राजनीति

नक्सलियों ने राजस्व उगाहने का नया फार्मूला तैयार किया

भारत में वैसे तो अफीम की खेती तीन राज्यों क्रमश: मघ्यप्रदेश, राजस्थान और उत्तारप्रदेश में की जाती है। लेकिन अभी भी सबसे अधिक अफीम का उत्पादन मघ्यप्रदेश के 2 जिलों क्रमश: नीमच और मंदसौर में होता है।

कुछ दिनों पहले तक मघ्यप्रदेश और राजस्थान के अलावा कहीं और अफीम की खेती करने के बारे में कोई सोच भी नहीं सकता था। किंतु अब उत्तरप्रदेश में भी इसकी खेती होने लगी है। हाल ही में इस श्रेणी में बिहार और झारखंड का नाम भी शामिल हो गया है। दरअसल बिहार और झारखंड के कुछ जिलों में गैरकानूनी तरीके से अफीम की खेती की जा रही है।

अफीम की खेती के लिए सबसे उपर्युक्त जलवायु ठंड का मौसम होता है। इसके अच्छे उत्पादन के लिए मिट्टी का शुष्क होना जरुरी माना जाता है। इसी कारण पहले इसकी खेती सिर्फ मघ्यप्रदेश और राजस्थान में ही होती थी।

हालाँकि कुछ सालों से अफीम की खेती उत्तारप्रदेश के गंगा से सटे हुए इलाकों में होने लगी है, पर मध्‍यप्रदेश और राजस्थान के मुकाबले यहाँ फसल की गुणवत्ता एवं उत्पादकता अच्छी नहीं होती है।

अफीम की खेती पठारों और पहाड़ों पर भी हो सकती है। अगर पठारों और पहाड़ों पर उपलब्ध मिट्टी की उर्वराशक्ति अच्छी होगी तो अफीम का उत्पादन भी वहाँ अच्छा होगा।

इस तथ्य को बिहार और झारखंड में कार्यरत नक्सलियों ने बहुत बढ़िया से ताड़ा है। वर्तमान में बिहार के औरंगाबाद, नवादा, गया और जमुई में और झारखंड के चतरा तथा पलामू जिले में अफीम की खेती चोरी-छुपे तरीके से की जा रही है। इन जिलों को रेड जोन की संज्ञा दी गई है।

ऐसा नहीं है कि सरकार इस सच्चाई से वाकिफ नहीं है। पुलिस और प्रशासन के ठीक नाक के नीचे निडरता से नक्सली किसानों के माघ्यम से इस कार्य को अंजाम दे रहे हैं।

उल्लेखनीय है कि प्रतिवर्ष इस रेड जोन से 70 करोड़ राजस्व की उगाही नक्सली कर रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक सीपीआई, माओस्टि के अंतगर्त काम करने वाली बिहार-झारखंड स्पेशल एरिया कमेटी भी 300 करोड़ रुपयों राजस्व की उगाही प्रत्येक साल सिर्फ बिहार और झारखंड से कर रही है।

हाल ही में बिहार पुलिस ने नवादा और औरंगाबाद में छापेमारी कर काफी मात्रा में अफीम की फसलों को तहस-नहस किया था। औरंगाबाद के कपासिया गाँव जोकि मुफसिल थाना के तहत आता है से दो किसानों को अफीम की खेती करने के जुर्म में गिरफ्तार किया गया था। औरंगाबाद जिला में पमुखत: सोन नदी के किनारे के इलाकों मसलन, नवीनगर और बारुल ब्लॉक में अफीम की खेती की जाती है।

कुछ दिनों पहले नवादा पुलिस ने नवादा और जमुई की सीमा से लगे हुए हारखार गाँव में एक ट्रक अफीम की तैयार फसल को अपने कब्जे में लिया था।

चूँकि सामान्य तौर पर बिहार और झारखंड में अफीम की खेती पठार और पहाड़ों में अवस्थित जंगलों में की जाती है। इसलिए पुलिस के लिए उन जगहों की पहचान करना आसान नहीं होता है। बावजूद इसके बिहार पुलिस सेटेलाईट की मदद से अफीम की खेती जहाँ हो रही है उन स्थानों की पहचान करने में जुटी हुई है।

आमतौर पर नक्सली किसानों को अफीम की खेती करने के लिए मजबूर करते हैं। कभी अंग्रेजों ने भी बिहार के ही चंपारण में किसानों को नील की खेती करने के लिए विवश किया था। उसी कहानी को इतिहास फिर से दोहरा रहा है।

जब पुलिस अफीम के फसलों को अपने कब्जे में ले भी लेती है तो उनके षिंकजे में केवल किसान ही आते हैं। पुलिस की थर्ड डिग्री भी उनसे नक्सलियों का नाम उगलवा नहीं पाती है।

एक किलोग्राम अफीम की कीमत भारतीय बाजार में डेढ़ लाख है और जब इस अफीम से हेरोईन बनाया जाता है तो उसी एक किलोग्राम की कीमत डेढ़ करोड़ हो जाता है।

22 मार्च से 25 मार्च के बीच ओडीसा, पष्चिम बंगाल और बिहार के अलग-अलग इलाकों में नक्सली हिंसा की कई घटनाएँ हुई हैं। नक्सलियों ने सात राज्यों में बंद का आह्वान किया था। इस दौरान 23 मार्च को गया के पास रेलवे लाईन को नुकसान पहुँचाया गया, जिसके कारण दिल्ली-भुवनेश्‍वर राजधानी पटरी से उतर गई। इस हादसे में सैकडों की जान जा सकती थी, पर ड्राइवर की सुझबूझ से उनकी जान बच गई। बिहार में एक टोल प्लाजा को उड़ा दिया गया और साथ ही दो लोगों को मार भी दिया गया। पष्चिम बंगाल में एक माकपा नेता की हत्या कर दी गई। महाराष्ट्र में एक रेस्ट हाऊस पर हमला किया गया। ओडीसा में तीन पुलिस वालों को मार दिया गया।

नक्सली नासूर घीरे-घीरे पूरे देश में अपना पैर फैला रहा है। कुल मिलाकर आंतरिक युद्व की स्थिति हमारे देश में व्याप्त है। अगर अब भी नक्सलियों पर काबू नहीं पाया गया तो किसी बाहरी देश को हम पर हमला करने की जरुरत नहीं पड़ेगी। हमारा देश अपने वालों से ही तबाह हो जाएगा। अगर इसे रोकना है तो हमें इनके आर्थिक स्रोत को किसी तरह से भी रोकना ही होगा।

-सतीश सिंह