सच्चा जननायक ही बने प्रधानमंत्री

डॉ. घनश्याम वत्स

भ्रष्टाचार के गरमागरम मुद्दे के साथ चुनाव सुधारों का मुद्दा भी अब धीरे धीरे गरम होने लगा है । कभी राइट टू रीकाल और कभी राइट टू रेजक्ट की बात होती है । ये सभी मुद्दे जनता की सत्ता में भागीदारी और सरकार की जनता के प्रति जवाबदेही बढाने के लिए ही हैं किन्तु जनता की भागीदारी सत्ता में बढाने का तथा सरकार को और अधिक जवाबदेह बनाने का एक तरीका और भी हो सकता है ।

भारत की संसद के दो सदन हैं । लोकसभा ( निम्नसदन ) एवं राज्यसभा (उच्च सदन ) जिसमे से लोकसभा के सदस्यों का चयन भारत की जनता के द्वारा प्रत्यक्ष तौर पर मतदान से और राज्यसभा के सदस्यों का चयन अप्रत्यक्ष रूप से होता है । उसी प्रकार भारत की शासन प्रणाली के दो महत्वपूरण पद प्रधानमंत्री एवं राष्टपति हैं किन्तु इन दोनों का ही चयन जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि करते हैं न की भारत की जनता । कौनसा सांसद ज्यादा सुविधाजनक है अथवा कौन जोड़ तोड़ में ज्यादा माहिर है इसी पक्ष पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है । भारत की जनता किसे पसंद अथवा न पसंद करती है ऐसा कोई विचार इन दोनों में से किसी एक के भी चयन में नहीं किया जाता । जब तक देश के शीर्ष पदों के चयन में जनता की पसंद अथवा न पसंद का ध्यान नहीं रखा जायेगा क्या तब तक सभी चुनाव सुधर व्यर्थ नहीं हैं ?

जिस प्रकार संसद में लोकसभा भारत की जनता का प्रत्यक्ष प्रतिनिधत्व करती है । उसी प्रकार कम से कम प्रधानमंत्री को भी शासन व्यवस्था में भारत की जनता का प्रत्यक्ष प्रतिनिधित्व करना चाहिए । इसलिए प्रधानमंत्री का चयन प्रत्यक्ष तौर पर भारत की जनता द्वारा करवाया जाना चाहिए ताकि भारत के प्रधानमंत्री सच्चे अर्थों में भारत के प्रधानमन्त्री हो न की केवल कहने के लिए और उनके माध्यम से भारत की जनता सरकार में अपनी प्रत्यक्ष भागीदारी अनुभव करे ।

इस प्रक्रिया के निम्न लाभ होंगे –

१. भारत में कोई प्रधानमंत्री उत्तर का तो कोई दक्षिण का होता है । कभी उत्तरप्रदेश का तो कभी किसी अन्य प्रदेश का होता है किन्तु आज तक कभी भी कोई प्रधानमंत्री पूरे भारत का नहीं हुआ । यदि प्रधान मंत्री का चुनाव सीधे तौर पर भारत की जनता करेगी तो वह प्रधानमंत्री भारत का होगा न की किसी क्षेत्र अथवा राज्य विशेष क़ा । इस प्रकार भारत प्रधान मंत्री के चुनाव के मध्यम से एकता के सूत्र में बंधेगा जो की भारत के लिए एक शुभ परिणाम देने वाला होगा ।

२. सम्पूरण देश का प्रधानमंत्री बनने वाला व्यक्ति केवल किसी जाति, धर्म, अथवा समुदाय विशेष का प्रतिनिधि न होकर सम्पूरण भारत का होगा तो वह भारतीय जनता के हित की बात बिना किसी जाति धर्म अथवा समुदाय विशेष को ध्यान में रख कर । भारत के लोकतान्त्रिक एवं धर्मनिरपेक्ष ढाँचे के लिए यह भी एक अच्छी पहल होगी ।

३. भारत के प्रधान मंत्री कहने को तो आज भी जनता के प्रति जवाब देह हैं किन्तु जब उनका चयन प्रत्यक्ष तौर पर भारत की जनता करेगी तो वे भारत की जनता के प्रति और अधिक जवाबदेह होंगे और उनके द्वारा जन भावनाओं का आदर न करने पर जनता उन्हें सीधे तौर पर सजा दे सकेगी । क्योंकि जब कोई सांसद जनता की भावनाओं के विरुद्ध आचरण करता है तो अगले चुनावों में विभिन्न लोकसभा क्षेत्रों की जनता विभिन्न परिस्तिथियों में, एवं भिन्न भिन्न राज्यों में अलग अलग तरीके से वोट देती है तो खंडित जनादेश आता है और हर कोई ये दावा करता है की जनता ने उसके पक्ष में जनादेश किया है । कोई सबसे बड़ी एकल पार्टी होने का दावा करता है तो कोई सबसे बड़ा चुनावी गठजोड़, सब सत्ता पाने के लिए अपने अपने तर्क देते हैं किन्तु जब प्रधान मंत्री का चयन सीधे जनता करेगी तो जनादेश प्रधानमंत्री के रूप में मिलेगा और वो भी खंडित नहीं होगा क्योंकि वो स्पष्ट हाँ या न में होगा संसद में दलीय स्थिति चाहे कैसी भी हो ।

४. अभी तक प्रधानमंत्री मात्र एक सांसद होता है और वह केवल अपने लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है । किन्तु जब वह पूरे देश की जनता के द्वारा चुना जाएगा तो प्रधानमंत्री के पद की गरिमा बढ़ेगी और प्रधानमंत्री के आत्मविश्वास में इजाफा होगा और वह कभी भी रबड़ स्टंप का काम नहीं करेगा ।

५. अभी तक मंत्री परिषद् में प्रधान मंत्री की स्थिति कोई बहुत अच्छी नहीं है । वे मंत्रिपरिषद के अन्य मंत्रियों के बराबर ही है और वे तो केवल मात्र शासन चलाने के लिए मंत्रिपरिषद के मुखिया हैं एवं कभी भी उन्हें बदला जा सकता है । किन्तु प्रधान मंत्री के सीधे चुनाव से पूरी शासन व्यवस्था के साथ साथ मंत्री परिषद् में भी प्रधान मंत्री के पद की गरिमा एवं धाक बढ़ेगी । वह अपनी बात मंत्रिपरिषद में और अच्छी तरह से रख सकेंगे मंत्रिपरिषद के सहयोगी अन्य मत्री उनकी इज्ज़त करेंगे एवं उनकी अवज्ञा करने से डरेंगे ।

६. जब भी कभी सरकार पर संकट आता है अथवा संसद भंग होने की स्थिति पैदा होती है तो हर सांसद को अपने संसदीय क्षेत्र , पुनः चुनाव और फिर वही चुनावी खर्चा दिखाई देता है और वह इन सबसे डर जाता है और डर कर समझौते करने लगता ही । सांसदों की खरीद फरोख्त चालू हो जाती है क्योंकि कोई भी सांसद पांच वर्ष से पूर्व जनता के बीच नहीं जाना चाहता ठीक ऐसा ही विचार प्रधानमंत्री के मन में भी आता है क्योंकि वह भी तो एक सांसद हैं और वह भी समझौते करने लगते हैं और देश की जनता के विषय में न सोचकर सरकार चलाने के बारे में सोचना शुरू कर देते हें । किन्तु जब प्रधानमंत्री का चुनाव भारत की जनता करेगी तो ऐसी किसी भी स्थिति में प्रधानमंत्री को देश एवं देश की जनता नज़र आयेगी न की कोई संसदीय क्षेत्र और वह सही कदम उठाएगा ।

७. प्रधानमन्त्री का चुनाव पांच वर्षों के लिए होना चाहिए क्योंकि इससे प्रधान मंत्री एक आम सांसद से थोडा अलग और ऊपर होंगे उनके पास अगले पांच वर्षों की स्थिरता होगी । वे बिना किसी डर के वह जनता के पक्ष में कुछ बोल्ड कदम उठा सकेंगे । देश एक दिशा में और तेज़ी के साथ तरक्की करेगा , वह कुछ नए क्रांतिकारी कदम भी उठा सकेंगे ।

८. हर प्रधान मंत्री जनता के साथ सीधे तौर पर जुडा होगा और जनता भी इस सम्बन्ध को अनुभव करेगी और आवश्यकता पड़ने पर उसकी बात मानेगी ।

हो सकता है की कभी प्रधानमंत्री निरंकुश हो जाए तो जनता राइट टू रीकाल के द्वारा या फिर संसद में अविश्वास प्रस्ताव के द्वारा के उन्हें अपने पद से हटाया जा सके । ऐसा भी प्रावधान होना चाहिए । प्रधानमंत्री पद के लिए प्रत्याशी २-३ से अधिक नहीं होने चाहियें ताकि मतदान स्पष्ट तौर पर हाँ या ना में हो सके और जनता की सही राय जाहिर हो सके । जीतने वाले प्रत्याशी को कम से कम ५१ % मत मिलें और जनादेश खंडित न हो । जिस दल अथवा गठबंधन का प्रधानमंत्री होगा । वह अपने दल अथवा गठबंधन के चुने हुए सांसदों में से अपनी मंत्री परिषद् का निर्माण कर सकता है जैसा की आज कल भी हो रहा है ।

और अधिक विश्लेषण नियम कायदे क़ानून तो कानून के जानकार ही कर सकते हैं किन्तु एक बात तय है जिसे भी प्रधानमंत्री बनना होगा उसे जनता का वोट लेने के लिए सच्चा , इमानदार , धर्मनिरपेक्ष और सच्चा जननायक बनना ही होगा नहीं तो उसका चुनाव नहीं हो सकेगा

1 COMMENT

  1. डाक्टर साहब आपने तो संविधान की मूल ही बदलने की बात कर डाली.भारत का पूरा संविधान ब्रिटेन के संसदीय पद्धति पर आधारित संविधान है,अब आप इसे अमेरिकी संविधान के ढाँचे में लाना चाहते हैं,जहां राष्ट्रपति का चुनाव जनता करती है.दोनों पद्धतियों के अपने गुण दोष हैं.अतः उनपर बहस न करके अभी तो हमें इसी संविधान के अंतर्गत परिवर्तन के बारे में सोच्य्ना है.

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