‘वैवाहिक बलात्कार’ आपराधिक कानून के तहत ‘इंडियन पेनल कोड’ में शामिल हो — सारदा बनर्जी

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rape-50e2f6b94c098_lदिल्ली में हुई सामूहिक बलात्कार की वारदात के परिणामस्वरुप आपराधिक कानून में संशोधन के लिए गठित की गई जस्टिस जे. एस. वर्मा कमिटी ने सिफारिश की थी कि वैवाहिक बलात्कार को इंडियन पेनल कोड(आइ.पी.सी.) के तहत स्त्रियों के खिलाफ़ यौन-अपराध की सूची में शामिल किया जाए और अपराधी की कड़ी सज़ा हो। लेकिन भारत सरकार ने प्रस्तावित अध्यादेश के तहत इस सिफ़ारिश को नामंज़ूर कर दिया और कहा कि इस कानून के लागू होने पर भारत में परंपरागत पारिवारिक मूल्यों को क्षति पहुँच सकती है। सरकार के इस फैसले का 1 मार्च को एक संसदीय समिति ने भी समर्थन दिया है। इस समिति के सिफारिश को न्यायसंगत ठहराते हुए गृह-मंत्रालय के स्थायी समिति के अध्यक्ष एम. वेंकइया नायडू ने कहा है कि वैवाहिक बलात्कार को आपराधिक कानून के तहत लागू करने पर वैवाहिक संस्थान नष्ट होगा और साथ ही व्यावहारिक समस्याएं आएंगी।

लेकिन विचारणीय है कि बलात्कार अपराध है, वह किसी संपर्क की मांग नहीं करता। बलात्कारी चाहे पीड़िता का एकदम अपरिचित हो, चाहे सतही तौर पर परिचित, चाहे दोस्त हो, चाहे प्रेमी हो या चाहे ‘पति’ हो लेकिन वह गुनहगार है, वह अपराधी है क्योंकि उसने स्त्री की मर्ज़ी और इच्छा के खिलाफ़ स्त्री-शरीर पर चोट किया है, उस पर हमला किया है। बलात्कार एक संगीन जुर्म है, पीड़िता के लिए वह शारीरिक और आंतरिक सदमा है। सोचने वाली बात है कि जब एक बार किया गया बलात्कार पीड़िता को भयानक मानसिक और शारीरिक कष्ट और यंत्रणा का शिकार बनाती है, उसे डिप्रेशन का शिकार बना सकती है तो उस औरत का क्या जो हर दिन अपने पति के द्वारा निपीड़ित होती है, उसके अत्याचार और दुराचार का लगातार शिकार होती रहती है। विवाह विश्वास और अनुराग का एक बंधन है। जिस स्त्री ने अपनी ज़िदगी, तन और मन भरोसे के साथ अपने पति को सौंपा जब वही पति उसके साथ हैवानियत पर उतर आए तो उस स्त्री को कितनी यंत्रणा झेलनी पड़ती होगी यह सहज ही अनुमेय है। यह स्त्री को अपमानित और असम्मान करना है, उसे मातहत बनाना है, उसके विश्वास पर आघात करना है और पति का अपनी मर्यादा का उल्लंघन करना है। क्या इस पर विचार करने के बाद भी वैवाहिक बलात्कार का आपराधिक कानून की कोटि से बाहर रहना हमारे दिमाग में सवालिया निशान नहीं लगाता?

द यू.एन. पॉप्यूलेशन फंड के शोध के मुताबिक भारत में दो-तिहाई से भी ज़्यादा वैवाहिक स्त्रियां जिनकी उम्र 15 से लेकर 49 के बीच है, पति द्वारा यौन-उत्पीड़न को लगातार झेलती हैं। इस उत्पीड़न में पीटना, बलात्कार, ज़बरन सेक्स आदि शामिल है। हालांकि कई ऐसे देश हैं जहां वैवाहिक बलात्कार अवैध है। इनमें 18 अमेरिकी राज्य, 3 ऑस्ट्रेलियन राज्य, न्यू ज़ीलैंड, कैनैडा, ईसराइल, फ्रांस, स्वीडेन, डेनमार्क, नॉरवे, सोवियत यूनियन, पोलैंड और चेकोस्लोवाकिया शामिल है।

यह देखा गया है कि वैवाहिक बलात्कार का नतीजा किसी अपरिचित द्वारा हुए बलात्कार की तुलना में कई ज़्यादा खतरनाक होता है। पत्नी कई गंभीर शारीरिक यातनाएं झेलती हैं जैसे हड्डी का टूटना, नींद न आना, आंखों का काला होना, मसेल पेन, शरीर पर घाव की मौजूदगी, नाक में खून का जमना, यौनांगों में ज़ख्म, यौन-रोग आदि। इन शारीरिक यंत्रणाओं के अतिरिक्त कभी-कभी पीड़िता के दिमाग पर इन सबका इतना बुरा असर पड़ता है कि वो डिप्रेशन में चली जाती है और इन सबसे निजात पाने के लिए आत्महत्या की कोशिश भी करती है। कभी-कभार बच्चों के सामने इस तरह के हादसे होने पर बच्चों के दिमाग पर इसका बुरा असर पड़ता है।

भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के तहत यह अध्यादेश है कि यदि पति 12 साल से कम उम्र की पत्नी से बलात्कार करता है तो वह अपराध की कोटि में है और उसे अधिकतम दो साल की सज़ा हो सकती है। लेकिन अगर 12 से 16 साल की उम्र की पत्नी के साथ बलात्कार होता है तो वह गंभीर अपराध नहीं है, इस मामले में बलात्कारी को कम सज़ा मिल सकती है। लेकिन यदि पीड़िता 16 साल के ऊपर की है तब कानून की नज़र में वह अपराध नहीं है। इस नियम के फलस्वरुप जब 16 साल के ऊपर की स्त्रियों पर पति द्वारा यौन-हिंसा होती है तो वे कानून की मदद नहीं ले पातीं। जायज़ है पत्नी चुपचाप यौन-हिंसा को सहन कर लेती हैं। अधिकतर स्त्रियों को अपने संपर्क के टूटने और समाज में अपनी और अपने परिवार की प्रतिष्ठा की भी चिंता होती है, बच्चों की चिंता होती है जिसकी वजह से वे अपने मन की बातें खुलकर किसी से कह नहीं पातीं। धीरे-धीरे वे डिप्रेशन की शिकार होती हैं। पति के प्रति नफ़रत की भावना से भर जाती है लेकिन पति को इस नफ़रत से कोई लेना-देना नहीं। अंत में तंग होकर कई महिलाएं घरेलू हिंसा का मुकदमा दायर करती हैं और न्याय के लिए कचहरी का सालों साल चक्कर लगाती हैं। ऐसे भी केसेस हैं जहां पत्नी ने पति के खिलाफ़ बलात्कार का मुकदमा दर्ज किया हो लेकिन अदालत ने इसे यह कहकर खारिज कर दिया कि मैरिटल रेप का कंसेप्ट भारत में अस्तित्व नहीं रखता।

यदि संविधान ने स्त्री को समान हक दिया है तो इसलिए कि नागरिक होने के नाते वह पुरुष के समान हक पाने की योग्या है। लेकिन यदि उस पर अत्याचार हो रहा है, उसके अस्तित्व पर हमला हो रहा है, उसकी इच्छा के खिलाफ यौन-संपर्क किया जा रहा है तो ऐसे कृत्य भी कानून की नज़र में गुनाह होने की मांग करती है। यह जानने और समझने की बात है कि स्त्री का शरीर केवल मात्र स्त्री का है, उसकी हकदार भी स्त्री खुद है, कोई और नहीं। वह किस के साथ शारीरिक संपर्क करेगी यह उसका व्यक्तिगत मामला है। वह अपने पति के साथ शारीरिक संपर्क बनाना चाहती है या नहीं, कब चाहती है कब नहीं वो खुद डिसाइड करेगी, यह उसका अधिकार-क्षेत्र है। अगर स्त्री की इच्छा और अनुमति के बगैर उसके साथ हिंसा हो रही है तो वह हर हाल में अपराध है। ये कैसे संभव है कि घरेलू हिंसा के लिए तो पति को दंड देने का प्रावधान है लेकिन बलात्कार के लिए नहीं? इसलिए स्त्री अधिकार के लिए यह मांग है कि वैवाहिक बलात्कार को आपराधिक कानून के तहत इंडियन पेनल कोड में शामिल किया जाए। भारतीय दंड संहिता की धारा 376 के तहत बलात्कार के जो दंड निश्चित है वह वैवाहिक बलात्कार के मामले में भी सख्ती से लागू हो।

4 COMMENTS

  1. सारदा जी आपका ये लेख पढ़ कर बहुत अच्छा लगा वैवाहिक बलात्कार जैसी समस्याओं का शिकार आज देश की लगभग 90% महिलाएं शिकार हो रही लेकिन इस गम्भीर समस्या को न तो ये पुरुषवादी समाज मानने को तैयार है और न ही ये कानुन व्यवस्था लेकिन ये एक बहुत गम्भीर समस्या है इस बात को ये पुरुषवादी समाज माने इसके लिए भी हमें लड़ना होगा ।

  2. लेखिका के विचारों से मै पूरी तरह सहमत हूँ, परन्तु क्या कुछ महिलायें इस कानून का ग़लत फायदा नहीं उठा सकतीं?क्या कभी पत्नी ने प्रेमी के साथ मिल कर पति का क़त्ल किया हो या किसी महिला ने ससुराल वालों को झूंठे दहेज़ के केस मे फंसाया हो ?आपने अखबारों मे नहीं पढ़ा।

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