मनकी बात में अंतिम व्‍यक्‍ति की चिंता करते मोदी

डॉ. मयंक चतुर्वेदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आकाशवाणी से ‘मन की बात’ कार्यक्रम के 35वें संस्‍करण के जरिए लोगों के साथ जब अपने विचार साझा कर रहे थे तो यही लग रहा था कि देश के साथ यह सीधा संवाद प्रधानमंत्री या कोई प्रधानसेवक नहीं कर रहा, यह बातें तो हर उस भारतीय के मन की हैं जो दुनिया के किसी भी कौने में क्‍यों न हो, वह उनसे जुड़ाव महसूस करता है ओर यह अनुभूत करता है कि ज्‍यादातर भारतीयों के आचरण में परस्‍पर जो विश्‍वास का संकट उपस्‍थ‍ित है वह शीघ्र समाप्‍त हो। अर्थ‍िक रूप से कमजोर व्‍यक्‍ति को देखने की दृष्‍ट‍ि एवं मानसिकता में सकारात्‍मक परिवर्तन आना ही चाहिए। प्रधानमंत्री मोदी की यह बात सीधे ह्दय को छूती हैं जिसमें वह कह गए कि हम मेहनतकश लोगों से मोल-भाव करते हैं। गरीब की ईमानदारी पर शक करते हैं, जबकि हमारी सोच ऐसी हो गई है कि किसी बड़े रेस्‍त्रां और शोरूम में कोई मोल-भाव भी नहीं करेंगे।

वस्‍तुत: इन विचारों माध्‍यम से प्रधानमंत्री मोदी ने देश को यह सोचने पर विवश किया है कि हमारे हित क्‍या हैं और हमारा आचरण अपने देशवासियों के प्रति कैसा होना चाहिए । पण्डित दीनदयाल उपाध्‍याय के भारतीय अर्थ चिंतन एकात्‍म मानवदर्शन का वह तत्‍व यहां समुचे भारतीयों को याद दिलाने का प्रयास भी हुआ है, जिसके अनुसार हमारी विकास यात्रा के अंतिम पायदान पर खड़े व्‍यक्‍ति का अंत्‍योदय एवं उसका आर्थ‍िक विकास तथा समाज में उसकी सहज स्‍वीकार्यता वह भी सामर्थ्‍य के साथ हो, खड़ी करना है।

 

17 अक्‍टूबर को हर साल गरीबी उन्‍मूलन दिवस मनाया जाता है और यह संकल्‍प लिया जाता है कि हम गरीबी मुक्‍त विश्‍व बनाएंगे। आज इसी संकल्‍प की दिशा में केंद्र सरकार द्वारा कोशिश यही की जा रही है कि भारत 2020 तक सुपरपॉवर बन जाए, जिसमें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का लक्ष्‍य बिल्‍कुल स्‍पष्‍ट है। आज वे अंतर्राष्‍ट्रीय हालातों को ध्‍यान में रखकर एक के बाद एक देशहित में योजनाएं बना रहे हैं और उन्‍हें दृढ़ता के साथ नीचे तक ले जाने का प्रयत्‍न कर रहे हैं। प्रधानमंत्री ने अपनी मन की बात में यह बताया भी है कि  जन धन योजना दुनिया में चर्चा का विषय है। योजना से 30 करोड़ लोगों को जोड़ा गया है। इसमें गरीबों द्वारा 65 हजार करोड़ कर रकम जमा है। रुपे कार्ड से लोगों के बीच समानता का भाव जगा। कुल मिलाकर प्रयास यही है कि भारत का अपना वैश्विक हंगर इंडेक्स या विश्‍व भुखमरी सूचकांक (जीएचआई)  सुधार जाए, जिसमें कि अभी हम बहुत पीछे हैं।

वर्तमान में पूरे विश्व में भारत में गरीबों की संख्या सबसे अधिक है। तीस साल पहले भारत में विश्व के गरीबों का पांचवा हिस्सा रहता था और अब यहां दुनिया के एक-तिहाई गरीब रहते हैं। इसका मतलब तीस साल पहले के मुकाबले भारत में वर्तमान में गरीबों की संख्‍या अधिक है। आज भी 22 प्रतिशत भारतीय 265 मिलियन की तादात में गरीबी रेखा के नीचे गुजर बसर कर रहे हैं। इनमें से 146 मिलियन लोग देश के सात राज्‍यों मे निवासरत हैं, बिहार, उत्‍तरप्रदेश, मध्‍यप्रदेश, झारखण्‍ड उड़ीसा, उत्‍तराखण्‍ड और छत्‍तीसगढ़ में । इसका मतलब ये न समझें कि देश के अन्‍य राज्‍यों में गरीब नहीं या खुशहाली का माहौल है, गुजरात, दिल्‍ली, केरल,महाराष्‍ट्र जैसे तमाम राज्‍यों में भी गरीबों की अच्‍छी खासी संख्‍या है। गुजरात में तो मध्‍यप्रदेश के बराबर ही गरीब हैं।

वस्‍तुत: इन राज्‍यों के गरीब होने का एक कारण यह भी है कि देश की 60 प्रतिशत गरीब जनसंख्‍या इन्‍हीं राज्‍यों में रहती है। देश की 85 प्रतिशत जनजातीय आबादी यहां है, इसके अलावा इनमें से ज्यादातर क्षेत्र या तो बाढ़ से ग्रसित है या फिर सूखे जैसी स्थितियों से जूझते हैं। यह स्थितियां बहुत हद तक कृषि के कार्य में बाधा बनती हैं और कृषि पर ही यहां के लोगों की घरेलू आय निर्भर करती है। देश में सांख्यिकीय आंकड़ों के अनुसार जिसकी एक दिनी खर्च करने की क्षमता गांव में रहकर 32रुपए और शहरों में 49 रुपए है उसे केंद्र सरकार ने गरीब नहीं माना है। हालांकि इसके पहले तो यह आंकलन 33 रुपए शहरी एवं गांवों में प्रतिदिन 27 रुपए खर्च करने का प्रति प्रतिव्‍यक्‍ति रहा, यदि इसके ओर पहले जाए तो यह घर के पांच सदस्‍यों पर गांवों में 100 और शहरों में 125 रुपए प्रतिमाह गरीब की परिभाषा में आने के लिए सुनिश्चित किया गया था। किंतु इन सभी आंकड़ों को मीडिया ने अपने समय में कभी सही नहीं माना और न ही समाज से इस आंकलन को देशभर में कभी समर्थन मिला। अभी मोदी सरकार के आने के बाद नीति आयोग को यह जिम्‍मेदारी दी गई है कि वह गरीबी की सही परिभाषा एवं तथ्‍यपूर्ण आंकड़ा दे, जिस पर कि कार्य चल रहा है।

हां, गरीबों को लेकर पिछली यूपीए सरकार का कहना था कि उसके शासनकाल में देशभर में 14 करोड़ लोगों को गरीबी रेखा से ऊपर उठाया गया। आज एनडीए सरकार भी इस प्रयास में लगी है कि देश गरीबी से मुक्‍त हो जाए। हमें उम्‍मीद करनी चाहिए कि वर्तमान सरकार के प्रयासों का असर अगले कुछ सालों में दिखायी देगा। कुछ असर दिख भी रहा है। कर दाताओं की संख्‍या में अचानक नोटबंदी के बाद से 33 लाख का इजाफा हुआ जो निश्‍चित तौर पर शुभ संकेत है। पिछले कुछ सालों में भारत का दुनिया के देशों के बीच जो प्रदर्शन रहा है, उसे देखकर विश्‍वभर के अर्थ‍िक विश्‍लेषण यही कह रहे हैं कि भारत तेजी से आर्थिक विकास कर रहा है और उसने मोदी के नेतृत्‍व में गरीबी पर भी काफी हद तक नियंत्रण पाया है । प्रधानमंत्री की जनधन योजना, स्वच्छ भारत अभियान, मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया, मुद्रा योजना, उज्‍जवला योजना, सर्जिकल स्ट्राइक,  विमुद्रीकरण, जीएसटी बिल, मन की बात, डोकलाम जैसे मुद्दे या अन्‍य विदेश मामलों से जुड़े विषयों पर स्‍पष्‍ट नीति, दीनदयाल उपाध्‍याय ग्रामीण कौशल योजना जैसे किए जा रहे नवागत प्रयासों ने वर्तमान भारत की ओर दूसरे देशों का नजरिया आज बदल दिया है।

सरकार में आने के बाद स्‍वयं आगे होकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन तमाम कानूनों पर प्रश्‍न खड़े किए जिनके कारण से न्‍याय मिलने में व्‍यर्थ ही देरी होती थी। उनका मानना है कि कई गैरजरूरी कानून लोगों के लिए दिक्कत पैदा करते हैं। उन्होंने अब तक अपनी सरकार में 1000 से ज्यादा कानून रद्द किए हैं। इतना ही नहीं तो मोदी भ्रष्टाचार के खिलाफ मजबूत किलेबंदी की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं, लेकिन चुनौतियां अपार हैं, आर्थिक विषमताओं से निपटने में सरकार अभी तक सफल नहीं हो पाई है, यानि कि देश में आर्थिक विकास के फायदे से अधिकतर जनजातीय, दलित और मजदूर वर्ग दूर हैं, जबकि गरीबी भी इसी वर्ग के लोगों में ही सबसे अधिक हैं। अब प्रश्‍न यही है कि कैसे इन वर्ग के लोगों को समुचा देश मिलकर गरीबी रेखा के अभिशाप से मुक्‍ति दिलाए ?  इस पर कहना यही है, सबसे पहले इस वर्ग के जो लोग छोटे-छोटे कार्यों के माध्‍यम से आय अर्जित करने में लगे हैं, उनको हमें प्रोत्‍साहित करना है। किसी बड़े रेस्‍त्रां और शोरूम में कोई मोल-भाव नहीं जैसा व्‍यवहार हमें इनके साथ करना है।

एक बात ओर कि भारत में गरीबी का मुख्य कारण बढ़ती जनसंख्या दर है। इससे निरक्षरता, खराब स्वास्थ्य सुविधाएं और वित्तीय संसाधानों की कमी की दर बढ़ती है और प्रति व्यक्ति आय प्रभावित होकर घट जाती है। इस दृष्‍ट‍ि से भी इनमें जागरुकता लानी है, देश के अल्‍पसंख्‍यक वर्ग को परिवार नियोजन की योजनाओं से जोड़ना है। मोदी जिस तरह से मन की बात के माध्‍यम से लोगों के मन को टटोल रहे हैं, संवेदना के स्‍तर पर उसे जगा रहे हैं, उसके देखते हुए इतना अवश्‍य कहा जा सकता है कि आगे भारत का भविष्‍य सुखद आशाभरा है। इससे उम्‍मीद यही है कि प‍ं. दीनदयाल उपाध्‍याय के एकात्‍ममानव दर्शन को वह अवश्‍य ही साकार करने में सफल हो जाएंगे, जिसमें विकास के अंतिम पायदान पर खड़े व्‍यक्‍ति का समुचा विकास करना ही राजनीतिक परमसत्‍ता का अंतिम ध्‍येय है, जिस पर की इन दिनों भाजपा की सत्‍ताएं केंद्र व राज्‍यों में चलती दिखाई दे रही हैं।

 

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मयंक चतुर्वेदी
मयंक चतुर्वेदी मूलत: ग्वालियर, म.प्र. में जन्में ओर वहीं से इन्होंने पत्रकारिता की विधिवत शुरूआत दैनिक जागरण से की। 11 वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय मयंक चतुर्वेदी ने जीवाजी विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के साथ हिन्दी साहित्य में स्नातकोत्तर, एम.फिल तथा पी-एच.डी. तक अध्ययन किया है। कुछ समय शासकीय महाविद्यालय में हिन्दी विषय के सहायक प्राध्यापक भी रहे, साथ ही सिविल सेवा की तैयारी करने वाले विद्यार्थियों को भी मार्गदर्शन प्रदान किया। राष्ट्रवादी सोच रखने वाले मयंक चतुर्वेदी पांचजन्य जैसे राष्ट्रीय साप्ताहिक, दैनिक स्वदेश से भी जुड़े हुए हैं। राष्ट्रीय मुद्दों पर लिखना ही इनकी फितरत है। सम्प्रति : मयंक चतुर्वेदी हिन्दुस्थान समाचार, बहुभाषी न्यूज एजेंसी के मध्यप्रदेश ब्यूरो प्रमुख हैं।

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