‘किस आफ लव’ युवा पीढ़ी को बांटने की साजिश

0
186

kiss of love
रमेश पाण्डेय
2 नवंबर 2014 से देश में एक प्रकार का नया उन्माद खड़ा करने की कोशिश की जा रही है। इस उन्माद में एक सोची समझी साजिश के तहत युवा पीढ़ी को बांटने की कोशिश की जा रही है। इसका नाम दिया गया है ‘किस आफ लव’। भारतीय संस्कृति में प्रेम को भगवान का दर्जा दिया गया है। सदियों से हमारे ऋषियों-मुनियों ने बताया है…ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय। इस प्रेम की परिभाषा को पाश्चात्य्स संस्कृति के बढ़ते प्रभाव ने पुन: परिभाषित करने की कोशिश की है। इस बात को देश के नौजवानों को समझना होगा। किस आफ लव के पीछे कतिपय लोगों द्वारा यह तर्क दिया जा रहा है कि यह कुछ दक्षिणपंथी संगठनों द्वारा प्रेमी युगलों के सार्वजनिक स्थलों पर मिलने-जुलने पर पाबंदी लगाने की मांग करने के विरोध का यह एक तरीका है। पर सच्चाई इसके विपरीत है। सबसे दुखद पहलू यह है कि इस कार्य में हमारी पढ़ी-लिखी युवा पीढी शामिल हो रही है। अनपढ़ लोग तो इससे पूरी तरह से दूर हैं। बात 24 अक्टूबर की है जब कोझिकोड (केरल) के कॉफी शॉप की पार्किंग में एक कपल को किस करते देख उन पर हमला कर दिया गया। इसे अनैतिक और सभ्यता के खिलाफ बताया गया। कुछ ही देर में तस्वीरें टीवी पर दिखाई देने लगीं। खास बात यह हुई कि कपल की हरकत को जहां आम लोग एक साधारण बात बता रहे थे तो केरल के बीजेपी कार्यकर्ता और कांग्रेस कार्यकर्ता, दोनों ही इसे अनैतिक करार दे रहे थे। घटना की प्रतिक्रिया में प्रदेश के युवाओं ने 2 नवंबर को खुलेआम किस डे मनाने का फैसला लिया। लोगों से कहा गया कि वे किस आॅफ लव लिख प्लैकार्ड लेकर शाम 5 बजे मरीन ड्राइव (कोच्चि) पहुचें। 2 नवंबर को भारी भीड़ जमा हुई लेकिन उसका विरोध करने के लिए प्रदेश कांग्रेस और बीजेपी के युवा मोर्चा के लोग भी पहुंचे। पुलिस को हालात संभालने के लिए बल प्रयोग के साथ ही गिरफ्तारियां भी करनी पड़ीं। अब तक ‘किस’ का यह आंदोलन केरल तक ही था लेकिन 28 अक्टूबर को अरहम और राहुल नाम के दो युवाओं ने मिल कर फेसबुक पर ‘किस आॅफ लव’ नाम का एक पेज बनाया। इरादा बस अपने गुस्से को लोगों तक पहुंचाना भर था। पहले ही दिन इस पेज पर जब 6000 से ज्यादा लाइक आए तो दोनों ने इस मुहिम को गंभीरता से लेने की ठानी। बस फिर क्या था ‘किस आॅफ लव’ की आग देखते-देखते कई शहरों से होते हुए दिल्ली तक पहुंच गई। इस मुहिम से लोगों के जुड़ने का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि कुछ ही दिनों के भीतर ही इस फेसबुक पेज को लगभग 1 लाख लोग लाइक कर चुके हैं। इस मुहिम को फेसबुक के जरिए परवान चढ़ाने वाले अरहम का कहना है कि लोगों की आजादी के खिलाफ देश की दोनों बड़ी पार्टियों बीजेपी और कांग्रेस के युवा मोर्चा खड़े हो गए हैं। हमने केरल के एडवोकेट्स एसोसिएशन से भी इस बारे में कानूनी सलाह ले ली है और उनके हिसाब से इसमें कोई कानूनी अड़चन नहीं है। उन्होंने तो हमारा समर्थन करने की बात कही है। देश में किसी को भी मॉरल पुलिसिंग का हक नहीं है। यहां तक कि सरकार को भी नहीं। दिल्ली पुलिस के पूर्व कमिश्नर नीरज कुमार का कहना है कि हमें सबसे पहले यह सोचना पड़ेगा कि आखिर इस तरह की मुहिम चलाने की नौबत ही क्यों आती है। हमें यह समझना होगा कि वक्त के साथ-साथ समाज की वैल्यूज भी बदल रही हैं। हम युवाओं पर कुछ भी थोप नहीं सकते। इस तरह के प्रदर्शन प्रतिक्रिया में ही होते हैं। किसी घटना का गुस्सा ही युवाओं को सड़क पर उतरने को मजबूर कर देता है। अश्लीलता का कानून जटिल है और वह वक्त और समाज के हिसाब से बदलता है। पुलिस को कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए अपनी कार्रवाई करनी पड़ती है। जहां तक बात है पश्चिमी सभ्यता और भारतीय सभ्यता की तो वहां पर भी खुलेआम अंतरंग हरकत पर उचित प्रतिबंध हैं और पुलिस एक्शन लेती है। यह सब तो एक पक्ष है। कोच्चि के आयोजन को लेकर कुछ फेसबुक यूजर्स ने के इस प्रोग्राम को रोकने के लिए केरल के कोर्ट में दो याचिकाएं दायर की थीं। कोर्ट ने अदालत को बताया कि प्रोग्राम की निगरानी करने के लिए काफी संख्या में सुरक्षा बल तैनात किए जाएंगे। अगर इस दौरान कोई गैरकानूनी गतिविधि होती है तब कार्रवाई की जाएगी। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश अशोक भूषण और न्यायमूर्ति ए एम शफीक की बेंच ने दोनों याचिकाएं खारिज कर दीं। एनार्कुलम लॉ कॉलेज और तिरूवनंतपुरम के श्री सत्य साई ओरफेनेज ट्रस्ट के स्टूडेंट्स ने ये याचिकाएं दायर की थीं। याचिकाकतार्ओं ने कहा कि यह प्रोग्राम केरल पुलिस अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन है और भारतीय संस्कृति के विरूद्ध भी है। लॉ के ये स्टूडेंट्स चाहते थे कि कोर्ट और एनार्कुलम के डीएम पब्लिक प्लेस पर अश्लीलता को रोकें। इसी बीच केरल के गृहमंत्री रमेश चेन्नितला ने फेसबुक पर लिखा कि वह मानते हैं कि प्रदर्शन का अधिकार मौलिक अधिकार है।उस पर सवाल नहीं उठाया जाना चाहिए और उसे दबाया नहीं जाना चाहिए। फिर भी अगर प्रदर्शनकारी कानून-व्यवस्था के लिए मुश्किलें खड़ी करते हैं तो उन पर बेहिचक कार्रवाई की जाएगी। अन्तत: लोगों के विरोध के चलते 2 नवंबर का कार्यक्रम नहीं हो सका। कोच्चि के बाद कोलकाता के दो विश्वविद्यालयों के छात्रों ने ‘किस आॅफ लव’ का आयोजन किया। केरल में शुरू हुई मुहिम के प्रति एकजुटता दिखाते हुए जादवपुर में एक विरोध रैली में कार्यकतोओं ने धार्मिक कट्टरपंथ और हठधर्मिता के बढ़ने का आरोप लगाया। प्रेजिडेंसी यूनिवर्सिटी के छात्र हाथों में तख्तियां लिये हुए कॉलेज स्ट्रीट पर इंडियन कॉफी हाउस के सामने जमा हुए। जादवपुर यूनिवर्सिटी के मौजूदा और पूर्व छात्रों तथा कुछ बाहरी लोगों सहित 300 से ज्यादा कार्यकर्ता 5 नवंबर की दोपहर जादवपुर पुलिस थाने की ओर गए। वहां जाकर वे गले मिले, चुंबन लिया और ‘आमार शोरीर आमार मोन बोंधो होक राज शासन’ (यह मेरा शरीर है, मेरा दिमाग है, मैं मॉरल पुलिसिंग की अनुमति नहीं दूंगा) जैसे नारे लगाए। अपनी दोस्त सुचित्रा का चुंबन लेने वाली पीएचडी की छात्रा सायंतनी ने कहा, अपनी स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की आजादी के दमन के खिलाफ विरोध करने का समय आ गया है। मैं आजादी चाहती हूं कि किसे और कहां पर चूम लूं। इससे किसी को मतलब नहीं होना चाहिए। चुंबन विरोध का सबसे अच्छा तरीका है, इसलिए हम नैतिकता का पाठ पढ़ाने वालों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं। हम उनके साथ कोई टकराव नहीं चाहते इसलिए हम प्यार का संदेश फैलाने की कोशिश कर रहे हैं। एक और छात्र ने कहा, यह प्रदर्शन कोच्चि से शुरू हुए आंदोलन के प्रति हमारी एकजुटता दिखाने के लिए है। हम दिशा-निर्देश के लिए कोच्चि के आयोजकों के साथ हैं। अंग्रेजी साहित्य की तीसरे वर्ष की छात्रा रोनिता सान्याल ने कहा, हो सकता है कि इससे चीजें न बदलें, लेकिन हम कोशिश करते रहेंगे। हम नफरत और असहिष्णुता की संस्कृति के खिलाफ आगे बढ़ रहे हैं। आयोजकों के मुताबिक यह प्रदर्शन महाराष्ट्र में एक दलित लड़के की ऊंची जाति की एक लड़की के साथ संबंधों के चलते लड़के और उसके अभिभावकों की कथित हत्या की घटना के विरोध में आयोजित किया गया। प्रेजिडेंसी यूनिवर्सिटी के पीएचडी के एक छात्र ने कहा, किस आॅफ लव राज्य में ऐसी प्रवृतियों के महत्व को रेखांकित करने के लिए है। साफ है कि इस तरह के दमन के खिलाफ तुरंत विरोध की आवश्यकता है। कोच्चि से शुरू हुई ‘किस आॅफ लव’ की यात्रा कोलकाता होते हुए अब देश की राजधानी नई दिल्ली आ पहुंची है। ‘किस आॅफ लव’ के दिल्ली चैप्टर के फेसबुक पेज के अनुसार शनिवार 8 नवंबर को नई दिल्ली में आरएसएस के आॅफिस के सामने इसका आयोजन होगा। फेसबुक पेज पर दी गई जानकारी के अनुसार यह आयोजन झंडेवालान मेट्रो स्टेशन के पास आरएसएस के आॅफिस के सामने शाम को 4 बजे होने की बात कही गयी। इसके साथ ही एक संदेश भी है जिसमें ‘संघी गुंडे होशियार, तेरे सामने करेंगे प्यार’ लिखा गया। निर्धारित कार्यक्रम के अनुरुप किस आफ लव के अनुयायियों ने यहां भी जुटना शुरु किया, पर विरोध के चलते पुलिस ने उन्हें वहां से खदेड़ दिया। यह तो अभी कुछ उदाहरण सामने आए हैं, पर ऐसे ही रहा तो देश की युवा पीढी को बांटने से कोई रोक नहीं सकेगा। नौजवानों को इस समस्या पर मंथन करने के साथ ही सार्थक पहल करने की जरुरत है।

1 COMMENT

  1. युवा पीढ़ी में उच्छ्रंखल आचरण और दैहिक स्वतंत्रता की ज़िद भारतीय सांस्कृतिक संक्रांति का काल है । यह विचारणीय है कि सामाजिक मर्यादाओं में ऐसी अनास्था आख़िर उत्पन्न ही क्यों हुयी ? युवा पीढ़ी के दिग्भ्रमित होने के पीछे हमारी अपनी क्या और कितनी भूमिका है ? आगे क्या करना है ? क्या इन्हें प्रयोग की स्वतंत्रता दे दी जाय या फिर कड़े कानून बनाये जायं ? शिक्षित युवासमुदाय के अपने तर्क हैं, उनकी अपनी सीमायें हैं, अपनी परिभाषायें हैं, उन्हें समझाया नहीं जा सकता ।
    हमारी तरफ़ से फ़िलहाल एक शर्त के साथ इन्हें दैहिक उच्छ्रंखलता की सावधिक स्वतंत्रता प्रायोगिक तौर पर दे दी जानी चाहिये । शर्त है कि चुम्बन लेने वाले जोड़ॆ अपने पूरे परिवार के साथ चुम्बन लेने आयें । युवा लड़के और लड़कियाँ अपने भाइयों-बहनों, माताओं-पिताओं को भी अन्य लोगों का चुम्बन लेते-देते हुये साक्षात देखें । लड़के देखें कि कोई उनकी बहन या माँ का चुम्बन उनके सामने ले रहा है जिसे सड़क चलते अन्य लोग भी देख रहे हैं ।

  2. क्या यह लव ऑफ़ किस चलाने वाले अपनी बहन , अपने परिवार के अन्य सदस्य को भी इतनी अनुमति देंगे ?यह कोई युवा आंदोलन नहीं , महज एक जिद है ,यदि किसी का कोई प्यार है तो उसे सार्वजनिक रूप से किस कर दिखाना जरुरी है? पाश्चात्य देशों में भी कुछ मर्यादाएं हैं, जहाँ से इन तथाकथित आधुनिक वादियों ने इस विचार का आयात किया है समाज में रह कर मर्यादाओं का पालन करना बंधन नहीं है वैसे भी सार्वजनिक रूप से यह कर क्या वे यह जताना चाहते हैं कि उनमें बहुत प्यार है ?यदि ऐसा है तो वह भी गलत धारणा है पश्चिम में परिवारिक बिखराव का एक कारण यहभी रहा है जब कि छोटी उम्र से यह सब पर उनमें विलगता आ जाती है, इस का अंतिम अंजाम लड़कियों को ही भुगतना पडता है

Leave a Reply to mahendra gupta Cancel reply

Please enter your comment!
Please enter your name here