रसोई पर बाजार के हमले से चौपट होता स्वास्थ्य

0
140

-ललित गर्ग-
आज रसोई पर संकट मंडरा रहा है, बाजारवाद ने रसोई के अस्तित्व को ही बदल दिया है, न केवल रेसाई को बदला है बल्कि हमारे शुद्ध एवं स्वास्थ्यवर्द्धक खानपान को ही ध्वस्त कर दिया है, जिससे हमारा स्वास्थ्य तो चौपट हो ही रहा है, हमारे पारिवारिक एवं भावनात्मक संबंध भी चरमरा रहे हैं। देश-दुनिया में पैकेटबंद खाद्य पदार्थों का चलन और इससे होने वाले नुकसान बढ़ते जा रहे हैं। मोटापा सहित अनेक बीमारियां संकट पैदा कर रही है। इन्हीं चिन्ताओं के बीच यूनिसेफ की एक ताजा रिपोर्ट चौंकाती भी है एवं लगातार स्वास्थ्य समस्याओं के बढ़ने के कारण को दर्शाती है।  यूनिसेफ ने भारत समेत 97 देशों में अध्ययन कर बताया है कि पिछले 15 साल में दुनियाभर में पैकेटबंद खाद्य पदार्थों की बिक्री 11 फीसदी बढ़ी है, जिससे जेब पर भी असर पड़ा है और स्वास्थ्य पर भी, विशेषतः पारिवारिक संरचना पर। ज्यादा-से-ज्यादा चेन स्टोर-सुपरमार्केट खुलने के बाद लोग इनका अधिक सेवन कर रहे हैं। जिन देशों में प्रतिव्यक्ति सर्वाधिक चेन किराना स्टोर एवं सुपरमार्केट हैं, वहां लोग ज्यादा अस्वास्थ्यकर खाद्य पदार्थ खरीदते हैं। ‘नेचर फूड’ पत्रिका में प्रकाशित इस रिपोर्ट को गंभीरता से लेते हुए व्यक्ति, परिवार, समाज एवं सरकार को सख्त एवं प्रभावी कदम उठाने होंगे।
अध्ययन के मुताबिक, जिन देशों में पिछले 15 साल में सुपरमार्केट से तले-भुने एवं जंक खाद्य पदार्थों की बिक्री में 11 फीसदी वृद्धि हुई है, वे भारत, बांग्लादेश, अमेरिका, संयुक्त अरब अमीरात, सिंगापुर जैसे देश हैं। रिपोर्ट का एक चिंतनीय पक्ष यह है कि दक्षिण एशिया में यह बढ़ोतरी अन्य देशों की तुलना में तेज रही। आंकड़े बताते हैं कि बीते डेढ़ दशक में विश्व स्तर पर सुपरमार्केट 23.6 फीसदी बढ़े हैं, जबकि इस दौरान दुनियाभर में मोटापा 18.2 प्रतिशत से बढ़ कर 23.7 प्रतिशत हो गया है। पैकेटबंद खाद्य पदार्थों की खरीद बढ़ने से अमेरिका और संयुक्त अरब अमीरात में भोजन पर खर्च बहुत अधिक बढ़ा है। भारत में भी पिछले साल के अंत में सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय द्वारा जारी घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण की रिपोर्ट कहती है कि लोगों के खाद्य बजट में सब्जियों, पैकेटबंद चीजों एवं जंक फूड्स की ही बड़ी हिस्सेदारी है। खाद्य पदार्थों के व्यापार पर नजर रखने वाली एजेंसी यूरोमॉनिटर के मुताबिक, भारत में अल्ट्रा प्रोसेस्ड फूड की प्रतिव्यक्ति सालाना बिक्री 2005 में दो किलोग्राम थी, जो 2019 में छह किलोग्राम और 2024 में आठ किलोग्राम हो गयी।
सीएसइ (सेंटर फॉर साइंस एंड इन्वायर्नमेंट) द्वारा भारत में किये गये अध्ययन से भी इसका खुलासा हुआ है कि जंक फूड और पैकेटबंद भोजन मोटापा, कैंसर, उच्च रक्तचाप, मधुमेह और दिल की बीमारियां बढ़ा रहे हैं। यह कितना बड़ा मुद्दा है, इसे इसी से समझा जा सकता है कि इस बार बजट से पहले की आर्थिक समीक्षा में अल्ट्रा प्रोसेस्ड फूड पर अधिक टैक्स लगाने की सिफारिश की गयी थी। जाहिर है, अगर अभी नहीं संभले, तो बहुत देर हो जायेगी। इंसानों की तोंद बढ़ती जा रही है। इस बढ़ते मोटाने की भयावहता को महसूस करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मोटापे के खिलाफ जंग छेड़ी है। एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए प्रधानंत्री ने कहा कि 2050 तक 44 करोड़ भारतीय मोटापे का शिकार होंगे। प्रधानमंत्री ने इन आंकड़ों को खतरनाक बताते हुए मोटापे को मात देने के लिए लोगों को मंत्र भी दिये हैं। ये मंत्र हैं- खाने वाले तेल में लोग 10 फीसदी की कटौती एवं जीवनशैली में बदलाव करें। अगर समय पर इस पर ध्यान नहीं गया तो भविष्य में बड़ी स्वास्थ्य समस्याएं होंगी। मोटापे की वजह से हर तीसरा व्यक्ति गंभीर बीमारियों का शिकार हो सकता है।
स्वाद में चटपटी और जब जरूरत हो, तब पैकेटबंद भोजन की उपलब्धता ने हमें अपने घर की रसोई की जगह बाजार पर निर्भर बना दिया है। इसके लिए बाजार ने कई तरह के लुभावने एवं बाजारवादी तर्क और नारे गढ़ रखे हैं। ये नारे और तर्क हमें लुभाते एवं गुलाम बनाते हैं। समय की बचत के नाम पर हमें मजबूर करते हैं कि हम अपने घर की रसोई को बंद ही रखें। हमारे खान-पान की परंपरा और पौष्टिकता पर यह एक तरह से हमला है। बाजार हमें सिखाना चाहता है कि परिवार में जब जिसको भूख लगे, वह बाजार जाए, आनलाइन ऑर्डर करें और खा ले। पहले परिवार के लोग एक साथ बैठकर खाते थे, तब परिवार का हर सदस्य एक दूसरे के सुख-दुख से परिचित होता एवं संवेदनाओं से जुड़ता था। दुख, परेशानियों, निराशाओं को दूर करने का सामूहिक प्रयास किया जाता था। सलाह मशविरा किए जाते थे। आज हमें बाजार सामूहिकता से काटकर वैयक्तिक एवं एकांगी बना रहा है। यदि हमने अपनी रसोई को सहेजकर नहीं रखा, तो एक दिन ऐसा भी आ सकता है, जब हमें पूरी तरह बाजार के डिब्बाबंद भोजन पर ही निर्भर रहना पड़े।
विशेषज्ञों का कहना है कि करीब 14 फीसदी वयस्क और 12 फीसदी बच्चे अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स की लत का शिकार बन चुके हैं। लोगों में स्वास्थ्य के नजरिए से हानिकारक इन खाद्य पदार्थों को लेकर जो लगाव है, वो शराब और तम्बाकू जितना ही बढ़ चुका है। बता दें कि दुनिया भर में 14 फीसदी लोग शराब के और 18 फीसदी लोग तम्बाकू के आदी बन चुके हैं। ऐसे में 14 फीसदी वयस्कों में अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड की दीवानगी एवं आकर्षण बेहद गंभीर खतरे की ओर इशारा करती है। यह जानकारी अमेरिका, ब्राजील और स्पेन के शोधकर्ताओं द्वारा किए अध्ययन में सामने आई है, जिसके नतीजे नौ अक्टूबर 2023 को द ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में प्रकाशित हुए हैं। यह अध्ययन 36 देशों में प्रकाशित 281 अध्ययनों के विश्लेषण पर आधारित है।
आजकल मार्केट में पैकेटबंद एवं जंक फूड्स की भरमार है। चिप्स से लेकर दूध, मसाले और हर एक चीज प्लास्टिक, एल्युमिनियम या पेपर की पैकिंग के साथ आ रही है। सुविधा के नाम पर हो रहा यह हमला कई सारे साइड इफेक्ट्स दे रहा हैं। न सिर्फ बड़े बल्कि बच्चे भी पैकेटबंद चिप्स, जूस, कुकीज और नमकीन, नूडल्स का इस्तेमाल कर रहे हैं। किसी भी तरह की खाने-पीने की चीज की अगर पैकेजिंग की जाती है तो उन्हें सुरक्षित, संरक्षित और ज्यादा समय तक चलने के लिए तीन चीजें मिलायी जाती हैं। प्रीजर्वेटिव्स, नकली रंग और एक्स्ट्रा फैट। कुछ समय पहले आई एक स्टडी में बताया गया कि पैकेटबंद फूड्स में इमल्सीफायर नाम का एक कंपाउंड पाया जाता है, जो दिल की सेहत यानी हार्ट हेल्थ के लिए खतरनाक होता है, इससे कार्डियोवैस्कुलर बीमारियां हो सकती हैं, यह कंपाउंड ब्लड प्रेशर लेवल को बढ़ा सकती है। बहुत ज्यादा मात्रा में इमल्सीफायर जब शरीर में पहुंचता है तो इससे शरीर की शक्ति क्षीण होने लगती है और कमजोरी-थकान-सुस्ती बढ़ती है।
पैकेटबंद भोजन में घर के बने भोजन की तुलना में पोषक तत्वों की कमी होती है। पैकेटबंद भोजन अक्सर अतिरिक्त चीनी, नमक और वसा से भरपूर होते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं। इनमें फाइबर की कमी होती है, जिससे पाचन संबंधी समस्याएं हो सकती हैं। पैकेटबंद खाद्य पदार्थों में मिलावट की संभावना अधिक होती है, इनमें स्नेह, प्यार, अपनापन एवं ममत्व नहीं होने से यह पोषित नहीं होते। कुछ अध्ययनों से पता चला है कि पैकेटबंद भोजन में पाए जाने वाले कुछ रसायन कैंसर का खतरा बढ़ा सकते हैं। बच्चों में पैकेटबंद भोजन का अधिक सेवन उनके शारीरिक विकास को प्रभावित कर सकता है। प्राचीनकाल से ही हमारे देश में घर का चूल्हा यानी रसोई जहां स्वास्थ्य की प्रयोगशाला होती थी वही पूरे परिवार को जोड़ने का केंद्र रही है। यह रसोई ही थी जिसने परिवार को हर सदस्य से प्रेम करना सिखाया। एक दूसरे की इज्जत, सुरक्षा, देखभाल एवं स्वस्थ रहना सिखाया। संयुक्त परिवार के दिनों में सास-बहू, देवरानी-जेठानी, ननद-भाभी के बीच पनपे मतभेद को मनभेद में बदलने से रोका, भोजन बनाते या साथ बैठकर खाते समय सारे मतभेद, गुस्से को तिरोहित करना भी रसोई ने ही सिखाया। यही हाल पुरुषों का भी था। जब साथ बैठकर खाते थे, तो आपसी मतभेद, मनमुटाव हवा हो जाते थे। लेकिन आज उसी रसोई पर संकट मंडरा रहा है। 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,856 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress