कविता

प्रभु पुत्र ईसा मसीह

—विनय कुमार विनायक
गौतम की आत्मा भटकती रही
ईसा-तीर्थंकर-गुरु नानक बनकर,
दशमेश गुरु गोविन्द सिंह सोढ़ी
और बापू महात्मा गांधी बनकर!

पर क्या वे सफल हुए थे,
अपने लक्ष्य को पाने में?

ईश्वर के पुत्र ईसा मसीह को
जिसने माना खुद ईसाई होकर
किन्तु क्या वे ईसा सा बन पाते?
ईसा की अपनी जाति यहूदी को
क्या ईसाई बनकर अपनाते?

वर्गभेद और नश्लवाद की
अमानवीय रीति तुम कहां भूल पाते!

वाह! मानते हो अपनी नीति
और कहते हो ईसा ने दी थी!

हाय रे इन्सान!
एक सलीब की याद में
सौ-सौ घड़ियाली आंसू रोते,
किन्तु हजार-हजार सलीब
नित नए-नए गढ़ते!

लाख-लाख जिंदा इंसा ईसा में
तुम अति मानव कुंदे कील घुसेड़ते!
—विनय कुमार विनायक