कानून का छलावा और छलती स्त्री

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-राखी रघुवंशी

मेरे पड़ोस में एक संभ्रात महाराष्ट्री ब्राहण परिवार रहता है। एक रात करीब दो बजे बहुत शोर से मेरी आंख खुल गई। थोड़ा ध्यान से सुना तो मालूम हुआ कि पति पत्‍नी को पीट रहा है। कारण सिर्फ इतना ही कि पत्‍नी ने पति को शराब न पीने के लिए बोला। ये लोग धन संपन्न हैं और शिक्षित परिवार भी है क्योंकि दो बच्चों के बाद भी पत्‍नी बी.एड. कर रही है। लेकिन आये दिन उनके घर से मार पीट और गंदी गालियों की आवाज़ें हमें मिलती ही रहतीं, साथ ही उनके बच्चों की दबी सिसकियां और सहमी नज़रें कभी अपने पिता के वहशीपन को देखतीं, तो कभी अपनी मां की बेवसी पर रोतीं। सास भी बहू को ही चुप रहने के लिए बोला करतीं, ताकि मामला रफा-दफा हो जाए। एक दिन तंग आकर मैंने उन्हें सुनाते हुए कहा कि ये स्थिति बहुत बुरी है और आपको इसका विरोध करना चाहिए। विरोध की बात सुनकर उन्होंने कुछ नहीं कहा।

मैं समझ गई कि विरोध के रूप में उनके पास विकल्प नहीं है। क्योंकि हमारे समाज में ये धारणा ही बन चुकी है कि विरोध यानि पत्‍नी पति से अलग रहे मतलब तलाक, जो किसी भी स्त्री के लिए बहुत ही बुरा अनुभव होता है। आज भी तलाकशुदा महिला को लोग अच्छी निगाह से नहीं देखती। इसके पीछे सोच यही है कि अगर आप तलाकशुदा हैं तो आपके ही आचरण में कमी है। इस स्थिति में पुरूष बेदाग छूट जाता है, क्योंकि वो पुरूष है और इस पितृसत्तात्मक समाज में उसे कुछ भी करने की छूट है। लेकिन महिला के लिए ये मुमकिन नहीं है। विरोध किस तरह करना है इस पर मैंने कहा कि ज्यादा कुछ नहीं करना, जब भी आप पर हाथ उढाया जाए, आप पलटकर अपनी पूरी ताकत से केवल एक तमाचा उसे भी मारिए। यकीन मानिए ये तमाचा उसके शरीर पर नहीं बल्कि आत्मा और अहम पर पडेगा। वैसे भी वे तो रोज़ ही आपको मारते हैं, ऐसा करने से उसके अहम को बहुत ढेस पहुंचेगी!

घर और परिवार दो ऐसे शब्द जो किसी भी व्यक्ति को सुरक्षा और सुकून का अहसास दिलाते हैं, लेकिन जब घर के अपने, भरोसे और प्यार की दीवार को गिराकर अपनों को ही प्रताड़ित करने लगते हैं, तो यह शांति का घरौंदा इतना हिसंक और घिनौना हो जाता है कि उसमें दम घुटने लगता है। अमूमन ऐसी प्रताड़ना की शिकार महिलाओं को ही होना पड़ता है क्योंकि वे घर की चारदीवारी के भीतर शारीरिक ताकत में पुरूषों से कमजोर पड़ जाती हैं। मर्द अपनी इसी ताकत का फायदा उढाकर छोटी छोटी बात का गुस्सा भी मार पीट से उतारता है। घर और परिवार की इज्जत के खातिर महिला स्वयं इसकी शिकायत नहीं कर पाती और पुरूष समझता है कि वह कमजोर हैं।

लेकिन उसे यह भी समझना चाहिए कि वह कमजोर नहीं है बल्कि उसी पुरूष की इज्जत के लिए चुप है, जिस पर वह जुल्म ढाता है और उसके इस जुर्म में साथ देतीं हैं उसी घर की दूसरी अन्य स्त्रियां! कैसी विड़ंबना है कि एक स्त्री दूसरी स्त्री का दर्द जान बूझकर अनदेखा कर रही है। परिणामस्वरूप आज हर तीसरी विवाहित महिला घर के भीतर की हिंसा को खामोशी से झेल रही है। शोषण के दो रूप होते हैं। पहला, प्रत्यक्ष रूप से होने वाला शारीरिक शोषण और दूसरा है मानसिक शोषण।

हालांकि शोषण का हर रूप स्त्री के लिए घातक है। शारीरिक में जहां शरीर के घाव उसे पति के व्यवहार की हमेशा याद दिलाते है, वहीं मानसिक शोषण भी महिला के दिमाग पर सीधा असर डालता है। अपने घर में अपनों के हाथों पिटने, ज़लील होने और मर्दाना ताकत के आगे घुटने टेक, पुरूष के हर अत्याचार को अपना नसीब मानकर चलने की रिवायत लंबे अरसे से चली आ रही है। लेकिन सोचने के बात यह है कि इस घिनौनी प्रवृति में दिनोंदिन बढ़ोतरी होती जा रही है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरों के मुताबिक, वर्ष 2000 में अगर औसतन बारह महिलाऐं घरेलू हिंसा का शिकार होतीं थीं, तो 2005 में इनकी संख्या 60 हो गई।

कुछ समय तक यह आम धारणा थी कि महिलाओं पर हाथ उढाने की घटनाएं केवल अशिक्षित और निम्नवर्ग में अधिक होती हैं। लेकिन आंकड़ों से पता चला कि पत्नी पर बात बात में हाथ उढाने की प्रवृति केवल निम्न या मध्य वर्ग तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इनकी संख्या उच्च-मध्यम वर्ग में भी कम नहीं। जबकि अभिजात तबके की महिलाऐं निम्न वर्ग की तुलना में खामाषी से शोषण को झेलती हैं। यहीं नहीं मध्यम और उच्च वर्ग में मारने पीटने के अलावा बात बात पर ताना-उलाहने से लज्ज्ति कर साथ मानसिक शोषण की घटनाएं भी देखने में आ रही हैं। दो साल पहले के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे के अनुसार, चौवन प्रतिशत यानी आधी से अधिक पत्‍नीयों का मानना है कि किन्हीं विशेष कारणों से पति का पीटना न्यायोचित है। इकतालीस फीसद महिलाऐं मानती हैं कि अगर वे अपने ससुराल वालों का अपमान करती हैं, तो पति पीटने के हकदार है और पैंतीस फीसद का मानना है कि अगर वे घर और बच्चों की उपेक्षा करती हैं ,तो पति का पीटना जायज है।

महिलाओं को चारदीवारी के भीतर पुरूषों के बनैले रवैये से निजात दिलाने और घरों अंदर की हिंसा को कानूनी दायरे में लाने की दृष्टि से अक्तूबर 2006 में ‘घरेलू हिंसा से महिलाओं को सुरक्षा अधिनियम-2005’ लागू किया गया है। महिलाओं को घर-परिवार में समान हक दिलाने के लिहाज से यह एक बेहद ही सशक्त अधिनियम है। इसमें पीड़ित महिलाओं के सभी पहलूओं को कवर करने की कोशिश की गई है।

विधेयक की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें पीड़ित महिला अपने वैवाहिक घर या जिस घर में वह आरोपी के साथ रह रही थी उसमें रहने की हकदार बनी रहती है।

इस प्रावधान के मुताबिक, आरोपित को पीड़िता को घर से निकालने का कोई अधिकार नहीं रहता। लेकिन कानून बेहतर होने के बाबजूद महिलाओं को इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है। इसका एक बड़ा कारण इसके अमलीकरण की प्रक्रिया में आने वाली बाधाएं हैं। जैसे कानून को लागू करने में संसाधनों की कमी है। घरेलू हिंसा के मामलों को निपटाने के लिए अतिरेक न्यायालय और न्यायाधीशों की जरूरत है। कानूनी सहायता प्रदान करने के लिए पर्याप्त संख्या में सुरक्षा अधिकारी भी मौजूद नही हैं। पिछले दिनों दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने स्वयं कहा था कि घरेलू हिंसा के मामलों के लिए सुरक्षा अधिकारियों की कमी है। केवल कानून बनाने से कुछ नहीं होगा, उसके अमल के लिए सरकार को बजट भी बढ़ाना होगा और जागरूकता फैलाने के प्रयासों को प्रोत्साहित करना होगा। साथ ही शिकायत करने वाली महिला को इस बात का पूरा आश्‍वासन मिलना चाहिए कि शिकायत करने के बाद भी पति के घर में उसे जगह मिलेगी। क्योंकि ज्यादातर महिलाएं शिकायत करने से इसीलिए पीछे हट जाती हैं कि अगर शिकायत की, तो फिर वापस घर नहीं जा पाएगी।

5 COMMENTS

  1. नारी शोसन के प्रकार एवम उस से सम्बंदित दंडनीय कानून की सूची हमें भेजने का प्रयास करे !

  2. Baat to sahi hai, aurton par kai jagah aisa hota hai. Unkey paas koi option bhi nahi hota kionki woh fullly depend hoti hai mardpar par is article mein eik baat sahi kahi ko roz marta hai to eik din aurat ko bhi laga dena chchiyee

    par agar ap doosra point of view dekhney to kai baar womens itni modern ho jati hai ki unmein Indian zinda hi nahi bachta

    BETER OPTION IS STAY ALWAYS IN YOUR LIMITSSSSSSSSSS

  3. राखीजी, अभिषेक पुरोहित जी के विचारों को पढें, और सोचे। समस्या का विवरण समाजको विघटित करे, ऐसा ना किया जाए।और,निजी भडास निकालनेके लिए भी ना लिखा जाए। वैमनस्य को घटाना है, बढाना नहीं है। और बनपाए तब तक, समस्याको सुलझानेकी दिशामें लिखनेका प्रयास हो।
    बहुत बार जो भी लेख पढता हूं,(उदा: भ्रष्टाचार, महिलाओंकी स्थिति इत्यादि) उसमें, समस्याका विवरण ही विवरण होता है, जिसकी वास्तवमें सभी को न्यूनाधिक जानकारी होती है।
    हर राजनैतिक पार्टीका और स्वयंसेवी संस्थाका,और लेखोंका, विशेष योगदान तो,समस्या के समाधान की दिशा में, या संभवतः क्रियान्वयन की दिशा में, ठोस कार्यवाही ही होता है; जिसके कारण हमारी आनेवाली कल सुधर जानेकी संभावना बढ जाती है।(विवेकानंदजी इसी निकषसे विकास को नापते हैं)
    एक प्रश्न: किसी स्वयंसेवी संस्थाका संपर्क करना संभव नहीं था क्या?
    एक हितैषिके नाते लिखा है।

  4. apaki soch apake pahali line se hi spst ho jati he,age kya tippani karu???brahman parivar or vo bhi khule am sharab pine vala ????kise bevakuf bana rahi he??agar ap pahli line me brahman shabd hatha kar ek smbhrat shbd hi rakhati to samajh me ata ap vakei me nari ke prati samvedanshil he par nari ke darshtikon me “jati” ko jod kar apane ye sidh kar diya ki nari bhi jati me hi vibhajit he tatha ek brahaman ke gar ki nari ka shoshan ek dusari jati ke nari se bhinn he????jaha tak pitane v marane ka saval he vo bahut hi galat he,or garelu hinsa ke adhiniyam ke antrgat vese bhi dandaniy apradh he,apako chahiye tha ki us pidit mata ji ko yah niyam batati,ya fir usake parivar valo ko bulati or us vakti ko samajhane ko kahati adhi adhi,ye sab to mene ese hi likh diya kyuki apane pahale brahman par comment kiya tha es liye.
    vese ek bat or batu brahman hone ke nate,agar koe brahaman sharab ka shevan karata he to vo samaj ki najaro me apana brahman pana khochu hota he agar vah apani patni ko marata bhi he to ye man ke chaliye us mahila ke pihar vale or samjhadar sasural vale pati ko etana damkate he ki use ya to mafi mangani padati he ya fir talak lena padata he.
    baki ye bahut sahi likha kisi prakar ki hinsa parivar me band honi chahiye chahe vo kanun se band ho chahe vo shiksha ke dvara.brahaman sabd ko chhod kar lekh bahut achchhha tha.

  5. राखी जी की चिंता जायज है. महिलाओ के साथ सभी जगह बहुत अत्याचार हो रहे है. समाज में बहुत बदलाब आया है. महिलाये जागरूक हुई है. आकडे भले हे बढ़ रहे हो किन्तु समाज में महिलाओ पर आत्याचार में कमी आई है कारन महिलाओ का अपने अधिकारों के प्रति सजग और सशक्त होना. आकडे बढ़ने का कारन महिलाओ का जागरूक होना ही है जो प्रतिरोध दर्ज करा रही है.

    महिलाओ को खुद को मजबूत बनना होगा. दृढ निश्चय के द्वारा वे अत्याचार का सामना कर सकती है. महिलाये अगर सोच ले की किसी महिला पर अन्याय नहीं होने देंगी निश्चहित ही तो अन्याय नहीं होगा क्योंकि अधिकतर मामलो में महिला ही महिला के अत्याचारों के पीछे होती है.

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