पेड़ की हत्या

जब में पेड़ बनके मरता हूँ

मेरे हत्यारे कहीं फरार नहीं होता

वल्कि वह अस्त्र उठाके ऐसे चलता है

जैसे कोई युद्ध जीतके लौटा  है  l

मेरा जब हत्या होता है

वहां कोई अपराध नहीं होता

क्योंकि पेड़ का इनसान जैसा

कोई प्राण  नहीं होता

पेड़ का माँ बाप नहीं होते, कोई अपने नहीं होते

जो पुलिस में हत्या का  कम्प्लेन लिखाए। 

मेरे  जैसे और कई इसी बस्ती में रहते है

जिनके  इनसान जैसा जान नहीं होते

पर लगते हैं इनसान । 

उनके हत्या का क्या कहना

और उनके हत्यारों का क्या करना ?

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माधब चंद्र जेना
माधब चंद्र जेना का जन्म 10 जून 1980 को ओडिशा के जाजपुर जिले के ईशानपुर में हुआ था। इस बहुमुखी लेखक की उल्लेखनीय कृतियों में "अlलोक" "बरशा," "खराबेल ओ फेरीबाला," उड़िया में और "गॉड एंड घोस्ट," "ब्लैक एंड ोथेर्स " और "लेट मी गो टू हेल" अंग्रेजी में शामिल हैं । उनके लेखन ने भाषाई सीमाओं को पार कर लंदन ग्रिप, म्यूज़ इंडिया, इंडियन रिव्यू, द चैलेंज, फेनोमेनल लिटरेचर और द वर्बल आर्ट जैसी प्रतिष्ठित अंग्रेजी पत्रिकाओं के साथ-साथ प्रजातंत्र सप्ताहिकी, आइना, समाज जैसी ओडिया पत्रिकाओं में जगह बनाई है। इसके अलावा उनके शोध पत्र वैश्विक ख्याति की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए, जिनमें स्प्रिंगर, विली और टेलर फ्रांसिस आदि शामिल हैं।

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