प्रवक्ता डॉटकॉम अब वेब मीडिया में जान-पहचाना नाम हो गया है. भले ही इसके जन्म को 5 वर्ष पूरे हो रहे हैं, लेकिन अब यह शैशवकाल पूरे कर अपने पूरे जवानी को जी रहा है.
एक मीडिया एक्टिविस्ट के रूप में मेरी शुभकामना यही है कि संजीव सिन्हा और प्रवक्ता डॉट कॉम दोनों ही चिरयौवन बने रहें. संजीव सिन्हा सिर्फ संचारक ही नहीं है, बल्कि नए मीडिया के सेनानी भी हैं. प्रवक्ता डॉट कॉम को स्थापित करते हुए वे नए मीडिया की अनेक चुनौतियों से दो-चार होते रहे हैं. अब भी हो रहे हैं. वेब मीडिया जो अभी तक ठीक से खिल भी नहीं सका है, लेकिन उसके ऊपर एक साथ कई आपदाएं आ पड़ी हैं. संजीव जैसे लोग जो कार्पोरेट मीडिया के हिस्से नहीं है, इसलिए उनके खिलाफ हैं. भले ही किसी संगठन और विचारधारा से जुड़े हों, लेकिन वेब-मीडिया की दुनिया में असंगठित ही हैं. फिर भी नए मीडिया में अवसरों को लगातार तलाश रहे हैं. नए-पुराने लेखकों का संजाल बना रहे हैं और पूरी शिद्दत के साथ इस क्षेत्र में डते हैं तो उनके जज्बे और उनकी क्षमता को सलाम!
मैंने पत्रकारिता की पढाई की, प्रशिक्षण लिया, लेकिन मैं पत्रकार कम हूँ, मीडिया एक्टिविस्ट ज्यादा. इसी कारण अनेक अखबारों, पत्रिकाओं, टीवी चैनल, वेबसाईट, नेटवर्किंग साइट्स और मीडिया संगठनों से सतत् जुडाव बना रहता है. अपनी पत्रकारीय शिक्षा और प्रशिक्षण का औचित्य सिद्ध करने और पत्रकारों के बीच काम करने की आवश्यकता को पूरा करने के लिए भी तमाम मीडिया प्रयासों से जुड़े रहने की कोशिश करता हूँ. मेरा व्यक्तिगत मानना है कि मीडिया की इस मायावी और भयावह दुनिया में नए लेखकों की पहचान ब-मुश्किल बन पाती है. स्थापित और बड़े अखबारों में नए लोगों के लिए काफी कम गुंजाईश है. ऐसी स्थिति में प्रवक्ता डॉट कॉम जैसे मंच एक बड़े सहारे की तरह होते हैं. एक बड़ा फ़ायदा यह होता है कि कई बार कई बड़े अखबार प्रवक्ता जैसी स्थापित साईट से लेखक की पहचान या स्तर देखे बिना भी आलेख-फीचर उपयोग कर लेते हैं. जाने-अनजाने नए लेखकों को को पहचान और दखल मिल जाती है.
प्रवक्ता से जुड़ने से पहले मैं अनाम तो नहीं था. लेकिन प्रवक्ता ने अपने प्रथम १० लेखकों की सूची में मेरा नाम दर्ज कर मुझे एक नया हैसियत तो दे ही दिया. प्रवक्ता और विस्फोट, दो वेबसाईट हैं जिनके कारण मैं कई और साइट्स का अतिथि लेखक हो गया. यह सच है कि नियमित की बजाय नैमित्तिक लेखक होने के कारण न तो प्रवक्ता और ना ही विस्फोट की अपेक्षाओं पर खरा उतर पाया, लेकिन यह भी एक बड़ा सच है कि बा-रास्ता विस्फोट और प्रवक्ता मैंने संजय तिवारी जी और संजीव सिन्हा जी के दिलों में जगह बना ली. सच कहें तो इसी तरह के अनुभवों ने पिछले दो सालों से नये मीडिया के मित्रों का जुटान करने की प्रेरणा दी. पिछले साल भी और इस साल भी नए मीडिया के अनेक दिग्गजों से संपर्क-संवाद हुआ. भोपाल में आयोजित “मीडिया चौपाल” एक मिसाल बन गया है. अब नए मीडिया के संचारक भी संगठित होने का प्रयास करने लगे हैं. इसमें एक सुखद संयोग यह है कि इस जुडाव में क्षेत्र, आर्थिक स्तर और विचारधारा कभी बाधक नहीं बन पाया.
प्रवक्ता डॉट कॉम की 5 वीं सालगिरह और कुछ दे न दे इतना तो दे ही जाएगा कि भोपाल चौपाल का तार दिल्ली से जुड़ जाएगा. हम एक-दूसरे से कुछ शिकवे-शिकायत करेंगे. आने वाले दिनों में उसे दूर करने का वादा करेंगे, फिर मिलेंगे का नारा देंगे, और यही सब करते हुए नए मीडिया को सुदृढ़ करने का निरंतर ताना-बुनते जायेंगे. हम सशक्त होंगे, अपने से जुड़े संचारकों को ताकत देंगे. हम सब मिलकर मीडिया पर कारपोरेट का एकाधिकार तोड़ेंगे. मीडिया को सच में लोकतांत्रिक और विकेन्द्रित आकार देंगे. देखते हैं कैसे समाज सशक्त नहीं होता.
मैं इस मौके पर इतनी कामना करने का अधिकारी तो हूँ ही कि संजीव जी और प्रवक्ता डॉट कॉम ऐसे फलते-फूलते रहें. दोनों से हमारा सम्बन्ध और अधिक प्रगाढ़ हो.
एक वादा जरूर करता हूँ कि प्रवक्ता डॉट कॉम के लिए जो अभी तक नहीं कर सका वो आने वाले दिनों में करने की ईमानदार कोशिश करूंगा.