डॉ. नीरज भारद्वाज
राम शब्द सुनते ही मन मस्तिष्क में रामचरितमानस का जाप शुरू हो जाता है। राम नाम एक मंत्र है, जिसने भी इसे जपा, भजा और गाया वह इस आवागमन के चक्कर से मुक्त हो गया। इस चराचर जगत में श्रीराम की ही महिमा है। भगवान श्रीराम के प्रकट होने से लेकर उनके राजा बनने की कथा हम सभी ने सुनी है। इसी कथा का देश-विदेश में रामलीला के माध्यम से मंचन भी होता है। साधु-संत-महात्मा संगीतमय श्रीराम कथा लोगों को सुनते हैं, स्वयं भी इसका जाप करते हैं। श्रीरामचरितमानस की कोई एक चौपाई भारतवर्ष में रहने वाला बच्चा-बच्चा गा सकता है।
अवध प्रदेश के रहने वाले मेरे प्रोफेसर मित्र बताते हैं कि हमारे हर एक मंगल कार्य में चौबीस घंटे का श्रीरामकथा पाठ या सुंदरकांड का पाठ जरूर होता है। अवध प्रांत के साथ-साथ अनेक स्थानों पर भी लोग ऐसा सुमंगल कार्य करते हैं। हमारे तीर्थ स्थलों पर श्रीराम कथा का जाप चलता ही रहता है। श्रीराम जय राम, जय जय राम। श्रीराम कथा और श्रीराम का चरित्र युगों-युगों से संतो के मुख से सुनते आ रहे हैं। रामलीला के माध्यम से देखते भी आ रहे हैं।
बचपन में जब हम रामलीला करते थे तो इतनी व्यापक समझ नहीं थी। दस दिन रामलीला का हर्षोल्लास हम सभी में बना रहता था। रामलीला में छोटा-बड़ा पात्र बन कर अपने को गौरवान्वित महसूस करते रहते। जब प्रभु श्रीराम मंच पर आते तो सभी हाथ जोड़कर बैठ जाते, जय श्रीराम की आवाज मंच पर और दर्शकों के बीच होने लगती। लोगों में एक अलग ही रोमांच भर जाता। जब साहित्य का छात्र बना और उसमें रामचरितमानस का कुछ हिस्सा साहित्यिक दृष्टि से पढ़ा तो उसके प्रति भाव अपने आप ही भक्तिमय होता चला गया। यह सभी कुछ प्रभु श्रीराम की कृपा से ही हुआ। फिर श्रीराम कथाओं को सुनने में आनंद आने लगा। अब जब भी कक्षा में पढ़ाते हैं तो प्रभु श्रीराम की चर्चा जरूर हो जाती है। जब लिखने बैठता हूं तो श्रीरामचरितमानस की चौपाई स्वयं ही अपना स्थान बनाकर लेख में आकर बैठ जाती हैं, यह सब प्रभु की कृपा ही है। आदरणीय डॉ. वेदप्रकाश जी ने रास्ता दिखाया और मां गंगा के किनारे से संतों से मिलने की राह खुल गई। मां गंगा और प्रभु श्रीराम की कृपा से ऋषिकेश की पावन भूमि पर पावन कुटी में रह रहे रामकथा के मर्मज्ञ परम पूज्य स्वामी श्री मैथिलीशरण भाई जी के दर्शन हुए और उनका आशीर्वाद मिला। मां गंगा के पावन तट पर ही परम पूज्य श्री चिदानंद मुनि जी महाराज जी के दर्शन हुए और आशीर्वाद मिला।
प्रभु श्रीराम के इस धरा धाम पर प्रकट होने के कितने ही सुयोग्य तत्व रहे हैं, इसका अंदाजा साधु-संत-महात्मा आदि ही लगा पाते हैं। इसकी व्याख्या भी वही कर पाते हैं। प्रभु श्रीराम भक्त को भक्ति, सेवक को सेवकाई, मित्र को मित्रता, भाई को प्रेम, शत्रु को दंड़, जन-जन को आशीर्वाद और उन्हें आगे बढ़ाने के लिए ही इस धरा धाम पर आए। इसके साथ ही इस चराचर जगत को सुंदर, सुयोग्य और साथ मिलकर रहने का संदेश देने आए। भगवान ने असुरों को मार कर पृथ्वी को पावन-पुनीत, शुद्ध, पवित्र बनाया। प्रभु श्रीराम पशु, पक्षी, वृक्ष, नदी, पर्वत, लता, पत्ता, पुष्प, पत्थर आदि सभी का उद्धार करते चले गए। साधु, संत, महात्मा, ऋषियों आदि से प्रभु ने ज्ञान लिया और उनके दर्शन किए, साथ ही उन्हें अपने दर्शन भी दिए। भक्तों को भक्ति दी, धर्म की स्थापना की। गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा है- राम जन्म के हेतु अनेका। परम विचित्र एक तें एका।। भगवान श्रीराम का चिंतन-मनन जितना करते हैं, हम उतने ही गहरे उतरते चले जाते हैं, प्रभु की लीला अपरम पार है।