कविता साहित्‍य

कलयुगी कन्हैया

नक्सलियों की हैवानियत

नाम “कन्हैया” पाकर समझा, मैं हूँ कृष्णकन्हैया ।
नहीं समझ पाया ले डूबेगा , निज जीवन-नैया ।।
” कान्हा ने जब उठा लिया था, गोवर्धन पर्वत को ।
मैं भी अब उखाड़ फेकूँगा ,इस मोदी शासन को ।।”
जैसे क्षमा किये कान्हा ने , दुष्ट वचन शिशुपाल के ।
मोदी भी हैं क्षमा कर रहे, इस देशद्रोही “कुमार” के ।।
पा सहयोग कौरवों का ये, बड़बोला बन गया है आज ।
मुँह के बल कल गिर जाएगा, कर न सकेगा कोई काज।।
अरे मूढ़ ! तू सँभल जा अब भी ,मर्यादा को अपनी जान ।
कौरव और पांडव की कर ले , अपनी बुद्धि से पहचान ।।
मातृभूमि जिसमें जन्मा तू , बना क्यों उसका भंजक आज ।
मातु-पिता और विद्यामंदिर , की भी तो कुछ रख ले लाज ।।

शकुन्तला बहादुर