जल प्रलय के सन्देश ?

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तनवीर जाफ़री
भारत के पंजाब राज्य को सबसे उपजाऊ धरती के राज्यों में सर्वोपरि गिना जाता है। इसका मुख्य कारण यही है कि यह राज्य खेती के लिये सबसे ज़रूरी समझे जाने वाले कारक यानी पानी के लिये सबसे धनी राज्य है। सिंधु नदी की पांच सहायक नदियाँ सतलुज, ब्यास, रावी, चिनाब और झेलम इसी पंजाब राज्य से होकर बहती हैं। इन पांचों नदियों में केवल व्यास ही एक ऐसी नदी है जो केवल भारत में बहती है शेष सतलुज, रावी, चिनाब और झेलम नदियाँ भारत से होते हुये पाकिस्तान में भीप्रवाहित होती हैं। यही नदियां जो पंजाब को उपजाऊ भूमि बनाने और यहाँ की संस्कृति का आधार समझी जाती हैं इन दिनों यही नदियां भारत से लेकर पाकिस्तान तक जल प्रलय का कारण बनी हुई हैं। इन नदियों के उफान पर होने का कारण जम्मू कश्मीर व हिमाचल प्रदेश जैसे पहाड़ी क्षेत्रों में लगातार होने वाली तेज़ बारिश यहाँ तक कि अनेक स्थानों पर बादल फटने जैसी घटनाओं को माना जा रहा है।
दरअसल पिछले कुछ दिनों हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और पंजाब के जलागम क्षेत्रों में असामान्य रूप से भारी बारिश हुई। कई ज़िले तो ऐसे भी थे जहाँ केवल एक ही दिन में पूरे एक महीने की बारिश दर्ज की गई। जैसे केवल अमृतसर और गुरदासपुर में 150-200 मिमी से अधिक वर्षा दर्ज हुई। इससे शहरी जलनिकासी प्रणाली पूरी तरह फ़ेल हो गयी। दुर्भाग्यवश हमारे देश के अधिकांश राज्यों में बरसाती जल निकासी प्रणाली प्रायः फ़ेल ही रहती है। भ्रष्टाचारयुक्त निर्माण से लेकर सरकारी अम्लों की अकर्मण्यता व ग़ैर ज़िम्मेदार जनता द्वारा नाले नालियों में अवांछित वस्तुओं की डम्पिंग यहाँ तक कि मरे जानवर से लेकर रज़ाई गद्दे बोतलें प्लास्टक पॉलीथिन आदि सब कुछ नालों व नालियों में फ़ेंक देने जैसी ग़ैर ज़िम्मेदाराना प्रवृति, जल निकासी प्रणाली के फ़ेल होने में सबसे अहम भूमिका निभाती है।
एक ओर तो भारी बारिश व जलभराव उसके बाद भारत के सबसे विशाल भाखड़ा नंगल डैम, पोंग डैम रणजीत सागर डैम व शाहपुर कंडी जैसे डैम्स से अतिरिक्त पानी का छोड़ा जाना भी पंजाब की बड़े हिस्से की तबाही का कारण बन गया। इन डैम्स से पानी छोड़ना भी इसलिये ज़रूरी हो गया था क्योंकि इनमें इनकी क्षमता से अधिक जलभराव हो गया था। उदाहरण के तौर पर भाखड़ा डैम का जल स्तर 1,671 फीट तक पहुँच गया था तो पोंग डैम का जलस्तर भी अधिकतम से ऊपर चला गया था। इसी के परिणाम स्वरूप राज्य की सतलुज, ब्यास और रावी नदियाँ उफान पर आ गईं थीं। भारत से पानी छोड़ने के कारण ही पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त में भी बाढ़ आई, जहाँ रावी, सतलुज और चेनाब नदियाँ प्रभावित हुईं। इस स्थिति के मद्देनज़र भारत ने पहले ही मानवीय आधार पर पाकिस्तान को तीन चेतावनियाँ जारी कर दी थीं।
भारतीय पंजाब के जो ज़िले इस भीषण जल प्रलय में प्रभावित हुये उनमें गुरदासपुर, पठानकोट, होशियारपुर, कपूरथला, अमृतसर, तरन तारन, फिरोज़पुर व फ़ज़िल्का के नाम ख़ासतौर पर उल्लेखनीय हैं जबकि लुधियाना और जालंधर में भी बढ़ का प्रभाव देखने को मिला। दर्जनों पुल टूट गये,सैकड़ों पशु बह गये अनेक वाहन तेज़ बहाव में समा गये। लाखों एकड़ फ़सल तबाह हो गयी ,तमाम मकान बह गये या क्षतिग्रस्त हो गये। दर्जनों जगह से हाईवे व मुख्य मार्ग बंद हो गये। और इस प्रलयकारी हालात से जूझने में कई जगह पंजाब का वह किसान स्वयं को असहाय महसूस करता दिखाई दिया जो हमेशा पूरी हिम्मत व हौसले के साथ दूसरों की सेवा सत्कार के लिये तत्पर दिखाई देता है। एक अनुमान के अनुसार राज्य के 500 से अधिक गांव डूबे गये इन गांवों में लगभग 6,600 से अधिक लोग फंसे थे। अमृतसर के रामदास क्षेत्र में रावी नदी का धुसी बांध टूट गया, जिससे 40 गांव डूब गए। इसी तरह गुरदासपुर में लगभग 150, कपूरथला में क़रीब 115, और अमृतसर में लगभग 100 गांव इस प्रलयकारी बाढ़ से बुरी तरह प्रभावित हुये। गोया इस बार की बाढ़ ने कृषि-प्रधान पंजाब की अर्थव्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित कर दिया। इस बाढ़ के चलते सैकड़ों घर, 300 से अधिक स्कूल अनेक सड़कें, पुल और बिजली लाइनें आदि क्षतिग्रस्त हो गयीं । अमृतसर में गुरुद्वारा बाबा बुढ़ा साहिब डूब गया। कई जगह रेल यातायात बाधित हुआ अनेक ट्रेन्स कैंसिल कर दी गयीं। हाईवे टूटने व क्षतिग्रस्त होने के चलते 1,000 से अधिक सड़कें बंद कर गयीं । अकेले वैष्णो देवी में बारिश के चलते हुये भूस्खलन से 30 से अधिक मौतें होने की ख़बर है।
अभी तक जो अनुमान लगाया जा रहे उसके मुताबिक़ धान, गन्ना व मक्का की लगभग 1.5 लाख एकड़ फ़सल पूरी तरह डूब गई। पंजाब में लगभग 3 लाख एकड़ से अधिक भूमि जलमग्न हो गयी। इन बाढ़ग्रस्त क्षत्रों के किसानों को सितंबर-अक्टूबर में होने वाली रबी की फ़सलों में भी नुकसान की आशंका बनी हुई है। पंजाब में आई बाढ़ से हुआ अरबों रुपये का यह नुक़सान खाद्य मुद्रास्फीति को भी प्रभावित करेगा। बाढ़ और बारिश-संबंधी हादसों से भारत व पाकिस्तान में अनेक मौतें भी हुई हैं जबकि अनेक लोग लापता भी हो गए हैं। इसी तरह हज़ारों पशुओं के बह जाने, मरने,बीमार पड़ने के साथ साथ उनके चारों की भी भारी कमी दर्ज की जा रही है। इन्हीं हालात में बीमारियों का भी ख़तरा बढ़ गया है। इससे पर्यटन उद्योग भी बुरी तरह प्रभावित हुआ है।आपदा के इस समय में सेना एनडीआरएफ़ व एसडीआरएफ़ द्वारा 5,000 से अधिक लोगों की जान बचाई गयी व उन्हें सुरक्षित स्थानों पर पहुँचाया गया। इन ऑपरेशन्स में चिनूक हेलीकॉप्टर, चीता हेलीकॉप्टर,नावें और एम्फीबियन वाहन इस्तेमाल किये गये ।
पंजाब और ख़ासकर पहाड़ी क्षेत्रों में होने वाली असाधारण बारिश व बादल फटने जैसी अनेक घटनाओं ने मौसम वैज्ञानिकों व विशेषज्ञों को हैरत में डाल दिया है। इन हालात के लिये जहाँ दुर्लभ परिस्थितियों में पूर्वी, दक्षिणी और पश्चिमी मौसम प्रणालियों के एक साथ आने को ज़िम्मेदार माना जा रहा है वहीं ग्लेशियर का लगातार पिघलते जाना भी बाढ़ को और अधिक भयावह बना रहा है। माना जा रहा है कि यह बाढ़ 1988 की उस भीषण बाढ़ से भी प्रलयकारी है जिसे हज़ार वर्षों में एक बार आने वाली बाढ़ की संज्ञा दी गयी थी। गोया हमें जल प्रलय के इस सन्देश को समझना होगा कि इन हालात के लिये ग्लोबल वार्मिंग के परिणामस्वरूप होने वाला जलवायु परिवर्तन ही सबसे अधिक ज़िम्मेदार है। और निश्चित रूप से विकास और इसके नाम पर पैदा किये गये ग्लोबल वार्मिंग के यह हालात पूरी तरह मानवजनित हैं।

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