राजनीति

लिब्रहान आयोग की रिपोर्ट पर राजनीति के आसार

babri300[1]अयोध्या में स्थित बाबरी मस्जिद ढहाए जाने के मामले की जाँच के लिए गठित लिब्रहान आयोग के 17 वर्षों बाद अपनी रिपोर्ट सौंपे पर राजनीति के गरम होने का आसार हैं। उन्होंन एक दिन पहले अपनी रिपोर्ट प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को सौंपी है।

छह दिसंबर, 1992 में बाबरी मस्जिद का ढांचा गिरा दिया गया था। तब केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी और नरसिंह राय प्रधानमंत्री थे। घटना के दस दिनों के भीतर इस मामले की तह तक जाने के लिए सरकार ने इस आयोग का गठन किया गया। हालांकि, राजनीतिक गणित बिगड़ने की वजह से आयोग की अवधि का 48 बार विस्तार किया गया।

अंततः कांग्रेस के शासन काल में ही जब देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को अवकाश प्राप्त न्यायाधीश एम. एस. लिब्रहान ने मंगलवार को अपनी रिपोर्ट उन्हें सौंप दी। इस मौके पर गृह मंत्री पी चिदंबरम भी वहां मौजूद थे। फिलहाल रिपोर्ट को अभी सार्वजनिक नहीं किया गया है।

दूसरी तरफ राजनीतिक जानकारों का मामना है कि अब इस मामले में कोई खास दम नहीं रह गया है, क्योंकि यह मामला बासी है और यहां सबकुछ बुढ़ा हो चुका है। फिर भी लोगों की इच्छा है कि सच्चाई सामने आए और परदे के पीछे से जो लोग हैं उन्हें सामने लाया जाए। कहा जाता है कि यह भारत के इतिहास में सबसे लंबी अधिक अवधि वाला जाँच आयोग प्रमाणित हुआ। गौरतलब है कि आयोग को 16 मार्च, 1993 तक ही अपनी रिपोर्ट सौंपनी थी।

मामले की जांच करते हुए आयोग ने करीब 400 बैठकें कीं और भारतीय जनता पार्टी के नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के बयान दर्ज किए हैं। यह मुद्दा देश की राजनीति को एक लंबे अरसे से प्रभावित करता रहा है।