कविता

विकृत होते प्रकृति संबंध

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’हम’ को हटा
पहले ’मैं’ आ डटा
फिर तालाब लुटे
औ जंगल कटे,
नीलगायों के ठिकाने भी
’मैं’ खा गया।
गलती मेरी रही
मैं ही दोषी मगर
फिर क्यूं हिकारत के
निशाने पे वो आ गई ?
हा! ये कैसे हुआ ?
सोचो, क्यूं हो गया ??

घोसले घर से बाहर
फिंके ही फिंके,
धरती मशीं हो गई
गौ, व्यापार हो गई,
बछङा, ब्याज सही,
नदियां, लाश सही,
तिजोरी खास हो गई।
सुपने बङे हो गये
पेट मोटे हुए,
दिल के छोटे हुए,
दिमाग के हम
क्यंू खूब हम खोटे हुए ?
हा! ये कैसे हुआ ?
सोचो, क्यूं हो गया ??