स्नेहन से स्वास्थ्य समस्याओं के समाधन

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स्नेहन अर्थात तेल या घी के विभिन्न प्रयोगों की प्राचीन परम्परा के अनेकों प्रमाण मिलते हैं। आयुर्वेद में वर्णित शात्राोक्त विध्यिों के इलावा अनेकों अलिखित पर परम्परा से प्रचलित विध्यिँ भी हैं जो श्रुतिज्ञान के रूप में आज भी सुरक्षित हैं। सामान्य और अति विशिष्ट प्रयोग स्नेहन के अन्तर्गत प्रचलित है। पंच कर्म विध्यिों के अभ्यंग और तैल शिरोधरा एक महत्वपूर्ण अंग है। नस्य, तैल युक्त विरेचन तथा पिच्चू धरण भी आयुर्वेद के सुपरिचित विधन है। इस विद्या अर्थात स्नेहन पर जो अध्ययन, सूचनाएं और अनुभवों के निष्कर्ष हमें प्राप्त हुए, उनमें से कुछ ये हैं :
1.केवल मात्रा गौध्ृत से अंजन करने से आजीवन रतौंधी, कैट्रैक्ट, अंजनहारी, आईफ्रलू आदि रोग नहीं होते तथा ऐनक लगाने की आवश्यकता नहीं पड़ती । अर्थात गौध्ृत के कारण विजातीय पदार्थों का संग्रह नहीं होता और यह घृत संक्रमण रोध्क भी है। पर यहां यह जानना जरूरी है कि गौध्ृत कौनसा या किस गाय का हो और कैसे बना हो । इस पर हम आगे चर्चा करेंगे ।
2.नाक में गौध्ृत नसवार लेने से स्नायुकोष निरन्तर स्वस्थ और सशक्त बने रहते हैं। इतना ही नहीं, आयु के साथ स्नायुकोषों की मृत्यु होने का क्रम भी लगभग बन्द हो जाता है। यानी ब्रेनसैण्ड बनना बन्द होता है। सबसे मूल्यवान और महत्व की बात यह है कि जो अरबों स्नायुकोष आजीवन प्रसुप्त पड़े रहते हैं, वे भी क्रियाशील होने लगते हैं जिसके कारण व्यक्ति भी स्मरण शक्ति तथा प्रसुप्त अतिमानवीय शक्तियां भी क्रियाशील होने लगती हैं। इन प्रभावों का कारण शायद सैरिब्रोसाईट नामक वह पदार्थ है जो विशेष प्रकार की गऊओं के घीदूध में पया जाता है। कैरोटीन व विटामिन ॔ए’ के बारे में भी हम जानते ही हैं ।
3.एक अद्भुत जानकारी यह मिली है कि अध्रंग ;पैरेलेसिज़द्ध रोगियों को गौध्ृत की नसवार देने से कुछ देर में वे रोगी पूर्णतः ठीक हो गए । अध्रंग का आक्रमण होने पर उसी समय गौध्ृत की नसवार दी जानी चाहिए । एक वैद्य का दावा है कि पुराने अध्रंग रोगियों की मालिश विध्विधन से बने गौध्ृत से की गई तो सभी रोगी ठीक हो गए । एक भी रोगी ऐसा नहीं जो ठीक न हुआ हो । हम जानते हैं कि अध्रंग में स्नायुकोष नष्ट हो जाने के कारण अंग विशेष निष्क्रीय हो जाते हैं और आधु्निक विज्ञान के पास ऐसा कोई उपाय नहीं जिससे इन मृत कोषों को पुनः जीवित किया जा सके या नवीन कोष बनाए जा सकें । पर यह कमाल साधण से लगने वाले इस घृत प्रयोग से सम्भव है। योग्य वैद्यों और वैज्ञानिकों द्वारा इस पर विध्वित शोध किए जाने की आवश्यकता है।
विचारणीय और उत्साहजनक बात यह भी है कि अनेकों असाध्य समझे जाने वाले मानसिक रोगों का इलाज गौध्ृत प्रयोग से सम्भव हो सकता है।
4.गौ सम्पदा नामक पत्रिका में ही एक सूचना के अनुसार मैंने असाध्य अम्लपित व पेट दर्द के लिए गौघृत और गाय के दूध का प्रयोग किया । एक ही दिन में लाभ नजर आने लगा । केवल एक मास के प्रयोग से अम्लपित के पुराने रोगी ठीक होते हैं। आधु्निक युग के अनेक रोगों का मूल कारण यह अम्लपित रोग है। आयुर्वेद के विद्वान जानते हैं कि अम्लपित का निवारक घृत है और गौघृत विष निवारक भी है। हम आहार में अनेक प्रकार के विशाक्त रसायन खाने के लिए मजबूर हैं। अतः गौघृत का विध्वित प्रयोग इन विषों से हमारी पर्याप्त रक्षा कर सकता है।
5.अनेकों प्रयोगों से साबित हो चुका है कि घातक और असाध्य रेडियेशन से रक्षा और उसके दुष्प्रभावों को घटाने में गौघृत अत्यन्त प्रभावी है। एक्सरे, अल्ट्रासांऊड, सीटिस्कैन, सोनोग्राफी, कीमोथिरैपी के घातक दुष्प्रभावों के इलावा हम हीटर, गीजर, फ्रिज, हैलोजिन, टयूबों, ट्रान्सफार्मरों, विद्युत मोबाईल टावरों की घातक रेडिएशन प्रभावों के शिकार हर रोज बन रहे हैं। इन अपरिहार्य आपदाओं के विरु( गौघृत का प्रयोग सुरक्षा कवच साबित हो सकता है। विकीर्ण तक के प्रभावों को नष्ट करने में गौघृत सक्ष्म हैं, यह संसार के अनेक वैज्ञानिक सि( कर चुके हैं।
6.सरदर्द के अनेकों रोगियों की चिकित्सा हमनें गौघृत की मालिश पावं के तलवों में करके सफलता प्राप्त की है। पांव के तले में मालिश का प्रभाव सीध मस्तिष्क और शरीर के अन्य अंगों तक पहुंच जाता है। एक्यूप्रैशर के विद्वान जानते हैं कि पांव के तले में हमारे पूरे शरीर के प्रतिबिम्ब केन्द्र हैं जो अत्यन्त संवेदनशाील और शक्तिशाली हैं। प्रत्येक चिकित्सक को यह सरल पर अद्भुत प्रभाव वाला उपाय आजमानापरखना चाहिए। कमाल की बात यह है कि पावं के तले में की मालिश से केवल सरदर्द ही ठीक नहीं हुआ पेट की गैस, जलन, बेचैनी, अपच और हृदय पर पड़ने वाला दबाव व एंजाईना की दर्द भी उल्लेखनीय रूप से कम होती गई । ऐसा एक नहीं अनेकों रोगियों को साथ हुआ। आवश्यकता है कि पांव के तलों के शरीर के विभिन्न अंगों पर पड़ने वाले प्रभावों पर विध्वित शोध व अध्ययन हो । यह जानना भी जरूरी है कि गर्मियों में बूटजुराब पहनने का शरीर पर क्या और कितना दुष्प्रभाव होता है।
7.पकाकर ठण्डा किया तेल कानों में डालने का विधन आयुर्वेद में है और भारत में यह एक प्राचीन परम्परा भी है। आधु्निक चिकित्सक इसका निषेध करते हैं पर हमनें पाया है कि कानों में तेल डालने से सरदर्द, बाल झड़ना, आंखों की रोशनी, स्मरण शक्ति पर बहुत अच्छा और स्पष्ट प्रभाव कुछ दिनों के प्रयोग में ही नजर आ जाता है। कंठ शोथ्।, टांसिल के कुछ रोगी तो बिना दवा के केवल कान में तेल डालने से ठीक हो गए । तेल डालने से मैल सरलता से बाहर आ जाती है। एक रोगिणी की 1012 साल पुरानी कान दर्द मूलिन आयल डालने से 1516 दिन में ठीक हो गई और उसके कान से चने जितना बड़ा कठोर मैल का टुकड़ा स्वयं बाहर आ गया । कान का पर्दा फटा हुआ हो तो तेल डालना उचित नहीं, केवल पिच्चू धरण करना चाहिए। अर्थात पूरे स्नायुतंत्रा को स्वस्थ रखने के लिए कान में तेल और नाक में भी तेल या गौघृत धरण करना अत्यन्त लाभदायक है।
नाक कान के स्नेहन व सर की मालिश से पिच्यूटरी और पीनियल ग्लैंड भी स्वस्थ रहते हैं। हम जानते हैं कि पूरे शरीर और हमारे सभी ग्लैण्डस का नियंत्राण पिच्यूटरी ग्लैंड द्वारा होता है। उसके स्वस्थ होने का अर्थ है कि शरीर की सभी क्रियाएं सुचारू होंगी और शरीर स्वस्थ रहने में सहायता मिलेगी ।
विशेष निष्कर्ष :
श्वास, आहर और एलोपैथिक दवाओं के माध्यम से जो न्यूरोटॉक्सीन हमारे स्नायुतंत्रा में संग्रहित होते हैं और स्नायुकोषों को नष्ट करते हैं उनके उपचार व बचाव की दिशा में कुछ खास काम नहीं हो सकता है। तभी अवसाद, पागलपन, एल्जाईमर, ऑटिज़्म तथा अन्य मानसिक रोग महामारी की तरह ब़ रहे हैं। अमेरिका जैसा शक्तिशाली और विकसित देश ऑटिज़्म तथा अन्य अनेकों मानसिक रोगों का शिकार बनता जा रहा है। इन सब न्यूरोटॉक्सीन व असाध्य मानसिक रोगों से सुरक्षा का सुनिश्चित और शक्तिशाली उपाय व समाधन है स्नेहन । पर इसके लिए जरूरी है कि हमें शु( गौघृत, शु( सरसों का तेल, शु( नारियल, सूरजमुखी, बिनौले, तिल आदि के तेल मिल सकें । इस पर भी अन्त में चर्चा करेंगे ।
8.सूखी खांसी पर भी हमनें सैंकड़ों बार स्नेहन प्रयोग किए । रोचक प्रयोग यह है कि सूखी खांसी वाले को गुदा में शु( सरसों के तेल का पिच्चू धरण करवाया जाता है। हफ्रतों, महीनों पुरानी सूखी खांसी कुछ मिनट या अध्कि से अध्कि एक रात में ठीक हो जाती है। आई फ्रलू में भी यह प्रयोग सफल है। विचारणीय और शोध की बात है कि गुदाचक्र और हमारे कण्ठ व उत्तमांगों का सम्बन्ध किस प्रकार गुदा से है और गुदा का प्रभाव शरीर के अन्य अंगों पर कितना, क्यों और कैसे होता है? योगाचार्यों द्वारा गणेश क्रिया करनेकरवाने का क्या यह अर्थ नहीं कि वे गुदा चक्र के शोध्न का महत्व और शरीर पर इसके प्रभावों के रहस्यों को अच्छी तरह जानते थे। पर आधु्निक चिकित्सा शास्त्रा अनेक अन्य शरीर विज्ञान के रहस्यों की तरह इस बारे में भी अनजान है जबकि भारतीय मनीषी इसके गहन ज्ञाता थे।
विचारणीय यह भी है कि फोम के गद्दों पर बैठने, शौच के बाद पानी के स्थान पर टॉयलेट पेपर के प्रयोग का प्रभाव गुद रोगों, रक्त चाप, स्नायुमानसिक रोगों पर क्या होता होगा? शीतल जल से गुदा को अच्छी तरह धेने के क्याक्या उत्तम प्रभाव होते होंगे? भारतीय परम्परायें अत्यन्त वैज्ञानिक है। अतः शौच के बाद शीतल जल प्रयोग गुदा रोगों व स्नायु रोगों में सम्बन्धें पर गहन शोध की जरूरत है।
विशेष :
निर्गुण्डी तेल और विल्ब तेल की नियमित नसवार से पलित रोग पर वियज पाने का प्रयोग 2 बार हम सफलतापूर्वक कर चूके हैं।
क्या इसका अर्थ यह नहीं है कि स्नेहन विध्ि के सही प्रयोग से ॔जरा’ पर एक सीमा तक नियन्त्राण सम्भव है। आखिर सारी अति मानवीय शक्तियों का केन्द्र हमारा स्नायुतंत्रा ही तो है। अतः ऊर्जा संचय यानी ब्रह्मचर्य के पालन करने, ऊध्र्वरेतस बनने और स्नेहन जैसे प्रयोगों से एक सीमा तक जरा को जीतने व अनेकों असाध्य रोगों पर विजय पाने का कार्य किया जा सकता है। इस पर भी विध्वित शोध कार्य की जरूरत है।
प्रत्येक विषय की सीमाएं असीमित होती हैं पर हमारी क्षमता और समय की सीमा बंधी हुई है। अतः विषय को विराम देता हुआ कुछ सूचनाएं देना चाहूँगा।
ए1 तथा ए2 गौवंश :
1987 से आजतक हुए शोध बतलाते हैं कि अमेरीकी गऊओं जर्सी, हालिस्टीन, फ्रीजियन, रैड डैनिश आदि की अध्किंश नस्लों में बीटा क्रैसीन ए1 नामक प्रोटीन पाया जाता है जो कैंसर, मधु्मेह, हृदय रोगों तथा अनेक असाध्य मानसिक रोगों का कारण है। इनके दूध में अत्यध्कि मात्रा में मवाद ;पस सैलद्ध पास गए हैं जो कई रोग पैदा करते हैं। इसके विपरित भारतीय गौवंश के दूध में बीटा कैसीन ए2 नामक प्रोटीन पाया गया है जो कैंसर कोषों ;कार्सीनोमा सैलद्ध को नष्ट करता है। सैरिब्रोसाईट, कैरेटीन आदि अन्य अनेक तत्व भी हैं जो शुक्राणुओं को सबल बनाते हैं, पौरूष व प्रजनन शक्तिवध्र्क हैं, बु(िवध्र्क है। अतः स्नेहन में प्रयोग भारतीय गौवंश के घी का होना उचित है। क्रीम से नहीं, मिट्टी के पात्रा में दही जमाकर बनाए मक्खन से बने घी का प्रयोग होना चाहिए।
ब्राजील ने अकारण ही तो 40 लाख से अध्कि भारतीय वंश की गीर, साहिबाल और रैंडसिंधी गऊँए तैयार वहीं कर ली। अमेरिका तेजी से अपने गौवंश को ए1 से ए2 बना रहा है और हम उनके बहकावे में आकर हॉलिस्टिन, जर्सी आदि विशाक्त गौवंश की वृि( कर रहे हैं। हमें अपने हितों की रक्षा अपने विवेक से करनासीखना होगा । विदेशीयों पर आंखें बन्द करके विश्वास करते हमें 200 साल हो गए जिससे हम निरन्तर हानि ही हानि उठा रहे हैं। हमें सम्भलना चाहिए।
विषाक्त तिलहन :
जहां तक तेल की बात है तो चिन्ता की बात यह है कि विदेशी कम्पनियों ने दर्जनों जी एम बीज बाजार में प्रचलित कर दिए हैं, ऐसा अनेक विशेषज्ञों का मानना है। केन्द्र सरकार के एक अध्किरी ने भी इस बात को माना है। सरसों, बाथू, ध्निया, पौदिना, बैंगन, घीया, भिण्डी, मूली, पपीता आदि अनेकों फलसब्जियों के जी एम उत्पाद कम्पनियों द्वारा बाजार में उतार दिये गये हैं इसकी प्रबल आंशका है।
हम 1516 साल से देसी घी और सरसों के तेल कर प्रयोग कर रहे हैं। रिफाईन्ड आयल का प्रयोग लगभग 15 साल से बन्द है। 1011 दिसम्बर को हमनें ड़े लीटर तेल जलाया तो पत्नी का रक्तचाप ब़ गय, मुझे तना व असाद होने लगा। पता नहीं कितना विषैला तेल होगा ।
अतः सही बीजों से खेती के लिए भी सम्भव प्रयास करने होंगे । कैसे होगा? यह हम सबको सोचना होगा । पर होगा जरूर, इस संकल्प पर विश्वास से समाधन होगा ।

 

 

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डॉ. राजेश कपूर
लेखक पारम्‍परिक चिकित्‍सक हैं और समसामयिक मुद्दों पर टिप्‍पणी करते रहते हैं। अनेक असाध्य रोगों के सरल स्वदेशी समाधान, अनेक जड़ी-बूटियों पर शोध और प्रयोग, प्रान्त व राष्ट्रिय स्तर पर पत्र पठन-प्रकाशन व वार्ताएं (आयुर्वेद और जैविक खेती), आपात काल में नौ मास की जेल यात्रा, 'गवाक्ष भारती' मासिक का सम्पादन-प्रकाशन, आजकल स्वाध्याय व लेखनएवं चिकित्सालय का संचालन. रूचि के विशेष विषय: पारंपरिक चिकित्सा, जैविक खेती, हमारा सही गौरवशाली अतीत, भारत विरोधी छद्म आक्रमण.

17 COMMENTS

  1. ? परम आदरणीय डॉ कपूर और उनके जैसे अन्य सभी जनहितकारी सज्जनों को मेरा हृदय से नमन?।सच में मेरे पास शब्द नहीं हैं आपके निस्स्वार्थ योगदान के लिए।ईश्वर आपको दीर्घायु करें। मैं ईश्वर से यही कामना करता हूँ कि आप सरीखे सत्पुरुष जनमानस के कल्याणार्थ इस धरा पर बारंबार भेजते रहना।??

  2. महोदय मेरा इ-मेल है
    ज़रूरी हो तो फोन के लिए मोबाईल है : 94188-26912, 88940-36151
    स्वदेशी गो के घी के स्नेहन और नसवार के साथ स्वदेशी गो के गोबर की धूप जलाने से भी सभी मानसिक और शारीरिक रोगों में अद्भुत लाभ मिलता है. पर यह स्मरणीय है कि विदेशी गोवंश के उत्पादों और संपर्क से अनेक असाध्य और भयावह रोग लगते हैं. विश्वास न हो तो २२ जनवरी, २०१२ के The Tribune (चंडीगढ़)का पृष्ठ क्रमांक ४ पढ़ कर देख लें, फिर संदेह नहीं रहेगा. इस लेख में एक शोध छपा है. इस शोध में अनेक रोगों की जानकारे दी गयी है जो विदेशी गो-वंश से होते हैं और स्वदेशी गो वंश से ठीक होते हैं, विदेशी गौओं से अनेक प्रकार के कैंसर भी होते हैं, इस बारे में यह शोध कुछ नहीं बतलाता . अतः इसके लिए इसी विषय पर एक पुस्तक नैट पर खोज कर देखें ‘Dewil In the Milk’ शायद १६ वैटरनरी वैज्ञानिकों ने १५ वर्ष की खोज से सिद्ध किया है कि इन विदेशी नस्लों से कैंसर के इलावा और अनेक असाध्य रोग होते हैं जिसका कारण इनके शरीर में पाया गया एक खतरनाक ‘बीटा कैसीन ए१’ नामक प्रोटीन है. इससे हिस्टाडीन का निर्माण होता है और यह हमारे रक्तप्रवाह में पहुँच कर ह्रदय रोग, मधुमेह, ऑटिज्म, कैंसर आदि भयावह रोग पैदा करता है. # १९८७ से वे विदेशी इस तथ्य को जानते हुए भी हम भारतीयों से इसे छुपाये हुए हैं और बड़ी चालाही से हमारे गोवंश का विनाश कृत्रिम गर्भाधान द्वारा (निसंदेह विदेशी गोवंश के सीमन से), हमारे ही हाथों बड़ी चालाकी से करवा रहे हैं. ऐसी सीधे सरल अब और कब तक हम बने रहेंगे और इन विदेशी तामसिक ताकतों के शिकार बनते रहेंगे ????? अभी भी कुछ अपना भारतीय गोवंश बचा है, उसे बचाए रखने में सहयोगी बनें. गो के हित में न सही, अपने खुद के हित में…….

  3. पुनः प्राथना महाशय हमने आप को पहले भी अनुरोध किया था कृपया आप हमे श्री राजेश कपूर जी का मोबाइल नंबर और पता देने की कृपा करे जिससे हमे आपने घर में अल्ज़ैएमर से पीड़ित रोगी का सही तरीके से इलाज करके उसे एक अछि जिंदगी दे सके उनके द्वारा बताये नुस्खे से उनमे थोड़ी सुधर हो रही हम आपसे पुनः नम्र निवेदन करते है हमारा मोबाइल नंबर 09831803881

  4. जी हमारी पत्नी अल्ज़ामेर से पीड़ित है और मैं आपका दिए हुए तरीको को अपना रहा हूँ मैं उन्हें घी उनके नासिका से दे रहा हूँ और उनमे प्रोग्रेस भी हो रही हैं कृपया आप हमें डॉ. राजेश कपूर का मोबाइल नंबर और पता देने की कृपा करे जिससे मैं उनसे मिलकर अल्ज़ामेर को ख़त्म करने की पूरी प्रक्रिया को समझ सकू मेरा मोबाइल नंबर 09831803881

  5. ‘गौ सम्पदा’ मासिक पत्रिका कहाँ से प्रकाशित होती हैं ? मैं इसे पढ़ना चाहता हूँ | मैं इसे कहाँ से प्राप्त कर सकता हूँ |

  6. प्रो.मधुसुदन जी वर्धापन हेतु पुनः आभार, समय-समय पर दिशा निर्देश करने की कृपा करते रहें, धन्यवाद ! शिरोधारा पर आपके अनुभव जानने की व्यग्रता से प्रतीक्षा रहेगी.
    – अज्ञानी जी आपकी अपेक्षाओं पर खरे उतरने का प्रयास रहेगा. घर-गृहस्ती के अनेक कार्यों के साथ समाज सेवा के कार्यों को करते हुए समय की कमी hone lagti hai. karykshamtaa की कमी bhi ek kaaran hai jo paryaapt lekhan nahi ho pataa. protsaahan हेतु आभार.

  7. डॉ. राजेश कपूर जी ===
    शत शत धन्यवाद। आपने समय निकाल कर सारे प्रश्नों के उत्तर दिए। मैं माताजी को आपका उत्तर पढकर सुनाउंगा।
    जब आयुर्वेद इस प्रकार रुग्णों को निरोगी करेगा, तो फार्मसियों का व्यापार कैसे चलेगा? सारा खेल इसी लाभ-हानि के आधार पर चल रहा है।
    जब भी आपको समय मिले, एकाध लेख लिखते रहें।
    अमरिका ने तो भारत की अनेक औषधियां कुछ नये नाम देकर बाज़ारमें उतारी है। कुछ पेटंट के भी प्रयास किए हैं।योग को, ध्यान को, पुनर्जन्म में मानने वाले संख्या में बढ रहे हैं। हमारा संगीत भी तनाव घटाने में सफल सिद्ध हो रहा है।
    देख रहा हूँ, कि प्रवक्ता भी दिनोदिन उन्नति कर रहा है, परिष्कृत हो रहा है।
    सविनय, आभार सहित, मधुसूदन।

  8. डॉ साहेब आपका ज्ञान अनंत है ये बात अब किसी से छुपी हुई नहीं है! लेख के लिए बहुत बधाई! आपसे अनुरोध है की कम से कम ३-५ लेख आप महीने में प्रकाशित करने का प्रयास करें तो समाज का बहुत भला होगा!

  9. आदरणीय प्रो. मधुसुदन जी, माताजी को सादर चरण स्पर्श.
    १. आई फ्लू पर आपका प्रश्न समझ नहीं सका. आँखों के किसी भी प्रकार के संक्रमण का इलाज गंगा जल है. drops के रूप में प्रयोग करना चाहिए.
    २. गो ghrit को पिघला कर या उंगली से रगड़ कर नाक के अन्दर अल्प मात्र में लगाना या लेट कर कुछ बूंदें नाक में डालना उचित है. पर बूंदें बहुत भीतर तक न जाएँ अतः कम ही डालें. घी की उपलब्धता हेतु प्रयास करना होगा. सचमुच कठिनाई तो है. वर्ष भर में pure pariwaar का kaam २ kilo से chal sakataa है. khaane से adhik laabh naswaar aur lagaane का है.
    3. jo aapne likhaa wahi Mullein Oil है.
    4. किसी भी प्रकार की ruii aadi में lagi aushadh को bhitari ang में prawesh कर के rakhane ko pichu dhaaran, potali के liye potali shabd का ही प्रयोग prachalit है.
    5.shital जल से gudaa prakshaalan से snaayu koshon पर sidhaa prabhaaw padataa है. uchh raktchaap में awilamb asar nazar aataa है. आँखों के infection thik hote हैं. wichaarniy है की kitanaa gaharaa asar है gudaa का hamaare mastak aur आँखों aadi पर. yah baat तो है की shital pradeshon में mushkil होगा. अतः mere wichaar में जल को kuch garm karke pryog में laanaa buraa नहीं. पर laabh lenaa हो aur koii रोग yathaa jwar, jukaam aadi न हो तो yathaa sambhaw shital जल प्रयोग करना चाहिए.
    6. पालित रोग बालों के श्वेत होने को आयुर्वेद में कहा गया है. वृद्ध होने के लक्षण हैं ये. अतः जिस उपाय से श्वेत बाल काले हो जाएँ वह उपाय budhape को रोकने वाला हुआ.ऐसे योगों को ‘रसायन’ कहा जाता है
    7.ham sarason का tel ek ही baar में khub pakaa कर rakh lete हैं aur use daal-sabji में tadake के liye प्रयोग में laate हैं. jalaane से wahi aashay thaa.
    likhte samay कई baar pataa नहीं chalataa की paathak ko kyaa baat aspasht rah gayi. aapke उचित prashnon से dhyaan में aayaa की kyaa aspasht rah गया, dhanywaad.
    – ayurwed का koii adhikrit widwaan तो hun nahin, अतः jitani jaankaari है utanaa batalaane का प्रयास kiyaa है. fir भी हो sakataa है की truti rahi हो. paathak कुछ sudhaar karen तो kripaa hogi.
    – aap ne utsaah wardhan kiyaa, usake liye aabhaari hun. aap तो jaanate हैं की ham sab yaachak हैं us param sattaa की kripaa के. bas wahi paane के liyee sewaa karte jaane के anginat aadarsh hamaare purwajon aur aap sarikhe mahaanubhaawon के hamaare saamanen हैं jo hamen prerit karate rahate है.
    – sneh aur kripaa banaaye rakhen.

  10. डॉक्टर राजेश कपूर जी बहुत बहुत धन्यवाद।आपकी टिप्पणी भी पढी। पर, आपने सारे (ट्रेड सिक्रेट) व्यावसायिक युक्तियां सभी पाठकों के सामने खोलकर रख दिये। समाजका सच्चा हितैषि ही ऐसा कर सकता है, मुझे किंचित मात्र भी संदेह नहीं।
    मुझे कुछ प्रश्न है। क्रमवार प्रस्तुत करता हूँ।
    (१) आईफ्रलू —क्या है? वर्तनी ठीक है ना?
    (२) गौध्ृत नसवार–यह नसवार घी को तपाकर करनी होती है क्या?शुद्ध गौ-घृत तो यहां मिलना कठिन ही है।
    (३)मूलिन आयल— यह Mullein Oil ही है ना?
    (४)पिच्चू धरण —यह तपी हुयी पोटली का प्रयोग है ना? पोटली में क्या होगा?
    (५)शीतल जल से गुदा को अच्छी तरह धेने के क्या क्या उत्तम प्रभाव होते होंगे? —शीत देशोमें गरम पानी का प्रयोग कर सकते हैं क्या?
    (६) पलित रोग—-कहीं वर्तनी की गलती तो नहीं? पलित रोग का दूसरा (अंगेज़ी नाम) क्या है?
    ७)1011 दिसम्बर को हमनें ड़े लीटर तेल जलाया —क्या आपने डेढ लीटर तेल जलाया? किस कारण?
    आपने नितांत प्रामाणिकता से इतना बडा आयुर्वेद-ज्ञान-कोष खोलकर रख दिया है। सही शब्दोंमें आप किसी कल्याणकारी महापुरूष से कम नहीं।
    मेरी माताजी आयुर्वेद के बिना आज तक कोई दूसरी औषधि का प्रयोग नहीं करती। वह तलवों पर घी की मालिश करती है।त्रिफला का प्रयोग, इसबगोल का प्रयोग, हलदी-और मेथी, रात भर भिगोकर सबेरे सेवन, हर भोजन समय चावल पर घीका सेवन,और भी बहुत कुछ, {असकी बेटी, मेरी बहन, ऍलोपॅथिक डाक्टर है।} इत्यादि करते रहती है। परमात्मा की कृपासे ही मानता हूं, और आयुर्वैदीक औषधियों से ही वह स्वस्थ है। उसकी आयु आज ९५ की है। एक बार भी अस्पताल भरती नहीं हुयी। मोतिया बिंद की शल्य क्रिया करवाई है।उसने आपको आशीष भेजे हैं।
    विशेष: मुझे भी शिरोधारा के और अभ्यंग के अच्छे अनुभव आये हैं। वह कितने काल तक टिकते है, उसका अनुभव करने पर कुछ समय पश्चात प्रकाशित करूंगा। लिखूंगा।
    फिरसे धन्यवाद।

  11. आदरणीय प्रो. मधुसुदन जी आपकी आशंका बिलकुल सही है की पश्चिमी ठग भारतीय ज्ञान का लाभ उठाते हैं औ उसका सारा सरे खुद ही ले लेते हैं, ऐसे कृतघ्न हैं ये लोग. अनेक प्रमाण हैं पर प्रसंगवश एक को उधृत कर रहा हूँ.
    – कर्नल अल्काट ने हैदर अली पर आक्रमण किया और बुरी तरह हार गया. हैदर अली ने उसे मारा नहीं और उसकी नाक काट कर छोड़ दिया. वह भटकता हुआ बेलगाओं पहुंचा तो एक भारतीय वैद्य को उस पर दया आ गयी. उसने कुछ दिन की चिकित्सा से उसकी नई नाक बना दी. बाद में कर्नल अल्काट ने ब्रिटिश पार्लियामेंट में जाकर यह जानकारी सभी सांसदों को दी. स्वाभाविक रूप से सभी बड़े हैरान हुए. अंगेज़ चिकित्सकों का एक दल उसी भारतीय वैद्य के पास आया और उस से shaly चिकित्सा की यह adbhut kalaa seekh कर britain lautaa. bhaarat को shrey diye binaa unhon ने is kalaa को plastic surgery के naam पर pracharit किया और bhaarat को isakaa shrey kabhi नहीं दिया. chori , thagi और beiimaani की in yurupiyanon की paramparaa bahut puraani है. atah da. मधुसुदन जी की आशंका unake gahan adhyayan w सही जानकारी का parinaam है.sambhaw saawdhaani w jaagruk rahane की aawashyaktaa है.

  12. हरपाल जी वर्धापन हेतु धन्यवाद. विद्वान मित्र गौड़ जी ने आपके प्रश्न का सही उत्तर दे दिया है. आप दोनों को मेरा लेख पसंद आया, मेरा प्रयास सार्थक हो रहा है.
    मुझे लगता है कि गो के बारे में सही जानकारी के प्रचार से हम अपनी अनेक समस्याओं का समाधान सहज ही कर सकेंगे. अतः इस विषय का यथा संभव अधिक से अधिक प्रचार होना चाहिए. कोई भी अपनी ओर से इस सामग्री को छपवाकर , अपने नाम से भी प्रचारित करे तो उपकारी होगा.
    *एक ख़ास महत्व की बात यह है कि जापान में फैली रडियोधर्मिता का एक मात्र, पक्का और प्रमाणिक इलाज है भारतीय गोवंश की गौओं के पञ्च-गव्य का प्रयोग..गोबर, गो-घृत से हवन,,गोबर व गोमूत्र का लेप और स्नान; पच्गव्य को पीना. इसके इलावा और कोई समाधान नहीं है. han agnihotr के भी yahi parinaam honge.

  13. डॉ. राजेश कपूर जी, बहुत बहुत धन्यवाद।
    अभी अभी कोयम्बतूर के, आर्य वैद्य चिकित्सालय से, अभ्यंग एवं शिरोधारा का अनुभव कर के घर लौटा हूँ। शिरोधारा में ६ कर्मचारी एक साथ स्नेहन एवं, तपे हुए औषधि युक्त तैल से, सर पर धारा किया करते थे।कुछ पुस्तकें भी जानकारी के लिए लेकर आया हूँ। प्रभावित हूँ।
    कई देशों से भी कुछ रुग्ण वहां आते हैं।
    संशोधन की दिशा में विचार प्रारंभ करें। उसके क्या क्या चरण हो सकते हैं? इसपर सामुहिक रीतिसे सोच भी प्रारंभ करें।कुछ लोगों के अनुभव से यह प्रमाणित हो, तो भी वह वैज्ञानिक दृष्टिसे सभीको स्वीकार्य नहीं होगा।
    साथ में मुझे सदा भय रहता है, कि पाश्चिमात्य पंडे उसका श्रेय छद्म रीतियों से ले लेंगे। और हमारे धौत बुद्धि (ब्रेन वाशड) विद्वान् उनकी सहायता करने में नहीं चुकेंगे।
    आप इस शोधकार्य में आगे बढें। आर्य वैद्य चिकित्सालय के १२० चिकित्सा कमरे हैं। आपके संपर्क में और चिकित्सक भी होंगे। जिसका उपयोग किया जा सकता है।
    आप को फिरसे धन्यवाद देकर विराम करता हूँ।

  14. आदरणीय डॉ. कपूर साहब, हर बार की तरह इस बार भी आपका लेख ज्ञान से भरपूर है…इस सुन्दर व ज्ञानवर्धक लेख के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद…
    आदरणीय हरपाल सिंह जी शायद आप “भारतीय इतिहास का पुनर्लेखन एक प्रवंचना” पुस्तक की बात कर रहे हैं| यह पुस्तक “सुरुचि साहित्य प्रकाशन, झंडेवालान, नई दिल्ली-५५” में मिलेगी| डॉ. कपूर साहब ने अपने पिछले लेख में एक टिप्पणी में इस पुस्तक का परिचय दिया था, तभी से मन में इच्छा है इस पुस्तक को खरीद कर पढने की| शायद निकट भविष्य में दिल्ली जाना हो, तब यह पुस्तक खरीदूंगा|

  15. आपने इक बार इतिहास की अच्छी पुस्तक की चर्चा की थी कहा से प्राप्त होगी

  16. सराहनीय लेख है आपका गो माता आपको समृद्धी के शिखर पर ले जाये सुन्दर लेख के लिए बधाई स्वीकार करे

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