हिमाचल शिक्षा बोर्ड में अब भाषा घोटाला

veerbhadraडा० कुलदीप चन्द अग्निहोत्री

              हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला शहर में प्रवेश करने से पहले एक ख़तरनाक मोड़ आता है । यह अन्धा मोड़ है । इतना अन्धा कि इस पर कभी भी दुर्घटना हो सकती है । इसी अन्धे मोड़ पर हिमाचल स्कूल शिक्षा बोर्ड का कार्यालय स्थित है । वैसे तो यहाँ लोगों ने स्वयं ही चेतावनी पट लटका रखा है , सावधानी हटी -दुर्घटना घटी । लेकिन शिक्षा बोर्ड जो सारे हिमाचल को पढ़ाने का दावा करता है , स्वयं इस चेतावनी को पढ़ नहीं पाता । यही कारण है कि बोर्ड में आये दिन ख़तरनाक दुर्घटनाएँ होती रहती हैं । लेकिन क्योंकि ये दुर्घटनाएँ शिक्षा मंदिर के भीतर होती हैं , इसलिये इसके परिणाम भी सामान्य दुर्घटनाओं से भयंकर होते हैं । 
                कुछ साल पहले बोर्ड में नक़ली प्रमाण पत्र देने की ज़बरदस्त दुर्घटना हो गई थी । नक़दी के हिसाब से छात्रों को बिना परीक्षा दिये , प्रथम द्वितीय या तृतीय श्रेणी के प्रमाण पत्र जारी करने की एक नई परम्परा का उद्घाटन बोर्ड ने किया था । उसका उद्घाटन बाकायदा राज्य सरकार के ही एक मंत्री ने अपनी बिटिया को प्रथम श्रेणी से भी आगे का प्रमाण पत्र जारी करके किया था । उस प्रमाण पत्र के आधार पर बिट्टो ने दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया था । यह अलग बात है कि बाद में यह दुर्घटना पकडी गई थी और बोर्ड की बहुत छीछालेदर हुई थी । पर जब एक बार बोर्ड की इस नई योजना का मंत्री ने विधिवत उद्घाटन कर दिया तो ज़ाहिर है उसका लाभ आम जनता भी उठाती । बहुत से छात्र छात्राओं ने इसका लाभ उठाया भी लेकिन धीरे धीरे पूरी योजना एक घोटाले में तब्दील हो गई । इस समाजवादी योजना को पूँजीवादी शक्तियों ने हाईजैक कर लिया । सर्वहारा वर्ग का एक युवक प्रथम श्रेणी की डिग्री लेना चाहता था , लेकिन उसके पास पैसे तृतीय श्रेणी की डिग्री ख़रीदने के ही थे , जबकि उसका दूसरा साथी मज़े में प्रथम श्रेणी की डिग्री गले में लटका कर घूम रहा था । इसी वर्ग चेतना ने बोर्ड में भी समता मूलक व्यवस्था की स्थापना के लिये आबाज बुलन्द कर दी और मामला पुलिस तक पहुँचा । इसे मीडिया ने डिग्री घोटाला कहा । 
                लेकिन इस बार शिक्षा बोर्ड ने एक नये प्रकार का घोटाला किया है । यह भाषा घोटाला है । बाद में मीडिया इसका अपने हिसाब से नया नामकरण भी कर सकता है । शिक्षा बोर्ड प्रदेश के भावी अध्यापकों की पात्रता जाँचने के लिये 'शिक्षक पात्रता परीक्षा' का आयोजन कर रहा है । यह होना भी चाहिये । शिक्षक ही तो देश की भावी पीढ़ी को ज्ञानवान बनायेंगे । उनकी अपनी पात्रता शुरु में ही जाँच लेनी चाहिये । लेकिन बोर्ड ने इस आयोजन में शामिल होने के लिये एक शर्त लगा दी है । शर्त थोड़ी टेढ़ी है । जैसा कि मैंने शुरु में ही संकेत किया था , बोर्ड स्वयं भी तो टेढ़े मोड़ पर ही आसन जमा कर बैठा है । इसलिये टेढ़ी शर्त नहीं लगायेगा , तो शिक्षा बोर्ड कैसे कहलायेगा । बोर्ड का यह भी आदेश है कि जो इस शर्त को नहीं मानेगा उसे परीक्षा में बिठाये बिना ही मृत घोषित कर दिया जायेगा । बिना परीक्षा लिये उसे अपात्र घोषित कर देने का यह फरमान तुगलकी ही कहलायेगा । लेकिन बोर्ड इसे अपनी मैनेजमैंट कहता है । जो पहली शर्त ही मानने को तैयार नहीं है , वह आगे जाकर अपनी रीढ़ की हड्डी सरकार के हुकुम  अनुसार झुका लेगा , इसका क्या भरोसा ? शर्त यह है कि जिसने पात्रता परीक्षा के आवेदन पत्र पर हिन्दी भाषा में कुछ लिख दिया , तो उसके आवेदन पत्र को मृत घोषित कर दिया जायेगा । शायद बोर्ड का लिपिक उस आवेदन पत्र पर कुछ इस प्रकार की टिप्पणी लिखेगा, हिन्दी का करंट लगने से यह आवेदन पत्र नियमानुसार मृत हो गया है । इसलिये इसे दाख़िल दफ़्तर किया जाता है ।' बोर्ड के डिग्री घोटाले और इस भाषा घोटाले में एक और भी भारी अन्तर है । डिग्री घोटाला , मंत्री महोदय द्वारा उद्घाटन कर दिये जाने के बावजूद भी छिप छिप कर पिछवाड़े में चलाया जाता था । लेकिन भाषा घोटाले तक आते आते बोर्ड ने इतनी लोकलाज भी त्याग दी है । उसने अध्यापक पात्रता परीक्षा की विवरणिका में ही साफ़ साफ़ लिख दिया है कि आवेदन पत्र अंग्रेज़ी भाषा के अतिरिक्त किसी अन्य भाषा में भरा गया तो इसे मृत घोषित कर दिया जायेगा । 
            वैसे केवल रिकार्ड के लिये बता दिया जाये कि हिमाचल प्रदेश की राजभाषा हिन्दी है और इसके लिये प्रदेश की विधान सभा ने बाकायदा राजभाषा अधिनियम पारित किया हुआ है । प्रदेश सरकार का भाषा विभाग लाखों रुपये इस बात पर ख़र्च करता है कि राज्य में हिन्दी में काम किया जाना चाहिये । लेकिन ये सारी बातें बोर्ड के ठेंगे पर । बोर्ड द्वारा पात्र घोषित कर दिये गये सभी अध्यापक जिन स्कूलों में पढ़ायेंगे , वहाँ सभी बच्चों की शिक्षा का माध्यम हिन्दी ही है । लेकिन बोर्ड आवेदन पत्र तक हिन्दी में भरने की इजाज़त देने को तैयार नहीं है । क्या ऐसा नहीं हो सकता की बोर्ड का चेयरमैन नियुक्त करते समय उसकी पात्रता भी जाँच ली जाये ? बोर्ड रिटायर हो चुके बाबुओं की गऊशाला है या फिर शिक्षाविदों के प्रयोग करने की प्रयोग स्थली ? यह मूल प्रश्न है जिस पर विचार किया जाना जरुरी है । जब सारी उम्र सरकारी सचिवालय में बाबूगीरी करते करते किसी का मौलिक चिन्तन और चिन्तन करने की क्षमता समाप्त हो जाने पर , शिक्षा बोर्ड को पुरानी चीज़ों का अजायबघर मान कर , किसी को भी नियुक्त कर दिया जाये तो भाषा घोटाले तो होगे ही । क्या वीरभद्र सुन रहे हैं ? भाजपा भी सुन रही है क्या ? उसे नहीं लगता कि इस मुद्दे पर भी आन्दोलन चलाया जा सकता है ?

1 COMMENT

  1. गुड,अब तक यह शिक्षा क्षेत्र व राज्य ही ही तो बचे था.चलो अच्छा हुआ इस राज्य ने भी देश के आदर्शों को अपना नाम कमा लिया.

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