– दिव्य अग्रवाल
काशी ज्ञानवापी , व्यास जी तयखाना पूजा के सम्बन्ध में कुछ तथ्य को समझना आवश्यक है । तयखाना अर्थात गर्भ गृह जहाँ पर नियमित पूजा , संकीर्तन आदि चलता रहे , व्यास परिवार पिछले तीन से चार शतकों से अधिक उक्त स्थान पर नियमित पूजा करता आ रहा है जिसको अयोध्या आंदोलन के पश्चात मुलायम सिंह यादव एवं आजम खां के नेतृत्व वाली तत्कालीन सरकार ने बिना किसी आधार एवं आदेश के बंद करवा दिया था । मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति का लाभ लेने हेतु अधिकारियों को मौखिक आदेश देकर ताला डलवा दिया गया था जिसके चलते अंदर वाले गेट पर व्यास परिवार का ताला पड़ा था जो नियमित पूजा के बाद कपाट बंद करने के बाद डाला जाता था और बहार से प्रशासन का ताला जड़ दिया गया था । ३१ वर्ष पूर्व जब यह ताला डाला गया तब हिन्दू समाज तत्कालीन सरकार के समक्ष इतना भयभीत एवं असहाय था की वह इस कुकृत्य का न तो विरोध कर पाया और न ही पूजा कर पाया परन्तु व्यास परिवार को आशा थी की भविष्य में ऐसा नेतृत्व अवश्य आएगा जब पूजा पुन्ह आरम्भ होगी तभी तो जब ताले खोलने की बात आयी तो प्रशासनिक ताले को तोडना पड़ा और व्यास परिवार के ताले को ३१ वर्ष पश्चात उसी चाबी से खोला गया जिस चाबी से ताला लगाया गया था । सैकड़ो वर्षो तक अयोध्या में सनातनी समाज ने संघर्ष किया,सैकड़ो वर्षो से काशी प्रतीक्षा कर रही है,नंदी भगवान् प्रतीक्षा कर रहे हैं की कब मुख्य स्थान पर महादेव, मां गौरी की पूजा आराधना होगी। प्रांगड़ ,दीवारें चीख चीख कर कह रही हैं की मजहबी आक्रांताओं ने सनातनी अश्मिता पर दमनकारी आघात किया था परन्तु भाईचारे की दुहाई देने वाला मुस्लिम समाज सत्यता को जानते हुए भी जनभावनाओं एवं न्यायालय का सम्मान न करते हुए देश में विरोधाभास का बीज बोना चाहता है । वर्तमान काल खण्ड में किसी प्रकार की तुष्टिकरण कर राजनीति नहीं हो रही है जो सत्य है वह ही सबके सामने लाया जा रहा है । संविधान तथ्यों के आधार पर अपना काम कर रहा है अन्यथा एक समय था जब गैर मुस्लिम समाज को इतना कमजोर कर दिया गया था की मजहब के नाम पर होने वाले अपने अपमान को सनातनी समाज अपना भाग्य मान चूका था। जातिगत गठजोड़ का विष इतना भयावह था की सनातनी समाज यह भूल ही चूका था की उनका धर्म क्या है उन्होंने किस धर्म में जन्म लिया है । जो धर्माचार्य या सनातनी चोला ओढ़े हुए वामपंथी लोग हर बात में मोदी सरकार को धर्म विरोधी,नीति विरोधी कहने से नहीं चूकते जरा उनसे भी कोई प्रश्न पूछे की पिछले ५०० वर्ष में जो नहीं हुआ वह अब हो रहा ह,सनातनी समाज का गौरव पुन्ह स्थापित किया जा रहा है क्या इससे भी उन्हें आपत्ति है। कलम लिखना तो बहुत कुछ चाहती है लेकिन सनातनी समाज के लिए बस इतना ही सन्देश है की मजहबियों ने सनातनी समाज की निजी महत्वकांशाओ , कमजोरी और लालच देकर अपनी कटटरवादी सोच एवं मजहबी संगठनात्मक शक्ति के दम पर सनातन धर्म , सनातनी परम्पराओं, स्वाभिमान और प्रथाओं को अपमानित करने का कार्य किया । आज जब भारत के मूल आधार सनातनी गौरव को सनातनी समाज को वापस देने का प्रयास वर्तमान सरकार कर रही है तो किसी वामपंथी या मजहबी षड्यंत्र में फसकर इस स्वर्णिम काल को धूमिल मत कर देना क्यूंकि षड्यंत्र रुपी चक्रव्यूह से अभिमन्यु जैसा महान योद्धा भी जीवित वापस नहीं आ पाया था ।