद्धा प्रकट की है। पलायन को तो उसने कभी नहीं स्वीकारा। बाबा के आन्दोलन का पहला दृश्य भारतीय जनता के लिए दुखान्त रहा और उसकी आशा के टूटने की आवाज तो हुई पर किसी ने सुनी नहीं।

परन्तु एक दूसरे बाबा अन्ना हजारे तुरन्त ही राजनीति के आकाश में उभरे और ऐसा लगा कि आखिरकार तो भ्रष्टाचार व अव्यवस्था की रात की सुबह होगी ही। अन्ना ने तो दुर्लभ साहस व विवेक का भी परिचय दिया। जेल भी गए, अनशन भी किया, डरे भी नहीं और अपनी बात पर स्थिर रहे। संसद को भी मजबूर कर दिया। मांग पूरी होने के आश्वासन को सफलता मानकर पूरा देश खुशी से झूमा भी और उम्मीदों के पकवान की हंडी मानों चूल्हे पर चढ़ गई हो।

अन्ना व उसके सहयोगियों पर आक्षेप लगेंगे, आक्रमण होंगे और उनकी छवि पर दाग लगाने का भी प्रयास होगा – यह सब देश की जनता जानती थी। परन्तु विश्वास था कि अन्ना व उसकी टीम के सदस्य इस अग्नि परीक्षा में सफल होंगे। धीरे-धीरे यह विश्वास भी टूटा, फिर से आशाओं के दर्पण में दरार आई, टूटती मौन ध्वनि को फिर किसी ने नहीं सुना।

आर्थिक शुचिता के स्तर पर अन्ना व उसकी टीम के दो सदस्य अनुतीर्ण हुए। कितना भी तर्क किया जाए भ्रष्टाचार विरोधी नेतृत्व में व्यावहारिक व आर्थिक ईमानदारी तो शक के दायरे में भी नहीं आनी चाहिए। ऐसी स्थितियों में भूल न होने पर भी भूल लगने जैसी बात हो तो उसके लिए क्षमा मांगना व प्रायश्चित करने से मान-सम्मान बढ़ता है। यहां तो विपरीत ही हो रहा है। हमने जो गलत किया वह तो तार्किक और क्षम्य है, परन्तु दूसरों ने जो किया या नहीं किया उसके लिए सजा मिलनी ही चाहिए। इस समय इस प्रश्न का उत्तर तलाशना चाहिए कि यदि अन्ना द्वारा प्रस्तावित लोकपाल बिल लागू होता तो इनके बारे में क्या निर्णय होते। आम भारतीय के मन में यह उतना ही बड़ा अपराध है जितना राजा का या कलमाड़ी का।

टीम के एक अन्य सदस्य ने तो देश की अखंडता पर ही प्रश्न चिन्ह लगा दिया। जनभावना ऐसी है कि चीन व पाकिस्तान द्वारा अधीकृत भारत देश की भूमि को वापस लेना चाहिए, परन्तु इन महोदय ने तो देश के एक हिस्से को भारत से अलग करने का ही सुझाव दे दिया। यदि उनके सुझाव के मानना प्रारम्भ कर दें तो शायद आदरणीय प्रधानमंत्री केवल दिल्ली प्रान्त के ही प्रधानमंत्री रह जाएंगे और आसपास खालिस्तान, दलितस्थान, मुगलिस्थान, द्वविड़स्थान आदि ऐसे कई देश विदेश बन जाएंगे। टीम अन्ना के सक्रिय सदस्य होने के नाते ऐसे विचारों के व्यक्तित्व को ऐसी टीम में होना जो देश में क्रांति लाने का संकल्प किए हुए हैं, कुछ नहीं बहुत अटपटा लगता है।

तीन और घटनाक्रमों की चर्चा भी प्रासंगिक लगती है। देश में अनेकों छोटे बड़े अभियान भ्रष्टाचार विरोध में और व्यवस्थाओं के सुधार के पक्ष में प्रारम्भ हुए हैं। सभी राजनीतिक दल भी पहले से अधिक सचेत हुए हैं। देश के सबसे बड़े छात्रों के संगठन ने ‘एक्शन अगेंस्ट करप्शन’ का अभियान भी चलाया है। अनेक सामाजिक संस्थाओं ने भी कार्यक्रम घोषित किये है। पूरे सामाजिक और राजनीतिक संवाद में भ्रष्टाचार मुख्य मुद्दा बना है। देखने वाली बात यह है कि आम समाज इनसे कितना जुड़ पाता है और समस्याओं के समाधान की क्या कल्पना यह सब प्रस्तुत करते हैं।

दूसरा रामदेव व अन्ना टीम की फिर से सक्रियता प्रारम्भ हुई है। रामदेव तो प्रवास पर निकले हैं और योग गुरू के चोले के साथ-साथ अपने को सुधारवादी सक्रिय सन्त के रूप में स्थापित करने के प्रयास में है। जनता का जोश कुछ कम है परन्तु यदि जनमानस को कार्य सिद्ध करने की इच्छाशक्ति और प्रभावी उपायों का आभास हुआ तो हताश जनता एक बार फिर जुड़ सकती है। टीम अन्ना तो किसी भी छोटे राजनीतिक संगठन की तरह व्यवहार कर रही है। अपने झूठ को ही झुठलाने में लगी है। लगता है कि अस्तित्व की ही लड़ाई लड़ रही है। अन्ना का मौन आत्मशुद्धि है या प्रायश्चित। या तपस्या। या पलायन। जनता नहीं जानती, जब तब वे कुछ कहते या करते नहीं।

तीसरी महत्वपूर्ण प्रक्रिया राजनीति में आत्म विवेचना की है। सभी रंगों के राजनैतिक दलों में दिखने और बोलने वालों के साथ-साथ अदृश्य व मौन परन्तु सक्रिय दुष्टों की कमी नहीं है। परन्तु सज्जन राजनीतिज्ञों की संख्या भी नगण्य नहीं है। पिछले पांच छः महीनों में इस सज्जन शक्ति ने अपने अन्दर झांकना प्रारम्भ किया है और अपने से ही प्रश्न किया है आखिर कब तक? देश व समाज के प्रति कर्तव्यबोध उनसे प्रश्न करता है कि कौन बड़ा – देश या पार्टी। यह प्रक्रिया अभी व्यक्तिगत स्तर पर है, कुछ-कुछ प्रयास सामूहिकता से चिन्तन करने का ही रहा है। आशा करनी चाहिए कि पूरे देश की राजनीतिक व्यवस्था में जो सज्जन शक्ति है, पार्टी व विचारधारा से उपर उठकर संगठित होगी और आम जनता में जो आशा का दीपक बुझ गया है उसे फिर से जलाएगी। ऐसा नहीं हुआ तो आम आदमी का संयम का बोध टूटना अनिवार्य है। त्वरित उफान से जब जनमानस उठता है तो परिवर्तन की आंधी को साथ लाता है पर वह आंधी रक्तिम भी हो सकती है इस संभावना को नकारा नहीं जा सकता। जनता जनार्दन को कुछ लोग कुछ समय के लिये धोखा दे सकते हैं परन्तु यदि हर ओर से और हर विषय में धोखा मिलेगा तो विपरीत प्रतिक्रिया होना स्वभाविक है।

 

10 COMMENTS

  1. कुलपति जी आर . सिंह जी ने जो भ्रष्टाचार की परिभाषा दी है , वह सही है |२. हवाई यात्रा में बिजनेस क्लास और इकोनोमी क्लास मे बहुत फर्क होता है | जब लोग किरण बेदी जैसे लोगो को टिकेट देते है तो उनके नाम पर कमाते भी है |किरण बेदी जी इस उम्र मे भी पूर्ण स्वस्थ है |उन्हे विलासिता वाले बिजनेस क्लास के टिकेट की जरुरत नहीं है क्योकी वो नेता नहीं है | उन्होने इकोनोमी क्लास मे कम सुबिधा मे यात्रा किया और बाकी पैसा अपनी दान संस्था को दिलवा दिया | नेता होती तो जनता के टैक्स के पैसे से आराम फरमाती |३ . जिस व्यक्ति ने अन्ना टीम मे देश के बिरुद्ध बात की थी वह तो पहले से मालूम था बाप और बेटे |४.अर्जुन ने एक वर्ष के वनवास मे ब्रिहन्नला बनकर समय निकाला ताकी कृष्ण के सानिध्य मे महाभारत जीते और कौरव सेना का नाश करे धर्म की स्थापना के लिए |बाबा रामदेव जी ने भारत देश के लिए बहन सुमन जी के सलाह पर उनके कपडे पहनकर स्वयं अपने को बचाया और फिरंगी मानसिकता वाले नेताओ और कोंग्रेस की चाल का मुह तोड़ जबाब दिया| हम सब जून २०११ की घटना को दूसरा जलियावाला बाग़ की घटना याद करते है |
    कुलपति जी आप जैसे लोग ही अपने पद और ज्ञान का दुरुपयोग करके फिरंगी मानसिकता वाली कोंग्रेस को सप्पोर्ट करते है |भारत भूमी महापुरुषों की भूमी है और आप बाबा रामदेव जी एवं अन्ना जी को कम न समझे |ऐ लोग अपने लिए नहीं दूसरो के लिए जीते है |जय हिंद

  2. प्रो कुठियाला जी के इस लेख से एक सार्थक बहस की शुरुआत हो गयी है. इकबाल हिन्दुस्तानी जी की सोच ही आज अधिकाँश भारतीयों की सोच है. आर. सिंह जी जैसे विचारशील लोगों की तरह भारत के लोग हालात को समझने लगे हैं. अब पहले जैसी विश्वसनीयता राष्ट्रीय मीडिया की नहीं बची है. लोगों ने मीडिया द्वारा परोसे प्रायोजित और झूठे समाचारों में से सच को ढूढने की कला काफी कुछ सीख ली है. इसी प्रकार चला तो वह दिन दूर नहीं जब ये सारे आधुनिक राबर्ट क्लाईव/ वढेरा अदि और इनकी माँ सींखचों के पीछे होंगे. सत्ता में बैठे देशद्रोही गफलत में हैं की वे जनता को और बेवकूफ बना लेंगे, अब इनकी असलियत पर परदे डालने के मीडिया के प्रयास सफल नहीं हो रहे. आखिर हर बात की कोई सीमा होती है. अब जनता को और छलना संभव नज़र नहीं आता. यानी पाप का घडा पूरा भर गया और फूटने वाला है.

  3. आदरणीय गुरुदेव प्रो.कुठियाला जी से मेरा विनम्र निवेदन है कि-
    यद्यपि एक भक्त के नाते मैं भी बाबा रामदेव के पलायन को पचा नहीं पाया किंतु व्यवहारिक तौर पर मैंने कल महसूस किया जब घर में सांप निकला- मैं समझदारी से भाग गया. बस मुझे जबाव मिल गया ।
    अगर बहादुरी दिखाने के चक्कर में उस दिन बाबा रामदेव गोली से मारे जाते तो आप आज क्या कर रहे होते ? या आज क्या कर लिया – कहीं किसी बहादुर ने सरकार से कोई जबाव मांगा है आज तक, मुझे तो लगता है कि बाबा नादानी कर रहे हैं इतनी स्वार्थी जनता के लिए लड़ रहे हैं- आज तक कोई कार्रवाई कहीं नजर आती है उस दमन के योजनाकारों के ऊपर, या अन्ना को गिरफ्तार कराने वालों के ऊपर .। सुप्रीम कोर्ट ने भी अपनी ओर से ही कुछ कार्रवाई की है और पता नहीं उसमें कोई दोषी पाया जाएगा भी कि नहीं ? कृपया कोई उसका केस नंबर आदि बताइये जिससे पता लगे कि क्या हुआ ?
    क्या होता– बाबा रामदेव को गोली मार दी जाती और शव यात्रा में सभी महामहिम शामिल होते- एक आयोग बैठा दिया जाता- आप यह चाहते थे ?
    क्या हुआ दीनदयाल उपाध्याय जी की हत्या का, डॉ श्यामाप्रसाद मुखर्जी की हत्या का , लाल बहादुर शास्त्री की हत्या का, सुभाष ने शिवाजी ने गुरुजी ने जेपीने जार्ज ने कितने ही व्यक्तियों ने सांप से बचकर ही आगे महत्वपूर्ण काम किए हैं न कि सांप से भिड़ने की बुद्धिहीनता पूर्ण बहादुरी– क्योंकि सांप के काटने के बाद कुछ नहीं बस झाड़ फूंक ही करते रह जाना पड़ता । दो शब्द अखबारों में छपते बस— और रामदेव नाम का नाम स्वर्गीय या शहीदों में शामिल हो जाता- एकाध सड़क का नाम रामदेव मार्ग रख दिया जाता—- फिर पता नहीं कितने युगों के बाद ऐसे लोग बन पाते । कितने उपकुलपति कुलसचिव आदि महत्वपूर्ण अधिकारसंपन्न पदाधिकारी ऐसे हैं जो छात्र आंदोलनो के उपद्रव में सामने आकर उपद्रवी उग्र छात्रों से बात करने का साहस रखते हैं — और हम रामदेव जैसे संत से शिकायत कर रहे हैं कि वे पलायन वादी हैं- मैंने तो यह समझा है कि कदाचित यह कायरता ही संतत्व है- रामदेव के हाथों में एके ५६ होती या जेड सुरक्षा से घिरे सफेदपोश होते तो उन्हें पलायन की आवश्यकता शायद नहीं होती —— — आज देश में कितना कोई परेशान है कोई पूछता है किसी से कि ४०० लाख काला धन किसका है-, आम आदमी की गरीबी और कर्णधारों की अमीरी क्यों बढ़ रही है, — बाबा ने पूछा तो उनके साथ क्या वर्ताव किया गया और कितना प्रताडित किया जा रहा है- सुब्रामन्यम स्वामी जी का दावा है कि राहुल जी के पास दो पासपोर्ट हैं . काग्रेस के कई लोग बांग्ला देश के नागरिक हैं— सीबीआई को कभी समय नहीं मिला लेकिन बालकृष्ण जी के पीछे पड़ी है क्यों कि ये लोग परोपकारी संत है किसी का अहित नहीं कर सकते- अरे गुरुजी ऐसा लिखिए कि कब तक छले जाएंगे हम भारत के लोग के स्थान पर – कब तक हम भारत के लोग अपने आप को छलते रहेंगे- गंदगी के ऊपर मखमल का मसंद डालकर बैठते रहेंगे कब पुरुषार्थी बनेंगे, हमें कोई नहीं छल रहा हमें आदत हो गई है अपनी वेवकूफियों की ।

  4. ||ॐ साईं ॐ|| सबका मालिक एक
    चरण कमल गुरुजनों के,नमन करू मै शीश |
    मेरे देश को भ्रष्टाचारियो से मुक्त करो ,देकर शुभ आशीष ||

  5. भ्रष्टाचार की मान्य परिभाषा देते हुए मैं यह लिखना भूल गया कि इस परिभाषा को न केवल भारत का क़ानून मानता है,बल्कि वर्ल्ड बैंक ने भी इसी को मान्यता दिया हुआ है.

  6. मैंने बार बार अपनी टिप्पणियों में भ्रष्टाचार की कानून द्वारा मान्य परिभाषा देने का प्रयत्न किया है,पर इस पर बहश रोकने का नाम नहीं ले रही है,अतः अब मैं उस परिभाषा को उसी रूप में आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ,जिस रूप में मैंने इसे पढ़ा है.
    DEFINITION OF CORRUPTION: Corruption is misuse of official position for personal gain.
    C=M+D-T/A,
    Where C stands for corruption, M for monopoly D for discretion and T for transparency. Alternatively T can be replaced by A, which stands for accountability
    अब आपलोग बताईये, क्या किरण बेदी इस परिभाषा के अनुसार भ्रष्टाचार की दोषी हैं?

    • सिंह साहब —
      आपका भ्रष्टाचार का समीकरण बहुत बहुत सही प्रतीत होता है|
      छोटीसी टिपण्णी पर सर्व ग्राही है|
      धन्यवाद|

  7. अरे बाबा एस डी शर्मा बड़े दिनों बाद आपने ने कांग्रेसी सोच से बाहर आकर देश के बारे में सोचा है…..मानते हो ना देश में चाहे कांग्रेस हो बीजेपी हो,समाज वादी हो,बहुजन समाज हो,कोमुनिस्ट हो,…या कोई भी भ्रष्ट पार्टी हो सबका एक धंधा है भ्रष्टाचार (चोरी चुगली,कलाली,दलाली और छिनाली ) पैसा है भगवान्…इनका पैसा है भगवान् …
    सरकारी व्यापार भ्रष्टाचार

  8. एक लघुकथा से अपनी बात कहना चाहता हूं। एक राजा ने एक चोर को मामूली चोरी के आरोप में फांसी की सज़ा सुना दी थी। चोर से जब अंतिम इच्छा पूछी गयी तो उसने कहा कि उसको वह फांसी दे जिसने जीवन में कभी चोरी नहीं की हो। एक एक करके सब कभी न कभी अपनी चोरी को याद करके पीछे हटते गये। नतीजा यह हुआ कि खुद राजा भी बचपन में चोरी की बात याद करके इस काम को अंजाम देने लायक नहीं बचा तो चोर ने पूछा कि जब सभी चोर हैं तो उसको ही सज़ा क्यों दी जा रही है? यह सुनकर राजा ने उसको बरी कर दिया था। वास्तव में यह चोर बड़ा ही चतुर था। वैसे ही जैसे हमारे राजनेता। आपने तो वही कह दिया जो हमारे नेता कह रहे हैं। टीम अन्ना की सदस्य किरण बेदी ने केवल नैतिक रूप से गल्ती की है। इंसान बेशक गल्ती कर सकता है लेकिन अपराध् के लिये गल्ती की माफी मांगकर वह बिना सज़ा के बच नहीं सकता। । हमारे कहने का मतलब यह है कि जो लोग स्वभाव और राजनीति के धंधे से काली कमाई पहले से ही करते रहे हैं उनके अपराध् और एक ईमानदार मैगसेसे एवार्ड विजेता और आदर्श पुलिस अधिकारी रही किरण बेदी की एक मामूली भूल के कारण आप दोनों की तुलना कैसे कर सकते हैं। क्या अरबों के घोटाले करने वाले और एक भूखे बच्चे के रोटी चुराने को भी आप एक श्रेणी मंे रख सकते हैं? इसका मतलब तो यह हुआ कि अगर किसी ईमानदार नागरिक को जायज़ और कानूनी सरकारी काम कराने के लिये अगर रिश्वत देनी पड़ती है तो आप कहेंगे कि दोनों को जेल भेजा जाना चाहिये क्योंकि रिश्वत देना और लेना दोनों ही जुर्म है? फिर तो बदमाशों और स्वतंत्रता सेनानियों की हिंसा भी अपराध् है, भले ही उसके पीछे मकसद और नीयत अलग अलग हो? मेरे काबिल साथी शायद यह भूल रहे हैं कि सिस्टम ऐसा बना हुआ है कि इसमें बहुत से काम नागरिकों को मजबूरन ऐसे करने पड़ते हैं जो गलत तो हैं लेकिन इसके लिये ज़िम्मेदार शासन और प्रशासन होता है। यही मांग तो अन्ना और उनकी टीम कर रही है कि ऐसा कानून और व्यवस्था लाओ जिसमें कोई बेईमानी करना भी चाहे तो कर नहीं सके। एक बात और अगर किरण बेदी, केजरीवाल और कुमार विश्वास ने कोई गैर कानूनी काम किया भी है तो क्या वे इसी कारण भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने के हक से धे बैठे हैं? फिर तो हमारे अधिकांश नेता भी भ्रष्टाचार के खिलाफ कानून बनाने में अक्षम माने जाने चाहिये क्योंकि उनके दामन पर भी दाग़ हैं। यह सवाल भी पूछा जाना चाहिये कि सत्ताधारी दल के दिग्विजय सिंह जैसे नेता बयानबाज़ी क्यों कर रहे हैं वे तो कानूनी कार्यवाही कर सकते हैं तो बाबा रामदेव, अन्ना हज़ारे और टीम अन्ना को एफआईआर दर्ज कराकर जेल क्यों नहीं भेजत? भ्रष्टाचार के खिलाफ कोई कुछ बोलता है तो तभी उसकी कमियां क्यों याद आती है सरकार को? मुलायम, लालू और मायावती जब जब कांग्रेस के खिलाफ तेवर दिखाती हैं तो सीबीआई उनके खिलाफ आय से अधिक सम्पत्ति की जांच तेज़ कर देती है? यह क्या ब्लैकमेल है? जब जब भाजपा सरकार को घेरती है तब तब युदियुरप्पा और बंगारू लक्ष्मण का मामला याद दिलाया जाता है? मतलब तुम भी चोर हम भी चोर सो चुप रहो। -इक़बाल हिंदुस्तानी

  9. लेखकीय परिचय में आपको इतना बड़ा दिखाया गया किलोग जल्द साहस नहीं जुटा पायेंगे आपके कथन पर विपरीत प्रतिक्रिया के लिए.पर कुछ दुह्साह्सी ऐसे भी हैं जो इसे बकवास यानि अनर्गल प्रलाप समझते हुए भी इसके विरुद्ध आवाज उठाना अपना कत्तव्य समझते हैं.पहले तो आपने प्रश्न उठाया है अन्ना के दो सहयोगियों पर जिनकी नैतिकता पर आपने प्रश्न चिह्न लगाया है.आप जैसे बड़े लोगों के द्वारा ऐसे प्रश्न उठाये जाने पर मुझे मजबूर होकर कहना पड़ता है कि किसी भी ईमानदार व्यक्ति को अपनी श्रेणी में लाने के लिए आप जैसे लोग बाल का खाल निकालने में नहीं चूकते.मैं नहीं जानता कि किरण बेदी ने ज्यादाकिराया लेकर भी कम खर्च करके बकाया पैसा क्यों गरीबों के उत्थान के लिए देना चाहा था,पर मुझे जो भ्रष्टाचार की परिभाषा मालूम है और जिसे मैं इन कालमों में बार बार दुहरा चुका हूँ ,उनका यह कार्य क़ानून के विरुद्ध नहीं था.हो सकता है कि भ्रष्टाचार की वही मान्य परिभाषा उनके दिमाग में भी रहा हो.भारत की मान्य नैतिकता जिसका मापदंड बहुत उंचा है,ऐसे कार्य को भी नैतिक नहीं मानता और जब किरण बेदी को यह भान हुआ तो उन्होंने बिना हिला हवाला के वह पैसा लौटा दिया.अगर वह पैसा जो उन्होंने स्वयं कष्ट सह कर बचाया था नहीं लौटाती तो उससे बहुत से बेसहारा और निराश लोगों को मदद मिलती और मेरे विचार से भारत के मान्य क़ानून का भी उलंघन नही होता.सच पूछिए तो भारतकी अव्यावाहारिक नैतिकता का सहारा लेकर ही भ्रष्टों के सरदार भी व्यावहारिक रूप से ईमानदार व्यक्तियों को भी अपने साथ घसीट लेते हैं.
    केजरीवाल ने भी उनके विभग द्वारा मांगे गए गैर कानूनी रकम को प्रतिरोध के साथ जमा कर दिया है.चूंकि उनके पास इतना समय नही है कि वे अपने को कानूनी प्रक्रिया में उलझा सकें,अतः अभी वे पैसा जमा करने के लिए वाध्य हो गए नही तो तीन महीने नोटिस पीरियड के बाद कोई भी क़ानून उनको पैसा जमा करने को वाध्य नहीं कर सकता था.कानूनी कार्रवाई तो उन अधिकारियों के विरुद्ध होना चाहिए था जो इतने अरसे तक सोये हुए थे.आपने प्रशांत भूषण पर भी उंगली उठाई है,उसपर बाद में,पहले तो आपके लेख के उतरार्ध के बारे में मैं कुछ कहना चाहता हूँ.साफ़ बात तो यह हैकि राजनीति आज गुंडों और बादमाशों का अंतिम शरण स्थली बन गया है.कोई खुले आम गुंडागर्दी और नीचता पर उतर आया है तो कोई प्रछन्न रूप में इस कार्य को कर रहा है.अगर कोई सचमुच ईमानदार है तो आज की राजनीति में वह बापू के बंदरों की भूमिका निभा रहाहै.ऐसे इंडिया बनाम भारत वे सब अपने को ईमानदार कहते हैं जो अपने काले करतूतों के बावजूद पकडे नहीं गए या ठोस प्रमाण के अभाव में बेदाग़ निकल आये..
    ऐसे तो लांछन अन्ना हजारे पर भी लगे थे,पर अब उनको छोड़ दिया गया है.बाबा रामदेव को भी घसीटने की चेष्टा अभी बंद नहीं हुई .अब तो श्री श्री रवि शंकर कीभी टांग खिची जा रही है. प्रोफ़ेसर साहब यह तो रसा कस्सी का माहौल तैयार हो रहा है.देखना यह है कि भविष्यका भारत इसी गंदगी में खुश रहता है या इस गंदगी को साफ़ करके नया साफ़ सुथरा भारत बसाने वालों को आगे लाकर एक साफ़ सुथरे भारत का निर्माण करता है.जब उच्च शिसित वर्ग भी अपने को उन्ही लोगों में शामिल करके उन्ही गिरे हुए लोगों की भाषा में बात करने लगता है जो अपनी नीचता के कारण भारत को रसातल में लिए जा रहे हैं तो कभी कभी निराशा भी होने लगती है,पर मुझे यह भी लगता है कि आम जनता में अभी भी सच्च और झूठ को पहचानने की कुछ अक्ल बची हुई है,इसलिए स्वार्थियों के द्वारा अनेक बाधाएं खडी किये जाने पर भी शायद अच्छाई की और कदम बढाने वालों को सफलता मिल जाए.

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