कई झोल है महिला यौन उत्पीड़न विधेयक में

13 साल की लम्बी लडाई के बाद आखिर पिछले दिनो लोक सभा के शीतकालीन सत्र में महिला उत्पीड़न रक्षा विधेयक 2010 पेश हुआ जो केंद्रीय मंत्री मंडल की मंजूरी के बाद लोकसभा की स्थाई समिति के पास जा चुका है। लेकिन अभी इस में कई खामिया है ऐसा कहना है देश के कई महिला संगठनो का। आखिर यौन उत्पीड़न कानून बनाने की जरूरत क्यो पेश आई इस के पीछे भी एक बहुत ही दिलचस्प घटना है। लगभग दस साल पहले पंजाब राज्य के सरकारी कार्यालयो में यौन उत्पीड़न संबंधी घटना एक दैनिक अखबार की सुख्रियां बनी। पंजाब राज्य समाज कल्याण विभाग का एक उच्च अधिकारी काम के सिल सिले में अपने अधीन महिला कर्मचारियो को अपने केबिन में बुलाता और कहता आओ बैठो, नाडा खोलो इतना सुन महिला कर्मचारियो का शर्म से फक पीला चेहरा देखकर ये चालाक अधिकारी बात बदल कर मुस्कुराते हुए कहता ओह कुडिये अपना नही फाईल दा नाडा खोल। नाडे से अधिकारी का मतलब फाईल का टैग होता था। इस समाचार ने केवल पंजाब ही नही पूरे हिन्दोस्तान में तूफान मचा दिया। कुछ शरीफ लोगो ने अपनी अपनी इज्जत की खातिर पत्नीयो से रिजाईन दिला दिया। वही कुछ अपनी पत्नीयो के चरित्र पर शंक करने लगे। कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की इस घटना ने देश के तमाम घरो में बवाल मचा दिया। अधिकांश महिलाओ और युवतियो के माता पिता और पतियो ने उन्हे फौरन नौकरी छोडने के लिये कह दिया था।
इस नये विधेयक की सब से बडी कमजोरी यह है कि ये कानून घरेलू कामगार महिलाओ पर लागू नही होगा। जिन महिलाओ को इस नये कानून से सब से ज्यादा सुरक्षा मिलनी चाहिये उन तमाम घरेलू कामगार महिलाओ को इस नये कानून के दायरे से बाहर रखा गया है। हम सभी लोग ये बात बखूबी जानते है कि हमारे देश में घरेलू कामगार महिलाओ का सब से ज्यादा यौन शोषण होता है हर रोज कही न कही से अपनी घरेलू नौकरानी के साथ मालिक या घर के बिगडे शहजादो द्वारा दुराचार या बुरी नीयत से पकडने की खबरे आती रहती है पिछले दिनो अपनी नौकरानी के साथ शारीरिक संबध बनाने के संबध में एक फिल्म स्टार शाहीनी आहूजा को जेल भी हुई थी। ये महज एक उदाहरण है। पैसे के बल पर आज न जाने कितनी महिलाओ की आबरू से खेला जाता है और फिर चाणक्य नीति साम, दाम, दण्ड, भेद अपने हुए ये अमीर लोग बेचारी इन गरीब महिलाओ का मुॅह पैसे से बन्द कर देते है। अगर आज इन्हे ही इस नये विधेयक में छोड दिया गया तो फिर इस विधेयक का उद्देश्य ही खत्म हो गया। देश के तमाम महिला संगठनो का ये सब कहना और इस विधेयक पर उगली उठाना जायज लगता है।
दरअसल सरकार द्वारा घरेलू कामगार महिलाओ को इस विधेयक में न लेना और उन्हे इस विधेयक से दूर रखने के पीछे शायद ये मंशा हो सकती है कि इनके द्वारा इस विधेयक का दुरपयोग हो सकता है। क्यो की देश में लाखो करोडो की तादाद में घरेलू कामगार महिलाए है। नौकर मालिक में जरा सी खटपट सरकार का सिर दर्द बा सकती है। वजह बिल्कुल साफ है आज देश की हर एक अदालत में मुकदमो का अम्बार लगा हुआ है। सरकारी आंकडो और विधि मंत्रालय के पास ताजा मौजूद आंकडो के मुताबिक देश भर के विभिन्न उच्च न्यायालय में लगभग 265 न्यायाधीशो की आज भी कमी है। और इस कमी के चलते लंबित मुकदमो की संख्या लगभग 39 लाख हो गई है वही देश की विभिन्न अदालतो में लगभग 3.128 करोड लंबित मामले चल रहे है। एक अनुमान के अनुसार यदि इसी प्रकार से अदालतो में न्याय प्रकि्रया चलती रही तो इन्हे निपटाने में लगभग 320 साल लगेगे। आज इन्सान की उम्र औसतन 60 से 65 साल के बीच हो रही है ऐसे में जब इन मुकदमो में अदालत का फैसला आने में 320 साल का वक्त लगेगा तो आखिर कितनी पी एक मुकदमे को लडेगी कितनी तारीखे लगेगी। कब फैसला होगा किस के हक में होगा कौन बचेगा कौन मरेगा भगवान जाने।
कई वर्ष पहले राष्ट्रीय महिला आयोग ने इस विधेयक पर काम कर महिला संगठनो और वकीलो से व्यापक विचारविमशर कर इस के कई प्रारूप तैयार किये पर राष्ट्रीय महिला आयोग का आज यह कहना है कि उस प्रारूप की जरा सी झलक भी इस नये विधेयक में दूर दूर तक भी दिखाई नही दे रही। सब से पहले हमारा ये जनना बेहद जरूरी है कि आखिर कार्य स्थल पर यौन उत्पीडन विधेयक में क्या क्या रखा गया है इस नये कानून में किसी भी पुरूष साथी द्वारा कार्य स्थल पर अपनी महिला साथी के साथ अप्रिय यौन आचरण, अश्लील मौखिक टिप्पणी, शारीरिक संपर्क, यौन अग्रिम, द्विअर्थी बाते, छेडछाड, सूक्ष्म यौन इशारे, अश्लील मजाक,चुटकुले, महिला को अश्लील साहित्य दिखाना (शाब्दिक, इलेक्ट्रॉनिक, ग्राफ्सि), यौन अहसान की मांग या अनुरोध, अन्य कोई अप्रिय शारीरिक, मौखिक या गैर मौखिक कि्रया ये सब इस नये महिला यौन उत्पीडन के तहत आते है। कार्य स्थल या घरेलू कामगार यौन उत्पीडन की शिकार अधिकांश युवतिया ही होती है जिन में अधिकांश लडकिया नाबालिग होती है जो अपने साथ हुए इस कुकृत्य से इतना डर जाती है सहम जाती है कि किसी को बतलाने के लिये तैयार भी नही होती क्यो की हमारा पुरूष प्रधान सामाजिक ाचा ऐसे दुष्कृत्य करने वाले पुरूष पर तो ऑच आने नही देता वही बलात्कार की शिकार युवती या महिला को समाज तमाशा बना देता है जिस में महिलाए ही सब से आगे होती है। कही कही तो खुद बीमारी से ग्रस्त पत्नी अपने पति को नौकरानी से या दफ्तर में उस के अधीन काम करने वाली महिला साथी से संबंध बनाने के लिये मदद करती है। क्यो की वो खुद पति के साथ सेक्स संबंध बनाने में सक्षम नही होती अतः पति की भावनाओ और सौतन के आने के डर से वो पति की तमाम बुरी आदतो को नजर अंदाज कर देती है बाजार में वेश्याओ के पास जाने से एड्रस होने के साथ साथ बहुत ज्यादा पैसा खर्च होता है इस लिये कुछ बडे बडे घरो में घरेलू नौकरानी को कुछ रकम देकर पटा लिया जाता है। जो गरीबी और भूख के कारण अपना मुॅह नही खोल पाती और यौन उत्पीडन का शिकार होती रहती है। कही कही हम लोगो में ये भ्रांति है कि अगर यौन रोगो से ग्रस्त कोई पुरूष अक्षत यौवना कुवॉरी या कम उम्र लडकी से शारीरिक संबंध बना ले तो उस के सारे यौन रोग ठीक हो जाते है। जब की ये बात बिल्कुल बेबुनियाद है। परंतु इस भ्रांति के कारण भी कुछ लोग अपनी कुवॉरी बेटियो पर भी कुदृष्टि डालते ह और कही कही कुछ बहुत ही गिरे हुए लोग अपनी इस योजना में कामयाब भी हो जाते है।
आज जब बेटिया अपने घरो में ही सुरक्षित नही तब हम उन्हे कार्य स्थलो पर किस प्रकार सुरक्षित समझ सकते है। अपना घर बेटियो के लिये दुनिया में सब से सुरक्षित जगह है जहॉ वो खुद को ज्यादा महफूज समझ सकती है पर पिछले कुछ सालो से ऐसे समाचार आये दिन समाचार पत्रो में पने और सुनने को मिल रहे है की सिर शर्म से झुक जाता है पिछले दिनो अखबारो और न्यूज चैनलो पर दिखाई गई एक खबर ने बाप बेटी के रिश्तो को जिस प्रकार तार तार किया वो दुनिया में अब तक की सब से बडी मिसाल है। खबर थी आस्ट्रिया की जहॉ एक पिता ने अपनी सगी बेटी को करीब 24 सालो तक घर में बने तहखाने में बंधक बना कर यौन शोषण किया और इस दुराचारी पिता ने बेटी को सात बच्चो को जन्म देने पर मजबूर भी किया। दरअसल बाप बेटी का रिश्ता एक ऐसा रिश्ता है जिसे किसी जाति, किसी मजहब, किसी देश, किसी भी सभ्यता में बदला नही जा सकता और इस की पाकीजगी कम नही होती हर जगह इसे इज्जत की नजरो से देखा जाता है। इस नये कानून में जहॉ कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की झूठी और दुर्भावना से की गई शिकायतो को शिकायत करने वाली महिला के लिये दंडनीय बनाया गया है। वही इस नये विधेयक में ऐसा कानून भी होना चाहिये की यौन उत्पीडन की शिकार महिला को ऐसा वातावरण दिया जाये की वो भयमुक्त होकर अपनी शिकायत दर्ज करा सके।

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