आओ वामपंथ से प्‍यार करें!

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-समन्वय नंद

“मैं बाबा रामदेव को प्यार करता हूँ। मोहन भागवत को भी प्यार करता हूँ। मदर टेरेसा, सोनिया गांधी, मनमोहन सिंह, प्रकाश कारात को भी प्यार करता हूँ। ” लेकिन लाखों सालों से निरंतर चली आ रही की भारत की महान परंपरा व संस्कृति से घृणा करता हूं। इसके खिलाफ लिखने के लिए मैं दिन रात एक कर देता हूं।

जब तक योग-प्राणायाम हिमालय के गुफाओं में रहें तब तक मैं उसे बेहद प्यार करता हूं। लेकिन जब वह बाहर आ जाए, आम लोगों की भलाई में उसका उपयोग हो, बहुराष्ट्रीय दवा कंपनियों को उससे चुनौती मिले, तो मैं उससे घृणा करने लगता हूं। मैं चाहता हूं कि वह गुफाओं के अंदर ही बंद रहें। अगर कोई योगी आयुर्वेद को लोगों के बीच पहुंचाने का प्रयास करे और सफल हो तो मैं उसे घृणा करता हूं। केवल इतना ही नहीं उसके खिलाफ अनाप शनाप बोलता हूं। कभी उन दवाइयों में मांस मिले होने का आरोप लगाता हूं। नहीं तो ट्रेड यूनियन के माध्यम से उस फैक्ट्री में हडताल कराने का प्रयास करता हूं।

मैं बहुराष्ट्रीय कंपनियां की व स्टेट की नव उदारवादी नीतियों से घृणा करता हूं। लेकिन पश्चिम बंगाल की बुद्धदेव भट्टाचार्य़ सरकार द्वारा नंदीग्राम व सिंगुर में आम किसानों पर अमानवीय अत्याचार के खिलाफ मुझे कतई घृणा नहीं है बल्कि मैं उससे सही बताता हूं। क्योंकि यहां सरकार टाटा कंपनी के लिए जमीन देकर राज्य को विकास के पथ पर अग्रसर करना चाहती है। कुछ लोग बिना मतलब के इस अमानवीय अत्याचार का विरोध करते रहते हैं। बहुराष्ट्रीय कंपनियां व नव उदारवादी नीतियां तब तक मेरे लिये घृणा के योग्य हैं जब तक वे मेरे विरोधी विचारों के लोगों द्वारा किये जा रहे हों। लेकिन “सर्वहारा” वर्ग की वामपंथी सरकार द्वारा, वामपंथी कार्यकर्ताओं द्वारा दलित, शोषित, पीडितों का उत्पीडन मेरी दृष्टि से बिल्कुल उचित है।

आप ने अतीत में रुस में देखा होगा लेनिन व स्टैलिन द्वारा जहां करोडों लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया। चीन में सांस्कृतिक क्रांति के नाम पर कितने करोडों लोगों की बेरहमी से हत्या कर दी गई।

मैं साम्यवाद विरोधी करोडों लोगों की हत्या का समर्थन करता हूं लेकिन मैं “फासीवादी” नहीं हूं। मैं विचारभिन्नता का भारत में समर्थन करता हूं लेकिन चीन में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता न होने का समर्थन करता हूं।

किसी भी हिन्दुत्ववादी के किसी भी अच्छे बयान की भी निंदा करता हूं लेकिन इमाम बुखारी द्वारा पत्रकार के खिलाफ सरेआम बदसलुकी के खिलाफ मैं कुछ नहीं लिखता। क्योंकि अगर मैं उसके खिलाफ लिखूं तो फिर मैं कैसे धर्मनिरपेक्ष रह जाउंगा। मेरा धर्मनिरपेक्ष बने रहने का पारामिटर भी देशद्रोहियों के पक्ष में लिखना है। देशद्रोहियों का समर्थन करना, देशद्रोहियों के पक्ष में लिखना मैं पसंद करता हूं। साथ मै यह भी चाहता हूं कि देश का कोई भी व्यक्ति मेरे खिलाफ कोई टिप्पणी न करे।

मैं राष्ट्रवाद से घृणा करता हूं। लेकिन चीन से मुझे बेहद प्यार है। जब चीन भारत पर हमला करता है तो मैं कहता हूं कि “बकवास बंद करो, चीन ने नहीं भारत ने चीन पर हमला किया है।” मैं चीन के समर्थन में नुक्कड सभाएं आयोजित करता हूं। कोलकाता के सडकों पर “चीनेर चैयरमेन- आमादेर चैयरमेन ” का नारा लगाता हूं।

माओ की सेना भारत में आ कर हमें लिबरेट करे, यह सपना मैं देखता हूं। इसके लिए मैं उनके स्वागत की तैयारियों में लगा रहता हूं।

चीन अगर परमाणु बम बनाये तो मैं उसका स्वागत करता हूं लेकिन भारत अगर परमाणु विस्फोट करे तो मैं उसके खिलाफ आंदोलन शुरु कर देता हूं। इसके लिए सेमिनर आयोजित करता हूं, गोष्ठियां आयोजित करता हूं, इसका पुरजोर विरोध करता हूं।

मुझे फिलिस्तीन में इजरायली हमलों में अमानवीयता, बर्बरता का स्पष्ट दर्शन होता है। मेरे जैसे मानवीयता के पक्षधऱ व्यक्ति को अगर इसका स्पष्ट दर्शन नहीं होगा तो फिर कैसे चलेगा। इसके लिए मैं हमेशा तनाव में रहता हूं। बार- बार सडकों पर उतरता हूं, भले ही चार लोग हों आंदोलन करता हूं। लेकिन कश्मीरी पंडितों को भगाया जाना मुझे नहीं दिखता है। उस पर मैं न तो कभी टिप्पणी करता हूं और न ही उस पर आंदोलन के लिए सोचता हूं। केवल इतना ही नहीं मेरे आका देश चीन द्वारा तिब्बत को हडप लेना का भी मैं स्वागत करता हूं। वहां हान चीनियों द्वारा तिब्बती नस्ल को समाप्त करने के साजिश मुझे नहीं दिखाई नहीं देता। वहां परमाणु कचरे को डंप किया जाना भी मुझे दिखाई नहीं देता।

भारत की जमीनों पर चीनी कब्जा मुझे दिखाई नहीं देता। 1962 का युद्ध तथा 14 नंबवर को संसद में पारित किया गया संकल्प प्रस्ताव भी मुझे याद नहीं है।

इस्लामी आतंकवादियों द्वारा आम लोगों की हत्या पर मैं चुप्प रहता हूं। लेकिन बाटला हाउस मामले में आतंकवादियों के पक्ष में आंदोलन करता हूं। यही वामपंथ है।

भारत के महापुरुषों के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करना मुझे पसंद है। मैं महान स्वतंत्रता सेनानी नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को को “तोजो का कुत्ता” मानता हूं। पंडित नेहरु का “अंग्रेजी साम्राज्यवाद का दौडता हुआ कुत्ता मानता हूं”। हालांकि बदले हुए हालात में और लोगों के विरोध को देखते हुए इसके लिए क्षमा याचना के लिए भी तैयार रहता हूं। यह स्टैटजी की बात होती है।

मेरे लिये राम आदर्श नहीं है। मेरे लिए कृष्ण आदर्श नहीं है। मेरे लिए स्वामी दयानंद सरस्वती, स्वामी विवेकानंद, महात्मा गांधी भी आदर्श नहीं है। मैं मार्क्‍स की पूजा करता हूं, स्टालिन, लेनिन की पूजा करता हूं। मैं माओ के मूर्ति के आगे सिजदा करता हूं। चेग्वेरा के मूर्ति के आगे नतमस्तक होता हूं।

इसलिए चीन जिंदाबाद। आओ भारत, भारतीयता से घृणा करे, आओ वामपंथ से प्यार करें।

29 COMMENTS

  1. रमेश जी धन्यवाद, आपने इनके पाखण्ड को पहले ही खोल कर रख दिया मैने पढा नही था।

  2. पंकज जी अगर वामपंथियों का कहा इनको ही समझ आ जाता तो यह स्वयं ही उस पर अमल न कर लेते? जब यह खुद नही समझ पाते कि क्या कह रहे हैं तो दूसरे कैसे समझेंगे? उदाहरण के लिए, वामपंथियों का सम्मेलन, जिसमे विदेशी प्रतिनिधि भी आमंत्रित थे, एक पाँच सितारा होटल मे होता है। और दूसरा उदाहरं मैने कहीं एक टिप्पणी मे पढा थ कि आप ने कहा है कि सर्वहारा वर्ग की बात करने वाले चतुर्वेदी ने अपने घर मे AC लगवा लिया। अब इससे अधिक क्या कहना?

    माननीय राजेश जी, तिवारी जी ने साफ करने के बारे मे लिखना चाहा पर था (याद करें थेन अमन चऔक, नंदीग्राम, सिंगूर, साइबेरिया के निर्वासित, क्यूबा के कैदी) पर typing error ः( क्या करें त्रुटियां सबसे होती हैं।

  3. priy, aadarneey bhaaii tiwaaree jee anguur khatte hain. bas jo naheen chal rahaa. kahate hain n ki majburee kaa nam mahaatmaa gaandhee. kamyuniston kee paramparaa maaf karane kee to itihaas mein kaheen hai naheen. par aap ab sadaa isee prakaar kshmaa karate rahane ke liye taiyaar rahen kyunki ab aur kuch karane ke liye aap logon ke liye nahen rahgayaa. ho sake to hamaarwe saath mil kar aanand uthaaiiye, swaagat hai.

  4. samanvay jee ne kamaal kar diyaa. sachmuch iishwar jo karataa hai achhaa karataa hai. da. meenaaaur da. chaturwedee ke prahaaron ne hamen jagaane mein achhee bhumikaa nibhaaii lagatee hai. aashaa hai ki ‘pravaktaa.com’ kee bhumikaa nikhartee rahegee.
    deshbhakton kee senaa badee prakhartaa tathaa haunsale ke sath khadee ho rahee hai. samanvay jee isee prakaar badhate chlo, kaarwaan jut rahaa hai.

  5. श्रीराम तिवारी साहब…ये उद्धरण किसी संत ने परवरदिगार से नहीं कहा था…जहां तक अपनी जानकारी है यह सूली पर लटकाये जाते समय इसा मसीह ने कहा था कि ‘हे प्रभु (या जो भी नाम रहा हो उनके देवता का) इन्हें माफ करना ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहे हैं’…लेकिन इस उद्धरण का यहाँ तुक क्या है यह समझ में नहीं आया…सादर.

  6. शुक्र है शैलेन्द्र जी ने तो देश का खा कर चीन का गुणगान करने वालों को जुते मारने की बात कही है । लेकिन आपकी पार्टी ने ने तो बिना किसी कारण के रुस में करोडों लोगों को काट डाला और चीन में सांस्कृतिक क्रांति के दौरान दस करोड से अधिक लोगों को मौत के घाट उतार दिया है । इसलिए किसी संत का उद्धरण आप पर बिल्कुल सही बैठ रही है – ये परवरदिगार इन मूर्खों पर कृपा कर ये नहीं जानते की ये क्या बक रहे हैं …क्या लिख रहे हैं ….क्या करने वाले हैं ? और क्या कर रहे हैं । देश में रह कर चीन का गुणगान कर रहे हैं ।

  7. जिनकी सोच इतनी घटिया है की बात -बात में जूते मारने का उन्मादी -बेम्यादी बुखार जिनको आता है ऐसे मरीजों को भी हम माफ़ करते हैं ,क्योंकि किसी संत ने कहा था -ये परवरदिगार इन मूर्खों पर कृपा कर ये नहीं जानते की ये क्या बक रहे हैं …क्या लिख रहे हैं ….क्या करने वाले हैं ?

  8. वामपंथी बड़े गद्दार
    अपनों के बीच खड़ी करे दीवार
    नहीं किसी के ये यार
    इनको सिर्फ घृणा से प्यार
    सदा जीवन कुटिल विचार
    ये है इनके हथियार
    खून खराबे इनके त्यौहार
    खड़ा करके बीच बाज़ार
    इनको मारों जूते चार

  9. आपकी शाब्दिक जुगाली से भी प्यार .
    आपकी घटिया रचना से भी प्यार .
    जिसमें झूंठ वेशुमार .
    आपके चमचों से भी प्यार .
    आपके करछुल से भी प्यार .
    आपके भोंडे पन से प्यार .
    आप सब कर रहे बंटाढार.
    निभाते हिटलर का किरदार .
    बताते दूजे को गद्दार .
    आप खुद कितने पानीदार ….आपके अवगुण लाख हजार …जनता करती हा हा कार.हमें फिर भी है तुम से प्यार …समन्वय करते चीख पुकार …वाम से हो गया उनको प्यार …..

  10. समन्वय नंद जी मै कुछ भी कह पाने की स्थिति मे नहीं हूं, बस इतना कहूंगा ‘अति सुन्दर’

  11. आदरणीय समन्वय नन्द जी,
    वामपंथियों के वास्तविकता के बारे में एक बहुत ही सटीक और सारगर्भित लेख.
    इस अद्भुत लेख के लिए कोटि कोटि धन्यवाद.

  12. समन्वय जी। शतशः धन्यवाद।

    बिन बादल,
    बिन बरसात,
    बिना धूप,
    सरपर छाता!
    एक लाल मित्र मुम्बई में मिले।
    पूछा, भाई छाता क्यों, पकडे हो?
    बारीष तो है नहीं?
    तो बोले,
    वाह जी,
    मुम्बई में बारीष हो,
    या ना हो, क्या फर्क?
    मास्को में तो, बारीष हो रही है।
    १० साल बाद।
    जब मास्को से भी कम्युनिज़्म
    निष्कासित है।
    अब भी वे मित्र, बिन बारीष
    छाता ले घुम रहे हैं।
    हमने किया वही सवाल–
    कि भाई छाता क्यों खोले हो?
    अब तो मास्कोमें भी बारीष बंद है?
    तो बोले देखते नहीं
    अब तो जूते बरस रहें है।
    {सूचना: आज कल चीन में वर्षा हो रही है।}

  13. बेहद कसी हुई भाषा में लिखे इस व्यंग के लिए शुभकामनायें और धन्यवाद …..
    सचमुच बहुत अच्छा हैं

  14. agar galti se india mai left ke govt a gaie to wo left ke nam pr kuch nahi krenge bus ek he kam kagene, sinlge line resolution pass krange “India is a intergal part of china” islya apne sahe lika hai enhe ke bhasa mai enko jbaba

  15. आदरणीय समन्वय जी आपके लेख पर मै पहले ही टिपण्णी दे चूका हूँ, किन्तु आपके समर्थन में निरंतर आ रही टिप्पणियों से मन में फिर से टिपण्णी करने की इच्छा जागृत हो आई| लेख के एक एक शब्द में जबरदस्त व्यंग है| मैंने अपने जीवन में आज तक इतना गज़ब का व्यंग नहीं पढ़ा| इसकी तारीफ़ करने लायक मेरे पास शब्दों का अभाव है|
    नंदन जी व आर्यन जी की टिपण्णी भी सराहनीय हैं| सच है अब कहाँ गए डॉ. मीना जी व श्रीराम तिवारी जी? चतुर्वेदी से तो टिपण्णी की उम्मीद रखना ही बेकार है| वे खुद अपने लेखों पर की गयी टिपण्णी का जवाब नहीं देते दूसरों के लेखों में तो झांकते भी नहीं होंगे|
    बहरहाल बहुत ख़ुशी हुई आपका लेख पढ़ कर| लेख के लिए आपको बहुत बहुत बधाई व धन्यवाद|

  16. बहुत अच्छा व्यंग्य लिखा आपने समन्वय भैया। वाकई तारीफ के काबिल है। अब तक का सबसे शानदार…

  17. समन्वय जी आपके चरण कहाँ है अपने जैसे को तैसा कहावत चरितार्थ कर दी मेरा सभी राष्ट्रवादी लेखको से अनुरोध है की वो वामपंथियों पर ऐसे लेखो की बौछार कर दे और अपनी उर्जा आक्रमण में लगाये न की बचाव में क्योंकि किसी विद्वान ने कहाँ है कि “आक्रमण श्रेष्ठ रक्षण है “

  18. This is a very good article it should be come out by others like you to remind the people of the country and their duty what should be their role.

  19. अभी हाल में डा. राजेश कपूर साहब ने एक बात कही थी कि कुछ लेखकों के विपरीत आचरण से एक अच्छी बात यह हुई कि राष्ट्रवादी गण जग गए. यह ललकार इस मामले में काम आया. अभी समन्वय जी के इस लेख से उनकी बात और साबित हुआ है. हालांकि समन्वय पहले भी लिखते रहे हैं और अच्छा लिखते रहे हैं. मेरे जैसे लोगों ने उनको पढ़ कर काफी कुछ सीखा है. लेकिन इस लेख में तो वे खुद से ही कई गुना आगे निकल गए. वास्तव में कमाल का लिखा उन्होंने. तारीफ करने के लिए शब्द कहाँ से लाऊं. ऐसा करार प्रहार, कसा हुआ व्यंग्य, सन्दर्भों की मोतियों को इस तरह एक लेख-माला में पिरोना ..एक ही सांस में पढ़ लेने लायक.अद्भुत.
    यह लेख पढ़ कर मुझे यह भरोसा हो गया कि हर राष्ट्रवादी में एक ‘हनुमान’ बसता है. वो अंजनी नन्द, जिसे उसकी ताकत का अहसास दिलवाना पड़ता है. देशभक्तों को ऐसे ही ललकारने में सफल होना इस विमर्श का शुक्ल पक्ष है….बधाई समन्वय.

  20. भाइयो लगता हे जगदीश्वर जी आग लगा कर तमाशा देखने वालों में से हें आपको पता हे की वो बेहूदा टोपिक निकल कर लिखते हें और बहस हम करते हें. पर नन्द जी ने वाकई वामपंथियों को करार जबाब दिया हे और इसका उनके पास कोई जबाब नहीं हे अब यहाँ कोई तिवारी जी और पुरषोत्तम जी अपनी जुबान खोलने क्यों नहीं आते… स्वीकारिये ये सच आगाह उनकी वैचारिक और साहित्यिक क्षमता में दम है तो… ये लोग तो अनर्गल लेखों पर चतुकर्ता की लेखनी चलते हें…….सच स्वीकारने की हिम्मत नहीं वाह रे वामपंथ. या ढोंग पंथ…

  21. समन्‍वय नंद जी आपने ….बेहद करारा जवाब दिया है …..”बुध्दिजीवियों” को ….आपकी लेखनी सलामत रहे …..निश्चित रूप से कोई …..कमुनिस्ट “सेकुलर” तथा “बुध्धिजीवी ” …..नहीं आएगा आपके वाम पंथ “प्रेम ” के खिलाफ ……ठीक उसी तरह से जैसे ……इमाम के लखनउ हमले के बाद सरे ” बुद्धिजीवी ” छुट्टी पर चले गए थे ……
    आपका लेखा पंकज झा के लेख का विरोध करने वालों को भी जवाब है ………

  22. सामान्य नन्द जी इस असाधारण लेख के लिए बधाई.
    प्रवक्ता.कॉम के संपादक संजीव जी को अपने पूर्व लेख के लिए माफी मंगनी चाहिए. प्रवक्ता द्वारा किसी भी लिख को स्थान देना गैर वाजिब है.
    जगदीश्वर चतुर्वेदी जैसे दो टके के लोगों को लगातार प्रवक्ता में स्थान देना संजीव द्वारा TRP बढ़ने का बेहूदा प्रयास है और संजीव द्वारा यह सोचना की प्रवक्ता उसकी बपौती है, प्रवक्ता की रेटिंग को रसातल में पंहुचा देगा.
    आपके लेखों ने इस देश पर करार व्यंग्य किया है. उम्मीद है प्रवक्ता भविष्य में चतुर्वेदी जैसे असभ्य लोगों को स्थान देने से बचेगा.

  23. आदरणीय समन्वय जी प्रवक्ता पर छपे लेखों में से जितने मैंने पढ़ें हैं उनमे से यह अब तक का सर्वश्रेष्ठ लेख है| इसकी जितनी तारीफ़ की जाए कम ही है| आपने कितनी चतुराई से इन वामपंथियों को नंगा किया है| आपके इस विचार की जितनी प्रशंसा की जाए कम है| आपका यह लेख सच में वामपंथियों का सच लोगों के सामने लाने में कारगर होगा| इसके लिए आपको बहुत बहुत बधाई व धन्यवाद|

  24. जो लोग बहस के लिए आमंत्रण देते है पर एक तरफा लिखकर कर किनारे हो जाते है उनके लिए आपका यह लेख बढ़िया जबाब है पर मुझे नहीं लगता कि वे वामपंथी वामन करने वाले आपके इन विचारों पर कोई टिप्पणी करेंगे !!!

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