वैश्विक षड्यंत्रों के बावजूद मोदी का विजय-रथ नहीं रुकने का अर्थ

                                 मनोज ज्वाला

        भारत की १८वीं लोकसभा के चुनाव-परिणाम से पूरी दुनिया विस्मित है, क्योंकि विपक्ष के तमाम अवांछित हथकण्डों-अफवाहों के बावजूद भारतीय राष्ट्रवाद की राजनीति के ध्वजवाहक नरेन्द्र मोदी को सत्ता से बेदखल नहीं किया जा सका और विपक्षी गठबन्धन सत्ता की सुनहरी संडक तक भी नहीं पहुंच पाया । भारतीय जनता पार्टी एवं उसके लोकप्रिय नेता नरेन्द्र मोदी को येन-केण प्रकारेण सत्ता से बेदखल कर देने के बावत इस बार न केवल देश भर के तमाम विपक्षी दलों ने तमाम प्रकार के हथकण्डों के साथ अब तक (सन १९४६ से २०२४ तक) की चुनावी राजनीति के इतिहास का सबसे बडा अभियान चलाया, बल्कि देश के बाहर की शक्तियों ने भी बढ-चढ कर उनके उस अभियान को सत्ता की मुकाम तक पहुंचाने की सुनियोजित मुहिम चलायी; लेकिन तब भी भाजपाई राष्ट्रवादी गठबंधन का विजय-रथ पर्याप्त बहुमत प्राप्त कर सनसनाता हुआ राजपथ पर पहुंच ही गया, जबकि कांग्रेसी सम्प्रदायवादी गिरोह की गाडी किनारे की पगडण्डी पर  ही खडी रह गई । भाजपा और उसके सहयोगी दलों के ‘राजग’ (राष्ट्रीय जनतांत्रिक)  नामक गठबंधन को सत्ता के लिए पर्याप्त से भी अधिक लगभग ३०० सिटें हासिल हो गईं , तो कांग्रेस और उसके सहयोगियों के ‘भाराविसग’ (भारतीय राष्ट्रीय विकासवादी समावेशी) नामक गठबंधन तो नहीं,(क्योंकि सभी कहीं अलग-अलग हैं, तो कहीं एकजुट हैं और कार्यक्रम तो सबके भिन्न-भिन्न हैं) ‘गिरोह’  कहिए , उसे मात्र २३२ सिटें प्राप्त हो सकीं, जो अलेकी भाजपा को मिली सीटों से भी कम है । इस गिरोह की यह सामूहिक उपलब्धि तब है, जब उक्त समूह के सभी दलों ने साम्प्रदायिक तुष्टिकरण के आपत्तिजनक व घिनौने खेल का खुला प्रदर्शन किया एवं  मतदाताओं को रिश्वत के तौर पर नकदी का प्रलोभन भी दिया और सबसे बडी बात कि उनके पक्ष में बडी-बडी कुख्यात वैश्विक शक्तियों ने भी भाजपा-मोदी विरोधी अभियान चलाया । जी हां         वैश्विक रिलीजियस मजहबी शक्तियों ने धर्म (सनातन) व धर्मधारी राष्ट्र (भारत) के पुनरुत्थान से घबरा कर धर्मध्वजवाहक भाजपा-मोदी की राह रोकने के बावत उनके विरुद्ध नकारात्मक जनमत निर्मित करने एवं कृत्रिम असंतोष उत्त्पन्न करने और वृहतर धार्मिक समाज की राष्ट्रीय एकता को  बनावटी जातीय वैमनस्यता से विखण्डित करने का ऐसा अभियान चलाया, जैसा आज तक अन्य किसी देश की सरकार को अपदस्थ करने के लिए नहीं चलाया गया था । तभी तो चुनाव-परिणाम के बाद भारत-सरकार के राष्ट्रीय सुरक्षा-सलाहकार और विभिन्न गोपणीय कार्यक्रमों के सूत्रधार अजित डोभाल को भी कहना पडा कि “इस बार भाजपा की चुनावी लडाई ‘कांग्रेस’ ‘आआपा’ ‘सपा’ व ‘ममता’ से नहीं थी, अपितु उस ‘ग्लोबल पावर’ से थी, जो भारत को कमजोर करने के बावत मोदी जी को सत्ता से बेदखल करने हेतु हिन्दुओं को विभाजित करने का अभियान चला रही थी ।”

       आपको याद होगा कि ऐन चुनाव के मौके पर ही ‘यु एस सी आई आर एफ’ (युएस कमिशन फॉर इण्टरनेशनल रिलीजियस फ्रिडम) नामक एक अमेरिकी आयोग और ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ नामक अमेरिकी अखबार ने एक रिपोर्ट प्रकाशित किया था, जिसमें यह कहा गया था कि “भारत में भाजपा-मोदी के सत्तासीन रहने से भारत का लोकतंत्र कमजोर हुआ है ।” अब तो यह खुलासा भी हो चुका है कि ‘धर्म(सनातन)-विरोधी’ विस्तारवादी रिलीजियस-मजहबी शक्तियों के वैश्विक मुख्यालय- वेटिकन सिटी से संचालित चर्च-मिशनरी संस्थानों तथा उनसे पोषित विभिन्न स्वैच्छिक संगठनों (एन०जी०ओ०) एवं शैक्षिक-आर्थिक संस्थानों और मीडिया घरानों का एक व्यापक अंतर्जाल इस षड्यंत्रकारी अभियान के क्रियान्वयन में पिछले पांच वर्षों से सक्रिय था (है) । ‘हेनरी लुईस फाउण्डेशन’ , ‘जॉर्ज सोरोस ओपेन सोसाइटी फाउण्डेशन’ तथा ‘बर्कले सेंटर फॉर रिलिजन व पीस एंड वर्ल्ड अफेयर्स’ (Berkley Center for Religion, Peace and World Affairs) एवं ‘कार्नेगी इंडॉमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस’ (Carnegie Endowment for International Peace) और ‘ह्यूमन राइट्स वाच’ व  ‘साउथ एशिया एक्टिविस्ट कलेक्टिव’ (एसएएसएसी) ऐसी ही कुछ संस्थायें हैं, जिन्होंने अपने भारी-भरकम संसाधनों और भारतीय एजेण्टों के सहारे जनमत को नकारात्मक दिशा में रिझाने का काम युद्ध-स्तर पर किया ।

       ‘डिसइंफो लैब’ नामक एक भारतीय खुफिया एजेन्सी ने अपनी रिपोर्ट में इस तथ्य और सत्य का विस्तार से खुलासा किया हुआ है । लैब की रिपोर्ट के अनुसार “ भारतीय मतदाताओं को भाजपा-मोदी के विरुद्ध उकसाने-भडकाने के लिए ‘हेनरी लुइस फाउंडेशन’ और ‘जॉर्ज सोरोस ओपन सोसाइटी फाउंडेशन’ ने   अपने-अपने विभिन्न कारिन्दों को कडोंरों डॉलर की ‘फण्डिंग’ करते हुए उनके जरिये भिन्न-भिन्न माध्यमों से खुल कर हस्तक्षेप किया । केवल विदेशी मीडिया के माध्यम  से ही नहीं, बल्कि कतिपय भारतीय मीडिया संस्थानों के द्वारा भी फर्जी तथ्यों-मुद्दों-सूचनाओं के आधार पर जनमत निर्मित कर चुनाव को प्रभावित करने की कोशिश की गई । इस बावत किसिम-किसिम के लेखों,शोध-पत्रों और आंकडों के माध्यम से आम-चुनाव को प्रभावित करने सम्बन्धी टिप्पणियां  प्रकाशित-प्रसारित कीं गईं ।” डिसइंफो लैब ने अपनी रिपोर्ट में ‘हेनरी लुइस फाउंडेशन’ (एचएलएफ) और ‘जॉर्ज सोरोस ओपन सोसाइटी फाउंडेशन’ (ओएसएफ)  के अतिरिक्त जिन समूहों और व्यक्तियों का नाम उजागर किया गया है,  उनमें  कनाडा के रिकन पटेल की संस्था– ‘नामतीऔर फ्रांस के एक राजनीतिक विश्लेषकक्रिस्टोफ जॉफरलॉट  प्रमुख हैं । लैब की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि भारतीय मतदाताओं के रुझान की दिशा बदलने के लिए ‘एचएलएफ ने ‘नामती’ को तीन लाख डॉलर और ‘ओएसएफ’  ने 13.85 करोड़ डॉलर से वित्त-पोषण किया । डिसइंफो लैब ने यह भी दावा किया है कि  “ चुनाव के दौरान भाजपा-मोदी को क्षति पहुंचाने वाला वातावरण निर्मित करने के बावत ‘एचएलएफ’ द्वारा कट्टरपंथी इस्लामी संगठनों और पाकिस्तान की ‘आईएसआई’ को भी आर्थिक  सहयोग दिया गया था ।” लैब ने अपनी रिपोर्ट में आरोप लगाया है कि “ क्रिस्टोफ और उसके सहयोगी-साथी  गाइल्स वर्नियर्स ने  भारत के सोनीपत-स्थित अशोक विश्वविद्यालय में ‘त्रिवेदी सेंटर फॉर पॉलिटिकल डेटा’ (टीसीपीडी) के माध्यम से भाजपा-मोदी-विरोध पर आधारित जातीय वैमान्यस्यता की एक फर्जी कहानी को जबरन बढ़ावा दिया और उसके द्वारा शोसल मीडिया और अन्य माध्यमों से यह प्रचारित किया कि भारतीय राजनीति में निचली जातियों का प्रतिनिधित्व बहुत कम है ।” रिपोर्ट में आगे बताया गया है कि क्रिस्टोफर ने वर्ष 2021 में ही ‘भारत में जातीय  जनगणना की आवश्यकता’  पर एक सामग्री तैयार की थी , जिसे भारत में चुनावी मुद्दा बनवाने हेतु उसे अमेरिकी ‘हेनरी लुइस फाउंडेशन’ (एचएलएफ) ने अत्यधिक धनराशि दी थी । इतना ही नहीं , डिसइंफो लैब की मानें तो ‘एचएलएफ’ द्वारा जाफरलॉट को ‘हिंदू बहुसंख्यकों के समय में मुस्लिम’ (Muslims in a Time of Hindu Majoritarianism) शीर्षक लेख-परियोजना पर काम करने के लिए भी 3.85 लाख डॉलर की धनराशि दी गई थी । डिसइंफो लैब ने दावा किया है कि एचएलएफ ने वर्ष 2020 से लेकर वर्ष 2024 तक भाजपा-मोदी विरोधी एजेंडा चलाने के लिए ‘बर्कले सेंटर फॉर रिलिजन, पीस एंड वर्ल्ड अफेयर्स’ (Berkley Center for Religion, Peace and World Affairs) को भी 3.46 डॉलर की आर्थिक सहायता प्रदान की थी, जिसके बदले बर्कले संस्थान ने ‘हिंदू अधिकार और भारत की धार्मिक कूटनीति (The Hindu Right and India’s Religious Diplomacy)  पर सामग्री तैयार की थी ।  इसी तरह से  एचएलएफ ने ‘सीईआईपी’ यानी ‘कार्नेगी इडॉमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस’ (Carnegie Endowment for International Peace) को ‘सत्तावादी दमन, हिंदू राष्ट्रवाद (Authoritarian repression, Hindu Nationalism) नामक भाजपा-मोदी-हिन्दुत्व-विरोधी बौद्धिक परियोजना-सामग्री तैयार करने के लिए 1.20 लाख डॉलर की धनराशि दी थी । डिसइंफो के अनुसार ‘सीईआईपी’ को   वर्ष 2019 में ही लोकसभा चुनाव से ठीक पहले ‘सत्ता में भाजपा: भारतीय लोकतंत्र और धार्मिक राष्ट्रवाद’ (The BJP in Power: Indian Democracy and Religious Nationalism)  नामक परियोजना-सामग्री तैयार करने के लिए भी ४० हजार डॉलर की धनराशि दी गई थी । डिसइंफों की रिपोर्ट में यह भी  दावा किया गया है कि एचएलएफ ने ‘साउथ एशिया एक्टिविस्ट कलेक्टिव’ (एसएएसएसी) नामक मिशनरी को भी ‘हिंदू राष्ट्रवाद’ नामक भाजपा-मोदी विरोधी सामग्री तैयार करने के लिए बड़ी धनराशि दी थी । यह तो कुछ उदाहरण मात्र हैं , जबकि पूरा मामला यह है कि भारत में चुनावी हवा का रुख बदल डालने के लिए चीन अमेरिका ब्रिटेन फ्रांस कनाडा की अनेक चर्च-मिशनरी संस्थाओं ने भारतीय मीडिया संस्थानों व शोसल मीडिया प्लेटफार्मों एवं कतिपय शिक्षण संस्थानों और अन्य प्रभावी बौद्धिक-वैचारिक स्रोतों को एक प्रकार से खरीद कर भाजपा-मोदी रोको अभियान में लगा रखा था ।

         जाहिर है, ऐसे भीषण वैश्विक विखण्डनकारी  रिलीजियस-मजहबी षड्यंत्रों के बावजूद थोड़े झटकों -हिचकोलों के साथ भाजपा-राजग का विजय-रथ विरोधियों को पछाड़ते हुए सीधे राजपथ पर पहुंच गया और नरेंद्र मोदी पुनः सत्तासीन हो गए , तो इसके अनेक अर्थ हैं, जिनमें से एक यह भी है कि धर्मधारी भारत का पुनरुत्थान एक दैवीय अभियान है , जो पूर्णता को प्राप्त हुए बिना अब कतई नहीं रुकेगा , किन्तु वृहतर धार्मिक समाज को इससे दृढ़तापूर्वक जुड़े रहना होगा ।   मनोज ज्वाला

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