क्या इतना नीचे गिरना चाहिये केजरीवाल को ?

गज़ल-सम्राट जगजीत सिंह की एक गज़ल है – arvind

      ज़िन्दगी भर मेरे काम आए उसूल

      एक-एक कर उन्हें बेचा किया,

      आज मैंने अपना फिर सौदा किया।

गज़ल की उपरोक्त पंक्तियां अरविन्द केजरीवाल पर एकदम सटीक बैठती हैं। अपने आसपास सिद्धान्तों का जाल बुनना और फिर उचित समय पर उनका सौदा कर लेने की कला में केजरीवाल से माहिर कौन है? अन्ना की अगुआई में देशव्यापी आन्दोलन में केजरीवाल ने स्पष्ट घोषणा की थी कि यह आन्दोलन गैर राजनीतिक है और व्यवस्था परिवर्तन के लिये समर्पित है। इस सिद्धान्त का पहला सौदा उन्होंने अन्ना के विरोध के बावजूद राजनीतिक पार्टी बनाकर किया। भारत माता की जय का नारा बुलन्द करने वाले केजरीवाल ने अपनी पार्टी में प्रशान्त भूषण जैसे देशद्रोही और विनायक सेन जैसे आतंकवादियों को प्रमुखता दी। दिल्ली विधानसभा के चुनाव में अपने बच्चों की कसम के साथ स्पष्ट घोषणा की कि वे कांग्रेस या भाजपा की मदद से सरकार नहीं बनायेंगे। मुख्यमंत्री बनने के लिये सोनिया की गोद में जा बैठे। यही कारण है कि भ्रष्टाचार की जननी कांग्रेस और उसके हाई कमान मल्लिका और शहज़ादे के खिलाफ़ चुनाव न लड़कर वे मोदी के खिलाफ़ ताल ठोंकने बनारस पहुंच गये। मोदी को हराने के लिये उन्हें आई.एस.आई., सी.आई.ए., नक्सलवादी, आतंकवादी, माफ़िया डॉन किसी का समर्थन लेने से गुरेज नहीं है। जेल में बन्द पूर्वी उत्तर प्रदेश के माफ़िया डॉन मुख्तार अन्सारी के बड़े भाई अफ़ज़ाल अन्सारी से केजरीवाल की लंबी मुलाकातें आखिरकार रंग लाई। मुख्तार अन्सारी कौमी एकता दल के बनारस से प्रत्याशी थे। पिछली लोकसभा के चुनाव में उन्होंने मुरली मनोहर जोशी को बहुत जबर्दस्त टक्कर दी थी। जोशी जी बमुश्किल केवल १७ हजार वोटों से जीत पाए थे। इसबार मुख्तार अन्सारी ने अरविन्द केजरीवाल के समर्थन में बनारस संसदीय सीट से न लड़ने की घोषणा पिछले गुरुवार को कर दी। अब वे घोसी से चुनाव लड़ेंगे जहां आप अपना कोई उम्मीदवार नहीं उतारेगी। केजरीवाल और नापाक राष्ट्रद्रोहियों के बीच गठबन्धन के ये कुछ प्रमाणित नमूने हैं। केजरीवाल कोई लालू, राबड़ी या मुलायम नहीं हैं। उन्होंने आईआईटी, खड़गपुर से बी.टेक. की डिग्री ली है, भारत की सर्वाधिक प्रतिष्ठित सेवा में आला अधिकारी रहे हैं। वे उचित-अनुचित, सब जानते हैं। लेकिन राजनीतिक महत्त्वाकांक्षा और स्वार्थ ने उन्हें दुर्योधन बना दिया है। महाभारत के एक प्रसंग की मुझे अनायास याद आ रही है –

 

महाभारत के युद्ध की तैयारियां अपने अन्तिम चरण में थीं। दोनों पक्ष की सेनायें एकत्र हो चुकी थीं। भगवान श्रीकृष्ण ने शान्ति की आशा फिर भी नहीं छोड़ी थी। समझौते के अन्तिम समाधान के लिये उन्होंने स्वयं पाण्डवों के दूत के रूप में हस्तिनापुर जाने का निर्णय लिया। सूचना प्रेषित कर दी गई। निर्धारित तिथि को हस्तिनापुर की राजसभा को उन्होंने संबोधित किया। उसका प्रभाव भी पड़ा। दुर्योधन, कर्ण, शकुनि और दुशासन के अतिरिक्त सभी उपस्थित सभासदों और भीष्म, द्रोण, विदुर तथा स्वयं धृतराष्ट्र ने भगवान श्रीकृष्ण के प्रस्ताव से सहमति जताते हुए पाण्डवों का राज वापस करने का सत्परामर्श सार्वजनिक रूप से दिया। लेकिन दुर्योधन तो अपने निश्चय पर अटल था। भगवान श्रीकृष्ण एवं सभी सम्मानित जनों की सलाह को किनारे करते हुए उसने उत्तर दिया –

 

“प्रत्येक मनुष्य विधाता की कृति है। उससे कब, कैसे और क्या काम लेना है, विधाता ने ही निर्धारित कर रखा है। मुझे भी ईश्वर ने किसी विशेष प्रयोजन से ही रचा है। हम और आप उसके कार्यक्रम को बदल नहीं सकते। मुझे यह भी ज्ञात है कि क्या धर्म है और अधर्म क्या है। मैंने भी धर्मग्रन्थ पढ़े हैं और गुरु द्रोण से ही शिक्षा पाई है। मुझे यह भी पता है कि क्या उचित है और क्या अनुचित। मैं विधाता की योजना के क्रियान्यवन के प्रति प्रतिबद्ध हूं। अगर विधाता को क्षत्रिय कुल का विनाश मेरे  माध्यम से ही स्वीकार है, तो मैं क्या कर सकता हूं| सबकुछ विधाता पर छोड़कर, जाइये युद्ध की तैयारी कीजिये|’

 

दुर्योधन की तरह केजरीवाल को भी धर्म-अधर्म, उचित अनुचित सबकी पहचान है; लेकिन स्वार्थ और महत्त्वाकांक्षा ने उन्हें अन्धा बना रखा है। उन्हें न अन्ना की सलाह भाती है, न किरण बेदी की। जनता ने अपने तरीके से वाराणसी, हरियाणा और दिल्ली में उन्हें उत्तर देना आरंभ कर दिया है। लोकसभा के चुनाव के नतीजे उनके लिये महाभारत ही सिद्ध होंगे। आखिर उसूलों और मूल्यों की सौदेबाज़ी को जनता कब तक सहेगी।

6 COMMENTS

  1. आर. सिंह जी आप एक दूरदर्शी बुजूर्ग मालूम पड़ते हैं। अरविंद केजरीवाल के विषय में आपकी राय जानकर खुशी हुई। जहाँ एक बुजूर्ग होते हुए भी आप परिवर्तन की बात कर रहे हैं वहीं देश के अधिकांश युवा आज प्रचार माध्यमों एवं लच्छेदार भाषणों से प्रभावित हो गुमराह हो गए हैं। यकीन नहीं होता कि यह भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद और सुभाष चंद्र बोस की वही धरती है। यहाँ के लोग लालू-राबड़ी जैसे नेताओं को सिर पर बैठाने में गर्व करते हैं। उन्हें लगता है कि राबड़ी जैसी घरेलू महिला को विदेश नीति से लेकर सरकार चलाने की हर नीति जानती है, लेकिन अरविंद जैसे एक पूर्व आईएएस को कुछ नहीं पता। जहाँ तक अरविंद के ज्ञान एवं योग्यता का सवाल है, नमो बौने हैं उसके आगे। लगता है युवा खून ठंडा पड़ गया है, शोषण एवं भ्रष्टाचार को आज के युवा एन्जॉय करने लगे हैं। जागो युवा जागो।

  2. गिरे केजरीवाल नहीं ,बल्कि गिर गए हैं वे लोग जिनके आँखों पर भष्मासुर ने पट्टी बाँध दी है.हर टी.वी. चैनल पर विज्ञापन चल रहा है कि सबको भूल जाओ.केवल मुझे याद रखो.अपने उम्मीदवार को भूल जाओ.पार्टी को भूल जाओ याद रखो कि तुम मुझे वोट दे रहे हो.मोदी क्या कृष्ण बन गए हैं? क्या वे सबको गीता का उपदेश दे रहे हैं?मोदी भक्तों, यह कौन सा लोकतंत्र है?एक ओर जहाँ आम आदमी पार्टी ओर अरविन्द केजरीवाल हैं,जो सत्ता को जनता के हाथों सौपने की बात कह रहे हैं , वहीँ वहीँ दूसरी ओर नमो है जो सबकुछ अपने हाथ में करना चाह रहा है.क्यों घास चरने चली गयी है लोगों की अक्ल?क्यों नहीं पढ़ पारहे हैं लोग यह दीवार पर लिखी इबारत ?केजरीवाल पर जो इल्जाम लग रहे हैं,उनकी कोई बुनियाद नहीं है,पर यह चौबीसों घंटों की कान फोड़ आवाज किसी को क्यों नहीं सुनाई पड़ रही है?चौथी दुनिया में एक आलेख में श्री भारत भूषण ने लिखा है कि इंदिरा जो घमंड प्रधान मंत्री बनने के बाद दिखा रही थी,उससे ज्यादा घमंड नमो अभी दिखा रहे हैं,जब प्रधान मंत्री की कुर्सी अभी उनसे कोसों दूर है. रही बात मोख्तार अंसारी के सीट छोड़ने की,तो यह लेखक को भी मालूम है कि उन्होंने सीट किसके लिए छोड़ी हैऔर घोसी किसका क्षेत्र है. लोग आँख रहते हुए भी अंधे हो रहे हैंऔर कान रहते हुए भी वक्त की आवाज नहीं सुन पा रहे हैं ,तो इसका कोई इलाज नहीं. मैं यह भी जानता हूँ कि अगर आम आदमी पार्टी एक सशक्त विपक्ष के रूप में नहीं उभरी तो नमो और उनके सांसद ससद में मनमानी करने के लिए स्वतन्त्र हो जाएंगे और जो भी उनको रोकने की कोशिश करेगा,उसे आइना दिखा देंगे. क्योंकि आज हमाम में सब नंगे हैं.अतः आपलोग कामना कीजिये कि आम आदमी पार्टी कम से कम एक सशक्त विपक्ष के रूप में सामने आये,नहीं तो नमो की भ्रष्ट टीम ओर उनके पक्षधर पूंजीपतियों से देश को कोई नहीं बचा सकेगा.

    • आम आदमी पार्टी का नशा इतना छाया है आप पर कि देश हित का कोई भान ही नहीं है…केजरीवाल, जिसमें देश और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों की समझ नहीं…न ही उसे भारत के पड़ोसी और आतंरिक समस्याओं का बोध, उनके लिए भारी शब्दों का ढिंढोरा पिट रहे हो…..आज भारत उस मोड़ पर खड़ा है जहां सशक्त निर्णय लेने की आवश्यकता है…और यह भारत के पुनरुत्थान का अवसर है…यदि इस बार चुके तो हमारे देश को भारी क्षति का सामना करना पड़ेगा…क्षणिक आकर्षण के बजाय अनुभव और सामर्थ्य को पहचानिए…

      • आपलोग एक बात याद रखिये. भ्रष्टाचार के समर्थक और पूंजीपतियों की बैसाखी के सहारे चलने वाले राजनेता कभी भी सशक्त और जनता के पक्ष में निर्णय ले ही नहीं सकते. इसका पता अभी तुरत चल जाएगा.हो सकता है कि बारह मई के शाम या ज्यादा से ज्यादा १६ मई तक इंतज़ार करना पड़े,जब सी.एन.जी. का दाम दस से पंद्रह रूपये प्रति किलोग्राम बढ़ जाएगा.वह इस वजह से होगा कि के.जी. क्षेत्र के क्रूड गैस का मूल्य दोगुना हो जाएगा. यह तो पहली अप्रैल से ही हो जाता ,पर चुनाव का हवाला देते हुए आम आदमी पार्टी ने इस पर रोक लगवा दी.

        • हाँ भाई। तानाशाह आ भी गया सत्ता में और चला भी रहा है मनमानी। क्या हो गया? क्रूड के दाम बढ़ गए? दवाओं के दाम बढ़ गए? क्या हुआ? कांग्रेस से हर महीने 15 करोड़ क्गाने वाले नेता को 5 सीटें भी न मिलीं। जमानत वाला किस्सा तो याद हो होगा। माफ़ करिए मोदीभक्तों का उओहास करते करते अब छोडूभक्त उपहास का पात्र नजर आते हैं। मोदी जादू की छड़ी नहीं है लेकिन छोड़ू छड़ी भी नहीं है। एक उपलब्धि बता दीजिये उनकी जिंदगी की चाहे वो मारुती हो आइआर एस हो या राजनीती हो। निजी स्वार्थ के लिए कपड़ों की तरह मुद्दे बदलता है ये आदमी। खैर भक्ति जारी रखिये। कहीं चंदे का कुछ भाग मिल ही जाये। बस विद्वता दिखाना बंद करिए

          • मैंने तो रमश सिंह जी को बहुत पहले से चौपाल पर आ बुढ़ापा काटने का परामर्श दिया था| मुझे नहीं मालूम कि महाशय जी चंदे के कुछ भाग की चाह में…

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