प्रभुनाथ शुक्ल

पाती जब आती है सुखद संदेशा लाती है !
सांसो की बंद पड़ी धड़कन खिल जाती है ! !
छुई- मुई वनिता नचिकेता सी बन जाती है !
जब सांसो के सरगम में घुलमिल जाती है ! !
संदेशा साजन का जब कोई भी लाता है !
बेदर्दी दिल को कोई यूँ खुश कर जाता है ! !
मुंडेर पर बैठा कागा जब संदेश सुनाता है !
काला भौंरा जब कोई मीठा गीत गाता है ! !
भरी दोपहरी जेठ की सावन बन जाती है !
सूने से मरू- आंगन में खुशबू भर जाती है ! !
जब रूठी पायल भी लय में यूँ खो जाती है !
बिखरे बालों की लट जब घटा बन जाती हैं ! !
फ़िर हाथों में मेंहदी कोई चुपके रच जाता है !
भूली- बिसरी यादें कोई ताजा कर जाता हैं ! !
बात लवों पर मेरे फ़िर कुछ यूँ आ जाती हैं !
दिल के आंसू आखों में मोती बन जाते हैं ! !
मुरझाए सपने भी फ़िर अपने हो जाते हैं !
दूर- दूर रह कर भी जब दिल मिल जाते हैं ! !
सांसो को फ़िर एक संगीत नया मिल जाता है !
जब गोरी के हाथों में कोई मेंहदी रच जाता है ! !
मुरझाई उम्मीदों को साज नया मिल जाता है !
टूटी उमीदों को कोई साथ नया मिल जाता है ! !
बेचारी विरहन को सरताज नया मिल जाता है !
जब कोई दिलवर की पाती उसको दे जाता है ! !