लुंगी पर एक शोध प्रबंध-प्रभुदयाल श्रीवास्तव

प्रस्तुत अंश देश के होनहार एवं प्रगतिशील विचारधारा वाले समाज शास्त्र के एक पी. एच. डी. के एक छात्र द्वारा प्रेषित शोध प्रबंध से लिया गया है। वह छात्र मेरे पास आया था एवं लुंगी पर लिखा यह अद्वितीय एवं अमूल्य शोध प्रबंध मुझसे जंचवाया था। मैंने अपनी तीसरी एवं सबसे तरोताजा प्रेमिका के सहयोग से राष्ट्रहित में लिखा गया एवं समकालीन पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करता यह शोध प्रबंध ओ. के. कर दिया है पाठक गण भी इस उच्च कोटि के शोध प्रबंध को मुक्त कंठ् से स्वीकार करेंगे ऐसी आशा है।

लुंगी राष्ट्रीय एकता की पहचान है, क्योंकि वह जन्म से महान है। लुंगी शिव है, सुंदर है, सत्य है अन्य कोई भी वस्त्र गुलाम है सेवक है, अंग्रेजों का भक्त है। लुंगी सौम्य है, सरल है, भारत की तरह अखंड है, कुरते की प्राणेश्वरी है, शक्ति में प्रचंड है।

उत्तर से दक्षिण तक लुंगी का राज्य है पूर्व से पश्चिम तक लुंगी का साम्राज्य है। लोग लुंगी पहनते हैं, ओढ़ते हैं, बिछाते हैं, रस्सी न हो तो लुंगी को बाल्टी में लगाते हैं। कामवाली बाई लुंगी का पोंछा बना लेती है, झाड़ू न हो तो लुंगी से झाड़ू लगा देती है। लुंगी अपनी और बच्चों की नाक पोंछने के काम आती है, लुंगी विवाह मंडप में गठजोड़ का भी काम कर जाती है। लुंगी में परिवार के लिये सब्जी बांधकर लाई जा सकती है, लुंगी पर बैठकर दाल रोटी खाई जा सकती है।

फैली हुई लुंगी धूप में छाया का काम करती है, लुंगी को कुंडी बनाकर पनिहारन सिर पर घड़ा रखती है। लुंगी माननीय लालूजी की पहचान है, लुंगी सम्माननीय करुणानिधि का संविधान है। लुंगीवला बच्चों को खिलोने लाता है, लुंगीराम सुंदिरियों को चूड़ी पहनाता है। लुंगी बेड रूम की शान होती है, लुंगी अच्छे पति की पहचान होती है।शहर के दादा लुंगी धारण कर सड़्कों पर बेधड़क घूमते हैं, लुंगीधारी बेरोजगार बस स्टेंड पर कन्याओं को घूरते हैं।

 

लुंगी पहनने वाला मरकर सीधे स्वर्ग जाता है, लुंगी विहीन नरक में ही जगह पाता है। लुंगी पहनकर लोग संसद में पहुंच जाते हैं, लुंगी के कारण ही वे टिकिट पाने में सफलता पाते हैं। साड़ी को फाड़कर लुंगी बनाई जा सकती है, तीन लुंगियों को मिलाकर एक साड़ी सिलवाई जा सकती है। लुंगी पहनने व उतारने में सरल होती है, लुंगी की गयी साधना सफल् होती है।लुंगी संभालने में हाथ पैर सदा व्यस्त रहते हैं, इसलिये लुंगीधारी सदा स्वस्थ रहते हैं।

लुंगी सस्ती होती है, सुंदर होती है, टिकाऊ होती है, किसी नेता के ईमान की तरह बिकाऊ होती है। लुंगी सर्वधर्म संभाव की हामी है, हिन्दू मुस्लिम सिख, हर व्यक्ति लुंगी का अनुगामी है। लुंगी फैलाकर चंदा उगा सकते हैं, लुंगी से गले में फंदा लगा सकते हैं। लुंगी इंसान को एक अनुपम उपहार है, बूढ़े और जवान सभी को लुंगी से प्यार है। लुंगी पहनकर लोग राष्ट्रपति प्रधान तक बन जाते हैंलुंगी विहीन संतरी पद पर ही सड़ जाते हैं। बड़े बड़े लोग लुंगी को सलाम करते हैं, चोर उठाईगीर आतंकवादी तक प्रणाम करते हैं। लुंगी ब्रह्मा का दुर्लभ वरदान है, भरत वंशियों को लुंगी पर बड़ा अभिमान है। लुंगी पहनकर वीरप्पन ने देश में नाम कमाया, लुंगी लपेटकर लालूजी ने बिहार चलाया।

लुंगी का राष्ट्रीकरण जरूरी है, समझ में नहीं आता सरकार को क्या मजबूरी है। लुंगीवाद को हम सरकारी मान्यता दिलायेंगे, यदि अनदेखी हुई तो हम हड़ताल पर बैठकर भूखे मर जायेंगे। अब हम घर घर जायेंगे लुंगीवाद चलायेंगे, बच्चे वृद्ध जवानोँ को हम लुगी पहनायेंगे और हर लुंगी धारी को राष्ट्रप्रेम सिखलायेंगे।

लुंगी जिन्दाबाद लुंगीवाद जिंदाबाद।

आपका ही पी.एच डी का तमगा प्राप्त करने का अभिलाषी एक योग्य उम्मीदवार लुंगीराम लुंगीवाला।

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प्रभुदयाल श्रीवास्तव
लेखन विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी,कवितायें व्यंग्य ,लघु कथाएं लेख, बुंदेली लोकगीत,बुंदेली लघु कथाए,बुंदेली गज़लों का लेखन प्रकाशन लोकमत समाचार नागपुर में तीन वर्षों तक व्यंग्य स्तंभ तीर तुक्का, रंग बेरंग में प्रकाशन,दैनिक भास्कर ,नवभारत,अमृत संदेश, जबलपुर एक्सप्रेस,पंजाब केसरी,एवं देश के लगभग सभी हिंदी समाचार पत्रों में व्यंग्योँ का प्रकाशन, कविताएं बालगीतों क्षणिकांओं का भी प्रकाशन हुआ|पत्रिकाओं हम सब साथ साथ दिल्ली,शुभ तारिका अंबाला,न्यामती फरीदाबाद ,कादंबिनी दिल्ली बाईसा उज्जैन मसी कागद इत्यादि में कई रचनाएं प्रकाशित|

2 COMMENTS

  1. बहुत अच्छा शोध है ज्ञानवर्धक है हम भी आपके साथ है लुँगीवाद जिँदाबाद, हमारा नेता कैसा हो लुंगीराम जैसा हो

  2. जरुर किसी लुंगा ने यह लेख लिखा है. लुंगा बुन्देली शब्द है. लुंगा, लुच्चा का पर्यायवाची है, और नंगा लुच्चा का कनिष्ठ भ्रातः है. किन्तु आपकी तरह निकृष्ट नहीं है. जहाँ नंगे लुच्चे चोर उचक्के करते रोज बसेरा . वह भारत देश है मेरा. वास्तव में मेरा भारत महान है. जान है जहान है. लुंगी कहे धोती से हम तुम बने एक ही धागे से. अंतर केवल इतना है, तुम खुलती हो पीछे से . में खुलता हूँ आगे से. जय श्री राम दिन में जय श्री राम . रात में सौ ग्राम. धन्य हो लुंगी पठान.

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