कविता राजनीति व्यंग्य

नेता  चालीसा

-रवि श्रीवास्तव-

politics

जय जय भारत देश के नेता       तुम्हरी  चालाकी से न कोई जीता

तुम हो देश के भाग्य विधाता ,     देश को लूटना तुमको आता

 

तुम्हरे हाथ में देश की सत्ता         मिलता है सरकारी भत्ता

महंगाई के तुम हो दाता,,           इसके सिवा और कुछ भी न आता

 

घोटाले पर करते घोटाला ,             छिनो गरीबों के मुंह  का निवाला

देश के सारे भ्रष्टाचारी                    करते नित दिन पूजा तुम्हारी

 

कानून  को अपने जेब में रखते,        सब कुछ अपने मन का करते

देश बना है तुम्हरा खिलौना ,          तुम ही सर्वे सर्व हो न

 

वोट मांगने घर घर जाते ,               लोगों से फिर हाथ मिलते

झूठे वादे लोगों से करना                  मंच लगाकर भाषण देना

 

जीत के बाद  तुम न पहचानो            एहसान  जनता का न तुम मानों

सीखे तुम से ये सब कोई ,               तुम्हरे छल से जनता रोई

 

जाति समर्थन पूरा करते ,                जिससे कितने दंगे भड़के

दया नहीं है तुम्हरे दिल में ,           जनता पड़ी बड़ी मुश्किल में

 

देश के अन्दर रौप है चलता ,         दीन दुखी बस हाँथ है मलता

एक दूसरे पर कसते ताना ,            ३२ रूपये में अच्छा खाना

 

सरकारी गाड़ी में चलना                   पब्लिक को तो मूर्ख है जाना

संसद में करते हो लड़ाई ,               अपनी पार्टी की करते बड़ाई

 

गुन्दन के तुम हो रखवारे ,              ये तो जीते तुम्हरे सहारे

भीड़ चालत है तुम्हरे पीछे ,             देश का विकास जा रहा है नीचे

 

तुम्हरा हाथ जे पर रख जावे ,          कंगाली से वह तर जावे

जो यह पढ़े नेते चालीसा ,              बन जाये वो तुम्हरे  जैसा

इन नेताओं ने तो लूटा अपन देश , जनता रोये महंगाई पर कहा से करे  निवेश