ममता बनर्जी की राजनीतिक कलाबाजी

सुरेश हिन्दुस्थानी
वर्तमान में राजनीति का खेल कितना निम्र दर्जे का हो गया है, इसका ताजा उदाहरण पश्चिम बंगाल के राजनीतिक घटनाक्रम से दिया जा सकता है। पश्चिम बंगाल में सारधा चिटफंड घोटाले की आंच जब ममता बनर्जी के दामन की ओर जाती लग रही हैं, इस पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मामले को ऐसा मोड़ देने का प्रयास किया है। जो जनता का ध्यान मूल प्रकरण से हटा सके। उल्लेखनीय है कि ममता बनर्जी सारधा घोटाले की जांच कराने को इतनी सक्रिय नहीं दिख रहीं, जितना वे मोदी पर आरोप लगा रहीं हैं। मामले को इस प्रकार से मोड़ देना निश्चित ही भारतीय राजनीति के लिए एक खतरनाक प्रयास है।
पश्चिम बंगाल में राजनीतिक कलाबाजियों में माहिर हो चुकीं ममता अपने दामन की ओर आने वाले छीटों से बचाव करने में अपनी सारी राजनीति को अंजाम देने में व्यस्त होती दिखाई दे रहीं हैं। तृणमूल कांगे्रस के सांसद कुणाल घोष पर जब पूरा मुद्दा गाज बनकर गिरने लगा है, तब घोष आखिर कब तक चुप बैठते। उन्होंने आखिर इस सत्य को स्वीकार कर ही लिया कि चिटफंड घोटाले में सबसे ज्यादा लाभ ममता बनर्जी को मिला है। जब उनकी ही पार्टी का सांसद यह बात कह रहा है तब उसके निहितार्थ आसानी से निकाले जा सकते हैं।
तृणमूल कांग्रेस की मुखिया और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री को जब यह लगने लगा कि वे इस घोटाले में फंसने वाली हैं, तब उन्होंने ऐसी राजनीति खेली कि जैसे यह पूरा घटनाक्रम केन्द्र सरकार के संकेत पर चल रहा हो, लेकिन यह सत्य है कि घोटाला हुआ है और इससे भी बड़ा सत्य यह है कि इसमें पूरी की पूरी तृणमूल कांग्रेस ही अपराधी के तौर पर सामने आती दिखाई देने लगी है। चलो मान ही लेते हैं कि केन्द्र सरकार के इशारे पर ही यह सारा खेल चल रहा है, लेकिन इसमें गलत क्या है। क्या घोटाले की जांच नहीं होना चाहिए। वास्तव में ममता को इस मामले में केन्द्र सरकार का समर्थन ही करना चाहिए कि केन्द्र की मोदी सरकार भ्रष्टाचारियों के विरोध में अभियान चला रही है। लेकिन ममता बनर्जी ने दूसरे ही प्रकार की राजनीति खेलने का मन बना लिया है। अपनी गिरती हुई प्रतिष्ठा को बचाने की कवायद में वह ऐसे बयान दे रही हैं जिनका कोई ठोस आधार ही नहीं है।
ममता बनर्जी को संभवत: इस बात की जानकारी नहीं है कि सारधा घोटाले की जो सीबीआई जांच चल रही है, वह नरेन्द्र मोदी के कार्यकाल से पहले ही प्रारंभ हो चुकी थी। तृणमूल कांग्रेस के सांसद, विधायकों पर शुरू से ही इस घोटाले में शामिल होने के आरोप लगे, लेकिन जैसे जैसे समय बढ़ता गया वैसे वैसे आरोपों की प्रामाणिकता सामने आने लगी है। ममता बनर्जी की बौखलाहट केवल इस बात को लेकर है कि कैसे भी हो आरोपों की जांच बन्द हो जाए। ऐसे में लगता है कि केन्द्र में अगर नरेन्द्र मोदी के अलावा किसी और की सरकार होती तो शायद ममता को समझौते के तहत जीवनदान मिल गया होता, लेकिन वर्तमान सरकार से उनको कोई उम्मीद नजर नहीं आ रही।
हम यह भली भांति जानते हैं कि सारधा घोटाले की चपेट में तृणमूल कांग्रेस के बड़े बड़े शूरमा आते जा रहे हैं। इनमें कुणाल घोष की तो गिरफ्तारी भी हो चुकी है इसके अलावा सांसद सृंजय बसु, राज्य के परिवहन मंत्री मदन मित्र, तृणमूल के राष्ट्रीय महासचिव मुकुल राय व खुद ममता बनर्जी का नाम भी शामिल आता हुआ दिखाई दे रहा है। इस सूची में से कुणाल घोष सहित दो लोगों की गिरफ्तारी हो चुकी है। जबकि तीसरा नाम सीबीआई की कार्रवाई में शामिल हो चुका है। परिवहन मंत्री मदन मित्र को सीबीआई पूछताछ के लिये तलब कर चुकी है। माकपा, कांग्रेस व भाजपा जहां तृणमूल सांसद की गिरफ्तारी के लिये सीबीआई की प्रशंसा कर रही है वहीं उनका यह भी कहना है कि जल्द ही तृणमूल के कुछ और बडे चेहरे सीबीआई की गिरफ्त में होंगे। इसके साथ ही मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के इस्तीफे की मांग भी जोड़ पकडने लगी है।
सारदा मामले में आरोपियों की सूची में आने वाले तृणमूल नेताओं के प्रति पार्टी सुप्रीमो ममता बनर्जी की रवैया बेहद अचरज भरा रहा है। आरंभ में ममता ने कुणाल घोष का भी बचाव किया था लेकिन जब कुणाल ने उनकी इमानदारी पर उंगली उठाई तो उन्हें पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। कुणाल की गिरफ्तारी के बाद तृणमूल के ज्यादातर नेता सारदा मामले का सारा दोष उन्ही के सिर मढ़ते नजर आये थे। कुणाल के बाद मामले में गिरफ्तार एक और तृणमूल नेता व राज्य के पूर्व डीजी रजत मजूमदार की गिरफ्तारी के बाद उनके प्रति भी पार्टी का रवैया पूरी तरह बदल गया था। अब सृंजय बसु की गिरफ्तारी से पार्टी बुरी तरह फंसती नजर आ रही है। स्थिति यह है कि तृणमूल नेताओं के सफाई देते नहीं बन रहा। पार्टी की तरफ से अब तक जो प्रतिक्रियाएं आई हैं उनमे सीबीआई पर पक्षपात का आरोप लगाने के अलावा कुछ भी नया नहीं है। खुद ममता बनर्जी भी इसे पार्टी के खिलाफ साजिश के रूप में देख रही हैं।
विपक्षी पार्टियां उनके इस रवैये पर भी कटाक्ष करने से नहीं चूकीं। विपक्ष का कहना है कि दिल्ली में दाल नहीं गली, इसी बौखलाहट में मुख्यमंत्री केंद्र सरकार के खिलाफ आक्रामक तेवर दिखाने लगी हैं। ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल की जनता के सामने ऐसी राजनीति खेल रहीं हैं, जिससे जनता समझे कि वर्तमान केन्द्र सरकार तृणमूल कांग्रेस सरकार की विरोधी है, जबकि मूलत: ऐसा लगता नहीं है। इसके विपरीत सत्य तो यही है कि ममता स्वयं केन्रद सराकर के विरोध की राजनीति कर रहीं हैं। उन्हें हर समय अपने वजूद की चिन्ता रहती है। केन्द्र में सरकार चाहे कांग्रेस की हो या फिर किसी और की ममता ने हमेशा ही अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के चलते केन्द्र को दबाने का प्रयास ही किया है। ममता बनर्जी को शायद इस बात का गुमान सा हो गया है कि भारत की राजनीति उनके बिना नहीं चल सकती, और जैसा चाहें वैसा उसका दुरूपयोग कर सकतीं हैं। उनको आज नहीं तो कल धरातलीय सच पर आना ही होगा। नहीं तो जनता के समक्ष न तो किसी की चली है और न ही किसी की चलेगी। कहा जा सकता है कि जिसे जनता के तेवरों का अहसास नहीं होता वह अपने स्वयं ही अपने राजनीतिक वजूद को समाप्त करने की ओर अग्रसर हो जाता है।

1 COMMENT

  1. ममता अब खिसयाई बिल्ली बन गयी हैं , सुप्रीम कोर्ट की निगाह में चल रही जांच में यदि मनमोहन सरकार भीहोती तो कुछ नहीं कर पाती 2 जी , कोयला घोटाले भी तत्कालीन केंद्र सरकार कहाँ दबा पायी थी चाहे कितने भी समर्थन की बात ममता करती कुछ होने वाला नहीं था वैसे मन मोहन राज में इसे रफा दफा करने की कोशिश हुई भी थी पर न्यायालय की नजर पड़ते ही सब धराशायी हो गया था

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