कलाइयों पर ज़ोर देकर ?

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लोग
इतने सारे लोग
जैसे लगा हो
लोगो का बाजार
जहां ख़रीदे और बेचे
जाते है लोग
कुछ बेबस,
कुछ लाचार
लेकिन सब है
हिंसक,

जो चीखना चाहते है
ज़ोर से, लेकिन
भींच लेते है अपनी
मुट्ठियां कलाइयों पर ज़ोर देकर
ताकि कोई
देख न सके
बस मेहसूस कर सके
हिंसा को
जो चल रही है
लोगो की
लोगो के बीच, में
लोगो से?

एक हिंसा तय है
लोगो के बीच
जो खत्म कर रही है
किसी तंत्र को
जो इन्ही हिंसक लोगो
ने बनाया था
हिंसा,
रोकने के लिए?

लेकिन सब ने,
सीख लिया है
कलाइयों पर ज़ोर देकर
मुट्ठियां भीचना,
इन्होने भी सीख लिया
सभ्य लोगो की तरह
कड़वा बोलना,
गन्दा देखना और
असभ्य सुनना!

यह समझते है
खुद को सभ्य
कलाइयों पर घड़ी,
गले में टाई,
पैरों में मोज़े,
और
हाथ में जहरीली
तलवार रखने से

मैं भी रोज़ जाता हूँ
लोगो के बाजार,
तुम भी जाया करो
ऐसा ही सभ्य बनाने
ताकि तुम भी
भींच सको अपनी मुट्ठी
कलाइयों पर ज़ोर देकर?

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