भगवान की तलास में इंसान

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ढूंढ रहा है जंगल जंगल,मृग अपनी कस्तूरी को।
देख पाया न अपनी नाभि,छिपी हुई कस्तूरी को।।

ढूंढ रहा है मंदिर मंदिर,भक्त अपने भगवान को।
मिल न पाया भगवान उसे इस भोले इंसान को।।

बढ़ चुका है विज्ञान काफी,पाया न भगवान को।
सारी सृष्टि में समाया ,फिर भी ढूंढे भगवान को।।

खुद से दूर चला गया इंसान,क्या ढूंढेगा भगवान को।
पहले खुद को तुम ढूंढो,फिर ढूंढना उस भगवान को।।

हर जगह ढूंढ लिया उसे,कही मिला न भगवान है।
मत ढूंढ बंदे तू उसे वह तो कण कण में विद्यमान है।।

न रखा कुछ तीर्थो में,न रखा कुछ चारो धामों में।
कर्म की पूजा करता रह,व्यस्त रख सुकामों में।।

भीतर शून्य है बाहर शून्य है शून्य चारो और है।
मुझ में नही तुझ में नही,फिर भी मैं का शोर है।।

आर के रस्तोगी

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आर के रस्तोगी
जन्म हिंडन नदी के किनारे बसे ग्राम सुराना जो कि गाज़ियाबाद जिले में है एक वैश्य परिवार में हुआ | इनकी शुरू की शिक्षा तीसरी कक्षा तक गोंव में हुई | बाद में डैकेती पड़ने के कारण इनका सारा परिवार मेरठ में आ गया वही पर इनकी शिक्षा पूरी हुई |प्रारम्भ से ही श्री रस्तोगी जी पढने लिखने में काफी होशियार ओर होनहार छात्र रहे और काव्य रचना करते रहे |आप डबल पोस्ट ग्रेजुएट (अर्थशास्त्र व कामर्स) में है तथा सी ए आई आई बी भी है जो बैंकिंग क्षेत्र में सबसे उच्चतम डिग्री है | हिंदी में विशेष रूचि रखते है ओर पिछले तीस वर्षो से लिख रहे है | ये व्यंगात्मक शैली में देश की परीस्थितियो पर कभी भी लिखने से नहीं चूकते | ये लन्दन भी रहे और वहाँ पर भी बैंको से सम्बंधित लेख लिखते रहे थे| आप भारतीय स्टेट बैंक से मुख्य प्रबन्धक पद से रिटायर हुए है | बैंक में भी हाउस मैगजीन के सम्पादक रहे और बैंक की बुक ऑफ़ इंस्ट्रक्शन का हिंदी में अनुवाद किया जो एक कठिन कार्य था| संपर्क : 9971006425

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