कविता

श्रम सस्ता और ज्ञान महँगा है

–विनय कुमार विनायक

श्रम सस्ता और ज्ञान महँगा है

इससे ही आज देश चल रहा है

एक श्रमिक आठ घंटे कठिन काम कर

साढ़े तीन सौ रुपए कमाई कर लेता

जिससे दो जून की रोटी मिल जाती

मगर दो सौ रुपए किलो टमाटर

सौ रुपए किलो मूली गाजर हरी मिर्च सब्जी

कोई श्रमिक नहीं खरीद पाता

इसके उलट पढ़े लिखे बाबू अधिकारी

कम से कम दो हजार दैनिक कमाई करता

जिससे आटा चावल हरी सब्जी टमाटर

मांस मछली वाहन के लिए पेट्रोल खर्च

और बच्चों की पढ़ाई के अलावे

इतना अवश्य बच जाता कि श्रमिक को

मात्र साढ़े तीन सौ रुपए रोज मजदूरी देकर

एक आलीशान भवन निर्माण करा लेता

इस सबके बावजूद सरकारी सेवक ईमान बेचकर

भ्रष्टाचार घूसखोरी से ऊपरी कमाई करता

घूसखोरी सौ में नहीं हजारों लाखों में होती  

ये ऊपरी कमाई भारतीय सभ्यता संस्कृति

और विरासत से नहीं आई

सरकारी मुलाजिम की ये ऊपरी कमाई

विदेशी गुलामी के दौर में उपजी

ये ऊपरी कमाई वर्ण और जाति से परे

भ्रष्टाचार के मामले में ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र

सबका चरित्र एक जैसा हो गया

सबके सब हाथ पसार कर घूस मांग लेते

जबकि भारतीय संस्कृति में

दान दक्षिणा मांगने का काम याजक ब्राह्मणों का था

दान में पुरोहित गोधन स्वर्ण कन्या भी मांग लेता था

भारती संस्कृति में क्षत्रिय वैश्य अपने पिता के सिवा

किसी के आगे हाथ नहीं फैलाते थे

शूद्र के लिए श्रम के अलावे कोई चारा नहीं था

मगर आज तीनों द्विज वर्ण; ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य

सबके समक्ष हाथ पसारकर घूस मांगते

आज तीनों द्विज वर्ण बिना मूँछ के सफाचट हो गए

अब मूँछ नहीं उमेठी जाती मगर चंदन तिलक लगाते

चंदन तिलक लगाने वाले सरकारी कर्मी अक्सर घूस लेते!

—विनय कुमार विनायक