गौवंश के बगैर व्यर्थ है जीवन

डॉ. दीपक आचार्य

न धर्म संभव है, न पुण्यार्जन

पृथ्वी के अस्तित्व का सीधा संबंध गौवंश से है। इस दैवीय पशु के बिना न जीवन की कल्पना की जा सकती है न और कुछ। व्यक्ति के जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त होने वाले सभी संस्कारों में गायों की किसी न किसी रूप में भूमिका को सर्वत्र स्वीकारा गया है और इन संस्कारों में गौवंश का योगदान नहीं हो तो मनुष्य का पूरा जीवन ही व्यर्थ माना गया है।

शुचिता और स्वास्थ्य तथा दिव्यत्व और दैवत्व की प्राप्ति कराने तक की यात्रा में कोई मददगार है तो वह है गाय। गाय हमारी माता के रूप में अर्वाचीन काल से पूजनीय और सर्वोपरि रही है जो हमारा संरक्षण और पोषण करती है। तभी हमारी वैदिक, पौराणिक और शास्त्रीय विधियों तथा परम्पराओं में गाय को सर्वाधिक महत्त्व प्रदान किया गया है। गाय की सेवा का तत्क्षण सुफल प्राप्त होता है।

भारतवर्ष अपने आदिकाल में ‘सोने की चिड़िया’ कहा जाता था तब गौवंश का बाहुल्य था और भारतवर्ष में घी-दूध की नदियाँ बहा करती थीं। ऋषिकुल और गुरुकुलों से लेकर जनकुलों तक गौवंश के पूजनीय महत्त्व की वजह से ही सुख-शांति और समृद्धि पसरी हुई थी।

अखण्ड भारत की यह सबसे बड़ी विशेषता रही है। उस जमाने में सभी लोग गाय का दूध ही पिया करते थे और इस कारण सभी में मानवीय संस्कारों की जड़ें मजबूत हुआ करती थी पर आज गौदुग्ध को त्यागने का ही परिणाम है कि हमारी बुद्धि मलीन और पैशाचिक होती जा रही है और इसका दुष्प्रभाव आज हमें चारों तरफ प्रत्यक्ष दिख रहा है।

गौवंश की जहाँ ज्यादा मौजूदगी रहती है वहाँ दिव्य वातावरण अपने आप आकार पा लेता है और हर किसी को सुकून प्राप्त होता है चाहे वह मनुष्य हो या जानवर। यह बात प्रामाणिक दृष्टि से सिद्ध है कि गाय की उपस्थिति मात्र से आरोग्य, धन-लक्ष्मी और ऐश्वर्य सम्पदा का प्राचुर्य अपने आप होने लगता है।

जहाँ गौवंश का आदर सम्मान होता है वहाँ समस्याओं, आतंक और भयों का स्थान नहीं होता। एक जमाना था जब भारतवर्ष में गौवंश समृद्धि का प्रतीक हुआ करता था और गायों की संख्या स्टेट्स सिम्बोल हुआ करती थी। आज वे लोग भी कहीं दिखने में नहीं आते जिनके पुरखे ‘गौ ब्राह्मण प्रतिपाल….’ का उद्घोष करते हुए अपनी बलिष्ठ भुजाओं को हवाओं में लहराते थे।

कालान्तर में कलियुग के प्रभाव और पैशाचिक वृत्तियों की बढ़ोतरी की वजह से गौवंश पर खतरा मण्डराने लगा। सच तो यह है कि जिस दिन से भारत में गौवंश पर अत्याचार शुरू हुए हैं तभी हमने अब अपनी अवनति और दासत्व की डगर पा ली है।

आज जो भी समस्याएं हमारे सामने हैं उनका एकमात्र मूल कारण यह है कि गौवंश की स्थितियां भयावह दौर से गुजर रही हैं। गौवंश पर अन्याय और अत्याचार जिन-जिन क्षेत्रों में होता है वहाँ पृथ्वी का कंपन बढ़ने लगता है और भूकंप तथा प्राकृतिक आपदाओं के आघात पर आघात होने लगते हैं। इसी प्रकार इन क्षेत्रों में लोक स्वास्थ्य और दूसरे कारकों पर भी घातक असर सामने आता है।

जिन लोगों के घरों में गाय पाली जाती है वहाँ बीमारियां भी कम होती हैं जबकि दूसरी ओर जिन घरों में श्वान पाले जा रहे हैं वे किसी न किसी रूप में बीमारियों के घर हुआ करते हैं। मनुष्य की जो भी बीमारियां हैं उनमें गौमूत्र, गौघृत, गौ दुग्ध का अचूक प्रभाव सामने आया है। वैज्ञानिक तथ्य यह भी है कि गाय का स्पर्श मात्र कई बीमारियों के दूषित प्रभाव को निष्फल कर देता है।

गाय का दूध पीलापन लिये हुए होता है और इसमें स्वर्ण की मात्रा होती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि गाय की रीढ़ पर सूर्य की किरणें पड़ती रहने से उसके दूध में स्वर्ण का अंश अपने आप आने लगता है। यह दूध अमृत से भी बढ़कर है।

गौवंश की इस सारी महिमा के बावजूद हमारा यह दुर्भाग्य ही है कि शाश्वत सत्य को स्वीकारने की बजाय हम पाश्चात्य श्वान संस्कृति को जीवन में अपना रहे हैं और अब तो हमारा व्यवहार तक श्वानों की तरह होता जा रहा है।

आज गंभीरता से यह स्वीकारना होगा कि गौवंश के प्रति गैर जिम्मेदाराना कृत्यों के लिए हम स्वयं जिम्मेदार हैं। हमारी बुद्धि इतनी मलीन हो चुकी है कि हमें अच्छी बातें समझ में आती ही नहीं, जैसा दुनिया करती है, हम भी नकलची बन्दरों की तरह वैसा ही करने लगते हैं और अंधानुकरण में रमे हुए हैं।

इसी प्रकार जिन आश्रमों और मन्दिरों में गौशालाएं नहीं हैं वहां भगवान नहीं रहा करते, इस बात को भी अच्छी तरह समझ लेना चाहिए। पर कब अक्ल आएगी धर्म को धंधा बनाए बैठे लोेगों को, जो रुपयों-पैसों के लिए धर्म के स्वरूप को ही विकृत करने में जुटे हुए हैं। मन्दिरों में भगवान के नैवेद्य के लिए निर्मित होने वाले पंचामृत में भी गौदुग्ध व घृत ही होना चाहिए।

हम खुद तय करें कि हम धरम कर रहे हैं या अधर्म। गौ सेवा करें, गायों को बचाएं। गाय हमारी माँ है। गाय बचेगी तभी आप और हम बचेंगे, देश बचेगा। हे ईश्वर, उन मूर्खों को सद्बुद्धि दें जो गायों पर अत्याचार ढाते हैं, गायों के नाम पर राजनीति करते हैं, और उन्हें भी जो धर्म के नाम पर धंधे चलाकर खोटे-खोटे हवन करा रहे हैं। उन लोगों को भी सद्बुद्धि की जरूरत है जो बड़ी-बड़ी कुर्सियों पर बैठकर उस गाय को भूल गए हैं जिनका दूध पीकर वे आज इस मुकाम तक पहुंचे हैं।

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