जब में पेड़ बनके मरता हूँ
मेरे हत्यारे कहीं फरार नहीं होता
वल्कि वह अस्त्र उठाके ऐसे चलता है
जैसे कोई युद्ध जीतके लौटा है l
मेरा जब हत्या होता है
वहां कोई अपराध नहीं होता
क्योंकि पेड़ का इनसान जैसा
कोई प्राण नहीं होता
पेड़ का माँ बाप नहीं होते, कोई अपने नहीं होते
जो पुलिस में हत्या का कम्प्लेन लिखाए।
मेरे जैसे और कई इसी बस्ती में रहते है
जिनके इनसान जैसा जान नहीं होते
पर लगते हैं इनसान ।
उनके हत्या का क्या कहना
और उनके हत्यारों का क्या करना ?